Tuesday, October 12, 2010

मचा है बवाल बिजुरी अस भौजाई आन्हर...!

लखनऊ। संसद से लेकर शौचालय तक बिजली गुल है। सड़कों पर लोग बवाल काट रहे हैं। पुलिस उन्हें लठिया रही है। मुखिया से लेकर सुखिया तक बिजली की बर्बादी और चोरी के खेल में मोटी कमाई करके ऊर्जा क्षेत्र को खोखला कर रहे हैं। सरकार अपना वोट बैंक मजबूत करने के चक्कर में रोज नये और लुभावने वायदे कर रही हैं। बिजलीकर्मी पूरी ठिठाई से उपभोक्ता को तिगनी का नाच नचा रहे हैं। सूबा उप्र की सरकार ‘दलिततीर्थ’ को जगमग उजाले में रखने में इस कदर बजिद है कि उसे अंधेरे में डूबा, समूचा सूबा और भयानक गर्मी से बिलबिलाते उसके करोड़ों लोग दिखाई नहीं दे रहे हैं। पूरे सूबे में बिजली को लेकर जहां हाहाकार मचा है, वहीं शान्ति भंग के नाम पर आईपीसी की धारा 151 के तहत सैकड़ों लोगों को पुलिस प्रताड़ित कर रही है। इसके बावजूद बिजली दरें बढ़ाने की कवायद की जा रही है।
 इससे भी आगे साल की शुरूआत से लेकर मार्च के अन्त तक राजस्व वसूली के नाम पर छोटे उपभोक्ताओं की बिजली काटी गई और उनके केबिल तक पोल से उतारकर बिजलीकर्मी अपने साथ ले गये जबकि यह उपभोक्ता की संपत्ति है। इसी तरह बिजली चोरी में छोटे-मोटे उपभोक्ताओं को ही परेशान किया गया, लेकिन राजकीय निर्माण निगम और चिकित्सा विश्वविद्यालय में लाखों रूपये की बिजली सरेआम चोरी की जाती रही। इस चोरी के जिम्मेदारों पर आज तक कोई कार्यवाई नहीं हुई। इसी तरह मुजफ्फरनगर की फैक्ट्रियों में पकड़ी गई बिजली चोरी के मामले में भी लीपापोती कर दी गई। समूचे सूबे में चलने वाले एसी में अधिकतर चोरी की बिजली से चलाए जा रहे हैं। बिजली की किल्लत पर मची तमाम हाय तौबा के बाद शाम को एसी न चलाने का फरमान जारी करके वापस ले लिया गया जबकि सूबा आज भी अंधेरे में है। बिजली चोरी में आम नागरिक से लेकर नौकरशाह, राजनेता तक शामिल है।
 ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक 2009-10 में पाॅवर कारपोरेशन को 8700 करोड़ का घाटा हुआ है। यह घाटा विद्युतकर्मियों की लापरवाहियों और बिजली चोरी से हुआ मनवाया जा रहा है। इसमें सूबे के मुफ्तखोरों का हिस्सा नहीं जोड़ा गया। पाॅवर कारपोरेशन के लगभग 45 हजार कर्मचारियों और इतने ही संविदाकर्मियों के घरों में लगभग मुफ्त जलनेवाली बिजली को क्यों नहीं इस घाटे में जोड़ा जाता? एक करोड़ नौ लाख उपभोक्तओं को दी जाने वाली बिजली और सरकारी कारिन्दों व महकमों में जलनेवाली बिजली का अलग-अलग हिसाब दर्शाने से हमेशा परहेज क्यों किया जाता है? इसी बजट सत्र में विधानसभा के पटल पर रखी गई सीएजी की रिपोर्ट ने विद्युत उत्पादन निगम की कलई खोली है।
 समूचा सूबा अंधेरे में जीने की जहां आदत डाल रहा है, वहीं ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े धन्नासेठों ने हजारो करोड़ का बिजली बेचने का नया कारोबार खड़ा कर लिया है। आमतौर पर पूरे उप्र में शाम को विद्युत आपूर्ति नहीं होती। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बिजली आने-जाने का कोई समय नहीं है, लिहाजा डीजल से चलने वाले जेनरेटर सेटों के जरिये बाजार और घरों में रोशनी रहती है। कहीं प्रति सीएफएल 20 रूपए प्रति सप्ताह है, तो कहीं इससे अधिक। इसी तरह इन्वेर्टरों का कारोबर भी खूब चमक रहा हैं बताने वाले बताते हैं, इसके पीछे बिजली महकमें के बड़े और सरकार के आला हाकिमों का वरदहस्त है।
 बहरहाल सरकार बिजली महकमा और उपभोक्ता के बिजली-बिजली के खेल में ऊर्जा शक्ति से होने वाली हजारो करोड़ की आमदनी से सूबा महरूम हो रहा है। वहीं उपभोक्ताओं का दर्द ये लाइने बयान करती रही हैं:
बाऊ आन्हर, माई आन्हर और सगा सब भाई आन्हर।
कके-केके दिया देखाई, बिजुरी आस भौजाई आन्हर।।

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