Wednesday, April 27, 2011

आया बिजली गुल होने का मौसम

लखनऊ। बिजली के बकाएदारों से चले वसूली अभियान में जहां हजारों कनेक्शन काटे गए, करोड़ों की राजस्व वसूली हुई, वहीं बिजली चोरी के नाम पर बड़े खेल हुए। मंत्री के निजी सचिव से लेकर कई बड़े-छोटे लोग पकड़े गए। खूब हल्ला मचा। बाद में सब ठीक हो गया। तमाम लाखों के बकाएदारों से महज कुछ हजार लेकर ही और छोटे बकाएदारों की बिजली काटकर वसूली कर्मकांड को पूरा कर लिया गया। 31 मार्च के नाम पर अधिकतर छोटे उपभोक्ताओं को ही त्रस्त किया गया। अब बिजली गुल होने की बारी आ गई है।
    अखबारों में अपना नाम छपवाने की गरज से या अपनी नेतागिरी चमकाने की गरज से बयान छपवाए गए कि बकाएदार किश्तों में भुगतान कर सकते हैं, लेकिन सामान्य उपभोक्ताओं की बात किसी भी अभियंता या बड़े अफसरों ने नहीं सुनी। हां, वीआईपी या उनके चहेतों को पूरी छूट मिली। उन्हें किश्तों का झंझट भी नहीं झेलना पड़ा, बस तत्काल थोड़ा बहुत भुगतान करने से ही चैन मिल गया। इससे भी बड़ा मामला फर्जी बिलिंग के जरिए पैसा कमाने का रहा। उपभोक्ताओं को मनमानी रीडिंग का बिल भेज दिया गया, फिर संशोद्दन के नाम पर अनाप-शनाप विद्युत मूल्य, सरचार्ज लगाकर पैसा वसूला गया। कई अधिशासी अभियंता स्तर के अधिकारी सामान्य शिष्टाचार भूलकर उपभोक्ताओं से समूची बदतमीजी, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान सीखी थी, पर अमल करते रहे।
    इससे भी दो कदम आगे बिजली कर्मचारी समय-समय पर घर-घर वसूली के दौरान बगैर रसीद दिए पैसा ले गए थे, उसे भी इस वसूली अभियान में नहीं माना गया, उल्टे पैसा देने वाला उपभोक्ता ही चोर साबित हो गया। अधिकारी अखबारों में बयान देते रहे कि कर्मचारियों को बगैर रसीद पैसा देने की लिखित शिकायत मिलने पर कार्रवाई अवश्य की जाएगी। सवाल यह है कि अब तक जो लिखित शिकायतें ऐसी विभाग को मिली हैं, उनमें क्या किया गया? यहां एक मजेदार बात और बताते चलें कि विभाग के पास करोड़ों के कम्प्यूटर हैं, मगर उनमें उपभोक्ताओं द्वारा जमा किए जाने वाले पैसांे का कोई ब्यौरा नहीं होता या यूं कहें विभाग के पास रिकार्ड नहीं होता? बड़े से लेकर छोटे अधिकारी तक उपभोक्ता से भुगतान जमा की रसीद मांगते हैं? और तो और बिल में प्रतिभूत की जमा रकम जो लगातार सहायक अभियंता राजस्व की निगरानी में दर्ज की जाती है, को भी विभाग के बाबू से लेकर बड़े अभियंता तक नकार देते हैं, यदि आपके पास जमा रसीद न हो! ऐसे ही सामान्य भुगतान में भी होता है।
    अब आईये सुविधाओं की बात पर तो किसी प्रकार की शिकायत मत करिये वरना आप मुसीबत में फंस सकते हैं। आपकी बिजली तक काटी जा सकती है गरमी आ रही है, बिजली गुल होने का सिलसिला शुरू हो गया है। दावा किया गया है कि हिमांचल प्रदेश से पहली अप्रैल से बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं की दिक्कतें दूर की जा रही हैं। इसकी हकीकत राजधानी में घंटों बिजली गुल रहने के साथ अंधेरे में डूंबे सूबे के अद्दिकतर जिलों में देखी जा सकती है। एक छोटा सा कॉल सेंटर राजधानी लखनऊ में सालों से बन नहीं सका, न ही भुगतान जमा करने की एटीएम मशीन लग सकीं और न ही ऑनलाइन बिलिंग जमा के कम्प्यूटर दुरूस्त बन सके। उपखण्डों में भी हालात में कोई बदलाव नहीं हुए। अधिकारियों, बाबुओं के बर्ताव में भी हेकड़ी बरकरार है।
    बिजली चोरी का हल्ला शक्ति भवन से लेकर ऊर्जा मंत्री के कमरे तक में न जाने कब से मच रहा है। इससे बचने के कारगर उपायों की ओर कदम क्यों नहीं उठाए जाते? महज इसलिए कि इंजीनियरों, हाकिमों व राजनेताओं की काली कमाई बंद हो जाएगी? नहीं तो क्या कारण है कि बयानबाजी से आगे बढ़कर मोबाइल फोन की तर्ज पर बिजली के भी प्रीपेड मीटर सूबे भर में क्यों नहीं लगाए जाते? प्री-पेड मीटर व्यवस्था से उपभोक्ता व ऊर्जा विभाग दोनों को कोई परेशानी नहीं होगी।
    बहरहाल 31 मार्च निबट गया। अब बिजली आवाजाही का मौसम आ गया है। वहां भी कमाई के साधन तलाशे जाएंगे?

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