लखनऊ। कहां जाओगे... किस जगह उतरोगे.... कितने लोग हो... क्या सामान है...? ये वो सवाल हैं, जिनका सामना राजधानी की एक बड़ी आबादी को रोज करना पड़ता है। आॅटो व रिक्शेवाले सवारी बैठाने से पहले इस तरह के सवाल आमतौर पर करते है। खैरियत है कि वे यह नहीं पूछते कि फलां जगह क्यों जाओंगे? अलबत्ता सफर के दौरान बातचीत में नाम-पता पूंछना नहीं भूलते। हां, अगर सवारी महिला/लड़की है तो फिर कुछ नहीं पूंछना। पैसे भी कम दे तो चलेगा। सवारी को तय जगह से पहले ही उतार देना, पैसों के लिए झगड़ना, रास्ते भर ऊंची आवाज में गाने बजाना आम बात है। रिक्शेवाले एक फर्लांग जाने के लिए दस-पन्द्रह रूपए किराया वसूलते हैं। चारबाग स्टेशन से हुसैनगंज बीस-पच्चीस तो अमीनाबाद के लिए तीस-चालीस रूपए किराया लेते हैं, वहीं आॅटोवाले पांच रूपए। रिक्शेवालों में कई तो सवारी को बुजुर्ग या लड़की देखते हैं तो बताते बीस हैं और गंतव्य पर तीस मांगते हैं। यह इसलिए कि सुनने समझने के फेर में तमाशाई भीड़ भी गरीब रिक्शेवाले के साथ खड़ी हो जाती है। इसी तरह आॅटो वाले भी अनाप-शनाप किराया वसूलते हैं। आॅटांे में सवारी करना लड़कियों के लिए तो बेहद तकलीफदेह है। बसों में जहां खुलेआम छेड़छाड़ होती है, वहीं आॅटो में उनके ड्रªाईवर अमिताभ/अमिर खान के सिनेमाई अंदाज में लड़कियों से बाकायदा प्रेम पींगे बढ़ाने की हिमाकत तक कर बैठते हैं। इसी कारण शहर में स्कूटी/बाइक पर फर्राटा भरते लड़के- लड़कियों की बाढ़ सी आ रही है। शहर के सभ्रान्त परिवारों में वाहनों के बढ़ने का एक कारण आॅटो चालकों की मनमानी भी है। इन आॅटो/रिक्शावालों पर कोई अंकुश लगाने वाला भी नहीं है।
No comments:
Post a Comment