Friday, March 2, 2012

झूठों को सजा दो


लखनऊ। चुनाव 2012 में झूठे हलफनामंे दाखिल करके जो उम्मीदवार मैदान में हैं, क्या उनका चुनाव निरस्त होगा? क्या इन उम्मीदवारों ने झूठ बोलकर चुनाव आयोग, जिला प्रशासन, मतदाताओं को गुमराह नहीं किया? क्या यह कानूनन अपराध की श्रेणी में नहीं आता? यदि झूठा हलफनामा देना अपराध है तो इन झूठों पर कानून सम्मत कार्रवाई कब होगी? यह सारे सवाल उप्र के सभी नागरिकों को भले ही संजीदगी से बेचैन न कर रहे हों, लेकिन जिन्हें सियासत की समझ है, कानून का जो लोग सम्मान करते हैं या जो लोग सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक हैं, जनजागरण के प्रति सचेत हैं और देशभक्त हैं उनको यह झूठ लगातार परेशान कर रहा है।
राजधानी लखनऊ से छपने और काफी बड़ी आबादी में पढ़े जाने वाले एक हिन्दी दैनिक ने अकेेले लखनऊ के 36 उम्मीदवारों के हलफनामों की पड़ताल की उनमें 32 प्रत्याशियों के हलफनामे झूठे निकले। किसी ने उम्र छिपाई तो किसी ने संपत्ति, कोई व्यवसाय छिपा गया तो कोई आभूषणों की कीमत। अखबार ने मय सुबूतों के अपने कई अंकों के पहले पेज पर इन झूठे हलफनामों की असलियत को छापा है। कमोबेश यही हाल समूचे उप्र में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का है। क्या इन्हीं ‘झूठो’ से सूबे की तरक्की की उम्मीद की जायेगी? यही झूठे विधानसभा में बैठकर कानून बनाएंगे? मजे की बात है कि इन ‘झूठों’ के आकाओं (राजनैतिक दलों के मुखिया) ने भी इस पर कोई बात करने की पहल नहीं की और न ही समझदार नागरिकों ने ‘अन्ना’ के बहाने से कोई आवाज बुलंद की?
‘प्रियंका’ कानून के जिम्मेदारों/रखवालों से मांग करती है कि इन झूठों के चुनाव निरस्त किये जाएं और इन्हें धारा 420 सहित अन्य कानून  सम्मत धाराओं के तहत जेल भेजा जाए।

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