Sunday, June 5, 2011

बहुजन से सर्वजन तक बहनजी

लखनऊ। लोकतंत्र के राजमार्ग पर सूबा उप्र बसपा सरकार की मुखिया मायावती की अगुवाई में चार साल पूरे कर चुका है। पांचवे और अंतिम साल में अगले पांच सालों पर कब्जे की जंग का घमासान राजनैतिक दलों द्वारा पूरे जोश--खरोश से लड़ा जा रहा है। मायावती पर इल्जाम लगाने वालों की भले ही कमी हो लेकिन उनके दंभ भरे करिश्मों पर कोई फर्क नहीं पड़ता दिखता। महज 24 सालों में अपने हाथी पर सवार बसपा और उसकी मुखिया ने जहां देश की राजनैतिक सड़क पर अपना अहम् स्थान बना लिया है, वहीं दलितों की मसीहा, नौकरशाहों के लिए बुरा सपना और विपक्ष के लिए बदस्तूर पहेली हैं। मायावती के बहुजन समाज के पागलपन या जादुई करतब ने चार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें सौंपी और अपने बूते चार साल पूरे करने वाली मुख्यमंत्री कहला रही हैं। उनकी जिद, अहंकार और निरंकुशता से भरे फैसलों से कौन आहत हुआ या कौन दुखी, इससे बेपरवाह अपने सिपहसालारों के साथ 2012 के चुनावों का टेंडर भरने के लिए अपनी सरकार की चौथी सालगिरह के जश्न पर उप्र के मतदाताओं को 20 हजार करोड़ के तोहफे बांटने के बाद अपने पार्टी कार्यकर्ताओं मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और चहेते नौकरशाहों की ऊर्जा का सदुपयोग करने में मगन हैं।
            ब्राह्मण-दलित गठजोड़ के बलबूते सत्ता की सीढ़ियों पर खड़ी मायावती मुसलमानों और पिछड़ों की आबादी में बसपा के हाथी को चिंघाड़ने के मंसूबों पर मंथन कर रही हैं। उनके चहेतों ने उन्हें समझा रखा है कि यही सफलता उन्हें दिल्ली के लालकिले की प्राचीर तक पहुंचा सकती है। मगर हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों में बसपा का खाता तक नहीं खुला। इसके अलावा उप्र में बिगड़ी कानून व्यवस्था, दलितों पर होते अत्याचार, रोज सामने रहे भ्रष्टाचार के मामले, आम आदमी से लेकर राज्यकर्मियों तक की नाराजगी उन्हें इस कामयाबी तक जाने देगी? इसके अलावा भाजपा, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के तमाम आरोपों को उप्र के बीस करोड़ वाशिन्दे लगातार आत्मसात कर रहे हैं। ताजा मामला भट्टा परसोल के किसानों पर हुए जुल्म को कांग्रेस बुलन्द आवाज में सूबे भर को सुना रही है। पूरा विपक्ष बहुजन पार्टी की सरकार को सूबे से निकाल बाहर करने पर बजिद है। ऐसे हालातों में 2012 का टेंडर बसपा को दोबारा हासिल होगा?
बसपा का सफरनामा
उप्र विधानसभा चुनाव
1989: 372 सीटों पर चुनाव लड़ा  9.41 प्रतिशत वोटों के साथ 13 सीटों पर विजयी
1991: 386 सीटों पर चुनाव लड़ा 9.44 प्रतिशत वोटों के साथ 12 सीटों पर विजयी
1993: 164 सीटों पर चुनाव लड़ा 11.12 प्रतिशत वोटों के साथ 40 सीटों पर विजयी
1996: 296 सीटों पर चुनाव लड़ा 19.64 प्रतिशत वोटों के साथ 67 सीटों पर विजयी
2002: 401 सीटों पर चुनाव लड़ा 23.90 प्रतिशत वोटों के साथ 98 सीटों पर विजयी
2007: 403 सीटों पर चुनाव लड़ा 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 सीटों पर विजयी
बसपा का सफरनामा
लोकसभा चुनाव
1989:  5 सीटों पर विजयी, 2 उप्र, 1 पंजाब में जीती
1991:  2 सीटों पर विजयी, 1 उप्र, 1 मप्र मंे जीती
1996:  11 सीटों पर विजयी, 6 उप्र, 3 पंजाब, 2 मप्र में जीती
1998:  5 सीटों पर विजयी, 4 उप्र., 1 हरियाणा में जीती
1999:  14 सीटों पर विजयी, सभी उप्र में जीतीं
2004:  19 सीटों पर विजयी, सभी उप्र में जीतीं
2009:  21 सीटों पर विजयी 20 उप्र., 1 मप्र में जीती

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