Sunday, August 12, 2012

ग्लोबल फार्मूूले वाला गांधी!

नई दिल्ली। गांधी की सियाह फोटोकाॅपी के स्वराज का सपना रामलीला से जंतर-मंतर होता हुआ लाल किले की प्राचीर पर चढ़ने को बेताब है। यह कोई खमखयाली नहीं है। इसके पीछे देशी ही नहीं विदेशी दिमाग ने भी काफी मशक्कत की है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी अपने और अपने समूचे कुनबे राजग के बूते 2014 की चुनावी जंग में फतह नहीं हासिल कर सकती। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उसके सहयोगी संगठन और दुनिया भर में फैले उसके शुभचिंतकों के साथ संघ समर्थक मीडिया व कारपोरेट घराने अब अच्छी तरह समझ चुके हैं।
    इसके अलावा अन्ना टीम के महत्वाकांक्षी सदस्यों के मंसूबे भी परवान चढ़ाने हैं, लिहाजा भाजपा के लिए एक और सहयोगी या भाजपा उसके लिए सहायक हो की योजना को अमल में लाकर अन्ना टीम को चुनावी सियासत में उतार दिया गया।
    गौरतलब है कि अन्ना की समूची टीम में कांग्रेस पार्टी से नाराज लोग अगली कतार में खड़े हैं। हाल ही में सेवानिवृत जनरल वी.के. सिंह भी अन्ना के साथ खड़े हो गये हैं। जगजाहिर है कि वे भी कांग्रेस से खासे नाराज हैं। और कांग्रेस के मुखालिफ माहौल को गरम कर रहे रामदेव जो आजकल अपनी निजी सेना के एक हजार जवानों के घेरे में चल रहे हैं, भी इसी मुहिम का दूसरा चरण भर हैं। हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन में भी गैरराजनैतिक संगठनों के आन्दोलनकारी बाकायदा चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। पिछले साल वाॅल स्ट्रीट न्यूयार्क पर हुए द्दरना-प्रदर्शन की सुर्खियां शायद ही लोग भूले हों। इसके कार्यकर्ता नाॅथन क्लींमेन और जाॅन थ्राॅटन चुनावी मैदान में उतरने की कसरत कर रहे हैं। इसी तरह लंदन में पिछले साल सेन्ट पाॅल चर्च पर प्रदर्शन करने वाले आन्दोलनकारियों के अगुवा ब्रायन फिलिप्स शहर का उप-चुनाव लड़ रहे हैं और अगले साल होनेवाले चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करने का मंसूबा बनाए हैं। इससे भी अधिक बातें ब्रिटिश पत्रकार/लेखक जाॅर्ज मांबिट ने अपने काॅलम में लिखी हैं।
    शायद अन्ना और उनकी टीम के लिए उनके पीछे खड़े लोगों को यह ग्लोबल फार्मूला’ सटीक लग रहा हो, लेकिन यहां रामदेव की शक्ल में दूसरा ठाकरे और अन्ना की शक्ल में दूसरा गांद्दी खड़ा कर पाना नामुमकिन है, भले ही वोटों पर जातियों के नाम लिखे हों। सच यह है कि न किसी को व्यवस्था बदलनी है, न भ्रष्टाचार मिटाना है और न ही कालाधन वापस लाना है, यह केवल सत्ता पर कब्जा करने का तमाशा है।

तो अब राजमाता...?

लखनऊ। खबर कोई खास चैंकाने वाली नहीं है, वह भी लखनऊ के राजपाट की, जहां जातीय राजनीति के खरे सिक्के की टकसाल हो। फिर भी है थोड़ी चिहुकाने वाली। राजधानी में मौजूदा सरकार के इकबाल को बुलंद रखने में ‘अंकल-आंटी’ की भरपूर मशक्कत और जाति विशेष की दबंगई कई नौकरशाहों को रास नहीं आई। सो तिकड़म भिड़ा कर राजमाता के दर्शन करने पहुंच गये। ये नौकरशाह एक खास जाति के नौकरशाहों की बढ़ती ताकत और अकड़ फूं से भी खासे परेशान हैं।
    भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक अनिल गुप्ता, प्रमुख सचिव ऊर्जा व आईडीसी कमिश्नर, दीपक सिंघल, प्रमुख सचिव सिंचाई, संजय अग्रवाल प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, एस.पी. गोयल सचिव सिंचाई, राकेश गर्ग प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री, राजीव अग्रवाल निदेशक मंडी, महेश गुप्ता कमिश्नर आबकारी, आशीष गोयल मुख्य सचिव के स्टाफ आफिशियल, अर्चना अग्रवाल, कमिशनर खाद्य के पिछले दिनों सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की पत्नी साधना गुप्ता से उनके निवास पर मुलाकात के चर्चे गरम हैं। यहां गौरतलब है कि ये सारे नौकरशाह साधना गुप्ता की बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। अब देखना यह है कि यह मुलाकात क्या गुल खिलाएगी?

पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि के सर्वांगीण विकास की प्राथमिकताएं एवं प्रदेश सरकार से अपेक्षाएं


पूर्वी उत्तर प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों में सबसे धनी क्षेत्र है। यहां की मृदा उपजाऊ, जल की पर्याप्त उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु है, परिश्रमी किसान है, फिर भी विकास गति धीमी है। खाद्यान उत्पादन एवं उपादकता कम है। दलहन एवं तिलहन में निरन्तर गिरावट हो रही हैं फलदार वृक्षों में ह्यस तथा फलोत्पादन में गिरावट है, दुधारू जानवरों की कमी के कारण दुग्ध उत्पादन निम्नतम श्रेणी में हैैं। सूखे एवं बाढ का प्रकोप वर्ष प्रतिवर्ष बढ़ा जा रहा हैं। ऊसर, परती भूमि का टिकाऊ सुधार नहीं हो पा रहा हैं। जायद उत्पादन निम्नतम है।
    इस कृषि प्रधान क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिये नये सिरे से विचार करने तथा कार्य योजना तैयार कर क्रियान्वित कराने की आवश्यकता है। कृषि विकास की प्राथमिकताएं एवं रणनीतियां इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुकूल होना जरूरी हैं। पूर्वांचल विकास संस्थान द्वरा प्रतिपादित कुछ विकास सूत्र निम्नवत है, जिसको आधार बनाकर शासन द्वारा कार्ययोजना तैयार कराने की जरूरत है।
    बाढ़ की स्थाई रोकथामः विगत 50 वर्षों के आकड़ों से स्पष्ट निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वर्षा की प्रकृति में बदलाव से वर्ष प्रतिवर्ष बाढ़ का प्रकोप बढ़ता है। वर्षा की मात्रा लगभग वही है परन्तु वर्षा का समय घट गया हैं। अब प्रायः तूफानी वर्षा होती है। जिसके कारण एक साथ वर्षा का जल नदियों में आ कर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है। इसकी स्थाई रोकथाम के लिये जल विशेषज्ञों, अभियंताओं एवं समाज सेवियों की एक उच्चस्तरीय समिति गठित कर दीर्घकालीन एवं अल्प कालीक कार्ययोजना तेयार करना आपेक्षित है।
सूखे से बचावः सूखें की अवधि में सिंचाई एवं पेयजल का गम्भीर संकट उत्पन्न हो जाता है। जबकि पूर्वांचल में पर्याप्त वर्षा जल एवं पर्याप्त भू-जल सम्पदा उपलब्द्द है। इसके लिए सूखा प्रभावी क्षेत्रों में अद्दिकाधिक वर्षा जल के संरक्षण एवं संग्रहण के लिये गांव में जल संरक्षण कार्यक्रम चलाना आवश्यक है तथा प्रत्येक 2.50 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र के लिये एक निजी नलकूप की व्यवस्था करने की जरूरत है। प्रथम चरण में प्रत्येक जनपदों में  10-10 गांव चयन कर शतप्रतिशत निजी नलकूपों की सिंचाई व्यवस्था को संतृप्त करने की रणनीति बनानी उचित एवं सार्थक होगी। इनसे भू-जल का दोहन बढ़ेगा तथा वर्षा ऋतु में वर्षा जल का संग्रहण भी बढ़ेगा। यह कार्य बड़े पैमाने पर सूखा उन्मूलन कार्यक्रम एवं ग्राम विकास के हित में होगा।
सुनिश्चित एवं सामायिक सिंचाई/हर खेत का पानीः पूर्वांचल के जागरूक किसान एवं बड़े, छोटे, मझोले किसान सिंचाई जल की पर्याप्त उपलब्धता न होने से कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने में असमर्थ एवं लाचार हैं। इस क्षेत्र में नहर सिंचाई व्यवस्था अधिक हैं जिनसे औसत मात्र 2.3 सिंचाई ही मिल पाती है तथा वह भी समय पर नहीं मिल पाती। जायद के मौसम में नहरे प्रायः बन्द ही रहती है। ऐसी परिस्थिति में कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाना दिवास्वप्न ही कहा जा सकता है। इसके लिए नहर समादेश एवं समादेश के बाहर के समस्त कृषि क्षेत्रों में प्रति 2.50 हेक्टेयर से 4.0 हेक्टेयर क्षेत्र में एक निजी नलकूप की व्यवस्था करना उचित एवं अपरिहार्य है। जिन क्षेत्रों में जलभराव एवं उथले भू-जल स्तर की समस्या है, उन क्षेत्रों के लिए निजी नलकूप वरदान प्रमाणित हुए हैं। भू-जल स्तर में वांछित गिरावट के लिए बहुत ही प्रभावी प्रमाणित हो रहे हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि ग्राम्य विकास कार्यक्रम योजना के अन्तर्गत प्रत्येक गांव को निजी नलकूप से संतृप्त किए जायें। प्रथम चरण में प्रत्येक जनपद के प्रत्येक विकास खण्डों में 10-10 गांव ‘गांधी गांव’ के नाम से चयन कर निजी नलकूप सिंचाई व्यवस्था से संतृप्त किए जाये। इसका अनुकरण कर आगामी 10 वर्षों में शतप्रतिशत कृषि भूमि को सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध कराया जा सकता है। इससे कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता दूना से भी अधिक बढ़ाया जा सकता है।
सिंचाई नीति का पुनिरीक्षण: वर्तमान समय में प्रोटेक्टिव सिंचाई नीति लागू है जिसमें नहर के टेल (छोर भाग) में पानी पहुंचाने की कार्ययोजना पर बल दिया जाता है। इससे पानी की अधिकता की अवधि में टेल (छोर भाग) में एक या दो बार पानी पहुंचाया भी जा सकता है परन्तु इससे कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाना कदापि सम्भव नहीं है। इसी तरह गहरे राजकीय नलकूपों का समादेश क्षेत्र 100 हेक्टेयर रखा गया है जबकि मात्र 15 से 20 हेक्टेयर क्षेत्र की सुनिश्चित सिंचाई क्षमता है। नहरों एवं राजकीय नलकूपों का समादेश बड़ा होने से सामयिक सिंचाई भी सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में वर्तमान ‘प्रोटेक्टिव सिंचाई नीति’ का पुर्नरीक्षिण कर ‘नई सुनिश्चित वं सामयिक सिंचाई नीति’ बनाने की आवश्यकता हैं इसके लिए भू-जल एवं सतह जल का समन्वित एवं संतुलित उपयोग की विधि विकसित करनी होगी। उथले भू-जल स्तर वाले क्षेत्रों में निजी नलकूप सिंचाई तथा गहरे भू-जल स्तर वाले क्षेत्रों में नहर सिंचाई की प्राथमिकता निर्धारित करनी होगी। पुनरीक्षित सिंचाई नीति के अनुसार सम्पूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश का सुनिश्चित सिंचाई कार्ययोजना बनाना आवश्यक है तथा आगामी 10 वर्षों में हर खेत को सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध कराने का लक्ष्य बनाना होगा। इस क्षेत्र की शतप्रतिशत सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सम्पदा उपलब्ध है।
नम भूमि का विकास: पूर्वी उत्तर प्रदेश में हजारों हेक्टेयर नम भूमि है, जो प्रायः अभी तक उपयोग में नहीं लाई जा रही है। इसके लिए ग्राम्य विकास योजना कार्यक्रमों के अन्तर्गत पायलट फेस में प्रत्येक जनपद के एक विकास खण्ड में नम भूमि के विकास का कार्य प्रारम्भ करने की आवश्यकता है। समग्र नम भूमि के विकास के लिये वाहा पोषित संस्थाओं से आर्थिक एवं तकनीकि सहयोग की कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है।
ऊसर/परती का टिकाऊ सुधारः पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऊसर एवं परती भूमि की अधिकता है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार कुछ जनपदों में परती भूमि की बढ़ोत्तरी भी हुई है। ऊसर भूमि में भी आशानुकूल सुधार नहीं हो रहा हैं ऊसर/परती सुधार के प्रति कृषकों का आकर्षण बहुत अधिक नहीं है, साथ ही वर्तमान ऊसर सुधार विधियों में व्यय भार बहुत अधिक तथा कृषकों की सहभागिता कम है। इस सुधार प्रक्रिया को सरल सस्ती एवं कृषकों को ग्राहय बनाने के लिए सुधार प्रक्रिया में बदलाव की आवश्यकता है। नईप्रणाली में कृषकों को प्रत्येक 4 हेक्टेयर में निःशुल्क निली नलकूप की व्यवस्था कराकर सतत तीन वर्षों तक निःशुल्क सिंचाई की व्यवस्था लागू कराना उचित होगा तथा तीन वर्ष बाद उक्त नलकूप कृषकों को आधे/तिहाई मूल्य पर हस्तांरित किया जा सकता है। पूर्वांचल संस्थान के ऊसर/परती सुधार में निःशुल्क सिंचाई के लिये उत्तर प्रदेश शासन से अपेक्षा करता हैं कि इस कार्य योजना को पायलट फेज में कुछ गांवों में लागू कर ऊसर/परती विहीन आदर्श कृषि गांव बनाये जायं।
जलाक्रान्ति क्षेत्र का विकास: पूर्वी उत्तर प्रदेश में जलाक्रान्ति क्षेत्र की अधिकता है, जहां कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में गिरावट हो रही है। दलहन एवं तिलहन के उत्पादन में कमी हो रही है। ऐसे जलाक्रान्ति क्षेत्रों में निजी नलकूप सिंचाई व्यवस्था सघन किये जायें तथा नहर सिंचाई को कम किया जाये। निजी नलकूप स्थापना के लिये कृषकों को उत्साहित एवं उत्प्रेरित किया जाय। यदि सम्भव हो तो नलकूपों के लिये रियायत दर पर डीजल/बिजली उपलब्ध कराया जाय।
राज्य जलनीति बनाना: प्रदेश में लगभग 65 प्रतिशत सिंचाई भू-जल से तथा 30.35 प्रतिशत सतह जल से किया जा रहा है। नदी जल का उपयोग राष्ट्रीय जल नीति से अच्छादित है। परन्तु भू-जल राज्य सम्पत्ति है। तथा इसका प्रबन्ध एवं उपयोग राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। इस विषमता के कारण सतह जल एवं भू-जल का संतुलित उपयोग सम्भव नहीं हो पा रहा है। प्रायः वहीं नहर बनाई जा रही है जहां भू-जल की पर्याप्त उपलब्धता है। जिसके दुःस्परिणाम से जलाक्रान्ति ऊसर/परती की समस्याएं गम्भीर होती जा रही है तथा अन्य क्षेत्रों मंे भू-जल स्तर में निरन्तर गिरावट हो रही है अतः शीघ्रातिशीघ्र ‘राज्य जल नीति’ को प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। जिसके अनुपालन से नहर सिंचित क्षेत्रों एवं भू-जल सिंचित क्षेत्रों का सीमांकन कर सिंचाई प्रणाली की प्राथमिकताएं निद्र्दारित की जा सके।
मृदा एवं जल शोध संस्थान: पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं निकट के क्षेत्रों में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मृदा एवं जल शोद्द संस्थान की नितान्त आवश्यकता है, जिसके माध्यम से इस क्षेत्र के अनुकूल सिंचाई, कृषि ट्रेनेज, बाढ़ एवं सूखा प्रबन्धन, ऊसर, परती सुधार इत्यादि विषयों पर शोध का कार्य किया जा सके। इस समय इन क्षेत्रों में राज्य सरकार, भारत सरकार एवं बाह्म पोषित संस्थाओं द्वारा सिंचाई, कृषि एवं भूमि सुधार हेतु विकास कार्यों के लिये अरबों रूपये प्रतिवर्ष व्यय किये जा रहे हैं। इन विकास कार्यों के 2-3 प्रतिशत इंगित परिव्यय से ही उपरोक्त शोध संस्थान विकसित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य एवं पर्यावरण शोध संस्थान: पूर्वी उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों की उत्तरोत्तर प्रगति से मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर कतिपय प्र्रतिकूल प्रभाव परिलक्षित होने लगे हैं। बड़ी नहर सिंचाई परियोजना क्षेत्रों में जलभराव बढ़ने से उस क्षेत्र की आद्रता बढ़ी है। परिणाम स्वरूप प्राण घातक बीमारियां जैसे इन्सेफेलाइटिस, फ्लोरिसिस, पीलिया, फाइलेरिया, गलाघोटूं, गैस्टीक इत्यादि की तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही हैं कीटनाशक दवाइयों से होने वाले कुप्रभाव में बीमारियों के रूप परिलक्षित हो रहे है। जीव जन्तु एवं वनस्पति पर भी भिन्न तरह के रोग पैदा हो रहे हैं। इन विषयांे पर शोध के लिए राष्ट्रीय स्तर के एक शोध संस्थान की आवश्यकता हैं जिसकी स्थापना के लिये उत्तर प्रदेश सरकार से अपेक्षा की जाती है।
कृषि उत्पाद प्रसंस्करण एवं संरक्षण हेतु गांधी कृषि उद्योग केन्द्रों की स्थापना: यह सर्वमान्य है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादों विशेषकर अन्न, फल, सब्जी के संरक्षण एवं प्रसंस्करण उद्योग की कमी है। यही कारण है कि उत्पादन के समय इनका बाजार मूल्य निम्नतम हो जाता है तथा किसान को लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता तथा अन्य महीनों में वही उत्पाद 20 गुने दाम पर बिकता है। अतः इन विषमताओं को कम करने तथा कृषि उत्पादों को खराब होने से बचाने के लिए कृषि उत्पादों के संरक्षण एवं प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ाने की आवश्यकता है। शासन से अपेक्षा है कि प्रत्येक विकास खण्ड में कम से कम एक संरक्षण एवं प्रसंस्करण उद्योग केन्द्र स्थापित किये जाय जहां हर प्रकार के कृषि उत्पादों के संरक्षण एवं प्रसंस्करण उद्योगों को लगाने की सुविधा एवं बिजली इत्यादि की व्यवस्था हो। प्रारम्भिक चरण में प्रत्येक जनपद के एक विकास खण्ड में एक-एक गांधी कृषि उद्योग गांव चयन कर कृषि उद्योग सेन्टर स्थापित कराये जायं।

स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ का संघर्ष

लखनऊ के सुख-दुख की दास्तानों और किस्सों में जनानों, बांकों और नवाबों की नाकारा ठिठोलियों के चटखारेदार बयान दर्ज हैं। हकीकतन इन बेहूदगियों से खालिस लखनउवों से न कोई वास्ता तब था, न अब है। नवाब वाजिदअली शाह के लिए फिरंगियों ने जो बेपर की उड़ा रखी है, उसी को हमारे नये नवाबों ने हवा देकर अपनी दिलजोई का सामान कर लिया। अस्ल में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कानपुर के युद्ध में 125 महिलाएं और 4 मर्दो को छोड़कर एक हजार अंग्रेजों का कत्ल करके विजय प्राप्त करने के बाद नाना फड़नबीस की अगुवाई में बादशाह बहादुरशाह के सम्मान में 101 तोपों की सलामी दी गई थी। इसके बाद शंखनाद करती विजयी सेना लखनऊ के चिनहट की ओर बढ़ आई।
    अंग्रेज चीफ कमिश्नर सर हेनरी लारेन्स ने आगे बढ़ कर लोहे वाले पुल पर अपनी सेना पंक्तिबद्ध की। इन्होंने कुछ गांव भी जीत लिये थे इनके पास हथियार भी अधिक थे किन्तु स्वदेशी सेना के उत्साह और भावना ने आगे बढ़ती हुई विदेशी सेना और उसके देशी चाटुकारों को भयानक रूप से हानि पहुँचाई और उनको पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। वह पुनः रेजीडेन्सी में जाकर छुप गये और सर हेनरी लारेन्स ने मच्छी भवन से भी अपनी सेना वहीं स्थानान्तरित कर ली। 30 जून के इस संघर्ष में स्वदेशी सेना का नेतृत्व मौलवी अहमद शाह कर रहे थे।
    दूसरे संघर्ष में स्वदेशी सेना ने रेजीडेन्सी के सलीबी गारद वाले द्वार पर आक्रमण किया। 20 जुलाई को गोला चलना अचानक रूक गया और दीवार के नीचे से बारूदी सुरंगों के भयंकर धमाकों के पश्चात कई दिशाओं से शत्रुओं पर हमला बोल दिया गया। इस संघर्ष में यद्यपि स्वदेशी सेना को विजय नहीं प्राप्त हो सकी लेकिन उन्होंने दो अंग्रेज चीफ कमिश्नरों सर हेनरी लारेन्स और मेजर बैंक्स को जीत लिया। इनके अपनी ओर के सेनापति अहमद शाह भी घायल हुए और गम्भीर हानि के बाद भी पाला अंग्रेजों के हाथ ही रहा। लेकिन वह इस योग्य नहीं रहे कि वह घेरा तोड़कर रेजीडेन्सी से बाहर निकल सकें उन्होंने कानपुर से सहायता मंगवाई वहां से सूचना आई कि जनरल हैवलाक मदद लेकर 5-6 दिन में लखनऊ पहुंच जायें। हैवलाक ने इस उद्देश्य से 29 जुलाई को गंगा पार भी कर लिया।
    इनके आने की सूचना पाकर नाना साहब अवध को छोड़कर कानपुर की ओर बढ़े इनकी गतिविधि की सूचना पाकर हैवलाक मंगलौर की ओर हट गये और सेनानियों ने इस क्षेत्र में बशीरत गंज पर विजय प्राप्त कर ली। इस पर कुछ ही दिनों में तीन बार अधिकार बदला लेकिन स्थायी विजय किसी भी पक्ष को प्राप्त नहीं हो सकी। इसी समय नाना साहब बिठूर की ओर से कानपुर पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगे। और जनरल नील ने जनरल हैवलाक को कानपुर वापस बुला लिया।
    इन्होंने कम्पनी की आलाकमान से जो कलकत्ता में थी मदद का निवेदन किया जो लखनऊ जाकर रेजीडेन्सी का घेरा तोड़ सके लेकिन मदद आने से पहले ही लखनऊ जाने वाली सेना का नेतृत्व इनसे लेकर सर जेम्स ओट्रम को दे दिया गया। अलबत्ता ओट्रम अपनी इच्छा से हैवलाक के नेतृत्व में कार्य करने लगे। और 23 सितम्बर, 1958 को ओट्रम नील और हैवलाक तीन हजार दो सौ पचास सैनिकों पर आधारित सेना के साथ जिसमें 1200 देश से दगा करने वाले भारतीय फौजी थे आलमबाग तक आ गये। वहीं अंग्रेजी सेना को दिल्ली पर दूसरी बार विजय प्राप्त होने का समाचार मिला और हैवलाक की सेना उत्साह के साथ लखनऊ की ओर बढ़ने लगी, 25 सितम्बर को वह चारबाग में थी।
    रेजीडेन्सी के मोर्चे पर 87 दिन के लगातार युद्ध में 700 व्यक्ति मारे गये। लगभग 500 अंग्रेज और 400 भारतीय अभी जीवित थे। इनमें कुछ घायल भी सम्मिलित थे। हैवलाक के साथ जो कुमुक भेजी गयी थी इसके 722 व्यक्ति रेजीडेन्सी पहुँचने के पहले ही मारे जा चुके थे। इस मोर्चे पर अंग्रेजों की प्रतिष्ठा बल्कि भारत में उनकी उपस्थिति का भविष्य आधारित था। इसीलिए कमान्डार-इन-चीफ सर कोलन कैम्पवेल स्वयं कलकत्ता से लखनऊ की ओर बढ़े। पंजाब, मद्रास और देश के दूसरे भागों से भी सैन्य सहायता मंगाई गई और जल सेना भी इलाहाबाद से नावों के द्वारा कानपुर लायी गयी।
    सर कोलन 3 नवम्बर को कानपुर पहुंचे। 9 नवम्बर को आलमबाग पहुँचे। 14 को लखनऊ की ओर बढ़े 26 दिसम्बर को रेजीडेन्सी का घेरा टूट गया। बाहर से आने वाली फौज बन्दी सेना से मिल गयी लेकिन स्वदेशी सेना ने पराजय स्वीकार नहीं की और न हथियार डाले। कानपुर में नाना साहब और अवध में अहमद शाह आजादी के मतवाले देशभक्तों को साथ लेकर अंग्रेजी सेना को धमकाते रहे। और अंग्रेज सैन्य अधिकारियों को चकमें व झांसे देते रहे।
    जब स्वदेशी सेना की सफलता की कोई सम्भावना न बची तब भी वह जिहाद को एक फरीजा मानकर देश के शत्रुओं से लड़ते रहे। जब लखनऊ में अंग्रेजी सेना और उसके भारतीय पिठ्ठुओं ने लूटपाट करके गदर मचा दी, एक के बाद एक किला और मोर्चा जीत लिया-सिकन्दर बाग, दिलकुशा, कदमें रसूल शाहनजफ, बेगम कोठी इत्यादि और अंत में खास शाही महल पर छापा मारने के लिए कैंसरबाग पर आक्रमण किया तो स्वदेशी सेना ने अपने बादशाह व उनकी माता बेगम हजरत महल को उनके घेरे से निकालने का प्रबन्ध कर लिया। कर्नल होप ग्रान्ट ने उनका पीछा किया मगर अहमद उल्लाह शाह ने पीछा करने वाली सेना पर पीछे से आक्रमण करके उसे उलझा लिया।
    इसके बाद भी अहमद उल्लाह शाह ने लखनऊ के मोहल्ले सआदतगंज में मोर्चा बनाया। अंग्रेजों ने सोचा कि वह इन्हें इस जगह पर घेरकर मार लेंगे या बन्दी बना लेंगे। मगर यह महानवीर एक बार फिर शत्रुओं के घेरे से बच निकला और इसके बाद भी सीतापुर और शाहजहांपुर के जिलों में मुजाहिदों के संगठनों और युद्ध की तैयारियों में स्वास्थ्य की खराबी के बाद भी संलग्न रहा। लखनऊ के युद्ध की एक उल्लेखनीय घटना यह है कि शहनशाहे हिन्दुस्तान बहादुर शाह जफर के पुत्रों का सिर काटने वाला अंग्रेज अधिकारी हडसन इसी शहर में स्वदेशी सेना के हाथों 10 मार्च, 1858 को मारा गया।

मेरे आत्मीय पं0 हरिशंकर तिवारी

राम प्रकाश वरमा
सियासत के मुहल्ले में तब बड़ी हलचल मची थी, जब 1985 में पहली बार पं0 हरिशंकर तिवारी विधायक चुनकर आये। यकीन मानिये ऐसी हलचल कि अखबारों के छापाखानों में मशीनों तलक की सरगोशियां बढ़ गईं थीं। धमाकाधुनी पत्रकारों को सुर्खियों के लिए खासा मसाला मिल गया था। पंडित जी के शपथ लेने से लेकर उनकी हर जुम्बिश खबर बन जाती। उन दिनों लखनऊ में पत्रकारों की जमात में सदाशिव द्विवेदी का पंडित जी के यहां आना-जाना कुछ अधिक था। ‘प्रियंका’ पत्रिका को द्विवेदी जी का स्नेह प्राप्त था। द्विवेदी जी ‘प्रियंका’ की साफबयानी से जहां गदगद थे, वहीं खुद यूनीवार्ता समाचार एजेंसी में रहते हुए घपलों-घोटालों की खबरों के लिए मुझे प्रोत्साहित भी करते थे। उस समय तक ‘प्रियंका’ पर पांच मुकदमें दायर हो चुके थे। मुझे भी तिवारी जी को छपाने की ललक थी। कांग्रेस की सरकार थी प्रदेश में पूर्वांचल की आवाज मुखर हो रही थी। तिवारी जी निर्दलीय विधायक थे।
    पंडित हरिशंकर तिवारी जी के राजनैतिक ‘हाईवे’ पर कई सरकारी अवरोध आये दिन व्यावधान पैदा किये जा रहे थे। दरअसल सभी के अपने स्वार्थ थे। उन पर आरोपों, मुकदमों की जहां बाढ़ आई हुई थी, वहीं उनके दिमाग पर गरीब-गुरबों, पीडि़तों, शोषितों का दर्द दूर करने उनकी समस्याओं को दूर करने का भूत सवार था। उन दिनों चिल्लूपार क्षेत्र की समस्याओं के लिए वे जूझकर काम करने में लगे थे। उनके बड़हालगंज चुनाव कार्यालय पर क्षेत्र से व क्षेत्र के बाहर के लोगों की भीड़ जमा होती थी। पंडित जी की गैरमौजूदगी में लोगों की छोटी-मोटी समस्या उनके सहयोगियों द्वारा दूर कर दी जाती थी। जो काम गोरखपुर मुख्यालय या राजद्दानी लखनऊ से होने वाले होते उनकी अर्जियां ले ली जाती और बाद में उनका निस्तारण होता। हर अर्जी की कार्यवाही की सूचना तक फरियादी को चिट्टी के जरिये दी जाती। पंडित जी कार्यालय में होते तो सारा दिन लोगों के बीच घिरे रहते।
    एक बार वे अपने कस्बे बड़हलगंज में जन समस्या निवाणार्थ घूम रहे थे। एक महिला की गुहार पर कस्बे की एक गली में सार्वजनिक शौचालय की दुर्दशा देखकर लौट रहे थे, बेहद गुस्से में थे। उसी समय एक वृद्ध सामने आ गया उसने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि उसकी बहू को अकारण थाने ले जाया गया है। वे क्रोध में तो थे ही थाने की ओर चलने को हुए तभी उनके एक सहयोगी ने उन्हें रोका और स्वयं वृद्ध को साथ लेकर थाने चला गया। इस बीच पंडित जी कस्बे की तमाम सड़के नापते रहे, लोगों से मिलते रहे।
    कार्यालय वापस आते ही बोले, ‘कोई नगर पंचायत से आया है क्या?’ जो सज्जन आये थे उनसे शौचालय की दुर्दशा के बारे में पूंछा। उन्होंने सरकारी जवाब दिया। पंडित जी ने कहा, ‘कथा मत सुनाइये, एक हफ्ते के अन्दर उसे साफ कराईये फिर बजट, फाइल, शासन का ककहरा पढि़येगा। सोंचिए जरा उस दुर्गंध भरे इलाके में आपका घर होता तो आप रह पाते?, इसके साथ ही अपने एक सहयोगी को इस काम की जिम्मेदारी सौंप दी।
    लखनऊ में भी उनके आवास पर भारी भीड़ जुड़ती। इतनी भीड़ अधिकांश मंत्रियों के यहां भी नहीं होती थी। भीड़ की समस्याओं को सुनना, उनके लिए फोन करना चिट्ठी लिखना उनका प्रिय शगल था। इन कार्यों में मैं उनका बरसों सहयोगी रहा। इस बीच ‘प्रियंका’ का प्रकाशन भी लगातार जारी रहा। सच और झूठ की जंग में कई और मुकदमें हो गये। पंडित जी के एक साक्षात्कार और प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के गड़बड़झाले की ‘प्रियंका’ में छपी खबरों ने खासी हलचल मचा रखी थी। उसी दौरान पंडित जी ने एक प्रेसवार्ता अपने आवास पर आयोजित की थी। सौ सवा सौ पत्रकारों के जमावड़े में उन्होंने अपनी बात रखी। सभी अखबारों में छपी। अखबार में छपी खबर का असर भी हुआ। उसका श्रेय उन्होंने मुझे दिया। उनके स्नेह की गवाह अभी हाल की ही एक घटना का जिक्र किये बगैर यह लेख अधूरा रह जाएगा। विधानसभा चुनावों के दौरान 1991-92 में मऊ से लखनऊ लौटते समय गोरखपुर पुलिस ने बेवजह मेरा चालान धारा-151 में कर दिया था। उस घटना को मैं लगभग भूल गया था, क्योंकि कोई समन या वारंट कभी आया नहीं।
    अचानक पिछले साल मेरी गैर-मौजूदगी में एक रात बारह बजे पुलिस के दो सिपाही मेरे घर आ धमके। बच्चे परेशान, मेरे नाम के वारंट से परिवार हैरान। मैं बलरामपुर पत्रकारों के एक समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेने गया था। मुझे खबर दी गई। वापस आने पर थाने जाकर समन देखा, समझ नहीं आया। गोरखपुर फोन लगाकर अपने वकील मित्र मद्दुसूदन त्रिपाठी को सब लिखाया और वहां पहुंचने का कार्यक्रम तय किया। बाद मंे पंडित जी को बताया, वे किसी काम से बाहर जाने वाले थे। मेरे कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया। मेरे पहुंचने से पहले और कोर्ट परिसर में सबकुछ ठीक-ठाक होने तक पंडित जी ने कई बार वकील साहब को फोन करके कहा कि वरमा जी को किसी तरह का कष्ट नहीं होना चाहिए। मजा इस बात का कि मुझे इस बात का पता तक नहीं था। इतना ही नहीं एक छोड़ पांच-पांच जमानतदारों का इंतजाम करा दिया था फिर भी उनकी स्नेहमयी चिन्ता का हाल यह कि वे उस दिन कहीं नहीं गये। जब मैं कोर्ट से वापस आ गया और उन्हें बताया कि सब ठीक से निपट गया तब उनके चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान दिखी। सच कहूं तो वे सहृदयता एवं भावनात्मकता के असल नातेदर है।
    5 अगस्त उनका जन्म दिन है। हर बरस ‘प्रियंका’ गौरवांक’ छापकर उन्हें प्रणाम करती है। यह उनके उम्रदराज होने की कामना के साथ उनकी सेवाभावनाओं का समादर भी है। लिखने को बहुत कुछ है, कलम भी बेचैन है, लेकिन अखबार की अपनीसीमा है। उनका वंदन, अभिनंदन करते हुए उन्हें प्रणाम।

गाय, गोबर, गांव और जिंदा आदमी!

घरों पर नाम थे नामों के साथ ओहदे थे। बहुत तलाश किया लेकिन कोई आदमी न मिला। बशीर बद्र की यह लाइने राजनीति के राजमार्ग से गलियों तक पर सटीक हैं। मैंने खुद भी आदमी की तलाश में अशोक रोड, अकबर रोड, कालीदास मार्ग, विक्रमादित्य मार्ग, कबीरलेन, गौतम बुद्ध नगर पर काफी समय लगाया है। आदमी तो नहीं ही मिला, लेकिन उससे मिलती-जुलती शक्ल की चमचमाती सफेद झक्क सैकड़ों मूर्तियां मिलीं। वे बुद्ध-कबीर की धूल-कीचड़ में पड़ी पत्थर वाली मूर्तियों से अधिक सम्पन्न दिखीं। अपनी ही अयोध्या में तपते, भीगते, ठिठुरते श्रीराम से समृद्ध दिखीं। भले ही लोग उन्हें ईश्वर मानते हों। आज की तारीख के जिंदा देवी-देवताओं की मूर्तियों के टूटने पर देश तोड़ने के खम ठोंके जा सकते हैं। नये सिरे से टूटे हुए को लगाने के लिए सरकार-शासन का सौहार्द तक दण्डवत हो सकता है। गो कि कुल मुर्दे कारोबार के लिए और जिन्दा कौमें वोट के लिए?
    वोट देने के बाद भी बिजली नहीं, पानी नहीं, सफाई नहीं, दवाई नहीं और रोजगार भी नहीं। हलक फाड़कर फरियाद करने पर पुलिस की दो गजी लाठियों से पिटाई का भत्ता? औरत की देह को लैपटाॅप समझने की जिद? मुखालिफों को हलाक करने की सनक? मुफलिसों की भूख पर नियंत्रण का डाका? माना कि उद्दंडता हमारे रक्त में है, लेकिन जिंदा और मुर्दा वजूद की यह कैसी नाप तौल है? यह महज चंद सवाल नहीं है। उसी आदमी की चीख है जिसे मैं गलत जगह तलाश करने गया था। मुझे आदमी जिला उन्नाव के छोटे से गांव में मिला, राजधानी लखनऊ के अलीगंज के खण्डहर से मकान में मिला, मुम्बई जैसे शहर में भी कई आदमी मिले। ये सबके सब आदमी की ही आपदा के लिए चीखते मिले। अपनांे से अधिक धकियाते, लतियाते, बेहाल आदमी के लिए लड़ाई लड़ते मिले। इन सबकी बात फिर कभी। आज सिर्फ उसे बेचैन आदमी की बात जो जीवन के 73वें मेले में खड़ा आदमियों के पांवों के नीचे से उड़ती धूल को बड़े गौर से देख रहा है। इसी धूल ने उन्हें राजनीति के बहुमंजिले पर पहुंचाया और इसी ने बवंडरों के सामने ला खड़ा किया।
    मुश्किलों के खेतिहर पं0 हरिशंकर तिवारी कई चुनाव जीते, लेकिन पहला चुनाव जीतने के बाद ‘चिल्लूपार’ का नाम दुनिया के आसमान पर इन्द्रधनुष की तरह लिखा गया। कहीं कोई अभिमान नहीं, कोई आडम्बर नहीं। धर्मशाला में बदस्तूर मेला जारी रहा और हैं। मड़ई के नीचे चाय, दूध, दही से स्वागत और मानवीय संवेदना की सरस्वती का बहाव जस का तस। पसीना बेचकर पेट भरनेवाला हो या योजनाकार सबके शुभचिंतक हैं, ‘बाबा’। फिर भी पिछला चुनाव हार गये। तमामों को आश्चर्य हुआ, तमामों को दुःख। सच यह है कि वे चुनाव नहीं हारे थे, उनके आगे-पीछे बगुला भक्तों के जमघट ने उन्हें हार की ओर धकेला है। इसी धक्का-मुक्की में उनके तमाम समर्पित संगी साथी पीछे घूट गये। लोग बंट गये। कुछ सड़कों पर रह गये। कुछ गलियों में छंट गये। फिर व्यवस्था के संग साथ ने उन्हें ठग लिया।
    5 अगस्त पंडित जी का जन्मदिन है। हर साल इस दिन मेरी क़लम उन्हें प्रणाम करती है। बहुतेरे इसे चरणवंदना समझते हैं। मुझे उसकी तनिक भी परवाह नहीं। मेरी नजर में यह भावों की गंगा का शंकर के चरणों में प्रणाम है। इस बरस वे 72 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं। इसी दौरान चंद दिन पहले मैं उनसे यही पार्क रोड पर मिला था। उस समय मैंने उन्हें आदमियत के दरवाजे पर पहरेदारी करने को बेचैन देखा था। वे आम, महुआ से लेकर मुंबईया तबेलेवालों की जीवनशैली पर बात करते हुए भी गाय, गोबर और गांव की कथा बिसरा नहीं पाते। इसी सबके बीच नई पीढ़ी के भविष्य के प्रति चिन्ता भी साफ दिखी। भला आज की मूल्यहीन संस्कृति के समय में आदमी की इतनी चिंता किसे हैं। ऐसे सहोदर को ‘हरि’ समझना क्या भूल है? जन्मदिन पर धर्मशाले के हाते में खड़े बाबा हरिशंकर तिवारी को प्रियंका परिवार का प्रणाम। और बहुत से शुभेच्छुओं ने अंदर के पन्नों पर उन्हें जन्मदिन पर प्रणाम किया है।
और अंत में केदार नाथ सिंह की कविता-
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ आदमी की तरफ
यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा
मैं भरी सड़क पर सुनना चाहता हूँ वह धमाका
जो शब्द और आदमी की टक्कर से पैदा होता है
यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा
मैं लिखना चाहता हूँ।