Thursday, August 11, 2011

झूठा है... लखनऊ की तरक्की तराना

लखनऊ से मुझे बेपनाह मोहब्बत है। दीवानेपन की हद तक इश्क है। शहर का हुस्न और उस पर छाई मस्ती के साथ अदब-ओ-आदाब के गुलशन की बहार से पूरी दुनिया को रश्क रहा है। लखनऊ के दस्तरख्वान की महक तबीयत में वो ताजगी भरती कि सेहत खुद-ब-खुद बाग-बाग। इमारतों की गुत्थमगुत्था वाले इलाके हों या नन्हीं-मुन्नी उछलती दोपल्ली टोपियों की शरारतें या फिर शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली गोमती की अठखेलियां। सौन्दर्य हर कोने बिखरा पड़ा, आज उसे परिवर्तन की बयार तरक्की के बेजा सपनों से सजाने में लगी है। असल में बदलाव के साथ बदहाली और तंगदिली ने लखनऊ में कयाम कर लिया है। लखनऊ का दस्तरख्वान टुंडे के कबाब से शुरू होकर गली-कूचे की बिरियानी पर खत्म हो जाता है। गजल औ ठुमरी के दिलों पर ‘रॉक बैण्ड’ हमलावर हैं। नाजनीनों, हसीनों की पायलों की रूनझुन की जगह उघारे जिस्मों की बेशर्म हरकतों से कामदेव से लेकर नवाबीनों की रूह तक खफा-खफा सी लगती है। लखनऊ की ताजियेदारी से लेकर ईद, होली,दीवाली से बढ़कर गुड़ियों का मेला, सबके सब रूसवा। कमबख्त इमामबाड़ों में बेहूदा इबारतें तक नए लखनऊवों का मिजाज बयां करती हैं। कौन कह सकता है कि इमारतों के जंगल में दौड़ते बेतरतीब वाहन और भागते जिन्दा इंसानों का काफिला लखनऊ है। गो कि यह नवाब वाजिदअली शाह की विरासत कतई नहीं हो सकता। तिस पर तुर्रा यह कि लखनऊ भी तरक्कीमंद शहरों की जमात में शामिल हुआ। ऐसी खबर गए महीने रोज छपने वाले एक अखबार मे पढ़ने को मिली थी। खबर के मुताबिक ‘वर्ल्ड मेयर्स’ ने दुनिया के तमाम तरक्कीमंद शहरों में लखनऊ शहर को तरक्की के 74वें पायदान पर रखा है। यह सब लखनऊ के मेयर के ‘वर्ल्ड मेयर कान्फ्रेस’ में दिए गये आंकड़ों की बदौलत लखनऊ को हासिल हुआ, ऐसा लखनऊ के मेयर ने अपने ही हाथों अपनी पीठ ठोंकते हुए कहा भी है। हकीकत में लखनऊ ने चार पार्कों, दस इमारतों और लिपे-पुते हजरतगंज के अलावा पिछले बीस सालों में क्या हासिल किया हैं?
    अब्वल तो शहर की तीस लाख आबादी चौबीस घंटों में आठ घंटे अंधेरे में गुजारा करती है। घर के अन्दर हो या घर के बाहर। पांच लाख बिजली उपभोक्ता बिजली की आवाजाही से बेहाल है। अस्पतालों में ऑपरेशन तक नहीं हो पाते, मरीज 15-16 घंटे बिजलीगुल से हलकान रहते हैं। बिजली फाल्ट दुरूस्त करने के लिए अदालत को दखल देना पड़ता है। सड़कों पर 152089 स्ट्रीट लाइटों में 60 फीसदी खराब है। गलियों में अंधेरा और कूड़ा, नालियों में बजबजाहट, सीवर का मल सड़कों पर बहता हुआ। 10 हजार से अधिक सफाईकर्मी तैनात होने के बाद 40 रु0 हर महीना देकर घरों से कूड़ा उठाने के तमाशेे ने शहर भर में कूड़ा बिखरा दिया, आलम यह है कि चालीस रुपए दो और कूड़ा अपने दरवाजे डलवा लो। इससे भी बदतर गोमती किनारे कूड़े की एक लम्बी ऊँची चट्टान मनकामेश्वर मंदिर से झूलेलाल पार्क तक दुर्गंध मार रही है। पुराने लखनऊ, खदरा, तेलीबाग, इंदिरा नगर के कई इलाकों व मध्य लखनऊ में हजारों की संख्या में संक्रामक रोग के शिकार लोग अस्पतालों में भटक रहे हैं, वहां रोगियों के इलाज के लिए मारामारी मची है। सआदतगंज इलाके में लोगों ने अपने हाथ से नालियां तक साफ करनी शुरू कर दीं। जलभराव का एक ही सुबूत काफी होगा, मवइय्या पुल के नीचे बिन बरसात पानी भर जाता है। इसे जस का तस देखते हुए तीन-चार पीढ़ियां जवान हो र्गइं। नए लखनऊ में चलें तो इन्दिरा नगर पॉलीटेक्निक चौराहे के पास व इस्माइलगंज इलाके में कूड़े के ढेर और जल भराव से बदहाली, और तो और नए रंगे-पुते हजरतगंज में जलभराव, देखा जा सकता है। पीने के पानी की व्यवस्था बरसों पुरानी लीक पर टिकी है।
    शहर का यातायात हजरतगंज चौराहे को छोड़कर पूरे 6500 वर्ग किलोमीटर की सड़कों पर अनियंत्रित। हर तरफ जाम और 13 लाख से अधिक अंधाधुंध वाहनों की दौड़ से नागरिक परेशान। बस, ऑटो, रिक्शों पर कोई नियंत्रण नहीं सब मनमाने ढंग से जेब काटने से लेकर बेहदूगी पर अमादा। अस्पतालों में मरीजों से र्दुव्यहार की घटनाएं, सड़क पर बच्चा जनने से लेकर दवा न मिलने तक की खबरें रोज अखबारों में छपती हैं। जबकि शहर में 12 बड़े अस्पताल, 26 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ 260 नर्सिग होम भी हैं। तीन-तीन सीएमओ की हत्याओं से सभी वाकिफ है। शिक्षा के लिए 8 हजार के आसपास उच्च से लगाकर प्राथमिक व तकनीकी स्तर तक के विद्यालय हैं, फिर भी गरीब बच्चों के लिए शिक्षा का अभाव। साक्षरता की दर भले ही 79.33 फीसदी हो, लेकिन साढ़े पांच लाख बच्चों में आधे बच्चे शिक्षा से महरूम हैं।
    लखनऊ शहर की साढ़े छः हजार वर्ग किलोमीटर की सड़कों पर आवारा जानवरों की फौज चौबीसों घंटे गश्त करती रहती है। इमारतों की छतों और उनके भीतर बंदरों का आतंक है। कुत्तों और सांडों का अखाड़ा व प्रजनन केन्द्र कहीं भी देखें जा सकते हैं। इनके मल-मूत्र की गंदगी से मच्छरों की आबादी में खासी बढ़ोत्तरी हो रही है, जो मलेरिया फैलाने में सहायक हैं। स्लाटर हाउसों के पास मंडराते कुत्ते शहरियांे को लगातार घायल कर रहे हैं। नगर निगम का आवारा पशुओं को पकड़ने वाला दस्ता केवल दुधारू पशुओं को पकड़ने में दिलचस्पी रखता है। शहर की कानून-व्यवस्था का हाल कितना बेहाल है, यह इसी से जाहिर हो जाता है कि महज 20 रूपए के झगड़े में बेखौफ हत्या हो जाती है। बड़े हत्याकांडों का खुलासा पुलिस कर नहीं पाती। हर गली-नुक्कड़ पर शोहदों का आतंक, जो लड़कियों का जीना मुहाल किये है। यही हाल शहर में अतिक्रमण का है। गलियों में, सड़कों पर बेतरतीब खड़ी गाड़ियों से दुर्घटनाएं हो रही हैं। इससे बदतर क्या होगा कि आदमी की चिता के लिए भी पुरसुकून इंतजाम नहीं। गो कि सब कुछ राम भरासे, फिर भी मेयर साब अपनी पीठ ठोक रहे हैं। जनाब अपनी रिहाइश के ठीक पीछे वाले मोहल्ले में एक अल्सुबह अकेले पैदल चलकर सैर कर आइए तो तरक्की के नंगे अर्थशास्त्र से मुलाकात हो जाएगी। बेशक आपकी जुबान में तरक्की हुई है, नौकरशाहों, नेताओं, बड़े बनियों और उनके रिश्तेदारों की और उसके सुबूत में अरबों की संपत्ति महज एक ज्वैलर्स के यहां हालिया पड़े आयकर छापे में बरामदगी है। आनंदी वॉटर पार्क नगर निगम सीमा में ही है, जनाब मेयर साब।
    चुनाचंे तरक्की वाह-वाह। तरक्की आह! आह! और अन्त में नवाब वाजिदअली शाह का लखनऊ उन्हीं की जुबान में -
गुलशन अजब बहार के हर कस्र रश्के खुल्द। और गोमती गजब की है दरिया-ए-लखनऊ।
हूरो परी को रश्क था एक-एक शख्स पर। बे मिस्म थे सभी महे सीमा-ए-लखनऊ।

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