Tuesday, July 5, 2011

चलती क्या...

लखनऊ। राजधानी होने के नाते शहर 20-22 घंटे जागता है। भागता हैं जगमगाता है। सौंदर्यबोध भी कराता है। कुछ इस तरह कि सारे संस्कार, सारी मान्यताएं और शर्म नंगे हो जाएं। जी हां, चारो ओर भागते-दौड़ते ट्रैफिक के बीच और बंद कमरों की खिड़कियों से आती कामुकता भरी गर्म सिसकारियाँ मनुष्य के सेक्स सर्कस की दिलचस्प कथाएं बयान करती है।
            पहली कथा, आलमबाग टैक्सी स्टैंड से हजरतगंज के लिए रोज एक लड़की सुबह दस बजे आती है। आते-जाते वो एक खास थ्री व्हीलर पर ही देखी जाती। उस ऑटों चालक से उसकी दोस्ती बढ़ती जाती। लड़की पढ़ी-लिखी थी, एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करती। ऑटो चलाने वाला लड़का उम्र में उससे छोटा अनपढ़ फिर भी उन दोनों में सिनेमाई प्रेम पनपने लगा। लड़की के लिए ऑटो चालक शाहरूख खान, लड़के के लिए वोबिप्स इस बीच सपने, सिनेमा, मॉल से लेकर देह के उपकरणों की नुमाइश से कसमसाते लड़के ने शहर से पच्चीस किलोमीटर दूर नए बने एक गेस्ट हाउस में अपने एक मित्र उसकी प्रेमिका के साथ अपनी प्रेमिका के लिए भी दो कमरे बुक करा लिए। प्रोग्राम बना, सब उस सूनसान जगह पहुंचे। लड़की थोड़ा घबराई। लड़के ने प्यार से उसे बांहों में समेट लिया। कमरे में पहुंचते ही। लड़कापोर्न हीरोबनने को बेचैन, लड़की विचलित। मित्र और उसकी प्रेमिका बोल, तुम्हारी पूजा करने के लिए तो यहां आएं नहीं है। इंज्वाय करो-कराओ। फिर भी लड़की में झिझक जारी। मित्र बोला, भाई तुम तो अगरबत्ती जलाकर इनकी पूजा करो मैं तो अपने कमरे में चला। उसके जाते ही लड़के ने दरवाजा बंद किया और जब तक लड़की कुछ समझती तब तक वह बन गयापोर्न हीरो लड़की के साथ एक झटके में वह सब घट गया जो उसने सोचा भी नहीं था। इसके बाद जो धटा वह उसके लिए और हौलनाक था।
मित्रों ने अपनी प्रेमिकाएं बदल ली। लड़की को इस हादसे ने देह व्यापार के बाजार में खड़ा कर दिया।
            दूसरी कथा, शहर की पॉश कॉलोनी मंे किराये के फ्लैट में शर्मीली और उसके पति रहते हैं। उनके यहां मित्रों की आमदा रफ्त से अगल-बगल के लोग परेशान रहते हैं। दरअसल युवक शर्मीली का किराये का पति हैं। दोनों में समझौता है।
            तीसरी कथा, चारबाग के दड़बेनुमा एक लॉज में केवल दस छोटे कमरे है। ये कमरे चौबीसों घंटे फुल रहते हैं। दिन में घंटे-दो घंटों के लिए जवान जोड़े आते, ठहरते मौज मनाते हैं, चले जाते हैं। इनमें अधिकतर स्कूली युवा होते हैं।
चौथी कथा, सफदरबाग घनी बस्ती। यहां मध्यमवर्गीय परिवार रहते हैं। एक खाली मकान में आये दिन युवा जोड़े दिन में आते हैं। दरवाजा बंद, अंदर मौज होती शाम तक सन्नाटा हो जाता।
            इन कथाओं का सच है देह व्यापार। शहर के हर ऑटो, बस स्टैंड में मुंह ढके लड़कियों को देखा जा सकता है। इनमें यार, साले से लेकर उम्दा किस्म की वजनदार गालियों का इस्तेमाल आमतौर पर होता देखा जा सकता है। ये युवावेज-नानवेज जोक्ससुनते-सुनाते और बंटी-बबली जैसी हरकतें करते देखे जाते हैं। इनकी मौज के खर्चे भी बड़े कीमती हैं। जिसके चलते इनके कारनामें भी हैरतअंग्रेज हैं।

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