Sunday, May 13, 2012

सिनेमा, सेक्स और सियासत

हैदराबाद। बाॅलीवुड की तर्ज पर टाॅलीवुड की नाकाम अभिनेत्री तारा चैधरी को सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में बंजारा हिल्स पुलिस ने मार्च के आखिरी हफ्ते में गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी विशाखापट्टम की श्री लक्ष्मी की शिकायत पर हुई। तारा इससे पहले 2005 में भी एक बार गिरफ्तार हुई थी, तब पुलिस के एक उच्चाधिकारी के दबाव के चलते उसे छोड़ दिया गया था। तारा के पति आर दुर्गा प्रसाद भी अपने दोस्त हनीफ के साथ उसकी मदद करते थे। तारा ने पुलिस के सामने माना कि उसके नियमित ग्राहकों में पांच कैबिनेट मिनिस्टर, दो कांग्रेसी सांसद और दो तेलगूदेशम पार्टी के एमएलसी व कई युवा विधायक, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के अलावा कई अभिनेता हैं।
    तारा की बात की सच्चाई जाहिर करती है अवकाश प्राप्त पुलिस महानिदेशक एम.भास्कर की उच्चन्यायालय में दाखिल की गई अग्रिम जमानत की अर्जी। हालांकि उन्होंने अपनी सफाई में प्रेस से कहा, ‘मैं तारा को जानता हूं। वो मेरे नाम का गलत फायदा उठाती रही है। इसीलिए पुलिसिया उत्पीड़न से बचने के लिए मैंने ऐसा किया।’ हालांकि पुलिस ने किसी वीआईपी के नाम का खुलासा नहीं किया फिर भी कांग्रेस के सांसद रायपति संभाशिव राव और कृषि मंत्री कन्ना लक्ष्मी नारायण के नाम सुर्खियों में हैं। तारा का आरोप है कि सांसद उसका उपयोग अपने राजनैतिक मामले निपटाने के लिए किया करते थे। उन्होंने 1 करोड़ रूपए की पेशकश अपने विरोधी नेता लक्ष्मीनारायण को बदनाम करने के लिए की थी। वे दोनों हमारी लड़कियों को इस्तेमाल करते थे। दोनों नेताओं ने तारा के आरोपों को खारिज किया है।
    तारा का असली नाम रावेल्ला राजेश्वरी है। उसने पुलिस के सामने 2005 से सेक्स रैकेट चलाने की बात कबूली है। तारा के रैकेट में दो दर्जन से अधिक सुन्दर लड़कियाँ थीं। वो इन्हें हैदराबाद, विजाॅग व बंगलौर के उच्चवर्गीय ग्राहकों के पास भेजती थी। वो एक ग्राहक से 50 हजार से लेकर एक लाख तक वसूलती थी। जो ग्राहक उसकी लड़कियां नहीं मांगते उन्हें मोबाइल क्लिपिंग या सीडी के जरिए ब्लैकमेल तक किया जाता था। इसी तरह जो लड़की उसके साथ काम करने से मना करती उसे भी बदनाम करने की धमकी दी जाती थी। तारा इन लड़कियों को 15 हजार रूपया प्रति सप्ताह खर्च के लिए देती थी।
    यहां बताते चलें कि इन लड़कियों को फिल्मों में काम दिलाने का लालच देकर फंसाया जाता था। तारा पिछड़े क्षेत्र के प्रकाशम् जिले से 2002 में स्नातक पास करने के बाद हैदराबाद फिल्मों में काम करने की नियत से आई थी। उसने तीन फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किये, लेकिन किसी अच्छी फिल्म में काम नहीं मिला तब निराश होकर वह ऊँचे दर्जे की काॅलगर्ल हो गई। उसके बंजारा हिल्स के मकान व पास के एक गेस्ट हाउस में गई रात तक तमाम वीआईपी आते-जाते रहते थे। तारा इन वीआईपी ग्राहकों की बातचीत से लेकर उनके अंतरंग क्षण तक की रेकर्डिंग मोबाइल व लैपटाप में सुरक्षित रखती थी। पुलिस ने लगभग दो सौ आॅडियों सीडी भी बरामद की है। इसी का भय दिखाकर ग्राहकों व लड़कियों को बदनाम कर देने की धमकी भी देती थी।
    तारा के ग्राहकों की फेहरिश्त में टाॅलीवुड और राजनीति की कई नामी गिरामी हस्तियों के साथ पुलिस के आला अफसर भी थे, वहीं वह हेलीकाफ्टर हादसे में मारे गये आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी के साथ अपने फोटो का भी बखूबी इस्तेमाल करती। तारा की गिरफ्तारी ने राजनैतिक हल्कों में खासी हलचल मचा रखी है।

हा.... इ इ ई... सेक्सी.... क्राइम

मुंबई। सिनेमा की दुनिया में बेताब ग्लैमर, बेचैन सेक्स और बेखौफ अपराद्द ने जहां युवाओं को आकर्षित किया, वहीं पल भर में टपोरी से करोड़पति बनने के नुस्खे ने भी खासी शोहरत पाई। इसी ख्याति में छोटे पर्दे का तड़का पूरी दुनिया को ललचाने लगा। नतीजे में पाकिस्तान से लंदन तक की युवतियों ने बाॅलीवुड के कैमरे के सामने अपने सारे कपड़े उतार कर फेंक दिये। देश भर के छोटे शहरों से ‘हीरो’ बनने की तमन्ना पाले मायानगरी पहुंचे तमाम नाकाम नौजवान हाथों ने हथियार थाम लिये। फिर ‘हिरोइन’ बनने की कतार में लगी युवतियों में कइयों की देह पर आपराधिक उत्पात होने लगे और समन्दर की छाती पर अग्नेयास्त्रों के धमाके।
    साठ के दशक में अक्खी मुंबई पर हाजी मस्तान का राज था। मस्तान के संबंध फिल्मी दुनिया की कई हस्तियों से थे, तो फिल्म अभिनेत्री सोना उनकी प्रेमिका/पत्नी रहीं। 80-90 के दशक में डाॅन दाऊद इब्राहीम की प्रेमिकाएं रहीं ‘राम तेरी गंगा मैली’ से चर्चा में आई अभिनेत्री मन्दाकिनी और बड़े सितारों के साथ घूमकेतू की तरह आईं और गायब हुई ममता कुलकर्णी। इसी दौड़ में शामिल रही कई जेलों की यात्राएं करने वाली मोनिका बेदी। अबू सलेम ‘डी’ कम्पनी का बड़ा नाम मोनिका का शौहर रहा। इन सभी नामों ने काफी सुर्खियां बटोरी। आज भले ही दाऊद का सिक्का मैला हो गया हो, लेकिन शाइनी आहूजा, शक्ति कपूर, अमन वर्मा, मधुर भंड़ारकर, प्रीति जैसे नामों की सुर्खियों के साथ माॅडल/अभिनेत्री सिमरन सूद, नूपुर मेहता, रोजलीन खान के नामों की खासी चटखारेदार चर्चा है। सिमरन हत्या के अपराध में गिरफ्तार हैं। उनके साथ उनके खाबिंद रहे विजय पलांडे भी सीखचों के पीछे हैं। वहीं अभिनेत्री मीनाक्षी थापा की हत्या उन्हीं के दो साथी कलाकारों ने कर दी। उनका धड़ इलाहाबाद में बरामद हुआ। सर पुलिस अभी तलाश रही हैं। तो कौन-कौन हाल के दिनों में मायानगरी से अपराध के अग्निकुड में गिरा, एक नजर देखते हैं।
मीनाक्षी थापा: 2005 में ‘शहर’ फिल्म और पिछले साल 404 में मीनाक्षी ने छोटे-मोटे रोल किये थे।
दो सहकलारों अमित-प्रीति ने 15 लाख फिरौती न मिलने के कारण मीनाक्षी की हत्या कर दी।
    26 साल की मीनाक्षी देहरादून में नृत्य की शिक्षिका थी। उसने एमकेपी कालेज से स्नातक तक शिक्षाप्राप्त की थी। विमानन का डिप्लोमा भी ले रखा था। बावजूद उसके नृत्य से लगाव के चलते उसका अंतिम लक्ष्य उसे मुंबई की फिल्मी दुनिया ले गया। इसी मायानगरी में निर्माता-निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म ‘हिरोइन’ के सेट पर इलाहाबाद के रहने वाले जूनियर आर्टिस्ट अमित जायसवाल व प्रीति सूरी से हुई थी। इन दोनों ने मीनाक्षी को भोजपुरी फिल्मों में काम दिलाने का लालच देकर अपने शहर इलाहाबाद ले जाकर उसे कैद कर लिया व उसकी मां से 15 लाख रूपयों की फिरौती मांगी।
    अमित गले-गले तक कर्ज में डूबाथा। उसे पता चला था कि मीनाक्षी नेपाल के राजघराने से सम्बन्द्द रखती है। इसी बीच इलाहाबाद में प्रीति के पिता ने उसे अपने घर पर रखने से इंकार कर दिया था और मीनाक्षी की मां ने भी पैसा देने में अपनी मजबूरी जता दी थी, लेकिन मीनाक्षी के भाई पूर्व सैनिक नवराज ने उसके खाते में 60 हजार रूपए जमा कराये थे, जिसमें से 15 हजार रूपए मीनाक्षी के एटीएम से दोनों अपहरणकर्ताओं ने निकाले। हताश अपहरर्ताओं ने मीनाक्षी की हत्या कर दी। पुलिस ने मीनाक्षी का धड़ प्रीति के घर इलाहाबाद जार्ज टाउन के पास एक टैंक से बरामद किया है। सर की तलाश जारी है।
सिमरन सूद: 2004में समलैंगिकता पर आधारित सी-ग्रेड फिल्म ‘अनोखा अनुभव’ में काम किया।
    अरूण टिक्कू और करण कक्कड़ की हत्या में विजय पलांडे के साथ सह अभियुक्त है।
    सिमरन सूद 25 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते तमाम बिस्तरों की जीनत और संतोष शेट्टी गैंग के कुख्यात विजय पलांडे की तलाकशुदा पत्नी बन चुकी थीं। पलांडे उसका इस्तेमाल अपने कारोबारी फायदे के लिए करता था। पलांडे अनूपदास-स्वराज दास पिता-पुत्र हत्याकांड में जेल में था। 1998 में सिमरन की मदद से पैरोल पर बाहर आया था। पलांडे के संपर्क शक्तिशाली राजनेताओं, पुलिस के आला अफसरों और फिल्म जगत की नामचीन हस्तियों से थे। पलांडे ने ही सिमरन को अरूण टिक्कू के बेटे अभिनेता अनुज व फिल्म निर्माता करण कक्कड़ से मिलवाया था। पुलिस जांच में पता चला है कि करण सट्टेबाजी और देह व्यापार के बड़े रैकेट से जुड़ा था। उसने इन धंघों में नुकसान के चलते सिमरन सूद का सौदा एक बड़े व्यवसायी से करने की ठानी जिसका पता पलांडे को लग गया। पलांडे अपनी ‘सेंटर’ सहकर्मी को खोना नहीं चाहता था। इसके अलावा प्रापर्टी के भी झगड़े थे जिनमें उलझकर पलांडे ने करण की हत्या कर दी। इससे पहले पलांडे टिक्कू की हत्या उनके फ्लैट में कर चुका था। पुलिस की जांच जारी है।
मारिया सुसईराज: कन्नड़ फिल्मों छोटी-मोटी भूमिकाएं करती हुई बड़े रोल पाने के लिए संघर्षरत थीं।
    मारिया ने अपने प्रेमी एमिल जेरोम मैथ्यू के साथ टीवी एक्जीक्यूटिव नीरज ग्रोवर की हत्या अपने मलाड स्थित फ्लैट में की थी। यह अपराध मारिया ने 27 साल की उम्र में अपने मंगेतर के सामने अपने को पाक साफ साबित करने के लिए किया था। मारिया-जेरोम की सगाई हो चुकी थी। जेरोम नेवी में अधिकारी था। उसके बाहर रहने के दौरान मारिया के सम्बन्ध नीरज से हो गये। नीरज ने मारिया से अपनी कम्पनी के टीवी सीरियल में उम्दा रोल देने का वायदा कर उससे सम्बंध बना रखे थे।
    एक दिन मारिया का मंगेतर अचानक उसके फ्लैट पर पहुंच गया। उस समय मारिया नीरज के साथ थी। जेरोम ने नीरज की हत्या कर दी। हत्या के बाद मारिया ने जेरोम के साथ मिलकर नीरज के शरीर को टुकड़ों में करके प्लास्टिक के थैलों में भरकर जंगल सहित कई जगहों पर फेंक दिया। जेरोम ने बाद में पुलिस के सामने अफसोस जाहिर किया। वहीं मारिया ने कहा कि उसने साक्ष्य मिटाने में मदद करने के साथ जेरोम के निर्देशों का पालन किया।
रोजलीन खान: ब्रेस्ट कैंसर कार्यक्रम के लिए अद्दनंगी होकर फोटो खिंचाने से चर्चा में आई माॅडल और हाल ही में ‘धमाकल चैकड़ी’ फिल्म में काम मिला है। रोजलीन के अंतरंग सम्बन्ध करण कक्कड़ से बताए गये और सिमरन सूद से भी दोस्ती की बात कही गई लेकिन रोजलीन ने इससे साफ इन्कार कर दिया। पुलिस ने भी आरंभिक जांच के बाद फिलहाल उन्हें छोड़ दिया है।
    रोजलीन ने इसके तुरंत बाद मुंबई में पेटा (जानवरों के लिए काम करने वाले संगठन) के लिए एक कैम्पेन में सेमी न्यूड होकर (ब्लड बाॅथ) लाल रंग के टब में नहाते हुए फोटो शूट कराया हैं। रोजलीन को पिछले साल दिसंबर में मुंबई के एक ड्रग सिंडीकेट का खुलासा करने के लिए ‘लायना गोल्ड’ एवार्ड से नवाजा गया था। यह एवार्ड उन्हें अभिनेत्री दिया मिर्जा के हाथों मिला था।
नूपुर मेहता: सनी दयोल की फिल्म ‘जो बोले सो निहाल’ में छोटा सा रोल करने वाली नूपुर मेहता हाल में क्रिकेट में सट्टेबाजी को लेकर सुर्खियों में आईं। नूपुर फैन्टा की विज्ञापन फिल्म में काम कर चुकी हैं व पाइरल की कैलैण्डर गर्ल भी रही हैं। उनका नाम पिछले वल्र्डकप के दौरान इंडिया-पकिस्तान के बीच खेले गये मैच में मैच फिक्सिंग में बुकीस द्वारा उनके इस्तेमाल को लेकर खासा उछला था। मैच फिक्सिंग की पूरी खबर लंदन के ‘संडे टाइम्स’ में छपी थी। नूपुर ने इस सबसे इन्कार किया था। उसने अखबार पर 10 करोड़ की मानहानि का मुकदमा भी दायर किया हैं। उसकी योजना है कि इन रूपयों से वह फिल्में बनायेगी।
    नूपुर शेखर सुमन के मशहूर शो ‘मूवर्स एण्ड शेखर्स’ मे ंभी 15 मिनट के लिए बतौर मेहमान दिखी थी। ‘बिग बाॅस’ में भी दिखाई दी थीं। नूपुर सेवानिवृत सेना के अद्दिकारी की बेटी हैं।
मोनिका बेदी: 1995-2003 तक लगभग 16-17 फिल्मों में काम करने वाली मोनिका बेदी का नाम डाॅन दाऊद इब्राहीम के दाहिने हाथ रहे अबू सलेम की पत्नी के रूप में खूब सुर्खियों में आया। हस्तिनापुर में पैदा हुईं नार्वें में पली बढ़ी 39 साल की मोनिका ‘बिग बाॅस’ के घर में भी रह चुकी हैं। वे 2002 में सलेम के साथ आईं। उन्हें फर्जी पासपोर्ट के मामले में पुर्तगाल में गिरफ्तार किया गया। भारत प्रत्यापर्ण के बाद पांच साल की सजा 2006 में हुई थी तब उन्हें हैदराबाद जेल में रहना पड़ा था। आंद्द्र प्रदेश हाई कोर्ट ने उन्हें तीन साल बाद ही रिहाई दे दी। अपनी रिहाई के बाद से वे स्ट्रगल कर रही है।

गलियों में खड़े वाहन या यमदूत

लखनऊ। रहने को एक कोठरी, खाना, नहाना बमुश्किल गलियारे में... मगर हैं दो-तीन बाइकों या आॅटो टैम्पो के मालिक। ये बाइकें/आॅटो चार-पांच फीट की गलियों में पार्क रहती हैं। अगर गली सात-आठ फिट चैड़ाई लिए है तो चार पहिया वाहन भी पार्क दिखाई दे जायेंगे। शहरों में यह आम नजारा है। राजद्दानी लखनऊ में नई उग आई कालोनियों में घरों के दरवाजे फुटपाथों पर बाकायदा जाली से घेरकर गैराज की शक्ल दे दी गई है। इससे बदतर हालात पुराने लखनऊ की गलियों-सड़कों में हैं। बाजारों, काम्पलेक्सों और माॅल के सामने अतिक्रमण की गई पार्किंग अखबारों, पुलिस, नगर निगम को बंद आंखों से भी दिखाई दे जाती है, लेकिन खुली आंखों से भी गलियों में नाजायज पार्किंग किसी को नहीं दिखाई देती।
    इस तरह की पार्किंग से कई नुकसान हो रहे हैं और किसी बड़े हादसे से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। गरमी अपनी तपिश बढ़ाने लगी है, मच्छरों, आवारा जानवरों के मेले में कूड़ा-कचरे के साथ नालियों में गंदगी की रेल-पेल सड़ांध बढ़ा रही है। कचरा उठ नहीं पा रहा है, गलियों में झाड़ू लग नहीं पा रही है। नगर निगम को भवन/जलकर न देने वाले जिम्मेदार नागरिक अपने घरों व व्यावसायिक स्थलों का कूड़ा गलियों/सड़कों पर फेंक निश्ंिचत हो जाते हैं। कई समझदार कूड़े में आग लगा देते हैं। इससे जहां संक्रामक रोग के खतरे संभावित हैं, वहीं अग्निकांड जैसे हादसे भी संभावित हैं।
    गलियों में सफाईकर्मी अव्वल तो पहुंचते नहीं, यदि पहुंचते हैं तो उनकी कूड़ा-कचरा उठाने वाली ठेला गाड़ी अन्दर जा ही नहीं पाती। चार फिट की गली में दो फीट में बाइकों की कतार होती है। यहीं हाल आठ फीट की गली का भी होता है। सफाईकर्मी भी अपनी हाजिरी बजाकर गायब हो जाता है, फिर कूड़े के ढेर पर कुत्तों/गाय-सांड का राज होता है। कचरा बीनने वाले अपने मतलब का सामान उसमें से बीनकर अक्सर उसमें आग लगा देते हैं। ऐसे हालातों में यदि कोई बड़ा अग्निकांड हो गया तो दमकल के लोग गलियों में अपने साजो-सामान के साथ कैसे पहुंचेंगे? इससे भी बदतर बजबजाते कचरे से फैलनेवाले संक्रामक रोग से निपटने के लिए राहतकर्मी गलियों के भीतरी हिस्सों में कैसे पहुंचेगे? और भी बड़ा सवाल है कि इसका जिम्मेदार कौन होगा? नगर निगम, यातायात पुलिस या वे लोग जो गलियों में अवैधरूप से अपने दो-तीन या चार पहिया वाहन खड़े करते हैं।
    गौरतलब है नगर निगम ने सफाईकर्मियों की निगरानी के लिए सुपरवाइजर भी तैनात किये हैं, मगर मजाल है कि वे गलियों में झांक लें। यदि सफाईकर्मी या सुपरवाइजर अपने अद्दिकारियों को इन वाहनों से आनेवाली दिक्कतों के चलते सफाई न हो पाने की बात बताएं तो शायद हल निकल सकता है। इसी तरह नागरिक भी अपनी जिम्मेदारी समझें तो शायद इस समस्या का हल आसानी से निकल सकता है। क्या कोई हादसा होने से पहले कोई इस समस्या के निदान के लिए पहल करेगा?

नाम-पता बताओ तो बिठाएंगे!

लखनऊ। कहां जाओगे... किस जगह उतरोगे.... कितने लोग हो... क्या सामान है...? ये वो सवाल हैं, जिनका सामना राजधानी की एक बड़ी आबादी को रोज करना पड़ता है। आॅटो व रिक्शेवाले सवारी बैठाने से पहले इस तरह के सवाल आमतौर पर करते है। खैरियत है कि वे यह नहीं पूछते कि फलां जगह क्यों जाओंगे? अलबत्ता सफर के दौरान बातचीत में नाम-पता पूंछना नहीं भूलते। हां, अगर सवारी महिला/लड़की है तो फिर कुछ नहीं पूंछना। पैसे भी कम दे तो चलेगा। सवारी को तय जगह से पहले ही उतार देना, पैसों के लिए झगड़ना, रास्ते भर ऊंची आवाज में गाने बजाना आम बात है। रिक्शेवाले एक फर्लांग जाने के लिए दस-पन्द्रह रूपए किराया वसूलते हैं। चारबाग स्टेशन से हुसैनगंज बीस-पच्चीस तो अमीनाबाद के लिए तीस-चालीस रूपए किराया लेते हैं, वहीं आॅटोवाले पांच रूपए। रिक्शेवालों में कई तो सवारी को बुजुर्ग या लड़की देखते हैं तो बताते बीस हैं और गंतव्य पर तीस मांगते हैं। यह इसलिए कि सुनने समझने के फेर में तमाशाई भीड़ भी गरीब रिक्शेवाले के साथ खड़ी हो जाती है। इसी तरह आॅटो वाले भी अनाप-शनाप किराया वसूलते हैं। आॅटांे में सवारी करना लड़कियों के लिए तो बेहद तकलीफदेह है। बसों में जहां खुलेआम छेड़छाड़ होती है, वहीं आॅटो में उनके ड्रªाईवर अमिताभ/अमिर खान के सिनेमाई अंदाज में लड़कियों से बाकायदा प्रेम पींगे बढ़ाने की हिमाकत तक कर बैठते हैं। इसी कारण शहर में स्कूटी/बाइक  पर फर्राटा भरते लड़के- लड़कियों की बाढ़ सी आ रही है। शहर के सभ्रान्त परिवारों में वाहनों के बढ़ने का एक कारण आॅटो चालकों की मनमानी भी है। इन आॅटो/रिक्शावालों पर कोई अंकुश लगाने वाला भी नहीं है।

क्रांतिदिवस पर चलो जंतर-मंतर

लखनऊ। अखिल भारतीय लोकाधिकार संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री पद्मनाथ त्रिपाठी ने गए सप्ताह प्रेस से कहा कि राजधानी लखनऊ जहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं विद्दानसभा के साथ सभी प्रशासनिक प्रमुखों के कार्यालय एवं निवास है, वही स्थान आज घपले-घोटालों और हत्याओं का गढ़ बन गया है, निवर्तमान शासन में भ्रष्टाचार एवं सरकारी खजाने की लूट की सारी सीमाएं पार कर जो कीर्तिमान स्थापित किये गये हैं वो अत्यन्त ही पीड़ा दायक है।
    गत विधानसभा चुनाव में सपा के 224 विधायक चुन कर आये हैं यह आश्चर्यजनक नहीं है। सबसे बड़ी आश्चर्यजनक घटना यह है कि इतने बड़े घपले-घोटालों के जनक के भी 80 प्रत्याशी भी चुनकर आ गये, यह वर्तमान राजनैतिक पतन की पराकाष्ठा एवं जनतंत्र का खुल्लम-खुल्ला उपहास है। इसमें जनता का भी दोष है। प्रजातंत्र को नोटतंत्र और गणतंत्र को लूटतंत्र में बदलने, राजनैतिक दलों को बेनकाब करने हेतु गए सप्ताह दारूलशफा में अखिल भारतीय लोकाद्दिकार संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक बैठक में विचार-विमर्श के पश्चात आठ सूत्री निर्णय लिया गया।
1.    संगठन में जो महत्वपूर्ण लोग जुड़े है या जुड़ेंगे उनकी अभिरूचि, व दक्षता, कर्मठता एवं योग्यता के आधार पर उन लोगों को पद एवं दायित्व सौंपने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री दिनेश कुमार शर्मा जी को अद्दिकृत किया गया है।
2.    संगठन के कार्यालय हेतु व्यवस्था करने के लिए राष्ट्रीय महामंत्री श्री पद्मनाथ त्रिपाठी जी को अधिकृत किया गया जो मा0 लोक निर्माण मंत्री श्री शिवपाल यादव जी से मिलकर कार्यालय को आवंटित कराने का प्रयास करेंगे। इनके साथ श्री एस0के0 जेटली जिलाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री डी0के0 शर्मा
    साथ में रहेंगे।
3.    संगठन के उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार हेतु एक समिति गठित की गयी जिसमें श्री संजय मिश्रा उर्फ गुल्लू, श्री ओ0पी0 सक्सेना, श्री मुख्तार अली, श्री सच्चिदानन्द पाठक उर्फ मुन्ना को नामित किया गया।
4.    संगठन में महिला मोर्चा गठित किये जाने का भी निर्णय लिया गया जिसमंे श्रीमती रजनी गुप्ता, डाॅ0 नलिनी खन्ना एवं सुश्री हुमा परवीन आदि बैठक में उपस्थिति हुई।
5.    कृषकों को समुचित संसाधन उपलब्द्द कराये जाने आदि जैसे उत्तम बीज, शुद्ध रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाएं, पर्याप्त जल एवं कृषि संयत्र समय पर तथा सस्ती दरों पर उपलब्द्द कराये जाने का निर्णय लिया गया।
6.    वेतन भोगी कर्मचारियों एवं पेंशनरों से आयकर न लिया जाय एवं सेवानिवृत के लाभ एक समान हांे तथा राष्ट्रीय वेतन नीति को शीघ्र बनाये जाने तथा प्रबंधतंत्र में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करायी जाय।
7.    जी0पी0ओ0 को क्रांतिकारी शहीद अशफाकउल्ला के नाम पर राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाय तथा सभी क्रांतिकारियों के इतिहास को शिलापट पर अंकित किया जाय।
8.    भ्रष्टाचार एवं अन्य मांगों के सम्बन्द्द में क्रांति दिवस 09 अगस्त, 2012 को मेरठ से दिल्ली तक की रैली तथा जंतर-मंतर पर सभा को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अगली बैठक दिल्ली/नोएडा में किये जाने का निर्णय लिया गया तथा रैली एवं सभा को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी अध्यक्ष श्री दिनेश कुमार शर्मा को अधिकृत किया गया।

तो ऐसे होगी बिजली की बचत

लखनऊ। ‘अर्थ आॅवर’ अभियान में एक घंटा बिजली बंद रखने का उत्सव मोमबत्ती जलाकर मनाये हुए पैतालिस दिन बीत चुके हैं। बिजली की कमी का रोना रोने वाले सूबे के 18 लाख उपभोक्ता, वह अपील भी भूल गये, जिसमें एक घंटा रोज बिजली की बचत करने को कहा गया था। इस बचत से 3.42 करोड़ रूपए की बचत की जा सकती थी। इसके साथ ही बिजली उपभोक्ताओं को सलाह दी गई थी वे अपनी सुविधा के अनुसार बिजली का इस्तेमाल करें।
    आमतौर पर अनावश्यक रूप से बिजली का खर्च किया जाता है, जिससे बिजली का संकट बरकरार रहता है। इसी तरह ‘अर्थ आॅवर डे’ पर जहां लोगों ने एक घंटे बिजली बंद रखी, वहीं पूरे घर में और घर के बाहर दीये व मोमबत्ती जलाकर दीवाली जैसा नजारा पैदा किया। इससे बचत से अद्दिक खर्च तो हुआ ही साथ ही प्रदूषण भी फैला।
    इससे भी आगे बिजली चोरी का खतरनाक खेल लगभग पूरे सूबे में सुनियोजित तरीके से चल रहा है। नये अमीरों के घरों में व जगह-जगह उग आये काम्पलेक्सों में आजकल एसी संयंत्रों की भरमार हैं। इनमें अधिकतर चोरी की बिजली से चलाए जा रहे हैं। सूबे के लाखों घरों में विद्युत कर्मचारियों की मिली भगत से बिजली चोरी का खेल जारी है। नहीं तो क्या वजह है कि उपभोक्ता खुलेआम बिजली के पोल से सीधे कनेक्शन जोड़कर बगैर मीटर लगाए बिजली जला रहा है।
    ऐसे में बिजली बचाने की अपील भला किसे सुनाई देगी। हर बात पर कैंडिलमार्च निकालने वाले और भ्रष्टाचार की अलख जगाने वाले खुद को ऐसे भ्रष्टाचार से अलग करने की पहल करेंगे? या इसी तरह बेमौसम दीवाली मनाकर अपने आपको ही ठगते रहेंगे।

लखनऊ-दुबई उड़ते कबूतर

लखनऊ। अस्सलाम-आलै-कुम बाद खैरियत मालूम होकृ. आपको छत पे नंगे सिर देखा तो अश... अश.. कर उठा... जाने...। यह लाइने बजरिये कबूतर लाये गये खतों के मोहब्बताना मजमून के हुआ करते थे। हां.. नवाबीनों के वक़्त में अपनी... उनको मोहब्बत का इजहार करने... पैगाम भेजने में कबूतरों का इस्तेमाल हुआ करता था। लखनऊवा कबूतरबाजी के हजारों किस्से सआदतगंज से सफेदाबाद औ आलमबाग से अशर्फाबाद तक दफ़्न हैं। आह.. आ.. आ.. आ.. की आवाजें आज भी कभी-कभी बशीरतगंज-चैक से काकोरी तक की छतों पर सुनई दे जाती हैं। मगर आजकल इन कबूतरों से बड़ी कबूतरबाजी का फैलाव लखनऊ में हो रहा है। ये कबूतर इंसान हैं जो अपने मुल्क से गैरमुल्क (विदेश) भेजे जाते हैं। इनकों भेजनेवाले बहेलिए (कबूतरबाज) पूरे सूबे में अपना जाल फैलाए हैं। इनका साथ राजनेता, पुलिस, व्यापारी और धर्मनेता दे रहे हैं। मजे की बात है कि इस खेल में सूबे के आजमगढ़, मऊ, बनारस जिलों के लोग बेहद सक्रिय हैं।
    लखनऊ में नए बने काम्पलेक्सों में कई में विदेश भेजने का काम ‘एक्सपोर्ट’ ‘एन्टरप्राइजेस’, ‘कन्सल्टेन्सी’ के बोर्ड लगाकर अवैध रूप से हो रहा। नेशनल हाइवे नं0 25 पर विधानसभा से महज दो फर्लांग दूरी पर इस तरह के दसियों अवैध आफिस खुले हैं। इनमें रोज सैकड़ों की तादाद में लोग आते हैं। इन्हें पासपोर्ट बनवाने बीजा दिलाने, हवाई यात्रा का टिकट कराने, डाॅक्टरी कराने, फोटो खिंचाने, होटलों, गेस्ट हाउसों में ठहराने का काम इसी आफिस के मालिक-मैनेजर -कर्मचारी धड़ल्ले से कर रहे हैं। इनमें से शायद ही किसी के पास श्रम मंत्रालय की मान्यता या पंजीकरण हो। यही एजेंसियां अवैध रूप से टैक्सियों का भी संचालन करती हैं। दुबई, शारजाह व सऊदी से आने वाले मजदूर व अन्य कर्मी लखनऊ से दूरदराज इलाकों में जाने के लिए प्राइवेट नम्बर की कारों का इस्तेमाल करते हैं। इसकी बुकिंग पहले से ही हो जाती हैं। इससे दुर्घटनाओं के समय जहां यात्रियों को मुआवजे/चिकित्सा आदि में असुविधा का सामना करना पड़ता है, वहीं राज्य सरकार के परिवहन विभाग को राजस्व का भी नुकसान होता है।
    इससे भी आगे ‘मैन पाॅवर सप्लाई’ के इस अवैध धंधे में लगे लोग इन्हीं श्रमिकों के जरिए भारतीय सामान अवैद्द रूप से बगैर कर अदा किये ही नहीं भेजते बल्कि विदेशी सामान भी बगैर नियत शुल्क अदा किये मंगा लेते हैं। इनमें बनारसी साड़ी, इत्र, तम्बाकू पान मसाला मुख्यतः भेजे जाते है; तो आते हैं परफ्यूम, सिगरेट, सोने के जेवर, लैपटाॅप जैसी वस्तुएं। यह सब तय सीमा के अन्दर ही होता हैं। गौर करने लायक है कि हर उड़ान में दस यात्री दो-दो बनारसी साड़ी ले गये और दस-दस ग्राम सोने के जेवर लाये हैं, तो एक साथ एक हवाई जहाज से 20 बनारसी साड़ी गईं और 100 ग्राम सोना आ गया। यह एक उदाहरण है, सामान तो इससे अधिक आता-जाता है। इन श्रमिक यात्रियों से इस तरह का सामान ‘कबूतरबाजों’ के एजेन्ट हवाई अड्डे पर ही या फिर उनके घरों पर जाकर ले लेते हैं। इसी तरह नकद रूपया भी आता है। साथ ही यह श्रमिक इन्हीं कबूतरबाजों से जुड़े व्यापारियों/धनिकों को अपनी कमाई के बैंक ड्राफ्ट  इन्हीं लोगों के नाम से भेजते हैं। जिसके बदले ये लोग उन श्रमिकों के घरों पर नकद पैसा पहुंचा देते हैं। गो कि कालेधन को सफेद करने का धंधा बड़े ही शातिराना ढंग से चलाया जा रहा है। यहां याद दिलाते चलें कि अभी अधिक दिन नहीं बीते जब सोने के साथ कानपुर के एक व्यक्ति को लखनऊ एयरपोर्ट पर पकड़ा गया था, जो काफी समय से सोना लाने का कैरियर था।
    यह जांच का मामला है। यदि इसकी जांच ईमानदारी से हो जाए तो कुछ खास बैंक खातों का ही खुलासा नहीं होगा बल्कि और बहुत कुछ नाजायज कारनामें सामने आएंगे। क्या पुलिस, राजस्व, कस्टम और आयकर विभाग कोई कदम उठाएगा?

अखबारनवीसी में हैं बड़े खतरे

झूठ के ठीहे पर सच को ठोंक पीटकर अपने माफिक गढ़ लेने की कला का इधर बड़ी तेजी से विकास हुआ है। इसी कला की काॅरपोरेट दुकानदारी का बड़ा और लुभावना नाम मीडिया है। इस एक शब्द को परिभाषित करने, परिमार्जित करने और प्रचारित करने के लिए जो हथकंडे अपनाए गए या अपनाए जा रहे हैं, उसे किसी भी नजरिये से ठीक नहीं कहा जा सकता। उससे समाज का भला भी नहीं होगा। बगैर पूरी पड़ताल किये, आधे-अधूरे सच के साथ बात कहने की महारत हासिल पत्रकारों की नुची-खुची और बदरंग जींस वाली नई कौम खुद भी गुमराह हैं और समाज को भी बदचलनी के रास्ते पर धकेलने को बजिद है। अखबारों में पिछले दिनों एक खबर छपी थी, ‘एक विदेशी महिला उप्र के मुख्यमंत्री से जनता दरबार में मिलने आई। उसके पास सूबे के रिक्शेवालों की गरीबी दूर करने व उनके हालातों में बेहतरीन बदलाव लाने की एक योजना भी थीं।’ इसी विदेशी युवती के बहाने उत्साहित एक चैनल ने रिक्शेवालों की तस्वीरें दिखाते हुए उनकी गरीबी, बदहाली और मेहनत की चीख बुलंद करने की कोशिश की। वे भूल गये कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।
    सूबे भर के हालात भले ही एक जैसे न हों, न ही पैसों की रेल-पेल में बराबरी हो, लेकिन सभी शहरों, कस्बों के रेलवे स्टेशनों/बस स्टेशनों के बाहर खड़े रिक्शे/आॅटो/टैम्पो का आचरण एक जैसा देखने को मिलेगा। राजधानी लखनऊ के रिक्शेवाले आमतौर पर एक दिन में आठ सौ से हजार रूपया कमा रहे हैं। जो रिक्शेवाले स्कूल जाने वाले बच्चों को ढो रहे हैं, उनकी आमदनी 25-30 हजार प्रतिमाह बैठ रही है। क्योंकि वे स्कूल के बाद सवारियों के अलावा सामान ढोने का काम भी करते हैं। इसी तरह सामान ढोने वाले ट्राॅली चालकों की आमदनी भी तीस-चालीस हजार रूपए प्रतिमाह है। उसके अलावा इनमें तमाम रिक्शाचालक रिक्शा मालिकों को किराया तक नहीं अदा करते। इनकी जेबों में मोबाइल, घरों में टी.वी., फ्रिज जैसी लग्जरी के साथ महंगे शैम्पू, ब्रांडेड कपड़े/ज्वैलरी के अलावा ब्रांडेड खाद्य सामग्री तक मिल जायेगी। बेशक इसे उनकी बेहद मेहनत का फल मानने से इन्कार नहीं किया जा सकता। मेरे निजी दो अनुभव हैं। सूबे का अति पिछड़ा इलाका सोनभद्र, इसके मुख्यालय राबटर््सगंज सेमिनार, पत्रकार सम्मेलन के चलते दो-तीन बार जाना हुआ। लखनऊ से चलने वाली त्रिवेणी एक्सप्रेस राबर्ट्सगंज आधी रात या अलसुबह में पहंचती हैं मुझे लेने मित्रों/शुभचिंतकों के वाहन समय से पहले पहुंच जाते हैं। बावजूद इसके पत्रकार आॅखंे/कान और दिमाग अपने पेशेगत आदत से देखते-सुनते हैं। स्टेशन से एक-डेढ़ किलोमीटर जाने का किराया एक दम्पत्ति से पचास रूपया तय हुआ। इसी तरह लखनऊ में ‘प्रियंका’ कार्यालय हुसैनगंज से चारबाग स्टेशन तक जाने का किराया रिक्शेवाले ने बीस रूपया मांगी। वहां जाकर तीस रूपए पर अड़ गया। यह बानगी उनकी कमाई का अन्दाज बताती है। रह गया खर्च तो दोनों जगहों पर आटे और पकी हुई रोटी एक है। यहां एक बात कहना नहीं भूलंगा कि डाॅ0 राम मनोहर लोहिया ने कभी किसी प्रसंग पर कहा था, ‘आदमी को बैठाकर आदमी रिक्शा खींचे, बेहद शर्मनाक है।’ वे अपने जीवन में कभी रिक्शे पर नहीं बैठे, होना तो यह चाहिए हम उन्हें इससे निजात दिलाने और उससे अच्छा रोजगार दिलाने की किसी योजना पर काम करते, सुझाव मांगते, उसे दिखाते लेकिन समाचार चैनलों पर खबर कम मनोरंजन के नाम पर फूहड़ तमाशे और अश्लील विज्ञापनों की भरमार है। और जब प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष इसके सुधार के लिए कोई टिप्पणी करते हैं, तो टुच्ची सोंच भड़क कर अपनी ‘भड़ास’ निकालने की हिमाकत कर बैठती हैं। उन्हें यह भी इल्म नहीं कि जस्टिस काटजू होने के लिए मीडिया की मोहताजगी की आवश्यकता नहीं होती।
    ‘सत्यमेव जयते’ का नारा लगाने में और आमिर खान की तरह कन्याभू्रण हत्या जैसे अहम् मामले को राजस्थान के दो पत्रकारों मनीष-मीना की मेहनत को छोटे पर्दे के जरिए उठाने में बड़ा फर्क है। पत्रकारिता बड़े जोखिम का काम है। खासकर रिपोर्टिंग में आने वाली तकलीफों का बयान तक नहीं किया जा सकता। दंगा, युद्ध, नक्सल/माओवादी या स्टिंग आॅपरेशन के समाचार कवरेज में जान हथेली पर रखकर काम करना पड़ता है। पुलिस, सियासतदानों और नौकरशाहों के गड़बड़झालों को उजागर करने में अपहरण से लेकर हत्या तक का शिकार होना पड़ता है। मैं स्वयं कई बार इन खतरों से दो-चार हो चुका हूं। छोटे-मझोले कहे जाने वाले अखबारों में छपता हैं कि कृषि क्षेत्र का 32हजार करोड़ रूपए का कर्ज बैंक के जरिए महानगरों में बांटा जा रहा है और उप्र, बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, मप्र. छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्यों के किसानों को बेहद कम ऋण बैंक दे रहे हैं। कर्ज न चुका पाने पर किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें भी छपती हैं। बड़े लोग जो किसानांे के हिस्सों को आसानी से पचा जाते हैं। उनकी आत्महत्या की खबर कभी सुर्खियों में नहीं होती? ऐसी खबरें लिखने/कवर करने के खामियाजे में अखबर के विज्ञापन तो बंद होते ही हैं और बोनस में हवालात, मुकदमें, मारपीट तक मिलते हैं।
    हम बड़े गर्व से कहते हैं, प्रेस लोकतंत्र का चैथा खंभा है, लेकिन हकीकत क्या हैं? पिछले साल दुनियाभर में 70 पत्रकारों की हत्या कर दी गई और सात सौ को जेल जाना पड़ा। घायलों और मुकदमों में फंसे पत्रकारों की सही गिनती कौन करेगा? इस जोखिम को उठाने से काॅरपोरेट पत्रकारों की नई कौम पूरी तरह परहेज करते हुए पांच सितारा सरकारी सुख भोगने में विश्वास रखेगी तो समाज का भला कैसे होगा? सच की हिफाजत कौन करेगा? ‘राम का नाम सत्य’ है सिर्फ भीड़ का जयकारा भर नहीं है। भारतीय जीवन की रग-रग में धड़कता विश्वास है। इसी विश्वास में दरार डालने के षड़यंत्र में लगे लोगों से हमें सावद्दान रहकर अपनी भूमिका निभानी होगी और सच का हलफनामा दाखिल करते रहना होगा।

मुंबई टू लखनऊ... रेल में आतंक!

मुंबई/लखनऊ। रेल के साधारण डिब्बे में यात्रा करना इन दिनों बेहद कष्टदायक हो रहा है। देश भर के स्कूलों में बच्चों की छुट्टियां हो रही हैं। इसी के चलते लोग बाग सपरिवार घूमने से लेकर नाना-नानी, दादा-दादी के पास दूर दराज जाने के लिए रेल की सवारी को मोहताज हैं। इस मोहताजी का फायदा पुलिस, टिकट कलेक्टर, दलाल, अपराधी, कुली, वेण्डर और भिखारी तक उठा रहे हैं। इससे अलग मौत का खौफ अलग सताता है। पिछले दिनों मुंबई की लोकल ट्रेन से हुए हादसे में चार लोग मारे गये और 17 घायल हुए थे। खबरों के मुताबिक पिछले दस सालों में मुंबई के आसपास हुई रेल दुर्घटनाओं में 40 हजार लोग मारे गये, जबकि इसी मुंबई में आतंकवादी हमलों में पिछले 20 सालों में 1900 लोग मारे गये। ऐसे हालातों में आदमी रेलयात्रा करने से पहले सौ बार सोंचे?
    पुलिस के जवान साधारण डिब्बे में यात्रा करने वालों पर बेवजह डंडे बरसाकर उनमें खौफ पैदा करके उनसे नाजायज उगाही करने में लगे हंै। मुंबई से लखनऊ, गोरखपुर या लखनऊ से मुंबई जाने वाले यात्रियों की भीड़ हर साल अप्रैल-जुलाई में बढ़ जाती है। इसी भीड़ को पुलिस वाले बेतहाशा पीटते हुए शिवाजी टर्मिनल व चारबाग स्टेशनों पर देखे जा सकते हैं। इसके पीछे सीट बेचने का धंधा बताया जाता है। एक सीट की कीमत टिकट के अलावा पांच सौ रूपए तक है यानी कुल एक हजार रूपए में जो सीट मिलती है वह भी जानवरों के बाड़े में एक खूंटे से भी कम होती है। सीट बेचने के इस धंधे में पुलिस, टीसी, कुली का त्रिगुट चांदी काट रहा है।
    साधारण डिब्बों के यात्रियों को पूरे सफर के दौरान हिजड़ों, भिखारियों, वेन्डरों की दादागीरी झेलनी पड़ती है। इससे भी आगे महिला यात्रियों की दुर्गति होती है। वे शौचालय तक नहीं जा पाती। भीड़-भाड़ में किसी तरह जगह बनाकर शौचालय तक पहुंचती हैं, तो वहां यही भिखारी/वेण्डर शोहदों की तरह खड़े इनकी आबरू बिगाड़ने के लिए पूरी ढिठाई से मौजूद रहते हैं।
    पिछले साल त्रिचूर (केरल) में चलती ट्रेन की सूनसान महिला बोगी में सौम्या नाम की 23 साल की लड़की के साथ भिखारी गोविंदाचामी ने बलात्कार की नीयत से हमला किया। लड़की के विरोध करने पर उसे ट्रेन से बाहर धकेल दिया। इसके बाद घायल लड़की को सूनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। इस मामले में वहां की एक त्वरित अदालत ने भिखारी गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई। इस प्रकरण में सबसे दुखद और आश्चर्यजनक यह है कि उस भिखारी का मुकदमा वहां के नामी वकील बीए अलूर ने लड़ा था। बाद में इसी वकील ने बताया कि भिखारी गोविंदाचामी व उसके कई साथी मुंबई अंडरवल्र्ड से जुड़े हैं व इन्हीं लोगों ने उसकी फीस चुकाई थी।
    रेलयात्रा के दौरान हादसों की कमी नहीं है। खाने-पीने का सामान हो या समाचार-पत्र सभी के दाम यात्रियों से तय कीमतों से अधिक वसूले जाते हैं। रद्दी खाना, बेस्वाद चाय भी महंगे दामों में जबरिया बेचे जाते हैं। इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र में धूम्रपान निषेध को लेकर जहां पुलिस खासी कमाई करती हैं, वहीं सिगरेट-बीड़ी पीने वाले भी नए-नए तरीके ईजाद करते हैं। पिछले दिनों मुंबई से आनेवाली पुष्पक ट्रेन से लखनऊ आये एक नौजवान दिनेश यादव ने बड़ा ही रोचक प्रसंग सुनाया। दिनेश को लखनऊ आना बेहद जरूरी था आरक्षण किसी भी श्रेणी में मिला नहीं, उसने जनरल बोगी में किसी तरह एक सीट खरीदी और यात्रा की। गनीमत थी कि सीट खिड़की की पास थी सो तमाम परेशानियों के साथ आक्सीजन की उपलब्धता पूरी यात्रा भर बनी रही। सामने की सीट पर आजमगढ़ निवासी बलईदीन यात्रा कर रहे थे। वे हर घंटे दो घंटे बाद एक बीड़ी सुलगा लेते। बीड़ी का धुआं दिनेश के लिए बेहद तकलीफदेह था। नासिक तक आते-आते उसका दम घुटने लगा। दिनेश ने बलईदीन से उसके बीड़ी पीने से होने वाली तकलीफ का हवाला देते हुए बाहर जाकर बीड़ी पीने का अनुरोध किया। बलईदीन ने झट से जवाब दिया, ‘बाबूजी अब आपका बीड़ी क्यार धुआं न लागी।’ इसके बाद उसने अपने थैले से अलम्युनियम का एक लोटा निकाला और बीड़ी सुलगाकर घुआं उसी लोटे में उगल दिया और लोटा खिड़की पर लगा दिया। यह काम वह बीड़ी के हर कश के साथ पूरे सफर में करता रहा। दिनेश की परेशानी घटने के साथ ही उसके इस कारनामें पर आश्चर्य के साथ अजीब सा मजा भी आया। क्योंकि डिब्बे का वातावरण तो ठीक रहा ही, साथ ही हवा के तेज बहाव के चलते आक्सीजन पर भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और अनपढ बलईदीन की खोज के क्या कहने। मुंबई से लखनऊ या लखनऊ से मंुबई आने-जाने वाली पुष्पक ट्रेन में सफर के दौरान आम यात्री कतई सुरक्षित नहीं है। दहशत में यात्रा करने वालों को कौन बचाएगा? सुरक्षित यात्रा का दावा करने वाली रेलवे या भारतीय पुलिस? या फिर यात्री स्वयं? है कोई सरकार या सरकारी आदमी या जनता का हमदर्द आदमी?