बाहर कभी आपे से समुन्दर नही होता
पंडित हरिशंकर तिवारी के जन्मदिन
पर विशेष - भारत
चतुर्वेदी
“आदमी आदमी से मिलता है, दिल मगर कम किसी से मिलता है” जिगर मुरादाबादी की यह लाईन
लोगों
की इस भीड़ में अक्सर याद आती है पर जब यह सोचता हूँ कि इस भीड़ में ऐसे भी ब्यक्तित्व है जिससे
नेह रखने वाले लाखो में है फिर उसे हम क्या
नाम दें ? पंडित हरिशंकर तिवारी को लेकर इस बावत मेरी धारणा जिगर मुरादाबादी से इतर नही है | बेशक एक राजनेता के समर्थक
लाखों
में हो सकते है पर एक ठेठ गवई विरासत
के पहरेदार को लाखों अपना सगा माने, ऐसा भरोसा हासिल करना कठिन
है | पंडित
हरिशंकर
तिवारी
की यह सबसे बड़ी विरासत है जो गोरखपुर
से निकल कर पूर्वांचल समेत देश के कई हिस्सों
में कायम है |
उत्तर
प्रदेश
की राजनीति में पं हरिशंकर
तिवारी एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते है | भाजपा के कल्याण सिंह की सरकार हो या मुलायम,
मायावती
की सरकार गोरखपुर के तिवारी का हाता
हमेशा
केंद्र
में रहा है | पंडित
जी के राजनितिक हैसियत का आकलन
इस बात से कर सकते है कि लगातार
२८
साल तक चिल्लूपार का प्रतिनिधित्व
किये
और १९९७ से २००८
तक कबीना मंत्री रहे | पंडित हरिशंकर तिवारी का राजनितिक दबदबा आज भी कायम है |
बी बी सी हिंदी
एडिशन
की माने तो पंडित हरिशंकर तिवारी की मंशा
चुनाव
लड़ने
और सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनने की कभी थी ही नही | तब गोरखपुर के वीरबहादुर
सिंह
कांग्रेस
के बड़े नेता थे और उन्हें हरिशंकर तिवारी फूटी आँख नही सुहाते थे जबकि
पंडित
जी तब कांग्रेस के सदस्य
भी थे और स्वर्गीया
इंदिरा
गाँधी
के करीब भी पर उतना
नही जितना वीरबहादुर सिंह | वीरबहादुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद कुछ ऐसे कुचाल चले गये जिस कारण तिवारी जी को जेल जाना पड़ा| पंडित हरिशंकर तिवारी जेल से ही निर्दल चुनाव लड़े और फिर शुरू हुआ राजनीति में हाते की बादशाहत का सफर , जो आज तीन दशक बाद भी जारी
है |
“जोश”की एक लाइन है –नामुनासिब है खून खौलाना, फिर किसी और वक्त मौलाना| जोश ने जिस सन्दर्भ
में लिखा हो पर यहाँ
पंडित
हरिशंकर
तिवारी
के मिजाज पर सटीक बैठता
है | राजनितिक
बर्चश्व
की बात हो या सामजिक सरोकार में मुखालफत की बात हो संयम इनका
बड़ा हथियार रहा है | हरिशंकर
तिवारी
अपने
विरोधियों
को जिस तरह माकूल
जवाब
देते
रहे है उसकी ताशीर कुछ इस कदर जानी
गई है|
बीबी
सी के एक साक्षात्कार के दौरान पंडित
हरिशंकर
तिवारी
ने एक आरोप के जवाब में कहा था कि ‘मैने किसी के मुह का निवाला नही छीना बल्कि
जरूरत
पर दूध पिलाया है |’ बात सोलह आने सही है, हाते पर भीड़ का बने रहना इस बात को पुख्ता
करता
है कि तब से अब तक पंडित
हरिशंकर
तिवारी
ने सहयोग और सम्मान के बूते
अपने
समर्थकों
की तदात को बढ़ाया ही नही बल्कि सम्भाल कर भी रखा | आप कभी हाते
पर जाये, आपका स्वागत खालिस दही की लस्सी
से होगा, नेपाली युवा आपके सम्मान और आपकी ईच्छा
का आदर मन से करेंगे | गोरखपुर ही नही बल्कि इसके आस –पास के कई जनपदों के समर्थक और जरूरतमंद
लोग यहाँ प्रतिदिन आते है | सच कहें तो पूर्वांचल में ऐसा दूसरा राजनितिक ब्यक्ति कम है जहां
समर्थकों
का इतना नेह मिलता हो |
यूं तो पंडित हरिशंकर तिवारी के विरोधियों
की संख्या ना में है पर जो है उनका रुतबा भी कम नही पर उन्हें भी राह चलने से पहले हजारों
बार सोचना होता है | नाम लेना मुनासिब नही पर अभी हाल की हाते
की घटना पर फैज की दो लाइनें याद आ गई | मेरी जबाँ पे शिकवा – ए- अहल –ए- सितम नहीं, मुझको जगा दिया यही एहसान कम नही |बीते
महीने
हाते
पर पुलिसिया कार्यवाही की गई जिसका
कोई औचित्य नही था | बदले
की भावना और जोर आंकने
के मतलब से स्थानीय प्रशासन टोह ले रही थी ! नतीजतन
तिवारी
समर्थकों
के आक्रोश में कलक्ट्रेट का गेट ठसा-ठस ‘बाबा
हरिशंकर जिंदाबाद ‘ के नारों से भहरा गया | २०१९
के आम चुनाव में ब्राह्मणों
के वोट कटने के फिकर में दिल्ली के पसीने
छूटे हुए हैं |
बात सुझाई गयी कि ओखल में सर मत मारो, सरकार चलाओ | इस घटना ने दूसरी ओर साबित
किया
की पंडित हरिशंकर तिवारी
का नाम पूर्वांचल की राजनीति में
अभी पूर्ववत
कायम
है | गोरखपुर
से लगायत दिल्ली के जन्तर मन्तर तक विरोध
के सुर निकले जिसमे सूबे का मुखिया एक खांचे में फिट हो गया |
पूर्वी
उत्तर
प्रदेश
का ब्राह्मण समुदाय पंडित हरिशंकर तिवारी को अपना मानता
है चाहे वो किसी दल से हो | जरूरत
पर दल दरकिनार कर लोग आगे आते है | अभी की हाते
की घटना इस बात की गवाह है | जो लोग कल भाजपा को वोट किये वही आज योगी
के खिलाफ सड़क पर उतर गये | सवाल पंडित हरिशंकर तिवारी को कमजोर करने या अपमानित करने
का था |जो जहाँ था स्वयं पर लिया, जैसे अपने
पर हुआ हो | पंडित
हरिशंकर
तिवारी
की विरासत यही है | राजनितिक
दल तिवारी के इस विरासत
को भलीभांति जानते है यही कारण
है कि विपक्षी तिवारी की राजनीती
को दबंग की संज्ञा देते है |
पंडित
हरिशंकर
तिवारी
के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाओं सहित एजाज
रहमानी
की इस पंक्ति पर ध्यान
चाहूँगा
–तालाब
तो
बरसात
में हो
जाते
हैं
कम-जर्फ, बाहर
कभी आपे
से
समुन्दर
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