लखनऊ। राजधानी अंधेरे में है। गली-कूचे नाबीना हैं। समूचा सूबा पांच जिलों को छोड़कर अघोषित ‘ब्लैक आउट’ का शिकार है। अस्पतालों में मरीज बेदम हैं, तो शहर दर शहर उद्योग-व्यापार बेहाल। बिजली चोरी, लाइनलाॅस और दूसरों के सिर पर अपनी बेईमानी दे मारने का तमाशा दिखाकर बिजलीकर्मी, सरकारी तंत्र अपने घरों, दफ्तरों को रौशन किये हैं। विधानसभा तक में ‘बिजलीगुल’ की गूंज के बाद भी विधानसभा मार्ग अंद्देरे-उजाले की लगातार जंग से जूझ रहा है। आदमी गरमी, अंधेरे की दोहरी मार से चीखता-चिल्लाता सड़कों पर पुलिसया लाठी की मार खाकर घायल है। उस पर तुर्रा यह कि कानून-व्यवस्था बिगाड़ने के नाम पर गरीबों पर मुकदमें लिखाये जा रहे हैं और बिजली की दरों को बढ़ाने की पेशबंदी जारी है।
शहरी हो या ग्रामीण आबादी ‘लो-वोल्टेज’ की बदइंतजामी के चलते रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले बिजली के उपकरणों को असमय खराब होते देखने को मजबूर है। सजावटी बिजली पर पाबंदी, बाजारों की समय पूर्व बंदी और लोड बढ़वाने के आदेश पर बेइज्जत होने के बाद भी ऊर्जा विभाग की बिजली चोरी की तोतारटंत जारी है। सौ-पचास कटिया उतारकर हल्ला मचाने वाले बिजली हाकिमों की मेहरबानी से राजधानी से लेकर सूबे भर में बिजली चोरी कराई जाती है। सूबे के सीमान्त शहरों से दूसरे प्रान्त के सीमान्त शहरों के उद्योगों/उपभोक्ताओं को बिजली चोरी करायी जा रही है। वह भी तब जब अपने सूबे का 63 फीसदी भाग पहले ही अंधेरे में डूबा है।
इससे भी खतरनाक चोरी पूरी सीनाजोरी से या यूं कहिए कानून को अपने माफिक बनाकर की जा रही है। आम घरेलू उपभोक्ता को 3 रूपये प्रति यूनिट व अन्य चार्ज सहित 4 रू0 व वाणिज्यिक संस्थानों को 4.95 रू0 प्रति यूनिट व अन्य चार्ज सहित 6.00 रू0 में दी जाती हैं। वहीं बिजली विभाग के कर्मचारियों और पेंशनरों को बगैर मीटर 65 रू0 से 340 रू0 प्रतिमाह में बेहिसाब बिजली जलाने की छूट हैं। एसी लगाने के लिए एसई/सीई ही अधिकृत हैं और उनसे 450 रू0 प्रति एसी वसूला जाता है। हकीकत में बिजली विभाग के अदना से अदना कर्मचारी के घरों में बिजली के हीटर, ए.सी. व अन्य बिजली के उपकरण धड़ल्ले से उपयोग किये जाते हैं। इन कर्मचारियों के लिए लोड कोई समस्या नहीं है, न ही कोई मानक तय है। इन्हीं कर्मचारियों में हजारों ऐसे हैं, जिनके घरों में बाकायदा ब्यूटी पार्लर, जनरल स्टोर, इलेक्ट्रिक वक्र्स से लेकर छोटे-मोटे उद्योग चल रहे हैं। इनकी जांच के लिए आज तक कोई भी हिम्मत नहीं जुटा सका? यदि एक बार इन बिजलीवालों के यहां अचानक छापे पड़ जायें तो करोड़ों रूपए की बिजली चोरी का खुलासा हो सकता है। यहां एक और सवाल उठता है कि बिजली कर्मचारियों/पेंशनरों को लगभग मुफ्त में बिजली क्यों दी जाती है? किस कानून के तहत उन्हें बगैर मीटर बिजली जलाने की छूट है? अगर कोई कानून या नियमावली है, तो उसे बदलना चाहिए। क्योंकि भारतीय संविधान में भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। उससे भी बड़ा सवाल पाॅवर कारपोरेशन के कर्मठ अध्यक्ष से है कि क्या वे बिजली कर्मचारियों/पेंशनरों के घरों पर छापा मारकर बिजली चोरी रोकने का साहसिक कदम उठायेंगे?
दो महीने बिजलीकर्मी और उपभोक्ता लड़ते-भिड़ते रहे, नतीजा सिफर रहा। मीडिया के लोगों ने संवाद कायम करने की कोशिश की जहां झूठ और उपदेश के सहारे हर कोई दूसरे के सिर पर चपत मारता दिखता रहा। वहीं सरकार हर साल बजट बढ़ा कर इसका हल तलाशती है। करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं फिर भी गरमी आते हर साल बिजली शहर/गांव छोड़कर फरार हो जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं यह एक सोंची समझी साजिश है, ईन्वर्टर व जेनरेटर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए। जो भी हो क्या कोई ईमानदार कोशिश होगी? उपभोक्ता-अफसर अकड़ फूं की जगह नागरिक जिम्मेदारी उठाने की पहल होगी? या उच्च न्यायालय इसी खबर को जनहित में मानकर कोई हस्तक्षेप करेगा?
शहरी हो या ग्रामीण आबादी ‘लो-वोल्टेज’ की बदइंतजामी के चलते रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले बिजली के उपकरणों को असमय खराब होते देखने को मजबूर है। सजावटी बिजली पर पाबंदी, बाजारों की समय पूर्व बंदी और लोड बढ़वाने के आदेश पर बेइज्जत होने के बाद भी ऊर्जा विभाग की बिजली चोरी की तोतारटंत जारी है। सौ-पचास कटिया उतारकर हल्ला मचाने वाले बिजली हाकिमों की मेहरबानी से राजधानी से लेकर सूबे भर में बिजली चोरी कराई जाती है। सूबे के सीमान्त शहरों से दूसरे प्रान्त के सीमान्त शहरों के उद्योगों/उपभोक्ताओं को बिजली चोरी करायी जा रही है। वह भी तब जब अपने सूबे का 63 फीसदी भाग पहले ही अंधेरे में डूबा है।
इससे भी खतरनाक चोरी पूरी सीनाजोरी से या यूं कहिए कानून को अपने माफिक बनाकर की जा रही है। आम घरेलू उपभोक्ता को 3 रूपये प्रति यूनिट व अन्य चार्ज सहित 4 रू0 व वाणिज्यिक संस्थानों को 4.95 रू0 प्रति यूनिट व अन्य चार्ज सहित 6.00 रू0 में दी जाती हैं। वहीं बिजली विभाग के कर्मचारियों और पेंशनरों को बगैर मीटर 65 रू0 से 340 रू0 प्रतिमाह में बेहिसाब बिजली जलाने की छूट हैं। एसी लगाने के लिए एसई/सीई ही अधिकृत हैं और उनसे 450 रू0 प्रति एसी वसूला जाता है। हकीकत में बिजली विभाग के अदना से अदना कर्मचारी के घरों में बिजली के हीटर, ए.सी. व अन्य बिजली के उपकरण धड़ल्ले से उपयोग किये जाते हैं। इन कर्मचारियों के लिए लोड कोई समस्या नहीं है, न ही कोई मानक तय है। इन्हीं कर्मचारियों में हजारों ऐसे हैं, जिनके घरों में बाकायदा ब्यूटी पार्लर, जनरल स्टोर, इलेक्ट्रिक वक्र्स से लेकर छोटे-मोटे उद्योग चल रहे हैं। इनकी जांच के लिए आज तक कोई भी हिम्मत नहीं जुटा सका? यदि एक बार इन बिजलीवालों के यहां अचानक छापे पड़ जायें तो करोड़ों रूपए की बिजली चोरी का खुलासा हो सकता है। यहां एक और सवाल उठता है कि बिजली कर्मचारियों/पेंशनरों को लगभग मुफ्त में बिजली क्यों दी जाती है? किस कानून के तहत उन्हें बगैर मीटर बिजली जलाने की छूट है? अगर कोई कानून या नियमावली है, तो उसे बदलना चाहिए। क्योंकि भारतीय संविधान में भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। उससे भी बड़ा सवाल पाॅवर कारपोरेशन के कर्मठ अध्यक्ष से है कि क्या वे बिजली कर्मचारियों/पेंशनरों के घरों पर छापा मारकर बिजली चोरी रोकने का साहसिक कदम उठायेंगे?
दो महीने बिजलीकर्मी और उपभोक्ता लड़ते-भिड़ते रहे, नतीजा सिफर रहा। मीडिया के लोगों ने संवाद कायम करने की कोशिश की जहां झूठ और उपदेश के सहारे हर कोई दूसरे के सिर पर चपत मारता दिखता रहा। वहीं सरकार हर साल बजट बढ़ा कर इसका हल तलाशती है। करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं फिर भी गरमी आते हर साल बिजली शहर/गांव छोड़कर फरार हो जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं यह एक सोंची समझी साजिश है, ईन्वर्टर व जेनरेटर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए। जो भी हो क्या कोई ईमानदार कोशिश होगी? उपभोक्ता-अफसर अकड़ फूं की जगह नागरिक जिम्मेदारी उठाने की पहल होगी? या उच्च न्यायालय इसी खबर को जनहित में मानकर कोई हस्तक्षेप करेगा?
No comments:
Post a Comment