Sunday, May 13, 2012

गलियों में खड़े वाहन या यमदूत

लखनऊ। रहने को एक कोठरी, खाना, नहाना बमुश्किल गलियारे में... मगर हैं दो-तीन बाइकों या आॅटो टैम्पो के मालिक। ये बाइकें/आॅटो चार-पांच फीट की गलियों में पार्क रहती हैं। अगर गली सात-आठ फिट चैड़ाई लिए है तो चार पहिया वाहन भी पार्क दिखाई दे जायेंगे। शहरों में यह आम नजारा है। राजद्दानी लखनऊ में नई उग आई कालोनियों में घरों के दरवाजे फुटपाथों पर बाकायदा जाली से घेरकर गैराज की शक्ल दे दी गई है। इससे बदतर हालात पुराने लखनऊ की गलियों-सड़कों में हैं। बाजारों, काम्पलेक्सों और माॅल के सामने अतिक्रमण की गई पार्किंग अखबारों, पुलिस, नगर निगम को बंद आंखों से भी दिखाई दे जाती है, लेकिन खुली आंखों से भी गलियों में नाजायज पार्किंग किसी को नहीं दिखाई देती।
    इस तरह की पार्किंग से कई नुकसान हो रहे हैं और किसी बड़े हादसे से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। गरमी अपनी तपिश बढ़ाने लगी है, मच्छरों, आवारा जानवरों के मेले में कूड़ा-कचरे के साथ नालियों में गंदगी की रेल-पेल सड़ांध बढ़ा रही है। कचरा उठ नहीं पा रहा है, गलियों में झाड़ू लग नहीं पा रही है। नगर निगम को भवन/जलकर न देने वाले जिम्मेदार नागरिक अपने घरों व व्यावसायिक स्थलों का कूड़ा गलियों/सड़कों पर फेंक निश्ंिचत हो जाते हैं। कई समझदार कूड़े में आग लगा देते हैं। इससे जहां संक्रामक रोग के खतरे संभावित हैं, वहीं अग्निकांड जैसे हादसे भी संभावित हैं।
    गलियों में सफाईकर्मी अव्वल तो पहुंचते नहीं, यदि पहुंचते हैं तो उनकी कूड़ा-कचरा उठाने वाली ठेला गाड़ी अन्दर जा ही नहीं पाती। चार फिट की गली में दो फीट में बाइकों की कतार होती है। यहीं हाल आठ फीट की गली का भी होता है। सफाईकर्मी भी अपनी हाजिरी बजाकर गायब हो जाता है, फिर कूड़े के ढेर पर कुत्तों/गाय-सांड का राज होता है। कचरा बीनने वाले अपने मतलब का सामान उसमें से बीनकर अक्सर उसमें आग लगा देते हैं। ऐसे हालातों में यदि कोई बड़ा अग्निकांड हो गया तो दमकल के लोग गलियों में अपने साजो-सामान के साथ कैसे पहुंचेंगे? इससे भी बदतर बजबजाते कचरे से फैलनेवाले संक्रामक रोग से निपटने के लिए राहतकर्मी गलियों के भीतरी हिस्सों में कैसे पहुंचेगे? और भी बड़ा सवाल है कि इसका जिम्मेदार कौन होगा? नगर निगम, यातायात पुलिस या वे लोग जो गलियों में अवैधरूप से अपने दो-तीन या चार पहिया वाहन खड़े करते हैं।
    गौरतलब है नगर निगम ने सफाईकर्मियों की निगरानी के लिए सुपरवाइजर भी तैनात किये हैं, मगर मजाल है कि वे गलियों में झांक लें। यदि सफाईकर्मी या सुपरवाइजर अपने अद्दिकारियों को इन वाहनों से आनेवाली दिक्कतों के चलते सफाई न हो पाने की बात बताएं तो शायद हल निकल सकता है। इसी तरह नागरिक भी अपनी जिम्मेदारी समझें तो शायद इस समस्या का हल आसानी से निकल सकता है। क्या कोई हादसा होने से पहले कोई इस समस्या के निदान के लिए पहल करेगा?

No comments:

Post a Comment