Tuesday, November 17, 2015

जानवरों के लिये भी बनाओ शौचालय

आदमी खुले में शौच करे तो अपराध कुत्ता, बिल्ली, गाय, सांड, भैंस, दम्पत्ति राजपथ पर खुलेआम फारिग हांे तो साहब मेम साहब सहित समूचा सरकारी अमला मस्त बंद्ररों की भारी जनसंख्या शहरों-गांवो के घरों की छतों पर मल-मूत्र त्याग रही है, जबकि आदमी का सार्वजनिक स्थान पर पेशाब करना भी दण्डनीय अपराध है। राजपथ से लेकर गली-मोहल्लों, काॅलोनीयों से लेकर जनपथ और खूबसूरत पार्को तक में हर सुबह-शाम अपने प्यारे पप्पी को टहलाते, फारिग कराते लाखों बाबू-बबुआइन दिख जाएंगे। ये प्यारे आपके मकान के दरवाजे के सामने, बीच रास्ते में कार-बाइक के आस-पास या कहीं भी खुली सड़क पर नित्यकर्म से निबटते दिख जाएंगे। आवारा जनवरों का शौचालय सड़कें गलियां, पार्क तो हंै ही। मजे की बात है अपने कुत्तों को सड़कांे पर नित्यकर्म कराने वालो में अधिेांश धरती बचाने के सेमिनारों में बड़ी-बड़ी बातेे करते हैं और पशु प्रेम के साथ आवारा पशुओं पर हल्ला भी मचाते हैं? पर्यावरण पर भाषणों सहित अखबारों में अपना ज्ञान बघारते हुए फोटो छपातें हैं। जबकि कुत्ते और बंदर के मल मौजूद इ कोली वैक्टीरिया प्रदूषण फैलाने का काम करते है। कुत्ते के एक ग्राम मल में दो करोड़ से अद्दिक इ कोली सेल होते हैं और लाखों करोड़ों कुत्तों का मल-मूत्र जमीन के जरिये भूजल को दूषित कर रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने समय में खुले में शौच पर नारा दिया था, टट्टी पर मिट्टी डालो। यह जहमत भी कोई उठाने को तैयार नही है। देश में बंगलौर, चंडीगढ़ छोड़कर शायद ही कहीं कुत्तों के मल को सुरक्षित स्थान पर फेंकने का नियम हो। एनीमल वेल्फेयर बोर्ड आॅफ इंडिया ;।ॅठप्द्ध के तमाम दिशा निर्देशों में भी पालतू पशुओं के सार्वनिक स्थलों पर मल त्यागने के संबंध में प्रतिबंध का उल्लेख नही है। यहाँ यह भी बताते चलें कि एनीमल वेल्फेयर बोर्ड आवारा पशुओं खासकर कुत्तों के आतंक से निपटने के लिए राज्यों को बाकायदा पैसा भी देता है। उप्र नगर निगमों को कब कितना पैसा मिला कैसे खर्च हुआ या लापरवाही के चलते मिला ही नहीं यह जांच का विषय है। इसके साथ ही यह भी बताना आवश्यक होगा कि नगर निगमों में आवारा कुत्ते पकड़ने या पकड़कर उनकी नसबंदी करने का कोई अभियान भी नहीं चलाया जाता और तो और इसके लिए अलग से कोई बजट भी नहीं रखा जाता।
    उससे भी अधिक हास्यास्पद स्थिति यह है कि नगर निगमों/पंचायतों पालिकाओं के पास आवारा व पाले हुए कुत्तों के आंकड़े तक नहीं है। कई बार आवारा पशुओं की गणना के फैसलों का एलान हुआ तो, लेकिन अभी तक यह काम शुरू नहीं हुआ। कब होगा यह कोई नही जानता, कुत्ते हंै कि लगातार बढ़ते जा रहे हैं और बिल्ली से लेकर नवजात शिशुओं तक को फाड़ खा रहे हैं। यह आंकड़ा अकेले लखनऊ में 2014 में 53 हजार के पार हो चुका है। पीडि़तों का हाल यह है कि हर साल देश में 22 हजार मौतें रैबीज के कारण हो रही हैं, उनमेें 90 फीसदी लोग कुत्ते के काटने से मरने वाले होते है। बंदरो के आतंक से शायद ही कोई शहर या गांव बचा हो। हाल ही में कैम्पियरगंज में चार महीने के मासूम बच्चे को मां की गोद से छीनकर बंदर ने मार डाला और लखनऊ के गोसाईगंज इलाके में बंदरों को भगाने के लिए एयरगन से फयर करते हुए निशाना चूकने से एक किशोर घायल हो गया। ऐसे हजारों हादसे है। आतंक के इस माहौल में स्मार्ट सिटी, सफाई अभियान, गौशाला या आई टी सिटी सुनने में तो बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन सच इस सबसे कोसों दूर है। बहरहाल आदमी के लिए भी शौचालय की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता, साथ ही आवारा पशुओं पर भी गम्भीरता से सोचना होगा। 

No comments:

Post a Comment