Tuesday, August 14, 2018

अकेले चले और कारवां बनता चला गया

जज़्बा-ए-जोहद-ए-मुसलसल है बिना-ए-जिंदगी ये गया तो सारा जीने का हुनर ले जाएगा ! पंडित हरिशंकर तिवारी की बात जब भी चलती है तब मेरे जेहन में जमुना प्रसाद राही की उक्त लाइन याद आ जाती है | दुनियां के चलन का दौर हमने भी खूब देखा है | लोगों को अश्क से फर्स पर गिरते देखा है | थोड़ी सी चाहत में जमीर को जाते देखा है | नफा-नुकसान में वायदों के मायने बदलते देखा है, बहुत कुछ देखा अगर नहीं देखा, तो पंडित हरिशंकर तिवारी का कम होता जज्बा | दौर जो भी हो, उम्र जो भी हो, परिस्थितियाँ प्रतिकूल क्यों न हो पर पंडित का जोश हमेशा जवान रहा | यह हुनर ही तिवारी जी को राजनितिक जमात में दुसरे से अलग करती है | पूर्वी उत्तर प्रदेश, बर्चस्व की राजनीती के लिये जाना जाता है पर इधर राजनीती का मिजाज बदला है, लोगों की मनोदशा बदली है पर तिवारी का दबदबा नहीं बदला है | बीते विधानसभा चुनाव में योगी जी का पशीना चिल्लूपार के लिए, पैर से सर चढ़ा था तब भी तिवारी के दम का हवा नहीं निकाल पाये थे अलबत्ता खुंदक में आकर हाते पर पुलिसिया कार्यवाही तो कराये पर हक़ आया तो जलालत जिसकी छाप लोकसभा के उपचुनाव में भी दिखा | आप कहेंगे की बात तिवारी जी के जन्मदिन की है और चरचा राजनीति की करने लगा पर सच तो यह है कि इसके बिना तवारी जी की शख्सियत को उकेरा कैसे जाये ? पंडित हरिशंकर तिवारी के शख्सियत के दो पहलू है एक निपट किसान की जो खेत खलिहान का जायजा लेने में सकुन पाता है या फिर गौशाला में गायों के सहलाने-दुलारने में आनंदित होता है | दूसरा पहलू धाकड़ राजनीति करने की है जो अपने पर आये तो राजनीति में नफा-नुकसान का गणित बना-बिगाड़ दे | राजनीति में ऐसा तेवर कम देखने को मिलते हैं जो हम पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत गोरखपुर में अस्सी के दशक से देखते आ रहे हैं | पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनितिक मेह, गोरखपुर है जहाँ 80 के दशक से तिवारी वनाम अन्य के वर्चश्व कायम करने की लड़ाईयां लड़ी गई | अन्य में कुछ का अपना दम था पर कुछ को विरासत में मिला धन-जन की ताकत रही है पर लोगों में तिवारी की अपनी पैठ कहें या राजनितिक हुनर कह लें पीठ दिखाने का मौका नहीं आया | आज भी यहाँ राजनीति में आधिपत्य के दो खंभ हैं एक, जिसने अकेला चला और कारवां बनाया दूसरा वो जिसने आस्था के बहाने बनी जमात में शामिल हो गया | एक, जिसने अकेला दम राजनीति की बाजीगरी को पछाड़ा तो दूसरा संयोग वश तख्त्नाशिं हुआ | एक, बिना तख्त बादशाह है तो दूसरा तख़्त के बाद भी परेशां है | यह जीने का हुनर है या जिगर का दम ? यह तो आप तय करें मेरी तो जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें हैं | भारत चतुर्वेदी

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