Tuesday, September 7, 2010

J2J Media Workshop on TB Press Release



भारत में प्रतिवर्ष २० लाख लोग टीबी के मरीज बनते हैं एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक ३ मिनट में २ लोगो कि मौत हो जाती है ऐसी स्थिति में मीडिया का दायित्व है कि सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सार्थक रूप से ध्यान  दे | इस बीमारी के जीवाणु भारत में ४० प्रतिशत लोगो में किसी न किसी रूप में हैं | जिनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम है उनमे यह सक्रिय होकर जानलेवा बन जाते हैं | अतः सरकार द्वारा पोषित डॉट्स का समुचित रूप से क्रियान्वयन आवश्यक है | उपरोक्त निष्कर्ष इंडियन मीडिया सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स , लखनऊ  द्वारा टीबी उन्मूलन और मीडिया कि भूमिका विषयक गोष्ठी में निकला |
संयुक्त निदेशक आर.एन.टी.सी.पी. (राज्य टीबी नियंत्रण ऑफिसर ) डॉ एन. पी. भारती ने  कहा कि जागरूकता के अभाव में मरीज दवाओं का पूरा  कोर्स नहीं करता जिसके कारण टीबी उन्मूलन में पूर्णतया सफलता नहीं मिल पा रही है | डॉट्स द्वारा हमारा प्रयास है कि मरीज को दवाओं कि पूरी खुराक दी जाये ताकि हम रोग समाप्त कर सकें | इसके लिए उन्होंने मीडिया के सहयोग कि आवश्यकता पर बल दिया |
क्षत्रपति साहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के चेस्ट स्पेशलिस्ट प्रो. सूर्यकांत ने कहा कि टीबी का पूर्णतया  इलाज संभव है बशर्ते दवा बंद करने का निर्णय मरीज न ले | उन्होंने कहा कि इसमें सर्वप्रथम मरीज को बीमारी की गंभीरता के प्रति जागरूक होना जरूरी है क्योंकि कुछ दिनों में लाभ मिलता देख रोगी दवा खाना बंद कर देता है जो कि एक घातक स्थिति बन जाती है| संक्रमण को रोकना मुश्किल है अतैव स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मरीज पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि कई बार ड्रग  रेजिस्टेंस के भी मामले सामने आ जाते  हैं | कई बार चिकित्सक फेफड़े के एक्सरे में धब्बा देखकर टीबी घोषित कर देते हैं तो भी उन्हें समझना चाहिए कि जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती उसी  प्रकार हर धब्बा टीबी होने की निशानी नहीं है | सामान्यतया कोई भी दवा ४५ से ५५ किग्रा के मरीज के लिए होती है पर ऐसे डॉ भी दवा लिखते हैं जिनके पास वजन तौलने कि मशीन भी नहीं है |
संजीवनी लंग सेन्टर के प्रमुक्ग दे एस. एन. गुप्ता ने कहा कि टीबी शरीर के अनेक भागों में होती है जैसे मष्तिष्क, रीढ़, किडनी आदि पर इनमे फेफड़े की टीबी ही संक्रामक होती है | टीबी  का बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है और अनेक लोगों में निष्क्रिय अवस्था में  पड़ा रहता है , दुनिया की एक तिहाई आबादी में निष्क्रिय बैक्टीरिया है| डॉ गुप्ता ने कहा कि कच्चे दूध के सेवन से भी यह बैक्टीरिया मनुष्य में आ सकता है यदि पशु संक्रमित है तो | उन्होंने कहा कि अगर लगातार ३ हफ्ते से खांसी , सीने में दर्द और बलगम के साथ खून की शिकायत हो तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए और नियमित दवा से ६ से ८ माह में रोगी स्वस्थ हो सकता है |
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ. डी. के. गुप्ता ने उ. प्र. के आकड़ों का विवरण देते हुए कहा कि पूर्वी उ. प्र. के कुछ जिलों की  स्थिति अभी भी टीबी उन्मूलन  के क्षेत्र में नाजुक है | उन्होंने आकड़ों कि स्थिति स्पष्ट करते हुए मीडिया से सहयोग कि अपेक्षा की |
संयोजक धनंजय ने मीडिया कर्मियों से डॉट्स सेंटर के रजिस्टर और उसमे अंकित मरीजों के दरवाजे तक पहुँचने की बात करते हुए आशा की कि जन-जागरूकता से इस भयावह बीमारी का पूर्णतया उन्मूलन संभव है | हमारी कोशिश रहे कि सकारात्मक ख़बरों को भी जगह दी जाये जैसे टीबी से ठीक हो चुके मरीजों के बारे में, अपने लक्ष्यों तक ईमानदारी से पहुँचने की कोशिश कर रहे डाक्टरों  के बारे  में | उन्होंने कहा कि टीबी गरीबों की ही बीमारी नहीं है डायटिंग करने वाले लोगों और स्टेरायड लेकर बॉडी बिल्डिंग करने वाले तक इसकी चपेट में आ जाते हैं |

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