Sunday, October 23, 2011

डराते हैं पुलिस के सिपाही

लखनऊ। वर्दी में सजा-धजा आदमी अपनी अकड़ या अहंकार में डूबा रहता है। तिस पर वर्दी का रंग अगर खाकी हो तो यह नशा बेहोशी की हद तक का हो सकता है। पुलिस कई मायनों में जहां बदनाम है, वहीं खौफजदा करने में सबसे आगे रहती है। सुरक्षा के नाम पर चैराहों, सड़कों पर तैनात पुलिस के जवान हाथों में डंडा थामें, कंधे पर रायफल लटकाये आमतौर पर दिख जाते हैं। इन्हीं में कई सिपाही अपनी कमर में, आगे पेट की तरफ या पीछे पीठ की तरफ अपनी पैंट मंे नंगी रिवाल्वर लगाये रहते हैं। ये नजारा खास पर्वों या राजनैतिक दलों की रैलियों के दौरान तो रहता ही है, इससे अलग रोजमर्रा के दिनों में भी किसी चैराहेे पर देखा जा सकता है।
    रिवाल्वर वह भी बगैर कवर के लगाये सिपाही के बगल से गुजरने की गुस्ताखी भला कौन कर सकता है? गलती से ऐसे शस्त्र-वस्त्र सुसज्जित सुरक्षाकर्मी ने यदि किसी शरीफ नागरिक को रोक लिया तो उसका क्या हाल होगा? क्या वह भय के कारण उस सिपाही के प्रश्नों का सही उत्तर दे सकेगा? ऐसे में ये सिपाही शरीफ नागरिकों को बेइज्जत तक कर देते हैं, रहा अपराधी को डराने का तो वह सभी जानते है कि चैराहे पर खड़े सिपाही से कितना डरते हैं अपराद्दी। अब जरा इनकी रिवाल्वर/रायफल की बात करते हैं।
    इनमें अधिकतर अपनी जान की सुरक्षा के चलते खाली रिवाल्वर/रायफल यानी बगैर गोलियों के (अनलोड) लिये रहते हैं। जब भी कोई हादसा या दुर्घटना होती है तो ये अपने असलहों में गोलियां ही भरते रह जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि आला अफसरान चैराहों पर तैनात सिपाहियों के असलहों की जांच-पड़ताल भी समय-समय पर करें जिससे उनकी कर्तव्यनिष्ठा का पता चलने के साथ उनकी कार्य प्रणाली की भी जानकारी होगी।
    गौरतलब है जब कभी रेड अलर्ट या वाहनों की जांच के नाम पर इन सिपाहियों को तैनात किया जाता है, तब इनका भयावह और रिश्वतखोर चेहरा देखने लायक होता है। इसकी गवाही में किसी घटना का जिक्र करना बेमानी होगा क्योंकि यह तो रोज ही होता है। आला अफसरों को देखना चाहिए कि आम नागरिकों की सुरक्षा में तैनात सिपाही उसे खौफजद़ा न करके उसकी वास्तविक सुरक्षा पर ध्यान दें।

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