Friday, November 15, 2013

सोने के तस्कर...‘कबूतर’!

लखनऊ। दीपावली में सोने की खरीद का खासा महत्व है। धनतेरस के दिन हर खास-ओ-आम की चाहत सोने के गहने, गिन्नी खरीदने की होती है। कुछ लोग सिक्के, श्रीगणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, स्वास्तिक चिन्ह, चरणपादुका भी सोने और चांदी के खरीदते हैं। भारतीयों का सोने के प्रति असीम प्रेम है; इसकी गवाही में गये साल (2012-13) आयात किये गये 875 टन सोने को रखा जा सकता हैं गए साल दीवाली के धनतेरस में 300 किलो सोना अकेले लखनऊवासियों ने खरीदा था। देश भर में इसी दिन चार सौ टन सोना बिकने का अनुमान हैं इस साल सोने का आयात प्रतिबंधित हैं। आयात पर शुल्क भी कई बार बढ़ाया गया मगर सोने की खरीद पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वल्र्ड गोल्ड कौंसिल की माने तो अप्रैल-जून, 2013 तक 370 टन सोने की मांग रही, जो पिछले साल से 71 फीसदी अधिक है। यही हाल सोने के वायदा कारोबार में भी है। सोने के कारोबारियों का अनुमान है कि लखनऊ में पिछले साल से कम बिक्री नहीं होगी। दरअसल सोने में निवेश को फायदेमंद माना जाता है।
    भारतीयों के सोने के प्रति लगाव ने ही इसे वायदा बाजार और तस्करों का प्रिय बनाया। पिछले महीने की 7 तारीख को दुबई से चेन्नै आये एयर इंडिया के विमान के टाॅयलेट से 32 किलो सोना पकड़ा गया। इसकी कीमत 15 करोड़ आंकी गई है। चार लोगों को पकड़ा गया है। अकेले जून, 2013 में दिल्ली के इन्दिरा गांधी हवाईअड्डे पर दुबई, बंैकाक से आने वाले तस्कर कोरियरों से चार करोड़ से अधिक का सोना पकड़ा गया। चेन्नई में सौ किलों से ऊपर सोना अगस्त 2013 तक पकड़ा जा चुका है। जबकि पिछले साल महज 5.5 किलो ही पकड़ा गया था। भारत-नेपाल सीमा पर भी इस साल अगस्त तक 60 किलो से अधिक सोना तस्करों से बरामद किया जा चुका है। कोलकाता, मुंबई, हवाईअड्डों पर भी तस्करी से लाया गया सोना काफी तादाद में पकड़ा जा रहा है। समुद्र के रास्ते आने वाला अवैध सोना भी पकड़ा जा रहा है। अगस्त, 2013 में हैदराबाद के राजीव गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक करोड़ रू0 से अधिक व वाराणसी के बाबतपुर हवाईअड्डे पर छः किलो सोना पांच आदमियों के पेट से बरामद किया गया। तस्करी के जरिये आने वाला सोना लगातार भारत के बाजारों में तमाम सख्ती के बावजूद पहुंच रहा है। सोने की तस्करी के मामले में अकेले भारत ही नहीं श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल व बांग्लादेश की सरकारें भी परेशान हैं। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान में पिछले सालों की तुलना में सोने का आयात 386 फीसदी व श्रीलंका में दोगुना तक बढ़ा है। इन दोनों देशों में आयात शुल्क का अंतर और ड्यूटी फ्री पोर्ट होने से तस्करों की चांदी है। श्रीलंका में तस्कारों को ड्यूटी फ्री शराब और सुअर का मांस भी मिलता है जो उन्हें आकर्षित करने के लिए काफी है। सोने के कारोबारियों का अनुमान है कि दीपावली में हर साल से भी अधिक सोना इस साल बिकेगा। आंकड़ों की बाजीगरी से परे पूरे देश में तस्करी के सोने से धनतेरस, दीपावली के साथ आनेवाली सहालग में भी सोना कारोबारियों की चांदी रहेगी।
    सोने की तस्करी के कारोबार में श्रीलंका, सिंगापुर, बैंकाक, दुबई की हवाई उड़ानों के कई यात्री, छोटे व्यापारियों, के साथ ‘कबूतरबाज’ तक शामिल हैं। इन तस्करों ने भोले-भाले हाजियों तक को अपना कोरियर बनाने की साजिश रची है। पहले भी हाजियों (स्त्री/पुरूष) के जरिए भारत से तम्बाकू, बनारसी साड़ी, हीरे जड़ी अंगुठियों जैसे कीमती सामानों को हर हज यात्री को यह कहकर दिया जाता था कि इसे लेते जाइए वहां हमारे भाई/बहन या अन्य रिश्तेदार आपसे आकर ले लेंगे। इसी तरह वहां से सोने के आभूषण भारत के लिए रवाना किये जाते थे जिसे यहाँ ट्रेवल एजेन्ट्स हाजियों से वसूल कर लेते थे। यही तरीका आद्दे- अधूरे कागजातों के साथ विदेश जाने वाले श्रमिकों (कबूतर) के माध्यम से भी अपनाया जा रहा है। अधिकतर यात्रियों को मालूम तक नहीं होता और वो सोने की तस्करी में शामिल हो जाता है। यहां गौरकरने लायक है कि यात्रियों को उतना ही सोना या सामान दिया जाता है जितना सरकार द्वारा लाने-ले जाने के लिए मान्य है या शुल्क मुक्त है। पकड़े जाने वालों में ऐसे यात्रियों की संख्या न के बराबर है। इन यात्रियों या कोरियर्स का इस्तेमाल बड़ी चालाकी से किया जाता है। भारत से विदेश जाने वाले श्रमिक भी जाने-अनजाने  इन तस्करों के ‘कोरियर’ का काम करते हैं। हैरत की बात है कि सउदी अरब ने पिछले महीनों अपनी नई श्रमनीति निताकत लागू कर दी है, जिसमें रोजगार देने के लिए स्थानीय लोगों को वरीयता (निर्माण के लिए 6-10 फीसदी व तेल/गैस निकालने के लिए 30 फीसदी) दिए जाने का नियम हैं। इस समय सउदी अरब में लगभग 13 लाख भारतीय कामगार हैं। तमामों को वापस आना पड़ रहा हैं, बावजूद इसके भारतीय कामगारों को सउदी अरब भेजनेवाले एजेन्ट्स के दफ्तरों में कामगारों की भारी भीड़ है। इन श्रमिकों से पासपोर्ट मेडिकल, इमीग्रेशन व बीजा के नाम पर ये एजेंन्ट्स अंधी कमाई कर रहे हैं। इन्हें आधे-अधूरे दस्तावेजों के साथ भेजने के अलावा यहां बतायें जाने वाले काम से दीगर निम्नतर कामों में जबरिया झोंक दिया जाता है। तस्करों के पेशेवर कोरियर उपन्यासों से मिलते-जुलते किरदार जैसे रास्ते अपनाने में भी पीछे नहीं हैं। चार महीने पहले दुबई से दिल्ली आये हवाई जहाज में टीवी बाॅक्स को स्ट्रेपल करने वाले पिन की शक्ल में चांदी की कोटिंग चढ़ाकर लाया गया सोना बरामद किया था। इसी तरह कई कोरियर (महिला/पुरूष) अपने गुप्तांगों में या अंतःवस्त्रों में सोना छुपा कर लाते हैं, लेकिन ये लोग 1 से 2 किलों तक ही ला पाते है। इन कोरियरों को जहां अच्छी कमीशन मिलती है वहीं सुनहरे भविष्य का लालच भी इन्हें इस पेशे में धकेलता हैं। लब्बोंलुआब यह कहा जा सकता है कि सोने का कारोबार एक बार फिर तस्करों के हाथों में लौट आया है। इन तस्करों के पास से देश के तमाम हवाई अड्डों व बन्दरगाहों से अब लगभग 1 हजार किलो सोना पकड़ा जा चुका है और तीस लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें एक अब्दुल रहमान को कस्टम के लोगों ने छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट पर पकड़ा, जिसने कस्टम अधिकारियों को बताया था कि वो अब तक 13 बार दुबई से भारत सोना लेकर आ चुका है। हर बार वह अपने शरीर के भीतरी हिस्सों में छुपाकर सोने की खेप लाता रहा। अद्दिकारी हैरत में थे कि वह उनकी नजरों से कैसे बच गया। जबकि वे महीने में 15-20 बार देश के बाहर आने-जाने वालों पर पूरी नजर रखते हैं। सोने की तस्करी नब्बे के दशक से थम गई थी। देश में तस्करों की जमात के सरगना नशीले पदार्थाें (ड्रग्स), हथियारों, हीरे-जवाराहतों व नकली नोटों के कारोबार में उतर गये या फिर डाॅन दाऊद इब्राहीम के साथ आतंकवादी षड़यंत्र में शामिल हो गये। क्योंकि भारत सरकार ने सोने के आयात से प्रतिबंध हटा लिया और प्रवासी भारतीयों को 5 किलो तक सोना लाने की इजाजत 450 रू0 प्रति 10 ग्राम ड्यूटी देकर दी गई थी। बाद में यह शुल्क 220 रू0 प्रति 10 ग्राम कर दिया गया। इससे सोने का समूचा कारोबार सर्राफा कारोबारियों के बीच सिमट गया। गौरतलब है कि सोने की तस्करी के असल जनक सुकुर नारायण बखिया, राजनारायण बखिया थे। ये दोनो भाई सत्तर-अस्सी के दशक में गोवा-मुंबई के समुद्री तटों के बादशाह कहे जाते थे। मुंबई बंदरगाह पर हाजी मस्तान कुली थे। दोनों भाइयों का सोना बंदरगाह से बाहर फिर शहर में पहुंचाने का काम हाजी मस्तान ने शुरूआत में किया। बाद में मस्तान के दाहिने हाथ व यूसुफ पटेल व अन्य तीन साथियों वरदराजन मुदलियार, करीम लाला और लल्लू जोगी के साथ हाथ मिलाकर साझे में गोवा-मुंबई के समुद्रतट व शहर बांट लिये। बड़े भाई राजनारायण बखिया की बीमारी से मौत होने पर सुकुरनारायण बखिया अकेला पड़ गया। उस पर तस्करी का एक भी मुकदमा नहीं दर्ज हुआ। उसे मीसा, कोफेपोसा व साफेया के तहत निरूद्ध किया गया था। छोटे बखिया की मौत के बाद हाजी मस्तान का एक छत्रराज्य सोने की तस्करी में रहा। यूसुफ पटेल से हुए झगड़े में हुई गैंगवार ने हाजी को और मजबूत किया। उसी गैंगवार के बाद युसूफ और लल्लू जोगी किनारे हो गये। सोने की तस्करी हाजी मस्तान, वरदा भाई व करीम लाला के बीच रही लेकिन एशिया का ‘गोल्ड किंग’ हाजी मस्तान ही रहा। इसी बीच दाऊद की आमद हुई और उसकी तेजी देखकर बूढ़े होते व राजनीति के खेमे में दाखिल होने को ललायित मस्तान ने गिरोह की बागडोर दाऊद के हाथों सौंप दी। खुद अल्पसंख्यकों के नाम से संगठन बनाकर अपनी मृत्यु तक सक्रिय रहे।

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