Sunday, January 13, 2013

‘मनमोहन’ रहा ईसा का साल 2012


ईसा के साल 2012 को नमस्कार। समय अखण्ड सत्ता है। भारत में साल, मास ग्रहों की गति से समझे जाते हैं। लेकिन अब जमाना कालगणना नहीं ‘माल गणना’ का है। इस लिहाज से 2012 माल का साल रहा। जिसने माल मारा, उसी का साल। बाकी अकाल। कोई कह सकता है कि यार कविता कर रहे हो क्या? मैं उत्तर दूंगा भारत के लोकजीवन में यह विकट गद्यकाल है। कविता भी गद्य हो रही है। आंकड़ों का खेल है। प्रीति, प्रेम, गरीबी की रेखा के नीचे है। इसके ऊपर का सारा कुछ मनमोहन है। यहां एक नया समाज बना है। यह समाज मनमोहन है। कला कौषल हो रही है। 2012 का कैलेन्डर तारीखों के हिसाब से बेषक खलास हो गया लेकिन हर माह के पन्ने की तस्वीरें एकदम बिन्दास। तरोताजा। कांटीनुअस टेन्स। ‘डर्टी पिक्चर’ का नकद मजा। मित्र हैपी न्यू इयर बोल रहे। नेटवर्क बिजी है। सोचता हूं कि जनवरी का नववर्ष भी कोई नया साल है। कड़ाके की ठंढ। जाड़ा भी कोहरे की रजाई में है। सूर्य देव का ताप भी कम मिलता है लेकिन हमारे आपके मुंह से भी भाप निकलती है। अंग्रेजी कैलेन्डर महीनों की गिनती में भी झोल है। लैटिन/अंग्रेजी में सितम्बर का मतलब सांतवा, अक्टूबर का आठवां, नवम्बर का नवां और दिसम्बर का अर्थ दसवां होता है। इल्लत यह है कि अंग्रेजी के कैलेन्डर मंे सितम्बर नवां, अक्टूबर दसवां, नवम्बर ग्यारहवां और दिसम्बर बारहवां है। लेकिन भारत के अनेक लोगो को अंग्रेजी के ही चलन ठीक लगते हैं। अंग्रेजी सभ्यता से प्रभावित मित्रों को डांटती अम्मा नहीं ‘मैम’ सुहाती हैं। उन्हें चाची से चिढ़ है और आन्टी के प्रति आदरभाव। अम्मा चाची मर्यादा पालन करती हैं, आन्टी में चाची का वात्सल्य कहां?
हम ठहरे देहाती। गंवाई, गांव वाले गंवार। हमारे गांव देहात में नया साल आता है चैत में। चैत्र वाले नववर्ष में मधुगन्ध, मधुरस और मधु छन्द हैं। तब हवाएं भी हलकट जवान होती हैं। खेतखलिहान भी गीत गाते हैं। मधुरस उफनाता है। प्रकष्ति के अंग उमहते हैं, अंगिया चरकती है। जनवरी वाले ‘न्यू इयर’ के पहले हैप्पी लगाए बिना काम नहीं चलता। उधर से मित्रों ने हैप्पी बोला, हमने इधर से। न वे हैप्पी और न हम। कड़ाके की ठंढ मंे बेमौसम कहीं क्या कोई हैप्पी हो सकता है? हम लोग हैप्पी न्यू इयर नहीं बोलते, नववर्ष के स्वागत में होली है - होली है गाकर एक दूसरे पर रंग उड़ेलते हैं। नववर्ष यह रंगबाजी देखता है, ठिठकता है, होली के ठीक 15 दिन बाद आता है नवसम्वत्। ईसा के साल 2012 और 2013 में क्या फर्क? यह सब कैलेण्डर के साल हैं। इसका कोई मतलब न भूगोल से है और न खगोल से। सम्वत्सर खगोल (आकाष-व्योम) से उतरता है, भूगोल को लहालोट करता है। न्यू इयर जिनका मनमोहन है, वे माने, वे ही जाने और उनका काम जाने।
ईसा का साल 2012 विदेषी व्यापारियों के लिए मनमोहन रहा। मनमोहन मित्रों की अमेरिकी वालमार्ट कम्पनी ने मनमोहन खुषियां दीं। वालमार्ट पुरानी मनमोहन है। उसने अमेरिकी विधायिका को बताया कि मनमोहन खर्च पर उसने करोड़ो डालर फूंके। भारत की संसद में बवाल हुआ। उन्होंने मनमोहन खर्च का व्यापारिक नाम ‘लाबिंग’ बताया। उन्होंने मनमोहन व्यय पर भारत में भी काफी धन लुटाया। अब वे खुदरा व्यापार में भारत आ रहे हैं। समोसा ग्लोबल होगा। खैनी तम्बाकू की पुडि़या डब्लू डब्लू टोबैको होगी। ऐसे ही बीड़ी - बीड़ी पाइप और गुटखा स्पाइटिंग पिल्स। यू नो बतासा - बातासा होगा। योग जैसे योगा हुआ वैसे ही खुदरा का मालिक वालमार्ट और हम सब चिल्लर होंगे। सब कुछ मनमोहन। यू0पी0 के दो प्रमुख दलों सत्ता व मुख्य प्रतिपक्ष ने संसद में खुदरा में विदेषी निवेष का मनमोहन विरोध किया है। वे इसके खिलाफ बोले लेकिन वोट इसी के पक्ष में दिया। ढेर सारे अन्य दलों ने भी सबका मनमोहा। वे भी खिलाफ बोले लेकिन वोट में मनमोहन गति को प्राप्त हुए। पूरा साल मनमोहन रहा। महंगाई मनमोहन आंकड़ा पार कर गयी। आसमान पहुंची। मुद्रास्फीति ने मनमोहन सीमा रेखा को लांघा बावजूद इसके मनमोहन कमाल हुआ। जी0डी0पी0 मनमोहन रही। जी0डी0पी0 में ही मनमोहन भविष्य है।

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