कहानी
यह उस वक्त की कल्पना है जब औरतें बहुत ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलती थी, पर्दाप्रथा थी और स्त्रियां अपने पति का नाम लेने में शर्म और संकोच महसूस
करती थी। कुछ स्त्रियां तो ऐसी भी होती थी जो अगर कहीं किसी जगह खो भी जाये और उनका पता ठिकाना या पति का नाम पूछा जाए तो भी
पति का नाम नहीं लेती थी, बल्कि इशारों में पति का नाम बताती थी। मसलन
हरिलाल तो हरी हरी चूड़ियां दिखाती थी या पत्ते और लाल माथे का सिंदूर दिखाती थी।
सामने वाला गफलत में ही रहता था क्या नाम हो सकता है देवी जी के पति का? चलिये मिलते हैं गाँव-गलियों में उस समय की स्त्रियों से ...।
"ऐ दुलारी चल अभय अंधेर है जल्दी जल्दी जाई के आई
जावा जाए।" माथे का पल्लू ठीक करते हुए कम्मो हाथ में लोटा
लिए जल्दी-जल्दी बाहर आई और चंपा को आवाज दी, "चंपा कमीनी कहां
मर गई, जल्दी कर", बोलते हुए
दुलारी और वह बाहर की ओर बढ़ने लगे कि इतने में चंपा भी आ गई और उनके साथ में हो
ली। पास की एक दो और औरतें भी उनके साथ हो लीं। "ऐ कम्मों", दुलारी ने आवाज दी, "हां बोल", कम्मो कहते हुए
खेत की ओर बढ़ने लगी। "मेला घूमै चलिहौ का?"
"ऐ हां, मेला लगा है ना, चलौ घूम आवा जायै।" कम्मो बोली। "जरा
एक दो जनि से और पूछ लेओ मन्नो, रज्जो, बिट्टो औउर तुलसा से भी पूछ लेओ, मेला चलिहैं का?" दुलारी ने कहा और खड़ी होकर बाहर आ गई। कम्मो
बोली, "अरे सुनो सब जनि, मेला लगा है
चलिहौ का सब घूमैं?" रज्जो बोली, "जिज्जी, घर का सारा काम पड़ा है कैइसे जइबै"? बिट्टो भी बोली, "सासू मइया से पूछैक परिहै"। आखिर में तुलसा
बोली सब जनि जल्दी-जल्दी काम निपटा लैओ फिर चला जाये। इतना कहकर सब औरतें अपने अपने घर की ओर रवाना हो
गई। रज्जो काम निपटाते - निपटाते अपनी सासू जी को मक्खन भी लगाते जा रही थी।
"अरे अम्मा जी, मेला लगा है, आपके खातिर साल
लै आई ? ऊ पहिले वाली तो पुरानि हुइ गय है और उमें छेद
-छेद हुई गए हैं औउर मुन्ना के चड्डी और बनियान भी लेत अइबै"।
अम्माजी सब समझ रहीं थीं कि बहूरानी को घूमने जाना है बोलीं, " ठीक है लेकिन अंधेरा होये के पहिलै घर आये
जायो"। रज्जो मन ही मन खुश हो गई और "जी अम्मा" कह कर जल्दी-जल्दी
काम निपटाने में लग गई। कम्मो ने भी अपना काम खत्म किया और अपने पति को कहा, "अजी सुनते हो हम जा रहे हैं सबके साथ मेला देखने
घंटा दुई घंटा मा आई जइबै"। अब मियां बिचारे कुछ बोले नहीं बस हुक्का
गुड़गुड़ाते रहे। सभी स्त्रियां दुलारी के घर पर जमा हुई और मेला देखने चल पड़ी।
ऐ बिट्टो तुम अपने घर का बोलकर आई हो ? रज्जो ने पूछा।
बिट्टो बोली, "ऐ दिद्दा हम तो कहे कि हम चूड़ी, बिंदी औउर लाली लेक जाइत हन"। मन्नो बोली, "अरे हम तो जल्दी-जल्दी काम निपटावा और निकल
लिहेन"। ऐसे ही अपनी-अपनी बताते हुए सब औरतें घूमने निकल लीं। मेले में
पहुंचने पर सब कोकाबेली की तरह इधर उधर देखने लगी। कोई कपड़े की दुकान पर खड़ी हो
जाती, कोई लाली, बिंदी में उलझ
जाती। "दुलारी देखो तो ई बड़ी वाली बिंदी माथे पर नीक लागत है कि नाहीं"? कम्मो ने पूछा। "जिज्जी आप तो ना ई टीके वाली बड़ी बिंदी लगाओ, अच्छी लगिहै"। "ऐ भाई ई फुंदना कैइसे दिहो "? तुलसा एक दुकान वाले से उलझ गई और भाव-ताव करने लगी। रज्जो बोली, "हमका अम्मा के लिए साल ले क है उनसे कहि आयन हैं
कि आपके लिए साल लेत अईबै।" सभी औरतें घूमते-घूमते
अपने सामान लेने में व्यस्त हो गई। खरीदी करते - करते बिट्टो की नजर चाटवाले ठेले
पर गयी। रज्जो का चाट खाने के लिए जी ललचाया और सबसे बोली, "देखौ अब पांव दुखै लगे हैं और भूख भी लग आई है, चलो वहां बैठ के कुछ खाय लिहा जाए।" रज्जो जल्दी-जल्दी जाकर जगह दबा
लेती है और दुकानदार को बोलती है, "ऐ काका आलू की
टिकिया बना दियो जरा और देखौ जरा चटपटा बनायो"। "ऐ मन्नो तू का खायेगी? कम्मो ने पूछा"? जिज्जी हम तो
पानी के बताशे खायेंगे, बहुत दिन हो गए खाये नहीं" तभी बीच में
बिट्टो बोल पड़ी, "अरे काका हमरी भी आलू की टिकिया बनाई देओ औउर दही
जरा ज्यादा डाल्यो "। सभी स्त्रियां हंसी ठिठोली कर रहीं थीं और खा कर फिर से
मेले में घूम-घूमकर वस्तुएं देखने लगी। फिर एक झूले के पास आकर रुक गई। वहां एक
जगह तमाशा चल रहा था दुलारी बोली, "कम्मो तुमाये
जीजा के साथ आई थी एक बार तमाशा देखै"। "कीकै साथ"! कमला बोली।
"तुमरे भाईया के साथ" दुलारी ने जवाब दिया। कम्मो चिढ़ाने वाले अंदाज में
बोली, "ऐ रहन दो, भैया तो हमरे
हैं तुमरे थोड़ी...भईया का नाम का है" ? कम्मो बोली।
"अरे ! तुमको तो पता है न कि अपने ईहां नाम नहीं लिया जात है" दुलारी
बोली। "तो ईहां कौन सुन रहा है अपनी सबकी बात"। ऐ बोलो ना एक बार अपने
उनका नाम"। कम्मो मजा लेने वाले मूड में बोली। दुलारी को बहुत ज्यादा शर्म आ
गई और वो नीचे की ओर देखने लगी। "देखो, हमारी कसम है अब
बोल भी दो नहीं तो हम बात नहीं करेंगे, हां"।
रज्जो ने भी कम्मो का साथ दिया। अब दुलारी बड़ी परेशानी में आ गई, कहने लगीं कि "हम उनका नाम कैसे लें सरम आवत है हमका"। "अरे
तो जरा धीरे से बोलो ना, कोई नाहीं सुनेगा।" कम्मो हंसते हुए बोली।
"अच्छा तू ही बता दे तेरे भैया का नाम तुझे तो पता है ना, बड़ी आई"। दुलारी चिढ़ कर बोली।
"अपने यहां हम कभी नाम लेकर नहीं बुलाते उनको, अब जल्दी से बोलो जिज्जी बहुत टेम खा रही हो" रज्जो बोली। "ऐ जाओ
हम ना बात करिबै, का फालतू की बात लेकर बैइठ गयी हौ।" दुलारी
ने फिर से सफाई दी। "लो कर लो बात ईमा कौउन सी फालतू बात होई गई औउर ईहां
कहां सबके सामने बोलेक है, यहां कौउन बाहेर का है, सब अपनी तो है"। माथे का पल्लू आगे सरका कर दांतों में दबाकर धीरे से
दुलारी बोली, "उनके नाम....ऐ हटो घर जाये मा देर हो रही
है" हमसे ना होगा"। दुलारी बाहर जाने लगी पर कम्मो भी जबरी थी, हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोली, "जब तक बोलोगी
नाहीं तब तक कोई नहीं जायेगा।" आंखे बड़ी-बड़ी करके दुलारी बोली, "ऊ जो कन्हैया जी है ना वही तो है नाम उनका"।
"नाम बोलो नाम उनका" अबकी तुलसा बोली। "ओ उनका नाम किशन लाल
है"। धीरे से कहकर दुलारी ने मुंह छुपा लिया। अब तेरी बारी है, तू बोल तेरे घर वाले का नाम क्या है? दुलारी बदला
लेने की गरज से पूछने लगी। "काहे? काहे बताई? तुमका का काम"? कम्मो तुनककर बोली | तुलसा बोली, "भौजी तुम दुलारी से पूछिहौ और अपना ना बतिहौ, ई तो गल्त बात है"। अब तुमरी बारी है तो अब तुम बताय दिओ अपने घर वाले
का नाम औउर ज्यादा नाटक ना करो"। कम्मो को पति का नाम सोचते ही शर्म आने लगी। "अरे जल्दी बोलो, हमसे तो पूछ
लिया अब अपनी बारी में इत्ता शर्माए रही हो" दुलारी बोली। "सब लोग उनका
प्यार से जग्गू कहते हैं"। सभी औरतें खिलखिलाकर हंस पड़ी। कम्मों ने मुंह
बनाया और कहने लगी, "बस यही के खातिर हम नाही बताई रहे थे" हंस
लो सब जनि"। "ऐ तुलसा अब एक तू ही बची है जल्दी से तू भी बता दे अपने
उनका नाम" रज्जो बोली। मगर तुलसा बहुत पक्की थी कहने लगी कि, "नाम ना लेब, उनकी उम्र कम
हुई जहियै, औउर पाप लगी सो अलग"। मन्नो बोली, "अरे बोलो ना सब ने तो बोला ना बड़ी आई ही पाप
लगाने वाली, चल जल्दी से बता"। "नाहीं हम ना बतईबै, हमको नरक में थोड़ी जाना है, चलो सब जनि बहुत
देर हो गई घर पहुंचत पहुंचत अंधेर हो जाहियै, चलौ जल्दी
करौ"। और सब औरतें घर के लिए निकल लीं। तो आखिर तुलसा नरक की भागीदार नहीं
बनी और सब घर की ओर रवाना हो गए।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
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