Friday, March 2, 2012

यह है सामाजिक भ्रष्टाचार


भारतवासी फेंक देते हैं 883.3 करोड़ किलो जूठन!
लखनऊ। रोटी और भूख का हल्ला मचानेवाले लोगों की थाली से रोजमर्रा फेंकी जाने वाली जूठन से देश के 35 करोड़ गरीबों का पेट लगभग पूरे साल तक भरा जा सकता है। हम बड़े गर्व से अपनी थाली में जूठन छोड़कर पेट पर हाथ फेरते हुए डकार लेते हैं। उस समय भूख से बेहाल लोगों का ख्याल तक नहीं आता। जूठन से जानवरों, पक्षियों का पेट बेशक भरता है, लेकिन अधिकतर जूठन के नाम पर फेंका जाने वाला खाद्यान्न सड़कर बेकार हो जाता है।
शिवरात्रि बीते हुए महज दस दिन हुए है। पर्व के नाम पर करोड़ों लीटर दूध शिवलिंग पर चढ़ा के नालियों में बहा दिया गया। अकेले लखनऊ में 1 लाख 0 हजार लीटर दूध शिव भक्तों ने शिवमंदिरों मंे चढ़ाया। इसमें 30 हजार लीटर पराग डेरी ने बेचा। इस दूध से कुपोषण के शिकार बच्चों की जिंदगी बचाई जा सकती थी। इसी तरह हम पूजा-पाठ के नाम पर चावल (अक्षत), घी, तेल, फल, नारियल और अनाज बर्बाद कर देते हैं। भगवान के नाम पर फेंके जाने वाले खाद्यान्न से इंसानों का जीवन बचाया जा सकता है। यही नहीं हम खाना पकाने और खाने के बाद बेहद लापरवाही से बर्तनों में काफी मात्रा में अनाज छोड़ देते हैं, जो बर्तनो को साफ करते समय नालियों में बह जाता है। नालियों में सड़कर यही अनाज संक्रामक रोगों का जनक बनता है। यही हाल फल, सब्जी, दूध व अनाज मण्डियों में होता है। ढाबों, रेस्टोरेन्ट-होटलों, हलवाई व छोटे ठेले-खोमचों के माध्यमों से टनों खाद्यान्न सड़ने के लिए फेंका जाता है। शादी-ब्याह व अन्य दावतों में जूठन का ढेर गांव-शहर कहीं भी देखा जा सकता है। गौरतलब है कि नवंबर 11 से मार्च 12 तक 46 विवाह मुहूर्त हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक एक जिले मंे एक लग्न पर यदि पांच सौ शादियां होती हैं तो देश भर में होने वाले शादी के समारोह की संख्या क्या होगी और उनमें कितना खाद्यान्न भोजन मंे और कितना बारात के स्वागत (द्वारचार में अक्षत/आटे के दीप व चित्रों) में बर्बाद होगा? इसके अलावा मुसलमानों, सिखों समेत अन्य जातियों के शादी विवाह समारोहों में भी खाद्यानों की बर्बादी होती है। क्या इसका सर्वे करके आंकड़े नहीं निकाले जाने चाहिए?
अनाज के साथ मांस, मछली, अंडा आदि की मंडियों, कीलघरों (स्लाटर हाउस) व बस्तियों में बिखरी दुकानों के आस-पास इसकी बर्बादी देखी जा सकती है। हां कुत्ते-बिल्लियों का पेट तो भरता है, लेकिन दुर्गंध से रोगों का जन्म होता है और कुत्ते-इंसानों के टकराव से दुघर्टनाएं होती हैं। कई बार खाली वैक्सीन के इंजेक्शनों से काम नहीं चलता बल्कि लाखों रूपए इलाज में खर्च हो जाते हैं। कीलघरों के पास मांस के लालच में मंडराते कुत्तों के गिरोह बाइक/स्कूटर, साइकिल सवारों को दौड़ा लेते हैं। हड़बड़ाया, भयभीत आदमी जान बचाने के चक्कर में इन आक्रामक कुत्तों का शिकार होकर हाथ-पैर तुड़वाने के साथ अपने शरीर का सौ-पचास ग्राम मांस तक इन्हें खिला देता है।
धर्म और पुण्य कमाने के नाम पर हमारे देश के मदिरों, मस्जिदों, दरगाहों, गुरूद्वारों और समय-समय पर होने वाले (दुर्गापूजा, पितृपक्ष, सावन, एकादशी, जन्माष्टमी, बड़ा मंगल, मोहर्रम, ईद, बकरीद, ग्यारहवीं, मीलाद व जन्मोत्सवों आदि) आयोजनों में लंगर, भंडारे की धूम होती है। इनमें भी गरीबों-फकीरों का या जाति बाहर के लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है, लेकिन जूठन टनों वजन के हिसाब से खुली सड़क पर फेंक दी जाती है। इससे भी आगे अपने दैनिक क्रियाकलापों में कुत्ता, गाय, सांड, कौवा-गौरइया, बन्दर के नाम पर खाद्यान्न खुले में (यहां तक चैराहों पर) फेंक देते हैं। इससे इन जानवरों-पक्षियों का पेट तो कम भरता है, बर्बादी अधिक होती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, गुजरात से बंगाल तक सड़कों के तिराहों-चैराहों पर कटा नींबू, चावल, टूटा हुआ नारियल, मिठाई, पूरी-कचैरी, दाल-भात या यूं कहंे पकवानों भरी थाली रखी मिल जाएगी। इन पकवानों को खानेवाले न के बराबर होते हैं। हां, इन्हें वाहनों के जरिये हम आप बड़े शान से रौंदकर नष्ट कर देते हैं। इससे भी बुरा हाल रेलगाडि़यों, बसों, हवाई यात्राओं के दौरान खाद्यान्न की बर्बादी को देखा जा सकता है। सरकारी योजना मिड-डे-मील मे खाद्यान्नों की बर्बादी किसी से भी छुपी नहीं है।
मजे की बात है, यह उस मुल्क की हकीकत है जहां कुपोषण से रोजाना लगभग 3 हजार बच्चे मरते हैं। जो विश्व भूख सूचकांक (जीएचआई) 2008 की रैंकिंग में 88 देशों में 66वें स्थान पर है। और मानव विकास की ताजा रिपोर्ट में 169 देशों में 119 वे स्थान पर है। सरकारी आंकड़ों में 6 करोड़ 52 लाख परिवार गरीबी की रेखा के नीचे जीवन गुजार रहे हैं। हालांकि तंेदुलकर समिति इनकी संख्या 8.1 करोड़ बताती हैं। सच कुछ भी हो, क्या हम इस ‘जूठन’ से अपने भूखे देशवासियों का पेट नहीं भर सकते? क्या गंभीरता से कोई एनजीओ या समाजसेवी इस सामाजिक भ्रष्टाचार के मुखलिफ जनजागरण अभियान चलाने की कोशिश करेगा? क्या हम ‘भूखों’ का पेट भरने के लिए अन्न/ खाद्यान्न की बर्बाद न करने का संकल्प लेंगे?
सरकार के भरोसे केवल भोजन की गारंटी के कानून बनते हैं या फिर 60 करोड़ गरीबों को मुफ्त भोजन कराने की जगह 4.6 लाख करोड़ रूपयों का राजस्व उद्योगपतियों को माफ कर दिया जाता है। इसी तरह देश के राजनैतिक दल महंगाई के खिलाफ महिलाओं के हाथों में ‘रोटी’ थमाकर सड़कों पर धरना-प्रदर्शन आयोजित करते है। जो खाई-पी-अघाई महिलाएं सड़कों पर हलक फाड़कर हर जोर जुलुम की टक्कर पे..’ नारा लगाती हैं वे ही ‘जूठन’ फेंकने में सबसे आगे होती है। यहां बताते चलें कि अकेले वर्ष 2010 में 10,688 लाख टन खाद्यान फूड काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया (एफसीआई) के गोदामों में सड़ गया। इस अनाज से दस साल तक 6 लाख लोगों का पेट भरा जा सकता था। सरकार द्वारा जारी तमाम रिपोर्टें बताती हैं कि वर्ष 1997 से 2007 (दस साल) में देश भर के एफसीआई के गोदामों में 121.36 लाख टन खाद्यान्न सड़ा पाया गया। आंकड़ों की जुबान में बात करंे तो देश में पिछले साल 24.47 करोड़ टन खाद्यान्न पैदा हुआ था। सच यह है कि हमारे पास खाद्यान्न की कमी नहीं है। हम लापरवाह और खुदगर्ज हैं। धर्म-कर्म में लाभ-हानि और व्यवहार में स्वार्थ को अपनाकर अपने ही देशवासियों को भूखा मारने का अपराध कर रहे हैं। इस अपराध के मुखालिफ आन्दोलन खड़ा करने के लिए हम आगे बढ़कर पहल करेंगे?
क्या कहते हैं आंकड़े

  • देश में 2010-11 में 24.47 करोड़ टन खाद्यान्न की पैदावार हुई 2011-12 में 25 करोड़ 4.2 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन की संभावना है।
  • एग्रो कमोडिटी का कारोबार लगभग 15 बिलियन डाॅलर है। जिसके 2014 तक 18 बिलियन डाॅलर तक पहुंचने का अनुमान है।
  • 2010 में देशभर के एफसीआई के गोदामों में 10,688 टन खाद्यान्न सड़ गया। पिछले दस सालों (1997-2007) में देश के एफसीआई के गोदामोें में 121.36 लाख टन खाद्यान्न सड़ गया।
  • भारत ग्लोबल हंगर इन्डेक्स (विश्व भूख सूचकांक) 2008 की रैंकिंग में 88 देशों के बीच 66वें स्थान पर है। 2011 के जीएफसी इंडेक्स में एशिया में 6 देशों में दूसरे स्थान पर 23.7 अंक पर है। मानव विकास की ताजा रिपोर्ट में हम विश्व के 169 देशों में 119वें स्थान पर है।
  • कुपोषण से होने वाली बीमारियों से लगभग 3000 बच्चे रोज मरते हैं।
  • उत्तर प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र 2011 में 166 लाख हेक्टेयर है। 2011 में 475 लाख टन अनाज की पैदावार हुई, जिसमें गेहूं 301 लाख टन पैदा हुआ। फल उत्पादन 5313357 टन और सब्जियों का उत्पादन 20696129 टन हुआ।
  • देश में भुखमरी सूचकांक में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार सहित संपन्न गुजरात राज्य भी पांचवे स्थान पर है।
  • राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार बीते 16 वर्षों में 256913 किसानों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की है।
  • योजना आयोग के अनुसार अंत्योदय योजना का लाभ उठा रहे बीपीएल परिवारों की संख्या 2.4 करोड़ है। राज्यों के अनुसार 6.52 से 10.8 करोड़ है। उप्र में 30 लाख बीपीएल परिवार हैं।
  • केन्द्र सरकार राज्यों को बीपीएल दर पर 469.57 टन अनाज दे रही है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिये गये एक हलफनामें के अनुसार 25 लाख टन अतिरिक्त अनाज बीपीएल दरों पर राज्यों को दिया जाएगा।
  • यदि 1 आदमी (बच्चा/औरत) प्रतिदिन औसतन 20 ग्राम खाद्यान्न की जूठन फेंकता है तो साल भर में 7 किलो 300 ग्राम खाद्यान्न नष्ट होगा इसे 121 करोड़ की आबादी से गुणां किया जाय तो 883.3 करोड़ किलो निकलता है। (यह एक अनुमान है)
  • भारत हर साल सामाजिक उत्थान और स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम चलाने के लिए करोड़ों पांउड्स की विदेशी मदद लेता है। अकेले ब्रिटेन से 28 करोड़ पाउंड्स मिलते हैं।

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