पेयजल के प्रदूषण से एक बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होती रहती है, इसलिए पेयजल को लेकर आम लोगों में चेतना भरने की भारी जरूरत है। प्रदूषित पानी के पीने से केवल डायरिया, डिसेंट्री, टायफायड, हैजा, पीलिया ही नहीं हो रहे हैं, इससे बाल भी झड़ रहे हैं, दांत भी खराब हो रहे हैं। 2010 में हुए सर्वे में देश के सभी मेट्रोपोलिटन सिटी के पानी को रोग फैलाने वाला पाया गया। इसलिए सुपरबग पर माथा पच्ची करने के साथ-साथ पानी को शुद्ध करने के आसान तरीकों पर ध्यान दें तो बेहतर होगा। सुपरबग उस बैक्टीरिया को कहते हैं जिस पर सभी एंटीबायोटिक निष्प्रभावी हो जाते हैं।
पूजा -अर्चना में जल - आचमन सभी प्रकार के कर्माें अर्थात सद्कर्म एवं निष्काम कर्म का अति महत्वपूर्ण अंग है। धार्मिक और अरोग्यशास्त्र की दृष्टि से आचमन का असाधारण महत्व है। एक साथ लोटा या गिलास से गटागट पानी पीने की अपेक्षा चम्मच से थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहने से वह व्याधिनाशक तथा लाभदायक होता है। ‘मनुस्मृति’ में भी कहा गया है, सोकर उठने पर, भूख लगने पर, भोजन के बाद, छींक आने पर, झूठ बोलने पर व अध्ययन करने के बाद आचमन अवश्य करें। यह आचमन यदि अशुद्ध पानी से किया गया तो पाचनतंत्र को बिगाड़ देगा। इसलिए पूजा-अर्चना में भी उबले हुए या फिल्टर्ड पानी का ही इस्तेमाल करें।
सबसे पहले शुरूआत चरणामृत से करें। मंदिरों में मुक्त हस्त से दिया जाने वाला यह ‘आध्यात्मिक’ पानी फिल्टर से छना हुआ है या नहीं, यह भी पता करें। अगर नहीं है तो श्रद्धा अपनी जगह है। संक्रमित चरणामृत भी पेट में गया तो पूजा के पहले फल के रूप में ये बीमारियां भी मिलेंगी। हनुमान चालीसा के हर छंद में सेहत के छिपे राज का दर्शन करनेवाले, पूजा और अध्यात्म को दवा से कम नहीं समझने वाले हार्ट केयर फाउंडेशन आॅफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डाॅ. के.के. अग्रवाल अगर यह बात कह रहे हों तो फिर स्थिति की गंभीरता समझनी चाहिए। निश्चित रूप से उनकी इस बात को धर्मविरूद्ध नहीं कह सकते। लाखों भक्तों को चरणामृत बांटने वाले मंदिर प्रबंधन भी अगर इस बात की गंभीरता को समझें तो फिर क्या कहने। सेहत के लिए ही नहीं, शास्त्रों के अनुसार पूजा में भी शुद्धता का उतना ही महत्व बताया गया हैं। पूजा में अशुद्धि हो जाए तो देवता भी कुपित हो जाते हैं। पूजा में शुद्धता की पूरी अवधारणा सेहत की ही अवधारणा है। घर में तो पानी को उबाल कर पी सकते हैं। लेकिन कोई चरणामृत उबाल कर पीने की सलाह दे तो हास्यास्पद ही लगेगा। पानी को फिल्टर करके या उबाल कर ही पीएं।
गोलगप्पा (उसे फोकचा या पानी पूरी भी कहते हैं) का पानी भी खतरे से खाली नहीं हैं। खासकर महिलाएं तो फोकचा पानी ऐसे ही पीती हैं जैसे वह अमृत ही हो। सच पूछिए तो पानी पूरी मुंह से पानी गिराने वाली वह ‘बला’ है जिससे मुंह मोड़ लेना अच्छे-अच्छों के बूते की बात नहीं होती। लजीज पानी में फोकचे वाले का बार-बार डूबता हुआ हांथ वहां कौन से और कितने बैक्टीरिया छोड़ रहा है, इस पर किसी की नजर कहां पड़ती है। प्रदूषित पानी के पेट में जाने का यह एक और खतरनाक स्रोत है। वह है गर्मी में रोज लाखों लोगों के गले को तर करने के काम में आने वाले बर्फ की बड़ी-बड़ी सिल्ली। पता नहीं किस तरह के पानी से बनाई जाती हैं ये सिल्लियां। बर्फ की इन सिल्लियों पर तो तत्काल रोक लगनी चाहिए।
सुरक्षित है फिल्टर्ड वाॅटर पीना किंतु....!
शुरू-शुरू में जो केंडल वाला फिल्टर होता था वह पानी को सिर्फ छान सकता था। एकदम शुद्ध नहीं बना पाता था लेकिन अब जो अत्याधुनिक फिल्टर हैं उसे ‘प्यूरीफायर’ कहते हैं यानी उससे होकर जो पानी निकलता है वह पूरी तरह से शुद्ध होता हैं। यानी पानी तमाम बैक्टीरिया, वायरस और अन्य अशुद्धियों से मुक्त। ‘आरओ’ वाले फिल्टर भी बेहद प्रभावी माने जा रहे हैं। जल जनित बीमारियों के सभी विशेषज्ञों ने भी कहा है कि स्टैंडर्ड प्यूरीफायर हो तो उसका पानी एकदम सुरक्षित है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में दोयम दर्जे के फिल्टर भी मिल रहे हैं, उसके पानी के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं है।
कैसे अशुद्ध होते हैं पेयजल:
पहले पानी जब अधिक हो जाता है तो वह पेयजल को प्रदूषित करने का कारण बनता है। जैसे बाढ़ आ गई, खूब बारिश हो गई। शहर के नाले भर गए। ऐेसे में स्वच्छ पानी के पाइप में लीकेज के जरिए प्रदूषित पानी आ जाता है। सीवेज का पानी भी पेयजल में मिल जाता हैं। ये प्रदूषित पानी कुंए में जाकर मिल जाता है। यदि पीने के पानी में चूहें ने पेशाब कर दिया तो लेप्टोसपायरिसिस बीमारी फैलने का खतरा है।
पानी को उबालना जरूरी:
सवाल है जिनके पास कीमती फिल्टर खरीदने के पैसे न हों, वे क्या करें? उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं। एक आग है जो सबके पास है। वह पानी के अंदर के रोगों के सभी कीटाणुओं का यूं नाश कर देगा बशर्तें आप पीने वाले पानी को अच्छी तरह उबाल लें सिर्फ गर्म कर देने से काम नहीं चलेगा। डाॅक्टरों का तो यहां तक कहना है कि कचरे के पानी को भी अच्छी तरह उबाल कर फिर ठंडा कर पीएं तो कोई नुकसान नहीं होगा। सीधा फंडा है फिल्टर वाटर नहीं है तो उसे उबालों तभी पीयों। उबालने का साधन उपलब्ध न हो तो पानी नहीं पीना बेहतर है। पानी से भीगी सब्जी को कभी कच्ची नहीं खाएं, उसे उबालकर, पकाकर ही खाएं। चाय-काफी भी गर्म ही पीनी चाहिए। बाजार में मिलने वाले गन्ने के रस या कटे फल में भी पानी है, उनसे भी परहेज करें।
क्या हैं जल जनित बीमारियां:
डायरिया, हैजा (काॅलरा), पेचिस (डिसेंट्री) पीलिया (हेपेटाइटिस ए एवं ई), टायफाइड, त्वचा रोग, बाल झड़ने का रोग, दांत खराब होने का रोग, पेट में पनपेंगे अमीबा एवं गियार्डिया जैसे कीटाणु, रोगों से लड़ने की क्षमता घटेगी।
(प्रियंका ब्लाग स्पाट से)