Tuesday, October 12, 2010

ओ...शिट...कुत्ता का टट्टी!


लखनऊ। आदमी खुले में शौच करे तो अपराध! कुत्ता, गाय-सांड़, भैंस दम्पत्ति राजपथ पर खुलेआम फारिंग हों तो साहब-मेम-साहब सहित समूचा सरकारी अमला इनाम का हकदार! यह कैसा इंसाफ है? हाल ही में पंचायती राज कानून में (न्यूसेंस) अवांछित गतिविधियों के तहत ग्राम प्रधानों को निर्वाचित होने के छः माह  के बाद खुले में शौच करते पाये जाने पर अर्थ दण्ड दिया जाने का प्रावधान किया जा रहा है। इसी तरह सार्वजनिक स्थानों पर लघुशंका करना भी दण्डनीय अपराध है। राजपथ से लेकर गली-मोहल्लों, काॅलोनियों से लेकर जनपथ और खूबसूरत पार्कों तक हर सुबह अपने प्यारे ‘पपी’ को टहलाते, फारिग कराते लाखांे बाबू-बबुआइन दिख जाएंगे। ये ‘प्यारे’ आपके मकान के गेट के सामने, बीच रास्ते में, कार पर या उसके दरवाजे के पास नित्यकर्म से निबटते दिखाई दे जाएंगे। इनको प्रेरित करने वाले यह जानते हैं कि वे गलत कर रहे हैं फिर भी अपने कुत्तों को सार्वजनिक स्थलों पर नित्यकर्म कराते हैं। यही लोग ‘धरती बचाने’ के सेमिनारों में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। पर्यावरण असंतुलन पर भाषणों सहित अखबरों में अपना ज्ञान बघारते हुए चिंता जताते हैं। जबकि कुत्ते द्वारा किया गया मैला इ.कोली वैक्टीरिया के जरिये प्रदूषण फैलाने का काम करता है। कुत्ते के एक ग्राम मल में दो करोड़ से अधिक इ.कोली सेल होते है। और लाखों कुत्तों का मल जमीन को दूषित कर भूजल के जरिये व वातावरण में उससे पैदा होने वाले कार्बन के जरिये शहर के वाशिन्दों की सेहत को लगातार नुकसान पहुंचा रहा हैं। यही लोग एयरकंडीशनर (एसी) चलाकर खुद तो गरमी में ठंड का मजा लेते हैं और उससे पैदा होने वाले कार्बन से आम शहरियों के साथ अपनी सेहत से भी खिलवाड़ करते हैं।
 कुत्तों के सार्वजनिक स्थलों पर मल त्याग करने को लेकर पशुप्रेमी या पशुओं की रक्षा-सुरक्षा के लिए चिंतित सक्रिय संगठन भी इस ओर सोचने की जहमत नहीं उठाते। जबकि राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने अपने समय में खुले में शौच पर नारा दिया था ‘टट्टी पर मिट्टी’ डालों। कुत्ता पालकों को अपने प्यारे ‘पपी’ के मल को सुरक्षित स्थान पर फेकने या फिकवाने की ओर कदम बढ़ाने ही होंगे। विदेशों में कुत्तों के मल को उठाकर कूड़ेदान में फेंकना अनिवार्य है। जब कुत्ता पालक उसके खाने, पीने, स्वास्थ्य व मनोरंजन  के नाम पर रिसार्ट होटल, अस्पताल, ब्लडबैंक तक खोलकर मोटी रकम खर्च करते हैं तो उसके लिए शौचालय पार्क की व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते? हाल ही में केन्द्र सरकार ने पशुपालकों के लिए नए दिशा निर्देश तैयार किये है, जिन्हें शीघ्र ही कानूनी रूप दिया जाएगा। इसके साथ ही पालतू पशु या पक्षी रखने का लाइसेंस शुल्क 5000 रु. व हर साल नवीनीकरण शुल्क 2000 रु. देना होगा
 एनिमल वेलफेयर बोर्ड आॅफ इंडिया (एडब्ल्यूबीआई) के दिशानिर्देश के अनुसार पालतू पशु व पक्षियों को प्रत्येक सप्ताह पशु चिकित्सक को दिखाना और उनके रहने के लिए पर्याप्त जगह की व्यवस्था करना अनिवार्य होगा। कुत्ते के रहने के लिए 24 स्क्वायर फुट और बिल्ली के लिए 12 स्क्वायर फुट जगह रखनी होगी। पालतू पशुओं  को कम से कम 25 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखना होगा।
 उक्त दिशानिर्देश का उद्देश्य देश में पालतू पशु और पक्षियों पर होने वाले अत्याचार को रोकना है। इस कानून में कहीं भी उसके सार्वजनिक स्थलों पर मलत्याग को प्रतिबंधित नहीं किया गया हैं सरकार पशुआंे के स्वास्थ्य के प्रति बेहद चिंतित है लेकिन इंसानों के स्वास्थ्य के प्रति बेपरवाह?
 गली के सुल्तानों की तारीफ में सैकड़ों बार लिखने पर भी नगर निगम/जिला प्रशासन अंधों बहरों की तरह बड़ी ढिठाई से उतर देता है, अभियान चलाया जाएगा या अपनी शिकायत लिखा दीजिए। हर गली में, हर सड़क पर एक ‘दाऊद’ का आतंक है। इनका मल-मूत्र जहां वैक्टीरिया फैलाता है, वहीं इनके काटने पर वैक्सीन के इंजेक्शन तलाशने पड़ते है। लखनऊ नगर-निगम ने 2010 के अपने बजट में आवारा पशुओं (कुत्तों) को पकड़ने आदि के लिए किसी रकम का प्रावधान नहीं किया है। जबकि गौशाला-नंदीशाला के लिए 1.20 करोड़ और पशु-पक्षी उपचार के लिए 50 लाख खर्च करने का एलान किया गया है। नगर निगम के पास आवारा कुत्तों और पले हुए कुत्तों की कोई संख्या नहीं है। इसी तरह अन्य पशुओं के भी आंकड़े नहीं हैं। इस साल कुत्तों और पशुपालकों की गणना कराए जाने का फैसला लिया है लेकिन यह काम कब शुरू होगा, यह कोई नहीं जानता। हर साल की तरह इस साल भी इनके खौफ से निजात पाने का कर्मकांड हो चुका और आवरा कुत्ते सड़कों पर बिल्ली से लेकर नवजात बच्चों की हत्या सरेआम कर रहे है। सूबे के कई जनपदों में हिरन का शिकार  तक कर रहे हैं।
 पंजाब में कुत्तों के आतंक से निबटने में लाचार राज्य सरकार को केन्द्र से मदद की दरकार है। वहीं कई सालों से विधानसभा में गली के इन सुल्तानों के आंतक से निजात दिलाने का शोर मचता है। राज्य सरकार ने जहां केन्द्र को प्रस्ताव भेजा है वहीं एनीमल वेलफेयर बोर्ड आॅफ इंडिया से भी पिछले दो सालांे से कोई पैसा नहीं मिला लेकिन इस साल पंजाब की वार्षिक योजना के तहत योजना विभाग से 50 लाख रूपया पशुपालन विभाग को मंजूर हुआ है। गौरतलब है कि पंजाब में आवारा कुत्तों की संख्या 3 लाख से ऊपर है जबकि पालतू कुत्ते 3.50 लाख के लगभग है।
 उ.प्र. की राजधानी लखनऊ की गंदी सड़कों-गलियों के अंधेरे में पड़े गोबर या कुत्ते के मल में पांव पड़ते ही ओ..शिट.. कुत्ते/गाय का टट्टी कहकर मुंह बिचकाते हुए या रपट कर गिरने वाले अपने हाथ-पैर आये दिन तुड़वा कर नगर निगम को कोसते रह जाने को मजबूर है। इस ओर नगर निगम का ध्यान शायद इसलिए नहीं जा पाता क्योंकि उसके हाकिम या सभासद विदेश जाकर इससे निजात पाने का कोई प्रशिक्षण अभी तक नहीं ले सके होंगे। बहर-हाल प्रदेश के गाजियाबाद नगर निगम की महापौर ने जो कदम उठाए है, फिलहाल उनसे कोई सीख नहीं ली जा सकती है? उप्र के नगर निगमों को एनीमल वेलफेयर बोर्ड से कितना पैसा मिलता है और कैसे खर्च होता है? यदि कम पड़ता है तो गुहार लगानी चाहिए और कुत्ता पालकों को सार्वजनिक स्थलों को गन्दा करने पर दण्डित करने का अभियान चलाना चाहिए। शहर को, राज्य को साफ करने की जिम्मेदारी नगर निगमों की है उससे वे बच नहीं सकते। इस अभियान मंे सभासदों के जरिए नागरिकों की हिस्सेदारी भी ली जा सकती है।

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