राजधानी में हर तीसरा आदमी ‘प्रापर्टी डीलर’, हर चैथा आदमी ‘बिल्डर’ और हर पांचवां आदमी ‘टाउनशिप आर्गनाइजर’ है। ठेकेदार, राजनैतिक कार्यकर्ता और पत्रकार उंगलियों पर गिन पाना नामुमकिन है। ऐसे हालात में
राजधानी की कीमती जमीनों पर कब्जे, अवैध निर्माण, फर्जी दस्तावेजों के जरिये जमीनों/मकानों की खरीद-फरोख्त का धंधा जोरों पर है। जो 4-5 साल पहले तक सड़कों पर चप्पल चटाकते थे या बरफ बेचते थे, दर्जी थे, या ऐसे ही छोटे-मोटे धंधे करते थे वे आज पजेरो या फार्चूनर जैसी महंगी गाडि़यों में मय कीमती हथियारों के बेखौफ सफर करते दिखाई देते हैं।
आठ किलोमटर गोलाकार (रेडियस) का लखनऊ तीस किलोमीटर गोलाकार क्षेत्र में बदल चुका है। काकोरी, निगोहां, बख्शी का तालाब, बनी बंथरा से आगे तक काॅलोनियों, बहुमंजिली इमारतों, रिसार्टाें, होटलों और महंगे स्कूलों की जगमगाहट देखी जा सकती है। यह सब केवल मुख्य सड़कों पर ही नहीं है बलिक भीतरी इलाकों तक में सीमेंट/लोहे के ये ‘कैकटस’ उगे दिख जायेंगे। इनमें अधिकांश अवैध और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। यहां एलडीए की ही एक काॅलोनी में पिछले दिनों सीवर लाइन के बगैर गंदगी से उफनाते मेनहोल पकड़े गये थे। पुराने लखनऊ, मध्य, पूर्वी व कैण्ट की घनी आबादी के बीच घुमावदार चार-पांच फीट संकरी गलियों में बहुमंजिली इमारतें अपने में दसियों दड़बेनुमा फ्लैट समेटे हादसों के इंतजार में नियमों को तोड़कर सरकार और उसके बनाये कानूनों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
इतना ही नहीं, इन्हीं भवनों में तमाम नाजायज कारोबार फल-फूल रहे हैं। जुए के अड्डे, सेक्स रैकेट, नाचघर, अवैध शराब के बार के अलावा कोचिग, छोटे-मोटे कारखाने खुलेआम चलाये जा रहे हैं। यहीं बिजली चोरी से लेकर पानी-सीवर टैक्स, वाणिज्य/आयकर ने देकर सरकारी राजस्व को चूना लगाया जा रहा है। इससे भी बदतर हालात विधायकों/सांसदो/पार्षदों द्वारा किये गये अवैध कब्जे व निर्माण के हैं। कहीं पार्क पर, तो कहीं आवास-विकास, नगर निगम की जमीन पर इन्हीं जनसेवकों के कब्जे हैं। यहां बताते चलें कि अपने को सर्वश्रेष्ठ देशभक्त मनवाने को बजिद राजनैतिक दल के पार्षद दिनेश यादव को न तो पुलिस अब तक गिरफ्तार कर सकी न ही उसके चंगुल से अवैध कब्जे छुड़ाये जा सके। यही हाल अन्य विधायकों या नेताओं के हैं।
हां, आम आदमी के वैध माकन बनने मंे सौ झंझट और उसकी पंचायत करने भी यही अवैध कब्जा करने वाले पहुंचकर उस पर अपना हक जताने पहुंच जाते हैं। इन अवैध कब्जों की गूंज सरकारी विभागों से लेकर विधानसभा के सदन तक भी सुनी जा चुकी है।
राजधानी की कीमती जमीनों पर कब्जे, अवैध निर्माण, फर्जी दस्तावेजों के जरिये जमीनों/मकानों की खरीद-फरोख्त का धंधा जोरों पर है। जो 4-5 साल पहले तक सड़कों पर चप्पल चटाकते थे या बरफ बेचते थे, दर्जी थे, या ऐसे ही छोटे-मोटे धंधे करते थे वे आज पजेरो या फार्चूनर जैसी महंगी गाडि़यों में मय कीमती हथियारों के बेखौफ सफर करते दिखाई देते हैं।
आठ किलोमटर गोलाकार (रेडियस) का लखनऊ तीस किलोमीटर गोलाकार क्षेत्र में बदल चुका है। काकोरी, निगोहां, बख्शी का तालाब, बनी बंथरा से आगे तक काॅलोनियों, बहुमंजिली इमारतों, रिसार्टाें, होटलों और महंगे स्कूलों की जगमगाहट देखी जा सकती है। यह सब केवल मुख्य सड़कों पर ही नहीं है बलिक भीतरी इलाकों तक में सीमेंट/लोहे के ये ‘कैकटस’ उगे दिख जायेंगे। इनमें अधिकांश अवैध और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। यहां एलडीए की ही एक काॅलोनी में पिछले दिनों सीवर लाइन के बगैर गंदगी से उफनाते मेनहोल पकड़े गये थे। पुराने लखनऊ, मध्य, पूर्वी व कैण्ट की घनी आबादी के बीच घुमावदार चार-पांच फीट संकरी गलियों में बहुमंजिली इमारतें अपने में दसियों दड़बेनुमा फ्लैट समेटे हादसों के इंतजार में नियमों को तोड़कर सरकार और उसके बनाये कानूनों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
इतना ही नहीं, इन्हीं भवनों में तमाम नाजायज कारोबार फल-फूल रहे हैं। जुए के अड्डे, सेक्स रैकेट, नाचघर, अवैध शराब के बार के अलावा कोचिग, छोटे-मोटे कारखाने खुलेआम चलाये जा रहे हैं। यहीं बिजली चोरी से लेकर पानी-सीवर टैक्स, वाणिज्य/आयकर ने देकर सरकारी राजस्व को चूना लगाया जा रहा है। इससे भी बदतर हालात विधायकों/सांसदो/पार्षदों द्वारा किये गये अवैध कब्जे व निर्माण के हैं। कहीं पार्क पर, तो कहीं आवास-विकास, नगर निगम की जमीन पर इन्हीं जनसेवकों के कब्जे हैं। यहां बताते चलें कि अपने को सर्वश्रेष्ठ देशभक्त मनवाने को बजिद राजनैतिक दल के पार्षद दिनेश यादव को न तो पुलिस अब तक गिरफ्तार कर सकी न ही उसके चंगुल से अवैध कब्जे छुड़ाये जा सके। यही हाल अन्य विधायकों या नेताओं के हैं।
हां, आम आदमी के वैध माकन बनने मंे सौ झंझट और उसकी पंचायत करने भी यही अवैध कब्जा करने वाले पहुंचकर उस पर अपना हक जताने पहुंच जाते हैं। इन अवैध कब्जों की गूंज सरकारी विभागों से लेकर विधानसभा के सदन तक भी सुनी जा चुकी है।
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