देश भर में बकरीद के मौके पर कुर्बानी के नाम पर करोड़ों रूपया खर्च करके करोड़ों बकरे, भेड़ें, भैंसे, ऊँट और गाय-बैल कत्ल कर दिये गये। हालांकि पिछले सालों से इस साल खासी कमी आई है। लखनऊ व आसपास तकरीबन 80 हजार बकरे 4 हजार भैंसे काटे जाने का अनुमान है। मुंबई व आस-पास 2 लाख से अधिक बकरे, 7 हजार भैंसे काटे जाने की खबर है। राजधानी दिल्ली व आस-पास 1.5 लाख से अधक बकरे, 5 हजार भैंसे काटे जाने के कयास हैं। ऊँट और गाय-बैल की कुर्बानी चोरी छिपे दी जाती है। पिछले बरस लखनऊ के अमराई गांव में ऊँट की सार्वजनिक स्थल पर कुर्बानी दिये जाने को लेकर खासा हंगामा हुआ था। ऐसा ही हंगामा मुंबई में पिछले बरस मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की इंटरवेंशन अपील पर बाम्बे हाईकोर्ट द्वारा बकरीद से पहले 12 हजार बैलों के वध पर रोक लगाने के दौरान हुआ था। इस साल भी तीन प्रांतीय सरकारों के द्वारा मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाये जाने को लेकर खासा हंगामा हुआ था। गौरतलब है, मुंबई के भिंडी बाजार में व लखनऊ, दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं, जहाँ खुलेआम ठेलों, गुमटियों पर मांस काटकर फुटकर बेचा जाता है।
लखनऊ में 2 लाख, दिल्ली में 64 लाख के बकरे भी बिकने आये थे। इन बकरों में दिल्ली के बकरे की खासियत यह थी कि उसके शरीर पर ‘अल्लाह हू’ और 786 का निशान बना था। पुरानी दिल्ली के कबूतर बाजार में इस बकरे को बेचने आये छोटे अली के अलावा रियासत की भेड़ की कीमत भी एक लाख थी, जिसकी पीठ पर चांद बना था। इसी तरह लखनऊ की बकरा-मंडी में रिजवान के बकरे के पेट पर अल्लाह लिखा था जिसकी कीमत 2 लाख थी और माथे पर चांद बने बकरे की कीमत थी 1.25 लाख। आमतौर पर 9 हजार से 60 हजार रूपये की कीमत के बकरे बाजार में थे। घरों में पालकर कुर्बान किये गये जानवरों को अनुमान लगाना नमुमकिन है। ये आंकड़े अधिकृत मंडियों और कत्लखानों से सामने आये हैं। यूं भी नेशनल सैम्पल सर्वे 2014 के आंकड़े गवाह हैं कि मांसाहार खानेवाले प्रदेशों में उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़े राज्यों में आता है। देश में पहला नंबर लक्षद्वीप का है, केरल दूसरे नंबर पर, अंडमान और निकोबारद्वीप तीसरे, गोवा चैथे, त्रिपुरा पांचवंे नंबर पर है। वहीं मांसाहारियों की पहली पसंद मछली व दूसरे पर मुर्गे का नंबर आता है। बकरे का गोश्त तीसरे नंबर पर, भैंस, गाय, बैल, भेड़ का मांस चैथे नंबर की पसंद है। भारत के समुद्रतटीय इलाकों में मछली आसानी से मिल जाती है, इसीलिए उसकी खपत भी अधिक है। मुंबई में मांस के व्यापार में लगे एक कारोबारी के मुताबिक बकरे/मुर्गेे का गोश्त अरब मुल्कों को खासी तादाद में निर्यात होता है। हर रोज आधी रात से मुंबई से ही कई उड़ाने केवल गोश्त लेकर अरब मुल्कों के लिए उड़ती हैं।
मांसाहार के मामले में हिन्दू भी पीछे नहीं है आज भी चोरी-छिपे जानवरों की बलि दिये जाने की खबरें आती रहती हैं, जबकि न्यायालय ने इस पर पूर्ण प्रतिबंद्द लगा रखा है। हिमांचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरियार क्षेत्र के लगभग हर गांव में माघी पर्व जनवरी के महीने में मनाया जाता है, हालांकि शिलाई, रेणुका और पच्छाड़ विधानसभा क्षेत्र के लोग इस परंपरा से अधिक जुड़े हैं। इस त्योहार पर बकरे की बलि दिये जाने की प्रथा है। इसी साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रतिबंध के बावजूद हजारों बकरों की बलि दी गई थी। एक अनुमान के अनुसार 40-50 हजार बकरों की बलि दी गयी थी, इसकी कीमत 40 करोड़ लगभग आंकी गई थी।
परंपरानुसार जिस परिवार का बकरा होता है, उसे उस परिवार के लोग बलि नहीं चढ़ाते बल्कि कोई दूसरे परिवार का व्यक्ति चढ़ाता हैं दरअसल यहां परिवारों में बकरा पालने की प्रथा है। गरीब से गरीब परिवार भी कर्ज लेकर इसका पालन करता है या खरीदता है। प्रशासन ने अपनी ओर से सख्ती बरतने के इंतजाम भी किये थे।
इसी तरह नवरात्रों में देश भर में दुर्गा काली पूजा के नाम पर यह सिलसिला चोरी छिपे जारी है। जहां मांसाहार या गोमांस को लेकर तमाम हल्ला-गुल्ला है, वहीं कृषि को लेकर आज भी हममें जागरूकता नहीं है। हां संवेदनशीलता में कोई भी पीछे नहीं, आगरा से खबर आई है कि वहां प्रबुद्ध मुसलमानों के एक संगठन ने स्थानीय गौशाला जाकर गायों को चारा खिलाया और गौवध का पुरजोर विरोध करने की शपथ भी ली। उनका कहना है, इस्लाम में गाय का मांस खाना मना है, वह हमारी पालक है। संगठन के शाहिद परवेज, मुंशी खान के मुताबिक गाय की सेवा को ही वे लोग बकरीद की कुर्बांनी मानते हैं।
लखनऊ में 2 लाख, दिल्ली में 64 लाख के बकरे भी बिकने आये थे। इन बकरों में दिल्ली के बकरे की खासियत यह थी कि उसके शरीर पर ‘अल्लाह हू’ और 786 का निशान बना था। पुरानी दिल्ली के कबूतर बाजार में इस बकरे को बेचने आये छोटे अली के अलावा रियासत की भेड़ की कीमत भी एक लाख थी, जिसकी पीठ पर चांद बना था। इसी तरह लखनऊ की बकरा-मंडी में रिजवान के बकरे के पेट पर अल्लाह लिखा था जिसकी कीमत 2 लाख थी और माथे पर चांद बने बकरे की कीमत थी 1.25 लाख। आमतौर पर 9 हजार से 60 हजार रूपये की कीमत के बकरे बाजार में थे। घरों में पालकर कुर्बान किये गये जानवरों को अनुमान लगाना नमुमकिन है। ये आंकड़े अधिकृत मंडियों और कत्लखानों से सामने आये हैं। यूं भी नेशनल सैम्पल सर्वे 2014 के आंकड़े गवाह हैं कि मांसाहार खानेवाले प्रदेशों में उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़े राज्यों में आता है। देश में पहला नंबर लक्षद्वीप का है, केरल दूसरे नंबर पर, अंडमान और निकोबारद्वीप तीसरे, गोवा चैथे, त्रिपुरा पांचवंे नंबर पर है। वहीं मांसाहारियों की पहली पसंद मछली व दूसरे पर मुर्गे का नंबर आता है। बकरे का गोश्त तीसरे नंबर पर, भैंस, गाय, बैल, भेड़ का मांस चैथे नंबर की पसंद है। भारत के समुद्रतटीय इलाकों में मछली आसानी से मिल जाती है, इसीलिए उसकी खपत भी अधिक है। मुंबई में मांस के व्यापार में लगे एक कारोबारी के मुताबिक बकरे/मुर्गेे का गोश्त अरब मुल्कों को खासी तादाद में निर्यात होता है। हर रोज आधी रात से मुंबई से ही कई उड़ाने केवल गोश्त लेकर अरब मुल्कों के लिए उड़ती हैं।
मांसाहार के मामले में हिन्दू भी पीछे नहीं है आज भी चोरी-छिपे जानवरों की बलि दिये जाने की खबरें आती रहती हैं, जबकि न्यायालय ने इस पर पूर्ण प्रतिबंद्द लगा रखा है। हिमांचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरियार क्षेत्र के लगभग हर गांव में माघी पर्व जनवरी के महीने में मनाया जाता है, हालांकि शिलाई, रेणुका और पच्छाड़ विधानसभा क्षेत्र के लोग इस परंपरा से अधिक जुड़े हैं। इस त्योहार पर बकरे की बलि दिये जाने की प्रथा है। इसी साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रतिबंध के बावजूद हजारों बकरों की बलि दी गई थी। एक अनुमान के अनुसार 40-50 हजार बकरों की बलि दी गयी थी, इसकी कीमत 40 करोड़ लगभग आंकी गई थी।
परंपरानुसार जिस परिवार का बकरा होता है, उसे उस परिवार के लोग बलि नहीं चढ़ाते बल्कि कोई दूसरे परिवार का व्यक्ति चढ़ाता हैं दरअसल यहां परिवारों में बकरा पालने की प्रथा है। गरीब से गरीब परिवार भी कर्ज लेकर इसका पालन करता है या खरीदता है। प्रशासन ने अपनी ओर से सख्ती बरतने के इंतजाम भी किये थे।
इसी तरह नवरात्रों में देश भर में दुर्गा काली पूजा के नाम पर यह सिलसिला चोरी छिपे जारी है। जहां मांसाहार या गोमांस को लेकर तमाम हल्ला-गुल्ला है, वहीं कृषि को लेकर आज भी हममें जागरूकता नहीं है। हां संवेदनशीलता में कोई भी पीछे नहीं, आगरा से खबर आई है कि वहां प्रबुद्ध मुसलमानों के एक संगठन ने स्थानीय गौशाला जाकर गायों को चारा खिलाया और गौवध का पुरजोर विरोध करने की शपथ भी ली। उनका कहना है, इस्लाम में गाय का मांस खाना मना है, वह हमारी पालक है। संगठन के शाहिद परवेज, मुंशी खान के मुताबिक गाय की सेवा को ही वे लोग बकरीद की कुर्बांनी मानते हैं।
No comments:
Post a Comment