Tuesday, March 12, 2013

ओबरा में पत्रकारों का लघु कुंभ


सूरज ने भी आसमान पर अपने हस्ताक्षर कर दिये
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता।
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।।
यकीन मानिये सोनांचल के ऊर्जाक्षेत्र में हिन्दी पुत्रों के चमकते ललाट और दपदपाती ऊर्जा से समूचा वातावरण पर्व जैसा परिभाषित हो रहा था। माता सरस्वती जैसे साक्षात दर्शन दे रही थीं तभी तो कंठ कोकिला रचना तिवारी मां का वंदन अभिनन्दन कर जहां अभिभूत थीं, वहीं समूची पत्रकार बिरादरी एक मत, एक स्वर से अपने अस्तित्व का शंखनाद कर रही थी। एक ऐसा आयोजन, एक ऐसा पत्रकारों का समागम जो संतों के धर्म संसद की परछाईं लगता। ऐसा यज्ञ जहां कलम के पुजारियों की हवियां राज-समाज को सुगंधित करने का संकल्प ले रही थीं। मौका था पत्रकारों के ‘चाचाजी’ मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी का पैसठवां जन्मदिन और गजब देखिए पन्द्रह दिनों की ठिठुरती सर्दी के बाद आज ही सूरज ने भी आसमान पर अपने हस्ताक्षर कर दिये थे।
    हस्ताक्षर-2013, ‘प्रियंका’ के पन्नों पर चस्पा थे। अक्षरों के हलफनामे को गुरूवर पराड़कर और गणेश के वंशजों ने लोकार्पित कर माँ सरस्वती भक्तों के लघु कुम्भ में मौजूद अपनी पूरी पीढ़ी में बांटा। सारे भारत से आये पत्रकारों के बीच पत्रकारिता संस्थान काशी विद्यापीठ के निदेशक डाॅ0 राम मोहन पाठक की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी, देश समाज का अस्तित्व होगा तभी पत्रकारिता का अस्तित्व रहेगा। मिशन के बिना पत्रकारिता का अस्तित्व नहीं।’ बीच में ही मोबाइल फोन की घंटी ने संचार तकनीक की उपस्थिति दर्ज कराई। संयोजक कमाल अहमद ने संचालक आर.पी. उपाध्याय को फोन थमाते हुए क्षमा मांगी। फोन पर लखनऊ से संपादक ‘प्रियंका’ हिन्दी पाक्षिक राम प्रकाश वरमा ने प्रणाम, बधाई, शुभकामनाओं के साथ व्यावधान के लिए क्षमा मांगते हुए पत्रकारों के लघु कंुभ को नारद मुनि का वह संकल्प बताया जिसके चलते आज भी सूचनाओं का प्रवहमन है। फोन बंद हुआ और जलपुरूष रमेश सिंह यादव बोल उठे, ‘लेखनी में वह ताकत है जो वैश्विक क्रांति को जन्म दे सकती है।’ प्रसिद्ध तीर्थ और प्रभुश्रीराम के चरणों से पवित्र हुई। धरती चित्रकूट से आये रामपाल त्रिपाठी का कहना था कि पत्रकारिता का अस्तित्व उसके सकारात्मक मिशन से हैं। सोनघाटी के चर्चित साहित्यकार डाॅ0 अर्जुन दास केसरी का आह्वान था, ‘गांव-गिरांव में जाकर पत्रकार साहित्य और समाज के मूल्यों को जागरूक करें।’ आकाशवाणी ओबरा के कार्यक्रम अधिशासी दशरथ प्रसाद की सीख थी, ‘हमें हर हाल में पत्रकारिता के मूल्यों को संजाये रखना होगा तभी हम पत्रकारिता मिशन को जिंदा रख सकते हैं।’ भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 भगवान प्रसाद
उपाध्याय ने आम आदमी के हितों के रक्षार्थ पत्रकार की सक्रियता पर खुली बात की, तो घोरावल क्षेत्र से विधायक रमेश दूबे ने विकास और आमजन के कल्याण की चिंता जाहिर की। विजय शंकर चतुर्वेदी ने कलमकारों को अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने के लिए चेताया, तो शिक्षक व साहित्यकार ओम प्रकाश त्रिपाठी ग्रामीणजनों की उपेक्षा से चिंतित दिखे।
    चैंसठ वर्ष पूर्व जन्मना बालक मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ‘चाचाजी’ ने अपने जन्मदिवस पर भीड़ भरे पंडाल पर नजर घुमाते हुए कहा, ‘लगातार कट रहा और बंट रहा समाज ऐसे ही समागम से जुड़ा रह सकता है। हमें इसी तरह एकजुट होकर नेकनीयति से निर्भीकता से आदमी के हक में काम करना होगा।’ और कुछ बोलने से पहले चारों ओर से शुभकामनाओं का नाद, बधाई की शहनाई और फूल मालाओं के संवाद गूंज उठे। पत्रकारों के इस मेले में उल्लास और हर्ष के पुरूस्कार बांटे जाने लगे। सम्मान का तिलक हर मष्तक पर चमकने लगा। फिर तो एक ही सदा थी, तुम बिना अवरोध के बढ़ते चलो शुभकामनाएं... शुभकामनाएं

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