दीपावली रोशनी का पर्व है। श्रीराम की अयोध्या वापसी का जश्न है। लक्ष्मी-गणेश यानी धन और गण को पूजने की परम्परा का पंचमहोत्सव है। आम आदमी से लेकर अमीर आदमी तक अपने बहीखातों के नये स्वरूप की पूजा करता है। पिछले सवा पांच सौ दिनों में आदमी, अमीर आदमी और आदमियों की सरकार के बहीखातों की पड़ताल करें तो उसमंे खुश होने जैसा कोई आंकड़ा दर्ज नहीं दिखाई देता। आदमी की रसोई, कारोबारी जगत व सरकार के लक्ष्य में सिर्फ और सिर्फ दुश्वारियां ही नजर आती हैं। रोटी, दाल, सब्जी जैसे खाद्य उत्पादों, बिजली, दवाई, सफाई, पानी, मकान, परिवहन-रेल, कपड़े से लेकर सभी जरूरी जरूरतों की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी के कारण ‘महंगाई’ शब्द खासा महंगा हो गया है।
आंकड़ों के खेल और थोथी बयानबाजी के सरकारी अश्वमेघ यज्ञ से निकले आश्वासन के घोड़े के सामने अड़कर खड़े हैं, महंगाई, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, कालाधन, झूठ और असुरक्षा। ऐसे में विश्वगुरू का हल्ला या स्वच्छता, शौचालय, बैटी बचाओ, मन की बात, किसान टीवी, योग, मेक इन इंडिया, निर्मल गंगा के क्या मायने? जनधन हो या जीवन-बीमा देनों ने जन की जेब ही काटी है। रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल का सच दुनिया की मंदी से लेकर गली-कूचे तक जाहिर है। दाल, प्याज, टमाटर की बढ़ती कीमतों ने मनरेगा की कमाई तक हड़प ली! फिर भी दिवाली में कहां फूटेंगे पटाखे और कहां होगी धनवर्षा या पांच सौ पच्चीस दिनों की सरकार के इरादों की हकीकत क्या है?
ऽ कालाधन के नाम पर विदेशों से फूटी कौड़ी नहीं आई, उल्टे 61 अरब करोड़ देश के बैंकों के जरिये हांगकांग भेज दिया गया। विदेश में जमा कालेधन के खिलाफ नए कानून के तहत 4147 करोड़ रूपयों का खुलासा हुआ है। 15 लाख हर आदमी के खाते में जमा करने के चुनावी वायदे के नाम पर एसआईटी बनाकर जांच जारी है। जिन नामों का खुलासा किया गया, वे पहले से ही जानकारी में है।
ऽ अरहर की दाल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की आशंका अप्रैल के महीने से ही थी। 80 रू0 किलो बिक रही दाल के लिए हल्ले के साथ सभी दालों के भाव बढ़ने लगे थे। यह कोई पहली बार नहीं था, पिछले 20 बरस के आंकड़े गवाह है। जब दाल 55 रू0 किलो थी तब ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और स्मृति ईरानी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने सड़क पर हल्ला-गुल्ला किया था।
ऽ प्याज-आलू, टमाटर, मौसमी सब्जियां, आटा-चावल, दूध-घी और चाय सहित अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छूती गईं। खुदरा महंगाई दर लगातार आंकड़ों में घटती गई, जबकि बाजार में बढ़ती गई। विपक्ष ने विरोध के स्वर भी मुखर किये, लेकिन बिजली-पानी भी मंहगे होते गये।
ऽ मौसम की मार के शोर के साथ सवां पांच सौ दिनों की सरकार ने बयान दिया देश में अनाज का पर्याप्त भंडार हैं उचित प्रबंधन के नारे लगते रहे, किसान बर्बाद होता रहा, खाद महंगी होती गई। उसकी अपनी बीमा राशि का भुगतान तक नहीं हो पाया, मुआवजे की हकीकत बयान करते दिख जाएंगे सैकड़ों बर्बाद किसान शहरों में मजदूरी करते।
ऽ हर साल लाखों टन अनाज उचित रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इस पर भाजपा ने यूपीए सरकार को उसे गरीबों में बांटने की सलाह दी थी। अब तक उसने खुद अमल नहीं किया?
ऽ शेयर बाजार में निवेशकों के जब 7 लाख करोड़ डूब गये और शंघाई से मुंबई तक बाजारों में सन्नाटा छा गया, तब सरकार बोली, ‘घबराएं नहीं, अर्थ व्यवस्था मजबूत है,’ जबकि 26 मई 2014 को एक डाॅलर की कीमत 58.67 रूपये थी और 24 अगस्त 2015 को यह कीमत 66.65 रूपये हो गई और आज भी 64-65 रूपये के बीच है।
ऽ कारोबारी भरोसा टूटा है, वल्र्ड बैंक की नजर में भारत कारोबार के लिए मुश्किल जगह है। विदेशों में ‘मेक इन इंडिया’ को कोई खास तवज्जों नहीं दी गई है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मई, 15 में ही भारतीय शेयर और बांड बाजारों से करीब 2 अरब डाॅलर की निकासी की थी। देश 68 अरब डाॅलर के विदेशी कर्जें में डूबा है। यह हालात तब है, जब प्रधानमंत्री मोदी 27 देशों से अधिक में अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ एफडीआई में बढ़त हासिल कर रहा है?
ऽ देश के बैंकों की उधारी का एक तिहाई हिस्सा 11 हजार कर्जदारों के पास है। एनपीए लगातार बढ़ रहा है, वसूली का संकट बरकरार है। फिर भी काॅरपारेट घरानों को 64 हजार करोड़ टैक्स छूट दे दी जाती है और 2 लाख करोड़ से अद्दिक का कर्ज एक अकेले घराने को दे दिया जाता है।
ऽ सरकारी योजनाओ के प्रचार में हजारों करोड़ खर्च करके 8 हजार करोड़ जनद्दन योजना में जमा होने या 30 लाख लोगों द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ दिये जाने पर ‘मन की बात’ से लेकर टीवी चैनल तक पर हल्ला है। और भी बहुत कुछ बाकी है गिनाने को, लिखने को अक्षर कम पड़ जायेंगे और दिवाली निकल जायेगी, तो कुछ रोचक बातें भी हो जायें।
ऽ देश में धार्मिंक उन्माद के चलते दंगे-फसाद, हत्याएं, धर्म परिवर्तन और गिरफ्तारियों पर अमेरिकी विदेश विभाग की ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिंक आजादी-2014’ की रिपोर्ट मंे चिंता व्यक्त की गई है।
ऽ गंगा मां को साफ सुथरा रखने के लिए 2013 करोड़ रूपये पिछले बरस प्रस्तावित हुए और उसका जोर-शोर से प्रचार भी लेकिन काम कुछ भी नहीं हुआ। यही हाल रेल, बिजली, पानी में भी है। स्वर्ण बचत योजना जैसा ही हश्र सारी योजनाओं का है।
इसके बावजूद दीपावली के चिराग रौशन होंगे और अरबों रूपयों का लेन-देन भी होगा। अकेला धनतेरस एक लाख करोड़ से अधिक का होगा। लखनऊ जैसा छोटा शहर 150 मर्सडीज, 15 करोड़की शराब सहित तीन अरब की खरीददारी को तैयार बैठा है। अभी गई अक्षय तृतीया जैसे छोटे से पर्व पर 50 करोड़ से अधिक सोने की खरीद हुई थी, बाकी हीरे-जवाहरात, शादी-व्यह (जो उस दिन हुए) व पूजा-पाठ में जो खर्च हुआ वह अलग है। इसी देश में राम जेठमलानी जैसे वकील भी रहते हैं, जो 25 लाख से अधिक फीस वसूलते हैं, तो मुकेश अंबानी भी हैं। इसी भारत भूमि में करोड़ों-करोड़ की जनसंख्या आधे पेट रहने को मजबूर हैं?
आंकड़ों के खेल और थोथी बयानबाजी के सरकारी अश्वमेघ यज्ञ से निकले आश्वासन के घोड़े के सामने अड़कर खड़े हैं, महंगाई, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, कालाधन, झूठ और असुरक्षा। ऐसे में विश्वगुरू का हल्ला या स्वच्छता, शौचालय, बैटी बचाओ, मन की बात, किसान टीवी, योग, मेक इन इंडिया, निर्मल गंगा के क्या मायने? जनधन हो या जीवन-बीमा देनों ने जन की जेब ही काटी है। रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल का सच दुनिया की मंदी से लेकर गली-कूचे तक जाहिर है। दाल, प्याज, टमाटर की बढ़ती कीमतों ने मनरेगा की कमाई तक हड़प ली! फिर भी दिवाली में कहां फूटेंगे पटाखे और कहां होगी धनवर्षा या पांच सौ पच्चीस दिनों की सरकार के इरादों की हकीकत क्या है?
ऽ कालाधन के नाम पर विदेशों से फूटी कौड़ी नहीं आई, उल्टे 61 अरब करोड़ देश के बैंकों के जरिये हांगकांग भेज दिया गया। विदेश में जमा कालेधन के खिलाफ नए कानून के तहत 4147 करोड़ रूपयों का खुलासा हुआ है। 15 लाख हर आदमी के खाते में जमा करने के चुनावी वायदे के नाम पर एसआईटी बनाकर जांच जारी है। जिन नामों का खुलासा किया गया, वे पहले से ही जानकारी में है।
ऽ अरहर की दाल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की आशंका अप्रैल के महीने से ही थी। 80 रू0 किलो बिक रही दाल के लिए हल्ले के साथ सभी दालों के भाव बढ़ने लगे थे। यह कोई पहली बार नहीं था, पिछले 20 बरस के आंकड़े गवाह है। जब दाल 55 रू0 किलो थी तब ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और स्मृति ईरानी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने सड़क पर हल्ला-गुल्ला किया था।
ऽ प्याज-आलू, टमाटर, मौसमी सब्जियां, आटा-चावल, दूध-घी और चाय सहित अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छूती गईं। खुदरा महंगाई दर लगातार आंकड़ों में घटती गई, जबकि बाजार में बढ़ती गई। विपक्ष ने विरोध के स्वर भी मुखर किये, लेकिन बिजली-पानी भी मंहगे होते गये।
ऽ मौसम की मार के शोर के साथ सवां पांच सौ दिनों की सरकार ने बयान दिया देश में अनाज का पर्याप्त भंडार हैं उचित प्रबंधन के नारे लगते रहे, किसान बर्बाद होता रहा, खाद महंगी होती गई। उसकी अपनी बीमा राशि का भुगतान तक नहीं हो पाया, मुआवजे की हकीकत बयान करते दिख जाएंगे सैकड़ों बर्बाद किसान शहरों में मजदूरी करते।
ऽ हर साल लाखों टन अनाज उचित रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इस पर भाजपा ने यूपीए सरकार को उसे गरीबों में बांटने की सलाह दी थी। अब तक उसने खुद अमल नहीं किया?
ऽ शेयर बाजार में निवेशकों के जब 7 लाख करोड़ डूब गये और शंघाई से मुंबई तक बाजारों में सन्नाटा छा गया, तब सरकार बोली, ‘घबराएं नहीं, अर्थ व्यवस्था मजबूत है,’ जबकि 26 मई 2014 को एक डाॅलर की कीमत 58.67 रूपये थी और 24 अगस्त 2015 को यह कीमत 66.65 रूपये हो गई और आज भी 64-65 रूपये के बीच है।
ऽ कारोबारी भरोसा टूटा है, वल्र्ड बैंक की नजर में भारत कारोबार के लिए मुश्किल जगह है। विदेशों में ‘मेक इन इंडिया’ को कोई खास तवज्जों नहीं दी गई है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मई, 15 में ही भारतीय शेयर और बांड बाजारों से करीब 2 अरब डाॅलर की निकासी की थी। देश 68 अरब डाॅलर के विदेशी कर्जें में डूबा है। यह हालात तब है, जब प्रधानमंत्री मोदी 27 देशों से अधिक में अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ एफडीआई में बढ़त हासिल कर रहा है?
ऽ देश के बैंकों की उधारी का एक तिहाई हिस्सा 11 हजार कर्जदारों के पास है। एनपीए लगातार बढ़ रहा है, वसूली का संकट बरकरार है। फिर भी काॅरपारेट घरानों को 64 हजार करोड़ टैक्स छूट दे दी जाती है और 2 लाख करोड़ से अद्दिक का कर्ज एक अकेले घराने को दे दिया जाता है।
ऽ सरकारी योजनाओ के प्रचार में हजारों करोड़ खर्च करके 8 हजार करोड़ जनद्दन योजना में जमा होने या 30 लाख लोगों द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ दिये जाने पर ‘मन की बात’ से लेकर टीवी चैनल तक पर हल्ला है। और भी बहुत कुछ बाकी है गिनाने को, लिखने को अक्षर कम पड़ जायेंगे और दिवाली निकल जायेगी, तो कुछ रोचक बातें भी हो जायें।
ऽ देश में धार्मिंक उन्माद के चलते दंगे-फसाद, हत्याएं, धर्म परिवर्तन और गिरफ्तारियों पर अमेरिकी विदेश विभाग की ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिंक आजादी-2014’ की रिपोर्ट मंे चिंता व्यक्त की गई है।
ऽ गंगा मां को साफ सुथरा रखने के लिए 2013 करोड़ रूपये पिछले बरस प्रस्तावित हुए और उसका जोर-शोर से प्रचार भी लेकिन काम कुछ भी नहीं हुआ। यही हाल रेल, बिजली, पानी में भी है। स्वर्ण बचत योजना जैसा ही हश्र सारी योजनाओं का है।
इसके बावजूद दीपावली के चिराग रौशन होंगे और अरबों रूपयों का लेन-देन भी होगा। अकेला धनतेरस एक लाख करोड़ से अधिक का होगा। लखनऊ जैसा छोटा शहर 150 मर्सडीज, 15 करोड़की शराब सहित तीन अरब की खरीददारी को तैयार बैठा है। अभी गई अक्षय तृतीया जैसे छोटे से पर्व पर 50 करोड़ से अधिक सोने की खरीद हुई थी, बाकी हीरे-जवाहरात, शादी-व्यह (जो उस दिन हुए) व पूजा-पाठ में जो खर्च हुआ वह अलग है। इसी देश में राम जेठमलानी जैसे वकील भी रहते हैं, जो 25 लाख से अधिक फीस वसूलते हैं, तो मुकेश अंबानी भी हैं। इसी भारत भूमि में करोड़ों-करोड़ की जनसंख्या आधे पेट रहने को मजबूर हैं?
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