Sunday, May 13, 2012

लखनऊ-दुबई उड़ते कबूतर

लखनऊ। अस्सलाम-आलै-कुम बाद खैरियत मालूम होकृ. आपको छत पे नंगे सिर देखा तो अश... अश.. कर उठा... जाने...। यह लाइने बजरिये कबूतर लाये गये खतों के मोहब्बताना मजमून के हुआ करते थे। हां.. नवाबीनों के वक़्त में अपनी... उनको मोहब्बत का इजहार करने... पैगाम भेजने में कबूतरों का इस्तेमाल हुआ करता था। लखनऊवा कबूतरबाजी के हजारों किस्से सआदतगंज से सफेदाबाद औ आलमबाग से अशर्फाबाद तक दफ़्न हैं। आह.. आ.. आ.. आ.. की आवाजें आज भी कभी-कभी बशीरतगंज-चैक से काकोरी तक की छतों पर सुनई दे जाती हैं। मगर आजकल इन कबूतरों से बड़ी कबूतरबाजी का फैलाव लखनऊ में हो रहा है। ये कबूतर इंसान हैं जो अपने मुल्क से गैरमुल्क (विदेश) भेजे जाते हैं। इनकों भेजनेवाले बहेलिए (कबूतरबाज) पूरे सूबे में अपना जाल फैलाए हैं। इनका साथ राजनेता, पुलिस, व्यापारी और धर्मनेता दे रहे हैं। मजे की बात है कि इस खेल में सूबे के आजमगढ़, मऊ, बनारस जिलों के लोग बेहद सक्रिय हैं।
    लखनऊ में नए बने काम्पलेक्सों में कई में विदेश भेजने का काम ‘एक्सपोर्ट’ ‘एन्टरप्राइजेस’, ‘कन्सल्टेन्सी’ के बोर्ड लगाकर अवैध रूप से हो रहा। नेशनल हाइवे नं0 25 पर विधानसभा से महज दो फर्लांग दूरी पर इस तरह के दसियों अवैध आफिस खुले हैं। इनमें रोज सैकड़ों की तादाद में लोग आते हैं। इन्हें पासपोर्ट बनवाने बीजा दिलाने, हवाई यात्रा का टिकट कराने, डाॅक्टरी कराने, फोटो खिंचाने, होटलों, गेस्ट हाउसों में ठहराने का काम इसी आफिस के मालिक-मैनेजर -कर्मचारी धड़ल्ले से कर रहे हैं। इनमें से शायद ही किसी के पास श्रम मंत्रालय की मान्यता या पंजीकरण हो। यही एजेंसियां अवैध रूप से टैक्सियों का भी संचालन करती हैं। दुबई, शारजाह व सऊदी से आने वाले मजदूर व अन्य कर्मी लखनऊ से दूरदराज इलाकों में जाने के लिए प्राइवेट नम्बर की कारों का इस्तेमाल करते हैं। इसकी बुकिंग पहले से ही हो जाती हैं। इससे दुर्घटनाओं के समय जहां यात्रियों को मुआवजे/चिकित्सा आदि में असुविधा का सामना करना पड़ता है, वहीं राज्य सरकार के परिवहन विभाग को राजस्व का भी नुकसान होता है।
    इससे भी आगे ‘मैन पाॅवर सप्लाई’ के इस अवैध धंधे में लगे लोग इन्हीं श्रमिकों के जरिए भारतीय सामान अवैद्द रूप से बगैर कर अदा किये ही नहीं भेजते बल्कि विदेशी सामान भी बगैर नियत शुल्क अदा किये मंगा लेते हैं। इनमें बनारसी साड़ी, इत्र, तम्बाकू पान मसाला मुख्यतः भेजे जाते है; तो आते हैं परफ्यूम, सिगरेट, सोने के जेवर, लैपटाॅप जैसी वस्तुएं। यह सब तय सीमा के अन्दर ही होता हैं। गौर करने लायक है कि हर उड़ान में दस यात्री दो-दो बनारसी साड़ी ले गये और दस-दस ग्राम सोने के जेवर लाये हैं, तो एक साथ एक हवाई जहाज से 20 बनारसी साड़ी गईं और 100 ग्राम सोना आ गया। यह एक उदाहरण है, सामान तो इससे अधिक आता-जाता है। इन श्रमिक यात्रियों से इस तरह का सामान ‘कबूतरबाजों’ के एजेन्ट हवाई अड्डे पर ही या फिर उनके घरों पर जाकर ले लेते हैं। इसी तरह नकद रूपया भी आता है। साथ ही यह श्रमिक इन्हीं कबूतरबाजों से जुड़े व्यापारियों/धनिकों को अपनी कमाई के बैंक ड्राफ्ट  इन्हीं लोगों के नाम से भेजते हैं। जिसके बदले ये लोग उन श्रमिकों के घरों पर नकद पैसा पहुंचा देते हैं। गो कि कालेधन को सफेद करने का धंधा बड़े ही शातिराना ढंग से चलाया जा रहा है। यहां याद दिलाते चलें कि अभी अधिक दिन नहीं बीते जब सोने के साथ कानपुर के एक व्यक्ति को लखनऊ एयरपोर्ट पर पकड़ा गया था, जो काफी समय से सोना लाने का कैरियर था।
    यह जांच का मामला है। यदि इसकी जांच ईमानदारी से हो जाए तो कुछ खास बैंक खातों का ही खुलासा नहीं होगा बल्कि और बहुत कुछ नाजायज कारनामें सामने आएंगे। क्या पुलिस, राजस्व, कस्टम और आयकर विभाग कोई कदम उठाएगा?

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