Tuesday, July 10, 2012

लखनऊ में धंधा है मंदा

लखनऊ। राजधानी के व्यापार जगत में लगातार आ रही गिरावट से मायूसी छाई है। पिछले दो महीनों में समूचे व्यवसाय में पिछले साल की अवद्दि की तुलना में लगभग तीस से चालीस फीसदी की कमी दर्ज की है। हालांकि व्यापार मण्डल के कुछ नेताओं का मानना है कि यह महीने गैर व्यवसाय वाले होते हैं। वहीं होटल एण्ड रेस्टोरेन्ट व्यवसाई पूरी तरह मायूस हैं। उनके मुताबिक होटलों/डारमेटरी में आक्यूपेंसी रेट (होटलों में ग्राहकों के ठहरने की दर) में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है। आॅटो/टैक्सी कारोबार में भी 20 फीसदी की कमी आई है। इसके पीछे नगर निगम चुनावों की वजह से लगी आचार संहित भी एक बड़ी वजह है।
    आमतौर पर जब भी विधानसभा के सत्र चलते हैं तो लखनऊ आने वालों की संख्या में बड़ा इजाफा होता है। इल आनेवालों में तमाम विभागों के अधिकारी, कर्मचारी व अपनी मांगों के लिए आवाज उठानेवाले संगठनों के कार्यकर्ता, राजनैतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता और व्यापारी होते हैं। यह सभी नगर निकाय चुनावों के चलते कोई भी सरकारी कार्य न हो पाने की वजह से लखनऊ आने से कतरा गये।
    इससे भी बड़ी दो वजहें और बताई जा रही हैं। एक तो भीषण गरमी जिसका नजारा दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक सड़कों पर पसरा सन्नाटा और साप्ताहिक बाजारों में दुकानदारों के मायूस चेहरों पर देखा गया। अमीनाबाद जहां के बाजार में आम दिनों में पैदल चलना दूभर रहता है, वहां पिछले महीनों में सन्नाटा देखने को मिला दूसरे शादी-विवाहों के साथ आर्थिक मंदी व रूपये में आई गिरावट को भी कारोबार में सुस्ती का जिम्मेदार माना जा रहा है। मजे की बात है कि छोटे ठेेले खोमचे व पूड़ी-खस्ता बेचने वालों के यहां भी भीड़ नहीं देखने को मिल रही हैं, जहां लाइन में लगने के बाद या टोकन लेकर ग्राहकों को खस्ता-पूड़ी खरीदनी पड़ती थी वहां भीड़ न होने से इन दिनों आसानी से ग्राहकों को पूड़ी-खस्ता या छोला-भटूरा मिल जा रहा है। यही हाल मांसाहारी रेस्टोरेन्ट तक में देखा गया। इनके साथ शाकाहारी भोजनालयों में भी गिरावट दर्ज की गई।
    व्यापार मण्डल के एक नेता बताते हैं कि कारोबारी सुस्ती की एक बड़ी वजह है बिजली की किल्लत। बिजली ने राजधानी में कभी भी इतना परेशान नहीं किया। सारा कारोबार इन्वर्टर/जेनरेटर पर टिका है, जिस पर सरकार से लेकर बिजली विभाग के हाकिमों के नित नये फरमान लखनऊ को एक छोटे कस्बे में बदलने के लिए पर्याप्त हैं। उद्योगों में लगभग तालाबंदी जैसे हालात हैं। ऐसा नहीं कि यह हालात अकेले लखनऊ में है बल्कि पूरे प्रदेश में उद्योग धंधे व व्यापार में भारी गिरावट की खबरें लगातार आ रही है।
    ऐसे हालातों में वित्तवर्ष की शुरूआत में बनाई जाने वाली व्यापारिक योजनाएं भी खटाई में पड़ गई हैं। हाँ स्कूल/काॅलेज खुल गये हैं तो स्टेशनरी, किताबों/ड्रेस के साथ शिक्षा के कारखानों में चहल-पहल बढ़ी है। सुनकर आश्चर्य होता है कि पूरे सूबे से बल्कि कई और प्रान्तों तक से आये दिन नौकरियों के लिए इम्तहान देने लाखों अभ्यर्थी आते हैं फिर भी कारोबार की बढ़ोत्तरी में कोई फर्क नहीं?

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