Tuesday, October 12, 2010

खुदा से भी धोखा

नई दिल्ली। इस्लाम में पांच लाजिमी (अनिवार्य) इबादतों में एक हज केवल अपनी मेहनत की कमाई से ही जायज हैं। इसका मजाक उड़ाते हुए मेहनतकाश भारतीयों की कमाई से हज करने वालों की लिस्ट में हर साल इजाफा हो रहा है। भारत का विदेश मंत्रालय हर साल हज यात्रा पर जाने वालों के साथ सरकारी प्रतिनिधिमंडल भेजता है। इस प्रतिनिधि मंडल का गठन 1966 में पांच सदस्यों से हुआ था। आज इसकी संख्या 70 है, क्योंकि इन सरकारी नुमाइंदों के साथ उनके रिश्तेदार भी सरकारी खर्च पर जाते हैं। यह जानकारी भारत के विदेश मंत्रालय ने सूचना के अधिकार के तहत अफरोज आलम एक्टिविस्ट द्वारा मांगे जाने पर दी है।
 हज यात्रियों की नुमाइंदगी के लिए सरकारी प्रतिनिधिमंडल में मंत्रियों, राजनेताओं और नौकरशाहों को शामिल किया जाता है। इनमें कई तो बार-बार प्रतिनिधिमंडल में शामिल होकर हज यात्रा का लुत्फ उठाते हैं। इन पर भारत सरकार ने करदाताओं का लगभग 6 करोड़ रूपए का बजट तय कर रखा है। विदेश मंत्रालय ने 2000 से 2008 के बीच हज यात्रियों के साथ गये प्रतिनिधि मंडल की संख्या में उन पर होने वाले खर्च का ब्यौरा तो दिया है, लेकिन प्रतिनिधिमंडल में शामिल किये जाने वाले सदस्यों के लिए किन नियमों का पालन किया जाता है, बताने से परहेज किया। दरअसल प्रतिनिधिमंडल के चुनाव में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जाता है। इसके कई उदाहरण हैं, रेलवे राज्यमंत्री इ. अहमद तीन बार 2000, 2004 व 2006 में, भाजपा नेता सै0 शाहनवाज हुसैन दो बार 2000 व 2003 में, राज्य-सभा सदस्य अहमद सईद मलिहाबादी दो बार 2001 व 2007 में, लोकसभा सदस्य शफीकुर्रहमान बर्क दो बार 2005 व 2007 में, सेवानिवृत आइएएस लुत्फुर रहनाम लशकर दो बार 2000 व 2007 में हज कर आये।
 अल्लाह की राह पर सर झुकाए नेक बन्दों को जहां हज यात्रा के लिए पासपोर्ट तक आसानी से नहीं मिल पताा, वहीं हराम के पैसों से हज का पुण्य कमानेवाले मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों और पुलिस के उच्चाधिकारियों को प्रतिनिधिमण्डल में हाथों हाथ लिया जाता है। इन सरकारी हजयात्रियों पर सरकार लगभग आठ लाख रूपया हर प्रतिनिधि पर खर्च करती है। यह रकम आम हज यात्री के खर्च से चार-पांच गुना अधिक बैठती है। विदेश मंत्रालय द्वारा खर्च की जाने वाली यह रकम 2008 में बढ़कर औसतन 13 लाख हो गई है। जरा खर्च की गई रकम और सदस्यों के आंकड़ों पर गौर फर्माइए। 2005 में 34 सदस्यों पर खर्च आया 2.8 करोड़ रुपए। उसके अगले साल दो प्रतिनिधि मंडल भेजे गए, पहले भेजे गये 24 लोगों पर 2.8 करोड़ व दूसरे भेजे गये 27 लोगों पर 2.39 करोड़ का खर्च आया था। 2007 में 29 लोगों पर खर्च आया 2.5 करोड़ व 2008 में 34 लोगों पर 4.37 करोड़ खर्च हुआ। भारत के महालेखा नियंत्रक (कैग) ने जनता के पैसे से हर साल इतने बड़े प्रतिनिधि मण्डल को सऊदी अरब भेजे जाने की भूमिका पर एतराज जताते हुए इसकी संख्या कम करने को भी कहा था। इसके बाद भी भारी भरकम रकम लगातार खर्च की जाती है। कैग की रिपोर्ट बताती है कि हज यात्रियों के साथ जाने वाले भारी भरकम प्रतिनिद्दिमण्डल में शामिल सदस्यों के परिवार (पति/पत्नी) के लोग भी सरकारी खर्च पर जाते हैं। इन लोगों को इस प्रतिनिधिमण्डल में कैसे और किस नीति के तहत शामिल किया जाता है को भी आडिट जांच में नहीं बताया गया। आडिट के दौरान पूछताछ में मंत्रालय द्वारा संदेहास्पद जवाब दिया गया कि देश के सभी हिस्सों व फिरकों के हिसाब से आने वाले आवेदनों को देखकर प्रतिनिधियों को नामांकित किया जाता है।
 जरा-जरा सी बात पर फतवा जारी करने वाले देश के मौलाना इस्लाम के आदर्शों की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले इन नुमाइंदों के लिए क्या सजा तजवीज करेंगे? कुरान तो धर्मार्थ के विषय में यहां तक कहती है कि सत्कर्मी वह है जो यह माने कि ‘उसकी संपत्ति में मांगनेवाले और जो न मांग सके उसका भी अद्दिकार है। (51.19) और कुरान के दूसरे पारे (अध्याय) की आयत 196 से 200 तक हज के लिए साफ हिदायतें दी गई हैं। उनको दरकिनार करते हुए सरकारी हाजी दूसरों की मेहनत की कमाई से पुण्य खरीदने का हराम काम कर रहे हैं?

1 comment:

  1. कमीनो की कमी नहीं है ग़ालिब एक ढुंढो हज़ार मिलते हैं
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