Friday, March 2, 2012

दिल्ली से दुबई तक पीसी


लखनऊ। दिल्ली और दुबई की जमीन पर अपने दोनों पांव मजबूती से जमाये पोंटी चड्ढा के साम्राज्य पर छापेमारी करने वाले आयकर अधिकारी का तबादला हुए तेरह दिन बीत गए। चुनावी सरगर्मी में इस खबर को अखबार के अंदर वाले पेज पर छोटी सी जगह में निपटा दिया गया। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने बोर्ड अध्यक्ष लक्ष्मण दास को मुंबई क्षेत्र में सीमित किया, तो एस.एस. राणा को जांच कार्य से हटा दिया, उनकी जगह के. माधवन नायर आ गये। दो नए सदस्य सुधा शर्मा, एस.सी. सैनी शामिल किये गये हैं। इन तबादलों को पोंटी के यहां छापेमारी के लीक होने से जोड़ा जा रहा है। गौरतलब है चड्ढा के ठिकानांे से करोड़ों की नकदी मिलने का हल्ला होते ही राजनैतिक दलों में मातम मनाने जैसा माहौल हो गया था।
पांेटी चड्ढा को बसपा सुप्रीमों मायावती का करीबी बताया जाता है, जबकि समाजवादी पार्टी की साढ़े तीन साल की सरकार में पोंटी मुलायम सिंह यादव के साथ-साथ चलता दिखाई दिया था। इससे भी पहले भाजपा सरकार के मुखिया रहे कल्याण सिंह के भी बेहद करीब रहा है पोंटी चड्ढा। इन तीन नामों से आगे पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखण्ड, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों से उसकी करीबी के चर्चे रहे हैं। दिल्ली के सियासी इलाकों मंे भी उसकी गहरी पैठ बताई जाती है। भले ही ‘फोब्र्स’ पत्रिका की सूची के खरबपतियों और भारतीय अखबारों के बड़े नामों की फेहरिश्त में पोंटी का नाम दर्ज न हो, लेकिन इस खरबपति ने रियलस्टेट, शराब, फिल्म, चीनी मिल और मीडिया जैसे क्षेत्रों में अपना पैर मजबूती से जमा लिया है।
शराब के कारोबार में माया सरकार के वजनदार मंत्री नसीमुद्दीन के साथ मिलकर ढाई लाख करोड़ कमाये तो अन्य राज्यों से भी उसके सिंडीकेट ने अरबों कमाए। यही नहीं शराब के कारोबारी जायसवालों ने पोंटी के सिंडीकेट से जहां भी हाथ नहीं मिलाया वहां वे शराब के धंधे से ही बाहर हो गये। बिहार, झारखण्ड, पंजाब, हरियाणा में पोंटी का शराब सिंडीकेट सबसे तेज गति से भाग रहा है। आज पोंटी का नाम उत्तर भारत के बड़े फिल्म वितरकों की कतार में नंबर एक पर है। फिल्म ‘अग्निपथ’ जो हाल ही में रिलीज हुई है और जिसने पहले हफ्ते की कमाई के सारे पिछले रेकाड तोड़ दिये, के वितरण के अधिकार पोंटी की कंपनी के ही पास हैं।
इसी तरह रियलएस्टेट के जमे जमाये कारोबारियों को भी पांेटी से ईष्र्या है क्योंकि पोंटी जब जमीन के कारोबार में उतरा तो कई पुराने कारोबारियों को पीछे छोड़ गया। नोएडा सिटी सेंटर की सबसे बड़ी जमीन का सौदा पोंटी चड्ढा की कंपनी वेब इन्फ्राटेक ने किया। 405 एकड़ जमीन उसने 6570 करोड़ रूपये में खरीदी जिसके लिए उसने 350 करोड़ की स्टैम्प ड्यूटी जमा करवाई। आज उसके पास इतनी जमीन है कि वह एक नया गाजियाबाद बसा सकता है।
गाजियाबाद डेवलपमेंट अथाॅरिटी ने पिछले 35 सालों में अपने लिए जितनी जमीन नहीं जुटाई होगी उससे ज्यादा जमीन पोंटी चड्ढा की कंपनी के पास है। बताते हैं कि पांेंटी करीब दस हजार एकड़ जमीन का मालिक है, जबकि गाजियाबाद डेवलपमेंट अथाॅरिटी के पास चार हजार एकड़ जमीन ही है। पोंटी की ये जमीनें गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली, लखनऊ, जयपुर के अलावा पंजाब और उत्तराखण्ड तक फैली हुई हैं। मल्टीप्लेक्स और माॅल के कारोबार में भी उसने कईयों को पछाड़ा है। यह सब करते हुए उसने अपना पुश्तैनी धंधा कभी नहीं छोड़ा जो कि गन्ना पेराई से जुड़ा हुआ था। वह जब गन्ने के कारोबार में उतरा तो उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों का सबसे चर्चित घोटाला सामने आया। जो चीनी मिलें ढाई हजार करोड़ कीमत वाली थीं उसे ढाई सौ करोड़ रूपये में उसने हासिल कर लिया। इसी तरह सोने के कारोबार में भी पोंटी की पौ बारह है। एक खबरिया चैनल और गाजियाबाद के एक अखबार में भी उसका पैसा लगा बताते हैं।
पिछले पांच सालों में पोंटी चड्ढा का कारोबार बेहद तीव्र गति से आगे बढ़ा है। 2007 में जब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मायावती ने शपथ ली तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में पोंटी चड्ढा ने जो चाहा वह पाया है। यह मायावती ही हैं जिन्हांेने पोंटी को पूरे प्रदेश का शराब कारोबार सौंप दिया। इससे पहले प्रदेश में शराब कारोबार के ठेके कई व्यापारियों को दिये जाते थे लेकिन मायावती ने अकेले पोंटी चड्ढा को सारा ठेका दे दिया। इसके बाद पोंटी ने अपना सिंडिकेट बनाकर मनमानी कमाई की है। कमाई के साथ उसके रसूखों का ही दबदबा है कि जहां छापेमारी में करोड़ों बरामद होने का हल्ला था, वहीं अब टाल-मटोल के बयान आ रहे हैं।
सूत्र बताते हैं उप्र, उत्तराखण्ड और पंजाब विधानसभाई चुनावों में सपा, बसपा के अलावा भाजपा और कांग्रेस को भी भरपूर चंदा देने वालों में पोंटी का नाम अगली कतार में है। पोंटी के दोस्तों में प्रकाश सिंह बादल, कलराज मिश्र, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे आला दर्जे के राजनैतिक नामों की एक लम्बी फेहरिश्त है। इस दोस्ती से हुए लाभ और चंद सालों में खड़े किये गये साम्राज्य की सारी सच्चाई को जानने के लिए लखनऊ की नई सरकार और दिल्ली की पुरानी सरकार पीसी यानी पोंटी चड्ढा पर कानून का शिकंजा कसेगी?


एक खरब का सट्टा
प्रियंका संवाददाता
लखनऊ। शेयर बाजार और चुनावी गलियारों में भले ही उतार चढ़ाव का माहौल हो लेकिन सटोरियों की फड़ पर 1 खरब का दांव फैला है। सट्टा कारोबारियों की माने तो कौन कहां जीतेगा, किस दल की कितनी सीटें आएंगी या कौन होगा मुख्यमंत्री? किस दल की सरकार बनेगी या राष्ट्रपति शासन लगेगा? इन सब पर बंद कमरों से लेकर आॅन लाइन दांव लग रहे हैं। सपा पर जो लोग दंाव लगा चुके थे, वहीं दोबारा कांग्रेस के उम्मीदवारों पर एक का दो भाव लगाने लगे हैं। भाजपा पर भी सटोरिये भरोसा करने लगे हैं। बहुतेरे खुला सट्टा लग रहे हैं यानी कौन पार्टी कितनी सीटें जीतेगी पर करोड़ों लगे हैं। सटोरियों के पास किसकी सरकार बन रही है इसके भी आंकड़े है।
राजनैतिक दलों के छुटभय्यों से लेकर करोड़ों मतदाताओं को भले ही सट्टा कारोबार की पूरी जानकारी न हो लेकिन शहर दर शहर सटोरियों के सेंटर खुले हैं। मोबाइल सेंटरों पर भी बुकिंग जारी हैं यह सारा खेल सुनियोजित तरीके से पूरे सूबे में चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि जनवरी की शुरूआत में ही लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, कानपुर के सटोरियों ने करोड़ों रूपयों का कारोबार कर डाला था। सीधे दांव लगाना बड़ा मुश्किल है। दलालों के माध्यम से यह संभव है। लखनऊ में एक सांसद के चहेते और पुलिस की लिस्ट में ‘सट्टा किंग’ के नाम से दर्ज के नेटवर्क मंे सूबे के आधे से अधिक जिलों में सट्टा कारोबार फल-फूल रहा है। बताते है जो लोग कभी लाॅटरी कारोबार से जुड़े थे उन लोगों की बड़ी संख्या इस धंधे में लगी है। मुंबई, कोलकाता की तर्ज पर बाकायदा सट्टा काॅल सेंटर चलाए जा रहे हैं जहां हजारों लड़कियां काम कर रही हैं। मजे की बात है कि उन लड़कियों को खुद नहीं मालूम कि वे किसी अवैध धंधे से जुड़ी हैं।
उम्मीदवारों पर एक का डेढ़ का भाव आम है। सपा, बसपा के भाव में तीसरे चरण के मतदान के बाद गिरावट आई है। पहले कांग्रेस/भाजपा का भाव एक के बदले डेढ़-दो का था अब कांग्रसे पर एक का पांच भाजपा एक का दो-तीन का भाव खुला है। इसी तरह सरकार बनाने के भावों में कांग्रेस का भाव ऊँचा हो गया है। यहां बताते चलें कि सट्टा बाजार में भारतीय क्रिकेट टीम में आये उतार चढ़ाव के साथ विदेशी जमीन पर पर हारने श्रीलंका से वनडे मैंच ड्रा हो जाने के बाद रन, विकेट और हर गेंद पर पैसा लगाने वाले चुनावी खेल में बढ़-चढ़कर दांव लगा रहे हैं। सटोरियों की जमात में जहां जीतने की ललक है, वहीं सट्टा कारोबार को शेयर बाजार की तरह चलाये रखने की भी दृढ़ इच्छा है। यही वजह है कि इससे जुड़े लगभग 25 लाख लोग पुलिस व प्रशासन के भीतर तक अपनी जड़े जमायें हैं।

  • उप्र विधानसभा चुनाव 2012 के खर्च का अनुमान
  • 6.50 अरब का खर्च राजनैतिक दल और उम्मीदवार लिखा पढ़ी में करेंगे।
  • आयकर के अनुसार एक दलीय प्रत्याशी औसतन 1.25 करोड़ कालाधन खर्च करेगा, 16 लाख वैध वाला छोड़कर। चार प्रमुख दलों के उम्मीदवारों का खर्च होगा 05 करोड़। इसी को आधार बनाकर जोड़ा गया तो प्रदेश में 1612 उम्मीदवारों पर यही खर्च 2015 करोड़ आता हैं। आयकर अधिकारियों ने 25 अरब काला धन खर्च होने का अनुमान लगाया है।
  • आयोग और प्रशासनिक मशीनरी पर खर्च का अनुमान भी 4 हजार करोड़ का है।
  • इसी में टिकट खरीदने, नोट फाॅर वोट, चार प्रमुख दलों से अलग प्रत्याशियों का खर्च, राजनैतिक दलों का खर्च, आॅनलाइन खर्च भी जोड़ दिया जाए तो करीब 3 हजार करोड़ से ऊपर आता है।
  • सट्टा बाजार में 403 सीटों पर चार प्रमुख दलों पर लगी रकम लगातार बढ़ रही है। इसे 25 लाख लोगों के जरिये एक का दस तक ले जाने का अनुमान लगाया जा रहा है।

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