Tuesday, July 5, 2011

महाभारत 2012 में तीन महारानियां

लखनऊ। राजनैतिक महाभारत में वोटों को हथियाने की जंग लगातार उप्र में तेज होती जा रही है। और इसमेंतीन महारानियोंकी भूमिका बेहद अहम है। यह महज इत्तफाक नहीं है। सोची-समझी रणनीति के तहत उप्र विधान सभा चुनाव 2012 के लिए ऐसा किया जा रहा है। सियासी पैंतरेबाज मुख्यमंत्री मायावती को शिकस्त देने की गरज से उनके सामने तुर्की-बतुर्की जवाब देने के लिए जहां कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा को लाख मनमुटावों, आरोपों गुटबाजी के बाद भी नहीं हटा रही, वहीं भाजपा जलते-उबलते शब्दों के जरिये हमलावर होनेवाली साध्वी उमा भारती को उप्र में उतार चुकी है।
            इन तीनों महिलाओं में कोई समानता नहीं है और ही तीनों ने कभी एक साथ बैठकर एक कप कॉफी पी होगी। हां, ये तीनों ही यदि आमने-सामने हांे तो सूबे की सियासत का ज्वालामुखी निश्चितरूप से फट सकता है। तीनों की भाषा, भूषा और विचारधारा एकदम अलग है, यहां तक उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी। एक ब्राह्मण, दूसरी पिछड़े समाज से, तो तीसरी दलित। अजीब इत्तफाक है कि तीनों ही उप्र से बाहर की रहनेवाली लेकिन उनकी राजनैतिक कर्मभूमि आज एक ही है।
            इनमें रीता बहुगुणां सबसे उम्रदराज 61 वर्ष की हैं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणां देश की राजनीति में ख्यातिनाम थे और उप्र के मुख्यमंत्री रहने के साथ सत्ता के केन्द्र में रहे। उनके गुण स्वभाविक तौर पर उनकी पुत्री में है। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रही हैं। उन्हें जुझारूपन के साथ सियासी शतरंज पर अच्छी बिसात बिछाने का गुर विरासत में मिला है। वे जहां अच्छी वक्ता हैं, वहीं जोश की आग में शब्दों को गरम करने से भी नहीं चूकतीं। इसी अंदाज के चलते मिलनसार और संवेदनाओं से भरपूर रीता दो साल पहले मुरादाबाद की एक सभा में मुख्यमंत्री मायावती पर सख्त टिप्पणी कर बैठी थी। हालांकि इस पर तुरंत बाद माफी भी मांगी थी, लेकिन उन्हें इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। उनको उसी रात गिरफ्तार किया गया। उनके साथ पुलिस ने भी शालीनता नहीं बरतीं उनके लखनऊ आवास को बीएसपी कार्यकर्ताओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा। वे शादी शुदा संपूर्ण गृहिणी होने के साथ शाकाहारी हैं। उनका पसंदीदा पहनावा सूती सिल्क की साड़ियां हैं। उनके द्वारा किये जा रहे संघर्ष से सूबे में कांग्रेस का दबदबा बढ़ा है।
            मायावती 1956 में दिल्ली में एक साधारण दलित परिवार में जन्मी। उन्हें कांशीराम राजनीति में लाये थे। आज 55 वर्षीय मायावती बहुजन समाज पार्टी की सर्वेसर्वा और उप्र की मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश की राजनीति में वे पहली तेज-तर्रार दलित महिला है। उनके चुनौतीपूर्ण भाषणों और अदम्य साहसी अंदाज से विरोधी भी घबराते हैं। वे अपने विरोधियों को करारा जवाब देने के लिए जानी जाती है। वे अपने निजी जीवन में दखलंदाजी की इजाजत किसी को भी नहीं देतीं। उनकी मित्रता का दावा शायद ही कोई कर सके। हां इसी फरवरी में प्रदेश के समीक्षा निरीक्षण पर निकली मायावती की मुलाकात एक पुरानी मित्र से बागपत मंे हो गई थी।
            मायावती की कभी मकान मालकिन और नजदीकी सहेली रही डॉ. दयावती ने सोचा भी नहीं था कि अचानक इस तरह उनसे मुलाकात हो जाएगी, अगर होगी भी तो वह पहचान जाएंगी। डॉ. दयावती बागपत में जिला कुष्ठ रोग अधिकारी के पद पर तैनात थीं। सीएचसी के निरीक्षण के दौरान दोनों का आमना-सामना हुआ। उनके नमस्कार करते ही मायावती फौरन उन्हें पहचान गई। निरीक्षण के बीच ही दोनों पुरानी सहेलियों के बीच गुफ्तगू हुई। सूबे की मालकिन अपनी पुरानी मकान मालकिन को देख कुछ पल के लिए सब कुछ भूल गई।
            बकौल दयावती, मायावती ने 1976-78 के दौरान उनके मायके रैदासपुरी, मुजफ्फरनगर में पार्टी गतिविद्दियों के लिए किराये पर कमरा ले रखा था। उन दिनों मायावती से उनकी अच्छी दोस्ती थी, साथ खाती-सोती थीं, तमाम मुद्दों पर रात भर बातें होती रहती थीं। कुछ दिनों बाद दयावती की शादी नोएडा में हो गयी। माया के मुख्यमंत्री बनने पर लखनऊ जाकर कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी।
            वे सादा शाकाहारी भोजन परम्परागत सलवार-कुर्ता पसन्द करनेवाली हैं। उनके पहनावे को दलित युवतियां भी गर्व से अपनाती हैं। उन्हें 2012 के चुनावों में जहां नाराज वोटरों को मनाने की मशक्कत करनी है, वहीं अपने वोट बैंक को सम्भाले रखने की भी चुनौती है।
            51 साल की उमा भारती को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के उप्र में कराये गये सर्वे के नतीजें और लालकृष्ण आडवाणी के दबाव में उप्र की राजनीति में रोपा गया है। मध्य प्रदेश की सियासत से ठुकराई हुई उमा को भाजपा उप्र में मायावती के मुखालिफ इस्तेमाल करके अपनी पारंपरिक छवि हिंदुत्व को जहां पुख्ता करने के ख्वाब देख रही है, वहीं पिछड़ों का वोट हासिल करने का गणित भी हल करना चाहती है। उसे उम्मीद है कि उमा भारती पार्टी के वोटों में 4 से 6 फीसदी वोटों का इजाफा कर सकती हैं क्योंकि पार्टी के पास कल्याण सिंह को खाने के बाद पिछड़ों का कोई बड़ा चेहरा नहीं था, इसलिए उमा इस लिहाज से पार्टी के लिए तारणहार साबित हो सकती है। इतना ही नहीं भाजपा के दिग्गज नेताओं का सोचना है कि उमा की आक्रामक शैली सूबे में जहां लोध वोट उसके खाते में जमा कराएगी, वहीं हिंदुत्व की धार भी पैनी होगी जिससे पार्टी को बड़ा लाभ होगा। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनावों में उनकी कर्मभूमि मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। सन्यासिन उमा संगीत प्रेमी और उम्दा भोजन की शौकीन हैं, उनके दोस्तों का दायरा भी अच्छा है।
            बहरहाल, 2012 के चुनावी महाभारत में इनतीन महारानियोंकी मौजूदगी उप्र के मतदाताओं को कितना लुभाएगी? कितना डराएगी? कितना सताएगी? यह आने वाला समय बताएगा।

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