Sunday, October 23, 2011

डाकिया डाक नहीं लाया

लखनऊ। डाक समय से नहीं बंटती या उसके जिम्मेदार कैसे उसे मंजिल तक नहीं पहुंचने देते? जीपीओ व आरएमएस डाकघरों में पत्र डालने वाले आमतौर से यह मानते हैं कि डाक 24 से 48 घंटों में मंजिल तक पहुंच जाएगी। जबकि यह सच नहीं है। अखबार/पत्रिकाएं तो आमतौर पर मंजिल पर नहीं पहुंच पाते। यहां एक घटना के जिक्र से बहुत कुछ साफ होगा।
    लखनऊ से छपने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र ने अपनी 33 ग्राम की एक प्रति में पचास पैसे मूल्य का डाक टिकट लगाकर दो सौ प्रतियां आरएमएस के डाक बक्से में डाल दी। चैबीस घंटों बाद समाचार-पत्र के कार्यालय में एक डाक बाबू का फोन आया कि आपकी डाक रोकी जा रही है। क्योंकि इसको भेजने के लिए अलग से व्यवस्था है। उसमें पंजीकरण कराकर ही भेजें। गौरतलब है कि बगैर पंजीकरण समाचार-पत्र उचित मूल्य के डाक टिकट लगाकर भेजने का प्रावधान है। यही बात दोहराने पर बाबू द्वारा डाक जब्त करने या वापस मंगाने की बात की जाती रही। गौरतलब है कि समाचार पत्र का डाक पंजीयन पहले से था, तय तारीख निकल चुकी थी। इसी कारण दुगने मूल्य का डाक टिकट लगाकर साधारण डाक से प्रेषण किया जा रहा है, बाबू को बताया गया फिर भी कुतर्क करने पर समाचार-पत्र के प्रकाशक ने जब उस बाबू को बताया कि यह अखबार का दफ्तर है, जहां आपने फोन किया हैं, आपकी बात रेकार्ड भी हो सकती है। तब उसने तुरंत फोन काट दिया और डाक भी वितरण के लिए निकाल दी। और केवल निकाल ही नहीं दी बल्कि त्वरित सेवा में पहुंचाने की व्यवस्था भी की। तभी 24 घंटों में प्रदेश भर में समाचार -पत्र की प्रतियां बंट भी गई। इसी तरह एक मासिक पत्रिका के साथ भी किया गया था। नई प्रकाशित होने वाली पत्रिका का डाक पंजीकरण तब नहीं हो पाया था। उसके संपादक को अपनी पत्रिका वहां से वापस लानी पड़ी थी।
    इससे भी अलग पंजीकरण के तहत भेजे जाने वाले समाचार-पत्रों की तमाम प्रतियां समय से तो छोडि़ए बंटती ही नहीं। यह आरोप नये नहीं है। आम आदमी भी डाक समय से न मिलने के आरोप लगाता रहता है। यही वजह है आज लोगों की पहली पसन्द कोरियर सेवा हो गई है। आज डाक सेवा से बेहतर कोरियर सेवा का कारोबार अरबों रूपयों का हो गया है।
    डाक विभाग ने पिछले महीने इन आरोपों को नकारते हुए बताया था कि 95 फीसदी डाक समय से बंटती और पहुंचती है। देरी का कारण लोगों का घर पर न मिलना होता है। यह विभाग द्वारा कराये गये सर्वेक्षण का नतीजा बताया गया था। जबकि सच यह नहीं है। ग्रामीण इलाकों की बात छोडि़ये राजद्दानी में 24 घंटों में साधारण डाक नहीं बंट पाती। पर्व-त्योहारों पर तो और दयनीय हालात हो जाते हैं। भले ही सर्वेक्षण या अन्य तर्कों के जरिये आरोपों को खारिज किया जाये, लेकिन तमाम सुधारों के दावों के बावजूद डाक सेवा सुस्त और भ्रष्ट आचरण की गिरफ्त में दिखाई देती है।

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