Thursday, August 11, 2011

माया के खास विपक्ष के पास

लखनऊ। राहुल गांधी नौटंकी कर रहे हैं। भाजपा ड्रामा कर रही है। सपाई नाटकबाजी कर रहे हैं। बाकी बचे विपक्षी फालतू शोर मचा रहे हैं। यह वाक्य दोहराते हुए बसपा मुखिया से लेकर पार्टी का छोटे से छोटा कार्यकर्ता भले नहीं थकता, लेकिन विपक्ष की यही नौटंकी/ड्रामें प्रदेश के साढ़े बारह करोड़ मतदाताओं के साथ-साथ नौकरशाहों को खूब लुभा रहे हैं। इसके सुबूत में मतदाताओं की एकजुटता की खबरें आने के साथ बड़े अपराधी सरगनाओं और नौकरशाहों की विपक्षी खेमे के साथ होने वाली पोशीदा खास बैठकें हैं। पूर्वांचल के एक बाहुबली नेता पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल हुए हैं और कई प्रयासरत हैं। सपा में इन बाहुबलियों की भागीदारी लगातार बढ़ रही हैं। भाजपा के राजनाथ व कांग्रेस के राजीव शुक्ला नामी सरगनाओं पर डोरे डालने में व्यस्त हैं। खबरों के मुताबिक बसपा सरकार के खासमखास और विशेष कुर्सियों पर विराजमान आइएएस व आइपीएस अद्दिकारी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से नजदीकियां बढ़ाने के जतन में लगे हैं।
    गाजियाबाद-हापुड़ के बीच एक रिसार्ट में पिछले महीने बसपा मुखिया के मुंह लगें उप्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों की लम्बी मुलाकात सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से हुई। इस बैठक में दोनों अधिकारी सपा मुखिया के सामने अपनी सफाई देते रहे। ऐसी ही कई बैठकें अलग-अलग जगहों पर कई अधिकारियों के साथ हुई बताई जा रही हैं। इस सच को स्वीकारते हुए समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है, ‘मुझसे बहुतेरे अधिकारी मिलने आते हैं। वे भी आए जिन्हें इस सरकार ने तरह-तरह से प्रताड़ित किया है। निलंबित अद्दिकारियों को कहीं न कहीं तो शरण लेनी ही होगी।’ सूत्रों की मानें तो प्रदेश में नेता विपक्ष और सपा के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव से हाल ही में मिले एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान छुपाते हुए फोन पर ‘प्रियंका’ से बताया, ‘पिछले चार सालों में इस सरकार ने हमसे घरेलू नौकरों से भी बदतर व्यवहार किया और तमाम नियम विरूद्ध काम कराए। हमारे पास आदेश मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। अब विद्दानसभा चुनावों में चंद महीने रह गये हैं और मायावती की बसपा की वापसी की उम्मीदें लगातार धूमिल होती जा रही हैं। ऐसे हालात में आनेवाली सरकार में हमें अपनी जगह बनाने का प्रयास अभी से ही करना होगा।’
    बसपा मुखिया के अतिनिकट और पंचमतल के नंबर एक की हैसियत रखने वाले वरिष्ठ अधिकारी ने अंग्रेजी अखबार के एक संवाददाता से बतियाते हुए कहा, ‘समाजवादी पार्टी के नेताओं से मुलाकात के समय उन्हें साफ-साफ बताया कि आप लोग स्वयं समझ सकते हैं कि कितने दबाव मैं विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित करने की कार्रवाई करनी पड़ी। यह इसलिए भी जरूरी था कि मैं अगली सरकार में दंडित नहीं होना चाहता।’
पंचमतल के ही एक खासुलखास आइएएस अधिकारी ने पिछले महीने एक हवाईयात्रा के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व उप्र प्रभारी दिग्गीराजा को भी लगभग गिड़गिड़ाते हुए सफाई देते हए कहा, ‘ हम तो सरकार के नौकर हैं, उसकी मंशा के विरूद्ध जाने पर आने वाली दिक्कतों से आप वाकिफ हैं।’ इस यात्रा में एक पत्रकार बन्धु के माध्यम से दोनों में देर तक वार्तालाप चला। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा से मिलने वाले नौकरशाहों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। हालांकि उप्र की मुखिया की राजनीति के जेरेनजर यह अक्षम्य अपराद्द है। इस तरह का विश्वासघात जब मुख्यमंत्री से हो सकता है तो बसपा के और नेताओं के साथ भी हो रहा होगा। यह सवाल जहां अपने आपमें बसपा नेताओं को बेचैन किए है वहीं बसपा के एक अतिविशिष्ट सांसद का कहना है, ‘हमें बखूबी पता है कि ये नौकरशाह भरोसे के काबिल नहीं है, लेकिन बहनजी की मंशा क्या है, जानकर ही कुछ सोंचा जा सकता है। उन्हें इन नौकरशाहों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास रहा है। आज के हालात देखकर हम अपनी और पार्टी की जनछवि पर गहराई से मंथन कर रहे हैं, भरोसेमन्द सूत्रों के मुताबिक विपक्ष के नेताओं और अद्दिकारियों के बीच सम्पर्क सूत्र का काम करने वाले दो पत्रकार और एक मुसलमान सचिवालय कर्मचारी नेता हैं। यह लोग मायावती सरकार के तमाम ब्यौरे विपक्षी नेताओं के हाथों में पहुंचवाने के जुगत में भी सक्रिय हैं।
    जानकारी के अनुसार इन बिचौलियों ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा सरकार के बीच जहां कई बैठकें आयोजित कराई हैं, वहीं बसपा सरकार के घोटालों, भ्रष्टाचार के सुबूत भी विपक्षी नेताओं को उपलब्ध कराएं हैं। कांग्रेस दफ्तर के अति विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से मिलने को बेताब बसपा मुखिया के बेहद करीबी अधिकारी जो उच्चतम न्यायालय की निगाहों में भी है, की गुप्त बैठक कराने में दिल्ली के एक बिल्डर व उप्र के एक पूर्व आइपीएस अधिकारी, यूपीए सरकार के ताजा-ताजा बने एक कैबिनेट मंत्री से सम्पर्क साधने में लगे हैं।
    दरअसल अधिकारियों में यह भगदड़ उ.प्र. के वरिष्ठ नौकरशाहों पर की गई उच्चतमन्यायालय की टिप्पणी के बाद और प्रदेश में बसपा के जनाधार की खुफिया रिपोर्ट आने के बाद हुई है। बावजूद इसके हैरात में डालने वाली बात है कि प्रदेश की गुप्तचर एजेसियां इसे क्यों नजर अंदाज कर रही हैं?

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