Friday, September 21, 2018

पितृ पक्ष कब और पितरों को कैसे करें प्रसन्न

पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
जानिए किस तिथि को कौन सा श्राद्ध आएगा
24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या


घर पर आसान उपायों से पितरों को कर सकते हैं प्रसन्न
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है | इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है | पिंडदान के लिए फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है | यहां पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. कहा जाता है कि गया में पहले अलग-अलग नामों के 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था | इनमें से अब 48 ही बची है और इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं | यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है. इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं.

क्या है पिंड
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है. प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है. पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं.


श्राद्ध की विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज. दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है.
जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो, उस दिन सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लिए जाए। इसके लिए सुबह उठकर स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।

यदि संभव हो, तो घर के आंगन में रंगोली बनाएं। घर की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। जो श्राद्ध के अधिकारी व्यक्ति हैं, जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के अधिकारी जो दामाद, भतीजा आदि हो सकते हैं, उन्हें न्यौता देकर बुलाएं। इस दिन निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।

पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर का अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें। दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद भोजन थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसें।

ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करे और कर्ता क्रोघ न करें। प्रसन्नचित होकर भोजन परोसें। भोजन के उपरांत यथाशक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें। इसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक (जिसे महादान कहा गया है) का दान करें। इसके बाद निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। ब्राह्मण को चाहिए कि स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

श्राद्ध में बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेशर, कनेर, कचनार एवं लाल रंग के पुष्प का उपयोग वर्जित है। इसमें श्वेत पुष्प ही उपयोग में लाएं। श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से अनिवार्य हैं। शास्त्र में कहा गया है कि पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है। साथ ही आपके कार्य व्यापार, शिक्षा अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें दूर हो जाएंगी। 

Tuesday, September 11, 2018

नरक की भागीदार


कहानी
यह उस वक्त की कल्पना है जब औरतें बहुत ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलती थी, पर्दाप्रथा थी और स्त्रियां अपने पति का नाम लेने में शर्म और संकोच महसूस करती थी। कुछ स्त्रियां तो ऐसी भी होती थी जो अगर कहीं किसी जगह खो भी जाये और उनका पता ठिकाना या पति का नाम पूछा जाए तो भी पति का नाम नहीं लेती थी, बल्कि इशारों में पति का नाम बताती थी। मसलन हरिलाल तो हरी हरी चूड़ियां दिखाती थी या पत्ते और लाल माथे का सिंदूर दिखाती थी। सामने वाला गफलत में ही रहता था क्या नाम हो सकता है देवी जी के पति का? चलिये मिलते हैं गाँव-गलियों में उस समय की स्त्रियों से ...।

"ऐ दुलारी चल अभय अंधेर है जल्दी जल्दी जाई के आई जावा जाए।"  माथे का पल्लू ठीक करते हुए कम्मो हाथ में लोटा लिए जल्दी-जल्दी बाहर आई और चंपा को आवाज दी, "चंपा कमीनी कहां मर गई, जल्दी कर", बोलते हुए दुलारी और वह बाहर की ओर बढ़ने लगे कि इतने में चंपा भी आ गई और उनके साथ में हो ली। पास की एक दो और औरतें भी उनके साथ हो लीं। "ऐ कम्मों", दुलारी ने आवाज दी, "हां बोल", कम्मो कहते हुए खेत की ओर बढ़ने लगी। "मेला घूमै चलिहौ का?" "ऐ हां, मेला लगा है ना, चलौ घूम आवा जायै।" कम्मो बोली। "जरा एक दो जनि से और पूछ लेओ मन्नो, रज्जो, बिट्टो औउर तुलसा से भी पूछ लेओ, मेला चलिहैं का?"  दुलारी ने कहा और खड़ी होकर बाहर आ गई। कम्मो बोली, "अरे सुनो सब जनि, मेला लगा है चलिहौ का सब घूमैं?" रज्जो बोली, "जिज्जी, घर का सारा काम पड़ा है कैइसे जइबै"? बिट्टो भी बोली, "सासू मइया से पूछैक परिहै"। आखिर में तुलसा बोली सब जनि जल्दी-जल्दी काम निपटा लैओ फिर चला जाये।  इतना कहकर सब औरतें अपने अपने घर की ओर रवाना हो गई। रज्जो काम निपटाते - निपटाते अपनी सासू जी को मक्खन भी लगाते जा रही थी। "अरे अम्मा जी, मेला लगा है, आपके खातिर साल लै आई ? ऊ पहिले वाली तो पुरानि हुइ गय है और उमें छेद -छेद हुई गए हैं औउर  मुन्ना के चड्डी और बनियान भी लेत अइबै"। अम्माजी सब समझ रहीं थीं कि बहूरानी को घूमने जाना है बोलीं, " ठीक है लेकिन अंधेरा होये के पहिलै घर आये जायो"। रज्जो मन ही मन खुश हो गई और "जी अम्मा" कह कर जल्दी-जल्दी काम निपटाने में लग गई। कम्मो ने भी अपना काम खत्म किया और अपने पति को कहा, "अजी सुनते हो हम जा रहे हैं सबके साथ मेला देखने घंटा दुई घंटा मा आई जइबै"। अब मियां बिचारे कुछ बोले नहीं बस हुक्का गुड़गुड़ाते रहे। सभी स्त्रियां दुलारी के घर पर जमा हुई और मेला देखने चल पड़ी।

ऐ बिट्टो तुम अपने घर का बोलकर आई हो ? रज्जो ने पूछा। बिट्टो बोली, "ऐ दिद्दा हम तो कहे कि हम चूड़ी, बिंदी औउर लाली लेक जाइत हन"। मन्नो बोली, "अरे हम तो जल्दी-जल्दी काम निपटावा और निकल लिहेन"। ऐसे ही अपनी-अपनी बताते हुए सब औरतें घूमने निकल लीं। मेले में पहुंचने पर सब कोकाबेली की तरह इधर उधर देखने लगी। कोई कपड़े की दुकान पर खड़ी हो जाती, कोई लाली, बिंदी में उलझ जाती। "दुलारी देखो तो ई बड़ी वाली बिंदी माथे पर नीक लागत है कि नाहीं"? कम्मो ने पूछा। "जिज्जी आप तो ना ई टीके वाली बड़ी बिंदी लगाओ, अच्छी लगिहै"। "ऐ भाई ई फुंदना कैइसे दिहो "? तुलसा एक दुकान वाले से उलझ गई और भाव-ताव करने लगी। रज्जो बोली, "हमका अम्मा के लिए साल ले क है उनसे कहि आयन हैं कि आपके लिए साल लेत अईबै।"  सभी औरतें घूमते-घूमते अपने सामान लेने में व्यस्त हो गई। खरीदी करते - करते बिट्टो की नजर चाटवाले ठेले पर गयी। रज्जो का चाट खाने के लिए जी ललचाया और सबसे बोली, "देखौ अब पांव दुखै लगे हैं और भूख भी लग आई है, चलो वहां बैठ के कुछ खाय लिहा जाए।" रज्जो जल्दी-जल्दी जाकर जगह दबा लेती है और दुकानदार को बोलती है, "ऐ काका आलू की टिकिया बना दियो जरा और देखौ जरा चटपटा बनायो"। "ऐ मन्नो तू का खायेगी? कम्मो ने पूछा"? जिज्जी हम तो पानी के बताशे खायेंगे, बहुत दिन हो गए खाये नहीं" तभी बीच में बिट्टो बोल पड़ी, "अरे काका हमरी भी आलू की टिकिया बनाई देओ औउर दही जरा ज्यादा डाल्यो "। सभी स्त्रियां हंसी ठिठोली कर रहीं थीं और खा कर फिर से मेले में घूम-घूमकर वस्तुएं देखने लगी। फिर एक झूले के पास आकर रुक गई। वहां एक जगह तमाशा चल रहा था दुलारी बोली, "कम्मो तुमाये जीजा के साथ आई थी एक बार तमाशा देखै"। "कीकै साथ"! कमला बोली। "तुमरे भाईया के साथ" दुलारी ने जवाब दिया। कम्मो चिढ़ाने वाले अंदाज में बोली, "ऐ रहन दो, भैया तो हमरे हैं तुमरे थोड़ी...भईया का नाम का है" ? कम्मो बोली। "अरे ! तुमको तो पता है न कि अपने ईहां नाम नहीं लिया जात है" दुलारी बोली। "तो ईहां कौन सुन रहा है अपनी सबकी बात"। ऐ बोलो ना एक बार अपने उनका नाम"। कम्मो मजा लेने वाले मूड में बोली। दुलारी को बहुत ज्यादा शर्म आ गई और वो नीचे की ओर देखने लगी। "देखो, हमारी कसम है अब बोल भी दो नहीं तो हम बात नहीं करेंगे, हां"। रज्जो ने भी कम्मो का साथ दिया। अब दुलारी बड़ी परेशानी में आ गई, कहने लगीं कि "हम उनका नाम कैसे लें सरम आवत है हमका"। "अरे तो जरा धीरे से बोलो ना, कोई नाहीं सुनेगा।" कम्मो हंसते हुए बोली। "अच्छा तू ही बता दे तेरे भैया का नाम तुझे तो पता है ना, बड़ी आई"। दुलारी चिढ़ कर बोली।
"अपने यहां हम कभी नाम लेकर नहीं बुलाते उनको, अब जल्दी से बोलो जिज्जी बहुत टेम खा रही हो" रज्जो बोली। "ऐ जाओ हम ना बात करिबै, का फालतू की बात लेकर बैइठ गयी हौ।" दुलारी ने फिर से सफाई दी। "लो कर लो बात ईमा कौउन सी फालतू बात होई गई औउर ईहां कहां सबके सामने बोलेक है, यहां कौउन बाहेर का है, सब अपनी तो है"। माथे का पल्लू आगे सरका कर दांतों में दबाकर धीरे से दुलारी बोली, "उनके नाम....ऐ हटो घर जाये मा देर हो रही है" हमसे ना होगा"। दुलारी बाहर जाने लगी पर कम्मो भी जबरी थी, हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोली, "जब तक बोलोगी नाहीं तब तक कोई नहीं जायेगा।" आंखे बड़ी-बड़ी करके दुलारी बोली, "ऊ जो कन्हैया जी है ना वही तो है नाम उनका"। "नाम बोलो नाम उनका" अबकी तुलसा बोली। "ओ उनका नाम किशन लाल है"। धीरे से कहकर दुलारी ने मुंह छुपा लिया। अब तेरी बारी है, तू बोल तेरे घर वाले का नाम क्या है? दुलारी बदला लेने की गरज से पूछने लगी। "काहे? काहे बताई? तुमका का काम"? कम्मो तुनककर बोली | तुलसा बोली, "भौजी तुम दुलारी से पूछिहौ और अपना ना बतिहौ, ई तो गल्त बात है"। अब तुमरी बारी है तो अब तुम बताय दिओ अपने घर वाले का नाम औउर ज्यादा नाटक ना करो"। कम्मो को पति का नाम सोचते ही शर्म आने लगी।  "अरे जल्दी बोलो, हमसे तो पूछ लिया अब अपनी बारी में इत्ता शर्माए रही हो" दुलारी बोली। "सब लोग उनका प्यार से जग्गू कहते हैं"। सभी औरतें खिलखिलाकर हंस पड़ी। कम्मों ने मुंह बनाया और कहने लगी, "बस यही के खातिर हम नाही बताई रहे थे" हंस लो सब जनि"। "ऐ तुलसा अब एक तू ही बची है जल्दी से तू भी बता दे अपने उनका नाम" रज्जो बोली। मगर तुलसा बहुत पक्की थी कहने लगी कि, "नाम ना लेब, उनकी उम्र कम हुई जहियै, औउर पाप लगी सो अलग"। मन्नो बोली, "अरे बोलो ना सब ने तो बोला ना बड़ी आई ही पाप लगाने वाली, चल जल्दी से बता"। "नाहीं हम ना बतईबै, हमको नरक में थोड़ी जाना है, चलो सब जनि बहुत देर हो गई घर पहुंचत पहुंचत अंधेर हो जाहियै, चलौ जल्दी करौ"। और सब औरतें घर के लिए निकल लीं। तो आखिर तुलसा नरक की भागीदार नहीं बनी और सब घर की ओर रवाना हो गए।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी