Wednesday, April 27, 2011

देवीपाटन मन्दिर में सजता है माता पाटेश्वरी का दरबार

अजय श्रीवास्तव।
नवरात्र समाप्त हो गई, लेकिन माता पाटेश्वरी देवी मंदिर के चारो ओर एक किलोमीटर तक चैत्र मेला अभी भी जस का तस है। भक्तों की भीड़ लगातार उमड़ रही है। यह मेला बलरामपुर जनपद की पवित्र धरती पर माता पाटेश्वरी देवी के आशीर्वाद से समृद्ध है। जनपद मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर तुलसीपुर में माता का देवीपाटन मंदिर है। विश्व प्रसिद्ध मंदिर को कई पौराणिक कथाओं के साथ सिद्धपीठ होने का गौरव प्राप्त है। यहां देश-विदेश से आने वाले भक्तों का तांता बारहोमास लगा रहता है। साल में दो बार चैत्र व शारदीय नवरात्र पर यहां विशेष उत्सव के साथ मेला लगा रहता है। इस समय माता के दर्शनार्थियों व उनके आशीषाभिलासियों की विशाल भीड़ रहती है।     मुख्यालय से बौद्ध परिपथ पर चल कर सड़क मार्ग अथवा रेल मार्ग से करीब 30 किलोमीटर की यात्रा करके तुलसीपुर पहुंचा जा सकता है। तुलसीपुर से सटे सिरिया नदी के किनारे ग्राम पंचायत देवीपाटन में प्राकृतिक छटा के बीच स्थित मॉ पाटेश्वरी देवी का यह मंदिर हजारों वर्षो से भक्तों के आस्था व विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। वर्तमान समय में मॉ पाटेश्वरी देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसका अपना एक विशेष महत्व है। कन्या कुमारी से लेकर बंगाल, बिहार सहित पड़ोसी देश नेपाल तक के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए इस मंदिर पर अपना मत्था टेकने आते हैं। मंदिर पर मुख्यतः प्रसाद के रूप में चुनरी, नारियल आदि चढ़ाया जाता है। मन्दिर की विशिष्टता की ही वजह से इसे देवी पाटन के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मॉ पाटेश्वरी के इस पावन पीठ का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार दानवीर कर्ण ने भगवान परशुराम से इसी स्थान पर स्थित पवित्र सरोवर में स्नान कर शास्त्र विद्या की शिक्षा ली थी। एक अन्य कथा के अनुसार सती के पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में देवाधिदेव महादेव के अपमान से छुब्ध बिना बुलावे के ही आई उनकी पुत्री व भगवान शिव की पत्नी ने यज्ञ वेदी में कूद कर अपने प्राण दे दिए। इसकी सूचना मिलते ही कुपित भगवान शिव ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। भगवान शिव सती के शव को कन्धे पर लादकर उन्मत्त के समान यहां-वहां घूमने लगे। जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।
    देवताओं व ऋषियों के विनती पर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को 51 भागों में काटकर शिव से अलग कर उनके मोह को शान्त किया। धरती पर जहां-जहां देवी सती का अंग गिरा वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। उन्हीं शक्ति पीठों में से यह एक है। यहां पर माता सती का वाम स्कंध वस्त्र सहित गिरा था। एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने जब माता सीता को एक व्यक्ति द्वारा कलंक लगाने के बाद वन भेज दिया था। पुनः जब यज्ञ के घोड़ों को उनके पुत्रों लव एवं कुश के रोकने व उनसे युद्ध के बाद राम को जानकारी हुई। उन्होंने सीता से बात की तो माता सीता ने अपनी माता धरती से विनय किया कि यदि वह वास्तव में सती हैं तो यहीं धरती फट जाएं एवं धरती माता उन्हें अपने में समाहित कर लें। इतना कहते ही धरती फट गई एवं देखते ही देखते माता सीता धरती में समा गई। कहते हैं कि उसी स्थान से पाताला लोक को जाने के लिए रास्ता है। इसी गर्भगृह पर माता का भव्य मंदिर बना हुआ है। वर्तमान में नाथ सम्प्रदाय के मंहथ योगी कौसलेन्द्रनाथ जी महाराज यहां के महंथ व व्यवस्थापक है।

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