Thursday, August 11, 2011

बाबा भक्त है चिल्लूपार

आनन्द अवस्थी/ आदर्श वरमा
गोरखपुर। दिल्ली से बडहलगंज और बड़हलगंज से दिल्ली तक राहुल गांधी की यात्रा के बाद पकौड़ी, पानी और नाव, नदी की चर्चा का दौर जिले के दक्षिणांचल में जारी था। सुबह के नौ बज रहे हैं.... नौसढ़ चौराहा खासा गुलजार नहीं है और बरखा के पानी से भीगा भी नहीं है। हां, आसमान पर ढेरों काले बादल डरा जरूर रहे हैं। गाड़ी अपनी गति से बढ़ रही है। कौड़ीराम पहुंचते ही सड़क पर पानी देख कर थोड़ी हिचक हुई, लेकिन रास्ता जाना पहचाना होने से गाड़ी आगे बढ़ा ली गई। गगहा तक पहुंचते-पहुंचते हल्की-हल्की बूंदों ने स्वागत किया। थाने से पहले कुछ लोगों का जमावड़ा दिखा, गाड़ी धीमी कर हम लोग उतरे। पान की गुमटी से पान मसाला खरीदा, लोग-बाग चुप। मेरे साथी ने ही पूंछा, परसों राहुल गांधी इधर से गुजरे थे....?‘देखीं आप लोग प्रेस से हंईं... सच छापीं त बताई...।’ उनमें से एक नौजवान बोला।
‘आप बताएंगे तो हम अवश्य छापेंगें।’
    ‘त सुनीं... कब गुजर गइने.. हमनी त न देखनी हां पुलिस ढेर रहल...।’ उनके तेवर देख हम लोगों ने आगे बढ़ने में ही भलाई समझी। इस गोल में राजनीति का बुखार नहीं दिखा था। आगे मंझगवां पहुचते ही सड़क किनारे चाय की दुकान पर हम लोग भी चाय पीने बैठे। यहां लोग चिल्लूपार की राजनीति पर बतियाते दिखे। बारिश थमी थी।
    यहां मौजूद लोगों में अधिकतर बातचीत में एक दूसरे को ‘बाबू साहब’ सम्बोधन देते दिखे। मेरे स्थानीय साथी ने बताया यह क्षेत्र ठाकुर बाहुल्य है। इनमें कई लोग पूर्व मंत्री राजेश त्रिपाठी की आलोचना करने में व्यस्त थे। अधिकतर को नौकरी न पाने का मलाल था। एक रामधनी नाम का युवक बेहद नाराजा दिख रहा था। उसी से पं0 हरिशंकर तिवारी के बारे मंे सवाल किया गया। उसका जवाब था।
    ‘देखिए... उनके हरा के मजा तो पा रहे हैं न..।’ गुस्से से लाल चेहरे की आवाज अटक गई थी, थोड़ा स्थिर होने और चाय का एक घूंट भरने के बाद बोला, ‘बाबा के इ बेरियां सबहीं वोट दीहें, काहे के सबके बुझा गईल के काम का नेता बा अवर के नाम का..।’ बीच में एक दूसरा युवक बोला उठा ‘बाबा के लग्गे त गुहार सुनल जाला अवर मंत्री जी त मूंडी हला के चल जात हवैं।’ यहां के स्थानीय लोगों में मिली जुली प्रतिक्रिया बसपा व तिवारी जी के प्रति दिखी। सपा या भाजपा की बात भी किसी ने नहीं की। आगे हम लोग भाटपार, सिधुवापार होते हुए पंडित जी का गांव पीछे छोड़ते बड़हलगंज कस्बे के बस स्टैंड पर जा पहुंचे। यहां राहुल गांधी की चर्चा थी। कई लोग पं0 हरिशंकर तिवारी को कांग्रेस में देखने के इच्छुक लगे। अधिकतर लोग अपने ‘बाबा’ के चहेते दिखे, हर कोई ‘बाबा’ का भक्त नजर आ रहा था। हम लोग किसी से बात किये बगैर भैंसौली गांव के लिए चल पड़े। रास्ते में तिवारी जी का चुनाव कार्यालय स्थल और नेशनल डिग्री कालेज दिखाते हुए मेरे साथी ने गाड़ी आगे मोड़ ली। भैंसोली में मेरे साथ गये रामसजल दूबे के परिचित के यहां डेरा जमा। गांव के जवान-बूढ़े सभी बाबा भक्त। एक सवाल पूछिए, चार जवाब लीजिए। हां, चुनावों को लेकर कोई खास हलचल नहीं, बात करिये तो जवाब हाजिर। मैंने ही पूंछा, ‘ आप लोगों ने पिछले चुनावों में पंडित जी को हराया था, क्या नाराजगी थी?’
    ‘हमार गांव उनहीं के कुल ओटवा दिहे रही उ त उनकै घर-घरान उन्हैं हराईश.. एह पारी उन्हैं एक-एक ओट परी।’ पूरा गांव पंडित हरिशंकर तिवारी के साथ दिखा। हम वहां से लौटकर फिर बड़हलगंज कस्बे पर पहुंचे। पंडित जी के चुनाव कार्यालय में कोई हलचल नहीं। दोपहर ढल रही है। यहां से पंडित जी का गांव टांड़ा कोई तीन चार किलोमीटर है। अभी हम लोग आगे बढ़ना चाह ही रहे थे कि एक स्कूल मे प्रधानाचार्य त्रिपाठी जी टकरा गए। वे बातों ही बातों में बोले, ‘यहां न बसपा, न सपा, न भाजपा, न कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ हरिशंकर तिवारी का गढ़ है।’
    ‘तो फिर पिछला चुनाव क्यों हार गये थे पंडित जी?’
    ‘वो तो इंदिरा गांधी को सर पर हरा साफा बांधकर राजनारायण भी हरा दिए थे, फिर क्या हुआ। उसी तरह सफेद साफा बांधे राजेश त्रिपाठी ने उन्हें हरा दिया। उनके एक बार हार जाने से चिल्लूपार के जनजीवन को भी सब पता चल गया कि कौन यहां के लोगों का हितैषी है।’ इस बीच कई लोग आ गये थे, जो अपनी-अपनी बात कहते रहे। जिसका लब्बोलुआब यह था कि 1984 से लेकर अब तक इस क्षेत्र में न सपा का, न बसपा का कोई जनाधार रहा, न ही भाजपा का। हां, लोग पंडित जी के विरूद्ध मैदान में जरूर उतरते थे लेकिन हार जाते थे। पूर्वांचल की राजनीति में भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ का काफी दबदबा है, लेकिन चिल्लूपार में उनका प्रभाव भी न के बराबर। भाजपाई कमल यहां कभी नहीं खिल सका। समाजवादी साइकिल और बसपा के हाथी की चाल हमेशा सुस्त रही। कांग्रेस का पंजा भी पंडित जी का ही हाथ थामें रहा। सिद्दुवापार से टांड़ा के मोड़ पर कई लोगों से बातचीत में लगा कि युवाओं की चाहत में पंडित जी के छोटे पुत्र भी हैं।
    यहां चुनावी मुद्दे जैसी कोई चर्चा नहीं। किसी का भी मुद्दा विशेष पर जोर नहीं। हां कानून-व्यवस्था, दबंगई के अलावा रोजी-रोजगार के साथ बाढ़ग्रस्त क्षेत्र को लेकर चिंता जरूर है और उसकी बात करते भी रहे। सांझ ढल रही थी हमें इलाहाबाद लौटना था लेकिन पंडित जी का गांव छूट रहा था, फिर कभी सही। हर ओर ‘बाबा भक्तों’ से हुई मुलाकात दोबारा आने की चाहत जगा रही है।

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