कैलाश मानसरोवर को चीन से वापस लाए थे औरंगजेब
नई दिल्ली | कैलाश मानसरोवर यात्रा को नाथुला दर्रे
के रस्ते से चीन ने बंद करने के साथ भारतीय सीमा पर हमारे सैनिकों से उसके सैनिकों
ने बाकायदा हाथापाई की , इस मामले पर दोनों सरकारों में बातचीत
के दौर जारी हैं | यहाँ बता दें कि हिंदुत्व का झंडा उठाये
भाजपा ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तमाम दावे, वादे किये थे और उसकी उत्तर प्रदेश सरकार के अतिउत्साही मुखिया ने
तीर्थ यात्रियों को १ लाख रूपये की सब्सिडी देने का एलान भी किया साथ ही अपने बजट
में कैलाश मानसरोवर भवन के लिए २० करोड़ रुपयों का इंतजाम किया है | सवाल यह है, जब चीन रास्ता ही नहीं देगा तो इस सब के
माने क्या होंगे ?गौरतलब है कि नाथुला का रास्ता २०१५ में
खोला गया था |
इससे अलग इतिहास का एक बंद पन्ना पलट कर देखिए तो मालूम होगा कि आज़ादी
के बाद जब चीन ने कैलाश पर्वत, कैलाश मानसरोवर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया तो
भारत के प्रधानमन्त्री प. जवाहरलाल नेहरू संयुक्त राष्ट्र संघ पहुंचे
और गुहार लगाई कि चीन ने हमारी जमीन ,पर्वत व तीर्थ स्थान
पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है, हमारी ज़मीन हमें वापस दिलाई जाए| इस पर चीन ने जवाब दिया कि हमने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है
बल्कि अपना वो हिस्सा वापस लिया है जो मुगल बादशाह औरंगज़ेब हमसे 1680 में छीन कर ले गया था |
चीन ने मुगलकाल में भी इस हिस्से पर कब्ज़ा किया था | जिस पर औरंगज़ेब ने उस वक़्त चीन के राजा से ख़त लिख कर गुज़ारिश की थी
के कैलाश मानसरोवर हिंदुस्तान का हिस्सा है और हमारे हिन्दू भाईयों की आस्था का
हिस्सा है , लिहाज़ा इसे हमे वापस कर दें | जब डेढ़ महीने तक जवाब नहीं आया तो औरंगजेब ने चीन पर चढ़ाई कर दी और डेढ़
दिन की जंग के बाद चीन को हरा कर हिंदुस्तानी ज़मीन वापस छीन ली |
ये वही औरंगज़ेब है जिसे कट्टर इस्लामी
आतंकवादी कहा जाता है , सिर्फ उसी ने हिम्मत दिखाई और चीन पर सर्जिकल
स्ट्राइक कर दी थी. इतिहास के इस सच को आज़ादी के समय के
संयुक्त राष्ट्र संघ के हलफनामे में देखा जा सकता है जो आज भी संसद में महफूज हैं |
यहाँ एक सवाल और
कि क्या हमारी चीन से सिर्फ एक बार ही जंग हुई है, क्या चीन से1962 की जंग हारने के
बाद के बाद भारत के हौसले टूट गये थे, क्या उसके बाद
से चीन सीमा पर एक भी गोली नही चली ?जी नहीं , 1962 के बाद से भारत
की चीन से तीन बार सीमा पर भिड़ंत हो चुकी है और तीनों बार भारतीय सेना ने चीन को
धूल चटाई है | पहली
बार नाथुला दर्रे पर ११ सितंबर,१९६७ को चीन की
सेना ने भारतीय सेना पर हमला किया था जिसका भारतीय सेना ने जोरदार जवाब दिया था और
चार दिनो के भीषण युद्ध के बाद चीन ने हथीयार डाल दिये थे , १५ सितंबर को
भारतीय सेना ने चीनी सैनिको के शव चीन को लौटा दिये थे.
दूसरा युद्ध १ अक्टूबर १९६७ को सिक्किम-तिब्बत सीमा पर सिर्फ़ एक दिनचला था और ये शायद भारतीय सेना की तरफ से दुनिया की सबसे बडी सरजिकल स्ट्राईक थी जब हमारी सेना चीन की सीमा मे 3KM अन्दर तक घुस गई थी, भारत के 70-80 के लगभग जवान शहीद हुये थे वहीं चीन के 400 से ज्यादा सैनिकों को काट दिया गया था, इस युद्ध के हीरो थे राजपुताना रेजिमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजिमेंट के कृष्ण बहादुर देवीप्रसाद, युद्ध में जब भारतीय जवानों के पास गोलियां खत्म हो गयी तो उन्होंने चीनियों को अपनी खुर्पी से ही काट डाला था, कई गोलिया खाने के बाद भी मेजर जोशी ने चार चीनी अफसरों को मार गिराया था बाद में शहीदों को उनकी वीरता के लिए सरकार ने कई सम्मान दिये थे, आख़िरकार प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने सिक्कीम को 1975 मे भारत में मिला लिया था, आजतक चीन, सिक्कीम को भारत का हिस्सा नही मानता है | तीसरा है ऑपरेशन फॉलकॉन-1986 तब भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, तब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के स्ंग्दोंग्चू इलाके में हमला किया था, यह क्षेत्र तवांग के उत्तर में स्थित है तब भी भारत ने चीन के सैनिकों को दौडा- दौडा कर मारा था, भारत से मिली इस करारी हार के बाद चीन ने अपने मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और मिलिट्री रीजन के चीफ को भी पद से हटा दिया था, उस वक्त भारतीय सेना की कमान जनरल सुंदरजी के हाथों में थी | २००८ में भी चीनी सेना हमारे जवानों से इसी जगह उलझी थी |
दूसरा युद्ध १ अक्टूबर १९६७ को सिक्किम-तिब्बत सीमा पर सिर्फ़ एक दिनचला था और ये शायद भारतीय सेना की तरफ से दुनिया की सबसे बडी सरजिकल स्ट्राईक थी जब हमारी सेना चीन की सीमा मे 3KM अन्दर तक घुस गई थी, भारत के 70-80 के लगभग जवान शहीद हुये थे वहीं चीन के 400 से ज्यादा सैनिकों को काट दिया गया था, इस युद्ध के हीरो थे राजपुताना रेजिमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजिमेंट के कृष्ण बहादुर देवीप्रसाद, युद्ध में जब भारतीय जवानों के पास गोलियां खत्म हो गयी तो उन्होंने चीनियों को अपनी खुर्पी से ही काट डाला था, कई गोलिया खाने के बाद भी मेजर जोशी ने चार चीनी अफसरों को मार गिराया था बाद में शहीदों को उनकी वीरता के लिए सरकार ने कई सम्मान दिये थे, आख़िरकार प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने सिक्कीम को 1975 मे भारत में मिला लिया था, आजतक चीन, सिक्कीम को भारत का हिस्सा नही मानता है | तीसरा है ऑपरेशन फॉलकॉन-1986 तब भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, तब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के स्ंग्दोंग्चू इलाके में हमला किया था, यह क्षेत्र तवांग के उत्तर में स्थित है तब भी भारत ने चीन के सैनिकों को दौडा- दौडा कर मारा था, भारत से मिली इस करारी हार के बाद चीन ने अपने मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और मिलिट्री रीजन के चीफ को भी पद से हटा दिया था, उस वक्त भारतीय सेना की कमान जनरल सुंदरजी के हाथों में थी | २००८ में भी चीनी सेना हमारे जवानों से इसी जगह उलझी थी |
आज कई रिपोर्टों
व खोजी खबरों के जरिये ये बताने की कोशिश की जा रही है कि भारत चीन से महज दस
दिनों तक ही युद्ध लड़ सकेगा , क्योंकि
उसके पास उतना ही गोला बारूद है | यह मनोबल तोड़ने व राष्ट्रवाद के जज्बे को निराश
करने वाला है | ऐसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं की अभी हाल ही में हुए युद्ध अभ्यास
भुत सारी जानकारी दे चुके हैं | उससे बड़ी बात ४६ साल पहले इसी सेना ने पाकिस्तान को
धूल चटा कर बांग्लादेश जैसे देश को दुनिया के मानचित्र पर टांक दिया था |
गुजरात में अफ्रीका ..!
अहमदाबाद | ( पीवीएम ) अपना देश बहुत अनोखा है यहाँ बहुत
सी बातें हैं जो हम नहीं जानते है। गुजराती अख़बार में एक खबर पर नजर टिक गई, उस खबर में पढ़े मिनी अफ्रीका में आपको भी ले रही
हूँ। गुजरात के 'गिर' जंगल के बीच एक आदिवासी समुदाय रहता है , जिनके
गांव का नाम 'जंजूर' है ,इस
गांव को गुजरात का अफ्रीका भी कहा जाता है। इनके बारे में
कहा जाता है कि 750 साल पहले पुर्तगाली इन्हें गुलाम बनाकर भारत लाये थे। कुछ
भ्रांतियां भी है ये भी कहा जाता है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब अफ्रीका गए और
वहां की एक महिला से निकाह करके भारत लाये और वो महिला अपने साथ 100 गुलामों को लाई
, बस यहीं से ये समुदाय विकसित हो गया। इनमें से कुछ ने
ईसाई और इस्लाम धर्म को अपनाया। बहुत कम लोगों ने हिन्दू घर्म को अपनाया। गुजरात के
जूनागढ़ को इनका गढ़ माना जाता है।
लेकिन इसके
आलावा ये कर्नाटक, महाराष्ट्र और
आंध्रप्रदेश में भी मिलते है। आंकड़ों के मुताबिक ये 50, 000 की संख्या
में हैं | इनकी जनसँख्या न बढ़ने का कारण ये है कि ये लोग शादी के मामले में बहुत
सख्त होते है सिर्फ अपने समुदाय में ही शादी करते है। ये बिल्कुल
अफ्रीकियों की तरह दिखते है और इनकी सभ्यता और संस्कृति पर अफ्रीकी रीतिरिवाज की
पूरी छाप देखी जा सकती है | गिर घूमने गए
लोग इनका पारम्परिक नृत्य जरूर देखते है। यही है हमारे देश की विविधता और उसमे रचे
बसे हुए लोग।
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