मुंबई/लखनऊ। रेल के साधारण डिब्बे में यात्रा करना इन दिनों बेहद कष्टदायक हो रहा है। देश भर के स्कूलों में बच्चों की छुट्टियां हो रही हैं। इसी के चलते लोग बाग सपरिवार घूमने से लेकर नाना-नानी, दादा-दादी के पास दूर दराज जाने के लिए रेल की सवारी को मोहताज हैं। इस मोहताजी का फायदा पुलिस, टिकट कलेक्टर, दलाल, अपराधी, कुली, वेण्डर और भिखारी तक उठा रहे हैं। इससे अलग मौत का खौफ अलग सताता है। पिछले दिनों मुंबई की लोकल ट्रेन से हुए हादसे में चार लोग मारे गये और 17 घायल हुए थे। खबरों के मुताबिक पिछले दस सालों में मुंबई के आसपास हुई रेल दुर्घटनाओं में 40 हजार लोग मारे गये, जबकि इसी मुंबई में आतंकवादी हमलों में पिछले 20 सालों में 1900 लोग मारे गये। ऐसे हालातों में आदमी रेलयात्रा करने से पहले सौ बार सोंचे?
पुलिस के जवान साधारण डिब्बे में यात्रा करने वालों पर बेवजह डंडे बरसाकर उनमें खौफ पैदा करके उनसे नाजायज उगाही करने में लगे हंै। मुंबई से लखनऊ, गोरखपुर या लखनऊ से मुंबई जाने वाले यात्रियों की भीड़ हर साल अप्रैल-जुलाई में बढ़ जाती है। इसी भीड़ को पुलिस वाले बेतहाशा पीटते हुए शिवाजी टर्मिनल व चारबाग स्टेशनों पर देखे जा सकते हैं। इसके पीछे सीट बेचने का धंधा बताया जाता है। एक सीट की कीमत टिकट के अलावा पांच सौ रूपए तक है यानी कुल एक हजार रूपए में जो सीट मिलती है वह भी जानवरों के बाड़े में एक खूंटे से भी कम होती है। सीट बेचने के इस धंधे में पुलिस, टीसी, कुली का त्रिगुट चांदी काट रहा है।
साधारण डिब्बों के यात्रियों को पूरे सफर के दौरान हिजड़ों, भिखारियों, वेन्डरों की दादागीरी झेलनी पड़ती है। इससे भी आगे महिला यात्रियों की दुर्गति होती है। वे शौचालय तक नहीं जा पाती। भीड़-भाड़ में किसी तरह जगह बनाकर शौचालय तक पहुंचती हैं, तो वहां यही भिखारी/वेण्डर शोहदों की तरह खड़े इनकी आबरू बिगाड़ने के लिए पूरी ढिठाई से मौजूद रहते हैं।
पिछले साल त्रिचूर (केरल) में चलती ट्रेन की सूनसान महिला बोगी में सौम्या नाम की 23 साल की लड़की के साथ भिखारी गोविंदाचामी ने बलात्कार की नीयत से हमला किया। लड़की के विरोध करने पर उसे ट्रेन से बाहर धकेल दिया। इसके बाद घायल लड़की को सूनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। इस मामले में वहां की एक त्वरित अदालत ने भिखारी गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई। इस प्रकरण में सबसे दुखद और आश्चर्यजनक यह है कि उस भिखारी का मुकदमा वहां के नामी वकील बीए अलूर ने लड़ा था। बाद में इसी वकील ने बताया कि भिखारी गोविंदाचामी व उसके कई साथी मुंबई अंडरवल्र्ड से जुड़े हैं व इन्हीं लोगों ने उसकी फीस चुकाई थी।
रेलयात्रा के दौरान हादसों की कमी नहीं है। खाने-पीने का सामान हो या समाचार-पत्र सभी के दाम यात्रियों से तय कीमतों से अधिक वसूले जाते हैं। रद्दी खाना, बेस्वाद चाय भी महंगे दामों में जबरिया बेचे जाते हैं। इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र में धूम्रपान निषेध को लेकर जहां पुलिस खासी कमाई करती हैं, वहीं सिगरेट-बीड़ी पीने वाले भी नए-नए तरीके ईजाद करते हैं। पिछले दिनों मुंबई से आनेवाली पुष्पक ट्रेन से लखनऊ आये एक नौजवान दिनेश यादव ने बड़ा ही रोचक प्रसंग सुनाया। दिनेश को लखनऊ आना बेहद जरूरी था आरक्षण किसी भी श्रेणी में मिला नहीं, उसने जनरल बोगी में किसी तरह एक सीट खरीदी और यात्रा की। गनीमत थी कि सीट खिड़की की पास थी सो तमाम परेशानियों के साथ आक्सीजन की उपलब्धता पूरी यात्रा भर बनी रही। सामने की सीट पर आजमगढ़ निवासी बलईदीन यात्रा कर रहे थे। वे हर घंटे दो घंटे बाद एक बीड़ी सुलगा लेते। बीड़ी का धुआं दिनेश के लिए बेहद तकलीफदेह था। नासिक तक आते-आते उसका दम घुटने लगा। दिनेश ने बलईदीन से उसके बीड़ी पीने से होने वाली तकलीफ का हवाला देते हुए बाहर जाकर बीड़ी पीने का अनुरोध किया। बलईदीन ने झट से जवाब दिया, ‘बाबूजी अब आपका बीड़ी क्यार धुआं न लागी।’ इसके बाद उसने अपने थैले से अलम्युनियम का एक लोटा निकाला और बीड़ी सुलगाकर घुआं उसी लोटे में उगल दिया और लोटा खिड़की पर लगा दिया। यह काम वह बीड़ी के हर कश के साथ पूरे सफर में करता रहा। दिनेश की परेशानी घटने के साथ ही उसके इस कारनामें पर आश्चर्य के साथ अजीब सा मजा भी आया। क्योंकि डिब्बे का वातावरण तो ठीक रहा ही, साथ ही हवा के तेज बहाव के चलते आक्सीजन पर भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और अनपढ बलईदीन की खोज के क्या कहने। मुंबई से लखनऊ या लखनऊ से मंुबई आने-जाने वाली पुष्पक ट्रेन में सफर के दौरान आम यात्री कतई सुरक्षित नहीं है। दहशत में यात्रा करने वालों को कौन बचाएगा? सुरक्षित यात्रा का दावा करने वाली रेलवे या भारतीय पुलिस? या फिर यात्री स्वयं? है कोई सरकार या सरकारी आदमी या जनता का हमदर्द आदमी?
पुलिस के जवान साधारण डिब्बे में यात्रा करने वालों पर बेवजह डंडे बरसाकर उनमें खौफ पैदा करके उनसे नाजायज उगाही करने में लगे हंै। मुंबई से लखनऊ, गोरखपुर या लखनऊ से मुंबई जाने वाले यात्रियों की भीड़ हर साल अप्रैल-जुलाई में बढ़ जाती है। इसी भीड़ को पुलिस वाले बेतहाशा पीटते हुए शिवाजी टर्मिनल व चारबाग स्टेशनों पर देखे जा सकते हैं। इसके पीछे सीट बेचने का धंधा बताया जाता है। एक सीट की कीमत टिकट के अलावा पांच सौ रूपए तक है यानी कुल एक हजार रूपए में जो सीट मिलती है वह भी जानवरों के बाड़े में एक खूंटे से भी कम होती है। सीट बेचने के इस धंधे में पुलिस, टीसी, कुली का त्रिगुट चांदी काट रहा है।
साधारण डिब्बों के यात्रियों को पूरे सफर के दौरान हिजड़ों, भिखारियों, वेन्डरों की दादागीरी झेलनी पड़ती है। इससे भी आगे महिला यात्रियों की दुर्गति होती है। वे शौचालय तक नहीं जा पाती। भीड़-भाड़ में किसी तरह जगह बनाकर शौचालय तक पहुंचती हैं, तो वहां यही भिखारी/वेण्डर शोहदों की तरह खड़े इनकी आबरू बिगाड़ने के लिए पूरी ढिठाई से मौजूद रहते हैं।
पिछले साल त्रिचूर (केरल) में चलती ट्रेन की सूनसान महिला बोगी में सौम्या नाम की 23 साल की लड़की के साथ भिखारी गोविंदाचामी ने बलात्कार की नीयत से हमला किया। लड़की के विरोध करने पर उसे ट्रेन से बाहर धकेल दिया। इसके बाद घायल लड़की को सूनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। इस मामले में वहां की एक त्वरित अदालत ने भिखारी गोविंदाचामी को मौत की सजा सुनाई। इस प्रकरण में सबसे दुखद और आश्चर्यजनक यह है कि उस भिखारी का मुकदमा वहां के नामी वकील बीए अलूर ने लड़ा था। बाद में इसी वकील ने बताया कि भिखारी गोविंदाचामी व उसके कई साथी मुंबई अंडरवल्र्ड से जुड़े हैं व इन्हीं लोगों ने उसकी फीस चुकाई थी।
रेलयात्रा के दौरान हादसों की कमी नहीं है। खाने-पीने का सामान हो या समाचार-पत्र सभी के दाम यात्रियों से तय कीमतों से अधिक वसूले जाते हैं। रद्दी खाना, बेस्वाद चाय भी महंगे दामों में जबरिया बेचे जाते हैं। इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र में धूम्रपान निषेध को लेकर जहां पुलिस खासी कमाई करती हैं, वहीं सिगरेट-बीड़ी पीने वाले भी नए-नए तरीके ईजाद करते हैं। पिछले दिनों मुंबई से आनेवाली पुष्पक ट्रेन से लखनऊ आये एक नौजवान दिनेश यादव ने बड़ा ही रोचक प्रसंग सुनाया। दिनेश को लखनऊ आना बेहद जरूरी था आरक्षण किसी भी श्रेणी में मिला नहीं, उसने जनरल बोगी में किसी तरह एक सीट खरीदी और यात्रा की। गनीमत थी कि सीट खिड़की की पास थी सो तमाम परेशानियों के साथ आक्सीजन की उपलब्धता पूरी यात्रा भर बनी रही। सामने की सीट पर आजमगढ़ निवासी बलईदीन यात्रा कर रहे थे। वे हर घंटे दो घंटे बाद एक बीड़ी सुलगा लेते। बीड़ी का धुआं दिनेश के लिए बेहद तकलीफदेह था। नासिक तक आते-आते उसका दम घुटने लगा। दिनेश ने बलईदीन से उसके बीड़ी पीने से होने वाली तकलीफ का हवाला देते हुए बाहर जाकर बीड़ी पीने का अनुरोध किया। बलईदीन ने झट से जवाब दिया, ‘बाबूजी अब आपका बीड़ी क्यार धुआं न लागी।’ इसके बाद उसने अपने थैले से अलम्युनियम का एक लोटा निकाला और बीड़ी सुलगाकर घुआं उसी लोटे में उगल दिया और लोटा खिड़की पर लगा दिया। यह काम वह बीड़ी के हर कश के साथ पूरे सफर में करता रहा। दिनेश की परेशानी घटने के साथ ही उसके इस कारनामें पर आश्चर्य के साथ अजीब सा मजा भी आया। क्योंकि डिब्बे का वातावरण तो ठीक रहा ही, साथ ही हवा के तेज बहाव के चलते आक्सीजन पर भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और अनपढ बलईदीन की खोज के क्या कहने। मुंबई से लखनऊ या लखनऊ से मंुबई आने-जाने वाली पुष्पक ट्रेन में सफर के दौरान आम यात्री कतई सुरक्षित नहीं है। दहशत में यात्रा करने वालों को कौन बचाएगा? सुरक्षित यात्रा का दावा करने वाली रेलवे या भारतीय पुलिस? या फिर यात्री स्वयं? है कोई सरकार या सरकारी आदमी या जनता का हमदर्द आदमी?
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