पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता
है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना
जाता है। इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया
जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए
पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी
दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
जानिए किस तिथि को
कौन सा श्राद्ध आएगा
24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या
घर पर आसान उपायों
से पितरों को कर सकते हैं प्रसन्न
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान
पिंडदान किया जाता है | इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है
| पिंडदान के लिए फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है | यहां पिंडदान की
प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. कहा जाता है कि गया में पहले
अलग-अलग नामों के 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था | इनमें से अब 48 ही बची है और इन्हीं वेदियों पर लोग
पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं | यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर
पिंडदान करना जरूरी माना जाता है. इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख
हैं.
क्या है पिंड
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु
के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है. प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया
है. पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को
गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं.
श्राद्ध की विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप
से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज. दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को
दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने
पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे
विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं. इसके बाद
ब्राह्मण भोज कराया जाता है.
जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो, उस दिन सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध
करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लिए जाए। इसके लिए
सुबह उठकर स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपना चाहिए
और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।
यदि संभव हो, तो घर के आंगन में रंगोली बनाएं। घर
की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। जो श्राद्ध के अधिकारी व्यक्ति
हैं, जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के अधिकारी जो दामाद, भतीजा आदि हो सकते हैं, उन्हें न्यौता देकर बुलाएं। इस दिन
निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना
चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का
दूध, दही, घी एवं खीर का अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री
पत्ते पर निकालें। दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प
करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद भोजन थाली अथवा पत्ते पर
ब्राह्मण हेतु भोजन परोसें।
ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करे और कर्ता
क्रोघ न करें। प्रसन्नचित होकर भोजन परोसें। भोजन के उपरांत यथाशक्ति दक्षिणा और
अन्य सामग्री दान करें। इसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक (जिसे महादान कहा गया है) का दान करें। इसके बाद
निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। ब्राह्मण को चाहिए कि
स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त
करें।
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