जिंदा और भावुक आदमी जिस महिला से प्रेम करता है, क्या उससे बलात्कार कर सकता है? सालों दैहिक सुख का आनंद उठाने के बाद दोनों में मन-मुटाव के कारण अलगाव हो जाता है, तो क्या मर्द बलात्कार का अपराधी होगा? आये दिन हो रहे बलात्कारों में क्या सत्य तथ्यों पर जांच हो रही है? सवाल तो और भी हैं, लेकिन इन तीन प्रश्नों के उत्तर में कई अदालतों में समय-समय पर उचित फैसले आ चुके हैं। बावजूद उसके मोमबत्ती मार्च, निकम्मी सरकार हाय-हाय... और विरोध की सियासत का हलक फाड़ दबाव पीडि़तों को इंसाफ दिला पाता है? अधिकांश मामलों में बेगुनाह जेल जाते हैं? जिस नाबालिग छात्रा के बलात्कार को लेकर अखबार से लेकर दसियों संगठन व विपक्ष के नेता विधानसभा के भीतर तक हंगामा मचाये हैं, उसमें जांच के नाटकीय पहलुओं पर बड़ी बारीकी से जांच हो रही है। असल तथ्यों को बेहद चालाकी से तमाम दबावों के चलते नजरअंदाज किया जा रहा है? पहले दिन पुलिस ने ही बताया, अखबारों में छापा गया, ‘छात्रा अपनी साईकिल चलाकर अकेली जानकीपुरम से हजरतगंज होती हुई घटनास्थल की ओर जाती देखी गई।’ फिर गुमशुदगी की शिकायत का बार-बार जिक्र? पुलिस उस ओर जांच क्यों नहीं कर रही कि वह लड़की अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली, लेकिन स्कूल न जाकर घटनास्थल तक अकेली आई तो किसके बुलावे पर और क्यों? बस यहीं सवाल उठाता है कि क्या महज खानापूरी की जा रही है?
लंदन की हाकी खिलाड़ी अशपाल कौर ने भारतीय हाकी कप्तान सरदार सिंह पर बलात्कार का मुकदमा पिछले दिनों लुधियाना में दर्ज कराया। उनके अनुसार चार साल पहले उनकी सगाई सरदार से हुई थी और वे इस दौरान शारीरिक संबंधों के साथ रहे जिसके नतीजे में एक गर्भपात भी कराना पड़ा। अब सरदार सिंह पर बलात्कार का मुकदमा? धोखाधड़ी के कारणों की या वायदाखिलाफी की जांच अवश्य होनी चाहिए। ऐसे ही पिछले महीने लखनऊ के पीजीआई थाने में एक युवती का मामला आया है, सालांे साथ रहे, गर्भपात कराया अब यौन शोषण का मुकदमा? जब आपसी सहमति नहीं होगी तो सालों बलात्कार संभव है? वह भी बगैर बंधक बनाये?
यहां बताते चलें कि उच्च न्यायालय दिल्ली ने 10 अगस्त 2010 में एक मुकदमें में फैसला दिया था, ‘लिव-इन में एक पार्टनर कभी भी बिना किसी कानूनी परिणाम के रिलेशनशिप से बाहर जा सकता है और उनमें से कोई भी धोखा देने के नाम पर एक दूसरे की शिकायत दर्ज नहीं करा सकता। इसी न्यायालय ने आगे कहा है, ‘जब दो वयस्क एक साथ रहना चाहते हैं तो इसमें अपराध क्या है? इसे अपराध करार नहीं दिया जा सकता।’ इसी तरह वेलूस्वामी-पचैया अम्माल केस में महिला का दावा था कि वेलू ने दो साल तक उसे पत्नी की तरह रखा बाद में उसे छोड़ दिया। 12 साल बाद अम्माल ने अदालत में अर्जी देकर गुजारा भत्ते की मांग की जिस पर निचली अदालत ने पचैया को पांच सौ रुपये माहवार गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। जिसके खिलाफ वेलू उच्चतम न्यायालय गया, जहां 21 अक्टूबर 2010 को फैसला दिया गया, यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को रखता है, उसे यौन इच्छाओं की पूर्ति/नौकरी करने के एवज में वह धन देता है तो ऐसे संबंध को हमारी राय में वैवाहिक प्रकृति के संबंध नहीं माना जा सकता।’ इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय में जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने 22 नवंबर, 2013 में एक मुकदमें में फैसला दिया, ‘लिव-इन- रिलेशनशिप में रहना न कोई अपराध है और न ही पाप’। इसी तरह, लिव-इन-रिश्तों के आधार पर महिला को गुजारा भत्ते का अधिकारी भी नहीं माना। ऐसे दसियों परिस्थितिजन्य मुकदमों का हवाला दिया जा सकता है। लिव-इन-रिलेशन में रहकर दोनों प्राणी दैहिक सुख उठाते हैं, फिर मनमुटाव या अलगाव के हालात मंे मर्द बलात्कारी कैसे हो सकता है? साफ-साफ कहें तो आज प्यार हुआ राजी-खुशी समर्पण हुआ। कल महिला बलात्कार का मुकदमा कैसे दर्ज करा सकती है? इस सवाल पर गम्भीरता से सामाजिक बहस की जरूरत है।
लंदन की हाकी खिलाड़ी अशपाल कौर ने भारतीय हाकी कप्तान सरदार सिंह पर बलात्कार का मुकदमा पिछले दिनों लुधियाना में दर्ज कराया। उनके अनुसार चार साल पहले उनकी सगाई सरदार से हुई थी और वे इस दौरान शारीरिक संबंधों के साथ रहे जिसके नतीजे में एक गर्भपात भी कराना पड़ा। अब सरदार सिंह पर बलात्कार का मुकदमा? धोखाधड़ी के कारणों की या वायदाखिलाफी की जांच अवश्य होनी चाहिए। ऐसे ही पिछले महीने लखनऊ के पीजीआई थाने में एक युवती का मामला आया है, सालांे साथ रहे, गर्भपात कराया अब यौन शोषण का मुकदमा? जब आपसी सहमति नहीं होगी तो सालों बलात्कार संभव है? वह भी बगैर बंधक बनाये?
यहां बताते चलें कि उच्च न्यायालय दिल्ली ने 10 अगस्त 2010 में एक मुकदमें में फैसला दिया था, ‘लिव-इन में एक पार्टनर कभी भी बिना किसी कानूनी परिणाम के रिलेशनशिप से बाहर जा सकता है और उनमें से कोई भी धोखा देने के नाम पर एक दूसरे की शिकायत दर्ज नहीं करा सकता। इसी न्यायालय ने आगे कहा है, ‘जब दो वयस्क एक साथ रहना चाहते हैं तो इसमें अपराध क्या है? इसे अपराध करार नहीं दिया जा सकता।’ इसी तरह वेलूस्वामी-पचैया अम्माल केस में महिला का दावा था कि वेलू ने दो साल तक उसे पत्नी की तरह रखा बाद में उसे छोड़ दिया। 12 साल बाद अम्माल ने अदालत में अर्जी देकर गुजारा भत्ते की मांग की जिस पर निचली अदालत ने पचैया को पांच सौ रुपये माहवार गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। जिसके खिलाफ वेलू उच्चतम न्यायालय गया, जहां 21 अक्टूबर 2010 को फैसला दिया गया, यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को रखता है, उसे यौन इच्छाओं की पूर्ति/नौकरी करने के एवज में वह धन देता है तो ऐसे संबंध को हमारी राय में वैवाहिक प्रकृति के संबंध नहीं माना जा सकता।’ इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय में जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने 22 नवंबर, 2013 में एक मुकदमें में फैसला दिया, ‘लिव-इन- रिलेशनशिप में रहना न कोई अपराध है और न ही पाप’। इसी तरह, लिव-इन-रिश्तों के आधार पर महिला को गुजारा भत्ते का अधिकारी भी नहीं माना। ऐसे दसियों परिस्थितिजन्य मुकदमों का हवाला दिया जा सकता है। लिव-इन-रिलेशन में रहकर दोनों प्राणी दैहिक सुख उठाते हैं, फिर मनमुटाव या अलगाव के हालात मंे मर्द बलात्कारी कैसे हो सकता है? साफ-साफ कहें तो आज प्यार हुआ राजी-खुशी समर्पण हुआ। कल महिला बलात्कार का मुकदमा कैसे दर्ज करा सकती है? इस सवाल पर गम्भीरता से सामाजिक बहस की जरूरत है।
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