Thursday, August 10, 2017

गगरी न फूटे चाहे खसम मर जाए
पानी की समस्या हमारे यहाँ आज से नहीं है काफी समय से चली  रही है।  सबसे ज्यादा तकलीफदेह स्थिति ग्रामीण इलाकों की है हरियाणा के 20 गाँव ऐसे है जहाँ के लोग 30 साल से पीने के पानी को तरस रहे है और तो और उन जगहों पर अपनी बेटियों को भी नहीब्याहना चाहते है।  13 साल पहले शुरू की गई 425 करोड़ की राजीव गाँधी पेयजल रेनीवेल परियोजना का गांवों को कोई फायदा नहीं है।  मेवात जिला के करीब 60 फीसदी गांवों में पीने योग्य पानी नहीं है और जमीन का पानी खरा है ऐसे में लोग पीने के पानी की समस्या सेजूझ रहे  है।
उत्तराखंड में भी कई ताल  सूख चुके है और कई सूखने की कगार पर है। टिहरी जिले में चन्दियार कांडो और अंधियार ताल अतीत बन चुके है   रूद्र प्रयाग में चौराबाड़ी ताल भी सूखने की स्थिति में है।  यह मन्दाकिनी चाहे बुंदेलखंड की हो या उत्तराखण्ड की काल दोनोंपर मंडरा रहा है।  हालत इतने ख़राब हैं कि पिछले साल राज्य सभा में तत्कालीन पेयजल और स्वच्छता राज्य मंत्री रामकृपाल यादव ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश के 308 जिले पानी की समस्या से जूझ रहे है इनमे अकेले उत्तरप्रदेश के पचास जिले शामिल है। 10 वर्षों के दौरान बुंदेलखंड में 4,020 जल स्रोत ख़त्म हो गए।  बाँदा जिले में पिछले साल 33,000 चापाकलों में से 33 फीसदी सूखे पड़े थे।  इसी तरह उत्तराखंड में भी राज्य के 60 हजार जलस्रोतों में से 12 हजार सूख चुके है।  एक नजर मणिपुर की ओर भी यहाँ के लोग पानीमाफियाओं के भरोसे रहते है। जहाँ 1000 लीटर जल के लिए 200 रुपये तक चुकाने पड़ते हैं।  ये आकड़े साबित करते है कि हम कितनी ख़राब परिस्थिति से गुजर रहे है और ये हालत पूरे देश की है।  मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही नदियों को जोड़ने की बात कही थी जिसपर अभी तक अमल नहीं किया गया है।
कहीं बोर है तो चल नहीं रहेपानी की सप्लाई बराबर नहीं है। चुनाव आते ही सरे राजनितिक दाल इन्ही मुद्दों शिक्षा रोजगार किसान पानी और भी कई मुद्दों पर जुमलेबाजी शुरू कर  देगा और बाद में जनता इसी तरह परेशान होती रहेगी।  एक कहावत है जो उनकीतकलीफ को कुछ यूँ बयां करता है ''गगरी  फूटे चाहे खसम मर जाये'..
दूसरी ओर  बरसात हर बरस होती है और हर बरस आधे से अधिक देश में बाढ़ का संकट होता है , लोग मरते हैं , जानवर मरते हैं अरबों की संपत्ति का नुकसान होता है | इस बरस भी आधे से ज्यादा देश में जल का जलजला है | ६ करोड़ से अधिक लोग बाढ़ की जद में हैं | सैकड़ों की तादाद में मौते हो रही हैं ,मवेशी मर रहे हैं जो बच गये हैं वे अपनों के साथ अपने पेट की चिंता में पल-पल मर रहे हैं | अकेले गुजरात में १५० से अधिक मौतें और  असम व महाराष्ट्र में २५० लोगों की मौत हो चुकी है | बंगाल,बिहार में ५० से अधिक मौतों के साथ २१ लाख से अधिक बेघर हो चुके हैं | गंगा,ब्रह्मपुत्र,शारदा,सरयू ,घाघरा,चंबल सहित सहायक नदियाँ खतरे के निशाँ के ऊपर हाहाकार मचाये हैं |  सरकार का बयान है ,’ सरकार हर तरीके से प्रतिबद्ध है पीड़ितों की देखभाल हो रही है ‘ | देश के गृह राज्यमंत्री का कहना है कि बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना समस्या का समाधान नहीं है , सरकार इसके स्थाई समाधान की ओर गंभीर प्रयास कर रही है | वहीं राज्यसभा में कांग्रेस ने गुजरात को प्रधानमन्त्री द्वारा  ५०० करोड़ की राहत की घोषणा पर  पक्ष पात का आरोप लगाया है  |  मानसून हर बरस आता है ,लेकिन लगातार प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ से प्रकृति हमें उसकी सजा भी दे रही है | अनियमित सूखे और अनियमित बाढ़ के रूप में और हम उससे कोई सबक भी नहीं ले रहे हैं।  बाढ़ और सूखे को लेकर सरकार और अधिकारी वर्ग चिंतित नहीं दिखाई पड़ते है | यही नहीं हर साल नेपाल अपनी नदियों का पानी हमारी ओर छोड़ देता है  जिससे पूर्वी उत्तर प्रदेश को अनचाही बाढ़ का सामना करना पड़ता है | इस साल भी बिना बताये उसने लाखों क्यूसेक पानी छोड़ दिया नतीजे में  घाघरा, राप्ती , गंडक , सरयू खतरे के निशान को पार कर रही हैं एल्गिन-चरसडी बाँध १५० मीटर कट  गया , यातायात तक बाधित हो रहा है   और प्रदेश के मंत्री कहते हैं , कहीं भी बाढ़ से खतरा नहीं है , हालत पर नजर रखी जा रही है |  लोग अपने गांव छोड़ कर सुरक्षित स्थानों की ओर भाग रहे हैं या शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं |
हर साल बाढ़ से देश को करोड़ों अरबों का नुकसान होता है।  आपदा राहत - बचाव पुनर्वास को लेकर एक बड़ी रकम खर्च होती है जबकि यही राशि युवाओं को रोजगार से जोड़ने और किसानों को मरने से रोकने के काम में लाई जा सकती है लेकिन इस दिशा में कभी भी गंभीर रूप से विचार नहीं किया गया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने नदियों को जोड़ने की योजना बनाई लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार में यह सिर्फ फाइलों में ही दब कर रह गई। अब वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार नदियों को मोड़ने की बात कर रही है , लेकिन उस पर भी प्रश्नचिन्ह है कि क्या सच में ऐसा हो पायेगा योजनाओं पर खर्च होने वाली रकम का सही हिसाब रख पायेगाक्या योजना पर सतत निगरानी रख पायेगा ये सवाल अपने आप में एक चुनौती है
अगर सही समय पर नदी नालों की सफाई,  नहरों के तलछट की सफाईतालाब और कुओं की मरम्मत पर ध्यान दिया जाता तो बारिश के समय में परेशानी नहीं उठानी पड़ती।  मरम्मत और सुधार के नाम पर जो राशि खर्च होती है और जो कार्य होता है वो सिर्फ औपचारिकता मात्र है।  2004 में बिहार सरकार ने भीषण बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाने की 17 करोड़ की राशि के घपले का आदेश दिया था लेकिन इस जाँच का क्या हुआ अभी तक कुछ पता नहीं। कश्मीर की बाढ़ में जो राहत पहुंचाई गई उसमें होने वाले घपलों को दफना दिया गया | उत्तर प्रदेश में ऐसे घपले हर साल होते हैं |
इसी तरह साफ़ सफाई की व्यवस्था भी लचर है। पिछले दिनों योग महोत्सव में प्रधानमंत्री का आगमन लखनऊ के अब्दुल कलाम तकनीकी विश्व विद्यालय में हुआ था।  पॉलिटेक्निक के चौराहे के पास गंदगी का ढेर लगा हुआ था जिसे अधिकारियों ने टीन शेड से ढक दिया था।  इस तरह से उन्होंने अपनी गल्ती को छुपा लिया , इसके लिए जिम्मेदार लोगों से कोई पूछ ताछ नहीं की गई ये सीधे तौर पर उनकी गैरजिम्मेदारी दर्शाती है।  इस तरह की ये एक घटना नहीं है कई जगहों पर इस तरह की घटनाएं आम है। 
सवाल ये है की हमारे देश में बार - बार सूखा और बाढ़ क्यों होता है क्यों नहीं इससे निपटने के लिए पहले से इंतजाम किये जातें है।  सरकारी तंत्र इतना सुस्त है कि आप इसी बात से अंदाजा लगा सकतें है कि कई शहरों की मुख्य सड़कों पर पानी भर गया।  लखनऊ के एक उफनते नाले ने एक बच्चे की जान ले ली। 
शहरों के अधिकांश नाले नालियों पर कब्जा हो चुका है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सरकारी निवास के ठीक सामने स्थित नाले पर कुछ लोग सार्वजनिक रूप से मकान बनाये हुए है।  कुछ नालों पर तो पक्के निर्माण हो गए है लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।  सड़कों पर मल गंदगी सब बहता रहता है।  जगह - जगह ब्लॉकेज है और सरकार आँख मूंदे हुए है। 
अहम् बात ये है कि प्रकृति हमे लगातार सन्देश दे रही है कि जीवन बचाओ लेकिन हमारी बढ़ती महत्वकांक्षाएँ और उद्दण्ड़ताएं हमें समझने नहीं दे रही हैं। हमे सबक लेना होगा कि हम प्रक्रुति को नुकसान ना पहुचाये | कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ पानी ही पानी दूसरी तरफ हलक तर करने को एक बूंद पानी नहीं !


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