Saturday, June 10, 2017

आदाब ! लखनऊ मेरी जान.....!

लखनऊ मेरा है , मै लखनऊ का हूं | लखनऊ की गलियाँ मेरी हैं | लखनऊ की सरहद के भीतर मौजूद तमाम मस्जिद-ओ-मीनार , मंदिर , गिरजे , गुरद्वारे मेरे हैं | दरगाहें और पुरखों के खड़े किये गये दरो-दीवार मेरे हैं | तमाम बुलंद इमारतें औ इमामबाड़े मेरी धरोहर हैं | गोया लखनऊ के गोशे-गोशे में मैं मौजूद हूं औ मेरी रगों में लखनऊ की तहजीब , तरबियत औ तरक्की का तराना ठाठें मार रहा है | चुनांचे लखनऊ के माथे पे पड़ने वाली  मामूली सी शिकन भी मुझे बेचैन कर देती है , आक्रोशित कर देती है | यकीन मानिये लखनऊ के दत्तक पुत्रों की बदजुबानी ,कमासुतों की लूट, सरकारी अमले की नाफरमानी औ सियासी बड़बोलों की बदगुमानी महज परेशानियाँ ही नहीं खड़ी करतीं वरन समूचे वजूद में फफोले उगा देती हैं और उससे फूटने वाली पीप लखनउवों को समाजी रूप से, आर्थिक रूप से खोखला करने की साजिश में फंसा दे रही है |
लखनऊ के कदीमी सर्राफ अपनी ही गद्दी पे लुट रहे हैं , नये चमचमाते लखनऊ की कीमती कोठियों में दनादन डकैतियां पड़ रही हैं , युवतियां तो शोहदों की जागीर हैं ही अब महिला एसडीएम भी बदसलूकी का शिकार ! अस्पताल खुद बेहाल औ डाक्टर-मरीज आयेदिन गुत्थम-गुत्था होते तो प्रसूतायें एम्बुलेंस में ही बच्चे जन रही हैं और तो और अस्पताल के भीतर ही बलात्कार हो रहे हैं | कुत्ते नवजात शिशुओं के शव सड़कों पर नोच रहे हैं | संक्रामक रोग हमलावर हैं बच्चों से लेकर जवान तक गलत इलाज के चलते जान गंवा रहे हैं , मंत्री मुआयना करके फोटो खिंचा-छपा रहे हैं , एम्बुलेंस के बीमार होने का मामला पुराना है और भ्रष्टाचार जांच में फंसा है | ठेलों पर लाशें ढोई जा रही हैं , मुख्यमंत्री के गृहनगर में लाशों कफन में लपेटने के लिए रिश्वत मांगी जा रही है | २४ घंटे वाली बिजली की आँखों में मोतियाबिंद हुए काफी समय हो गया है आपरेशन होने का इंतजार करिये | पेट्रोल ठगी में न्यायालय कुछ भी कहे लेकिन अपनी ही गर्दन कैसे नाप दें ? यही समस्या अवैध निर्माण , अवैध संम्पति में आड़े आती है | गोमती और शहर की सफाई का रोना-धोना बजट का मामला है | ट्रैफिक जाम और पुलिस गश्त वसूली, लाठी चार्ज की शिनाख्त में कुंठित है और गाहे -बगाहे पिट भी रही है ? रेल से लेकर जेल , रैली से लेकर मुख्यमंत्री के मंच तक अपराधियों का दबदबा है | स्कूलों-कालेजों का भूगोल भले न बदले लेकिन इतिहास , हिंदी , गणित , समान्य-ज्ञान औ कम्प्युटर के पन्नों को बदलने की जल्दी गजब की दिखाई देती है ? गाय का समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र समझे बगैर हाय-तौबा कतई  चुनावी औजार माना जाए ? छात्रों का पैसा दोनों हाथों से मुख्यमंत्री के संरक्षण में समारोह में लुटाया जाय और छात्र विरोध करें तो उन्हें देशद्रोही करार दिया जाए ,छात्राओं तक को बेइज्जत किया जाए ? यह कैसा देशप्रेम मिला इन्साफ है ? अगर सरकार का और उसके कामों की  आलोचना करना करना देशद्रोह है तो यह अपराध करना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है | क्या धर्मनिरपेक्ष होना राष्ट्रद्रोह है ? अगर ऐसा है तो मैं धर्मनिरपेक्ष हूं |
लखनऊ नवाबों का शहर था , है और रहेगा | इसकी नवाबियत पे खरोंचें डालने वाले तकरीबन २० लाख अड़ोसी-पड़ोसी कितना ही लतियाउर करें , गाय-भैंस , कुत्ते-सांड खुली सड़क पर शोहदई करें , निर्द्वन्द अपराधी बलात्कार ,लूट , ठगी करें और सियासतदा अपने वोटों के लिए विकास-विनाश के झूठे-सच्चे नारे बुलंद करें , सरकार खाने से लेकर पखाने तक पर पाबंदी लगाये लेकिन लखनऊ के दिल में नफरत का  ‘केलेस्ट्रोल’ पैवस्त नहीं कर सकते | बेगम आलिया का बनाया हनुमान मंदिर , नवाबों की तामीरी इमारतें , गली-मुहल्लों में अजान ओ ॐ नम: शिवाय की गूंज , बाबा साहेब के स्मारक और गोमती मइया  का आशीर्वाद इत्र की तरह लखनऊ को महकाता रहेगा | मुस्कराइये आप लखनऊ में हैं कह कर इस्तकबाल करता रहेगा | ये लाइने..... ताकि सनद रहे कि किसी अख़बार वाले ने तमाम साजिशों के बाद भी सरकार के हुजूर में सलाम नहीं फेरा !       


सलाम और प्रणाम की सियासत में फंसा राष्ट्रवाद गाय के दूध से रोजा इफ्तार कराने के लिए गंगा , गोमती के मैले पानी में नहा-धो कर मस्जिद की सीढ़ियों से थोड़ी दूर अपने दोनों हाथ जोड़े खड़ा जरूर है , लेकिन उसे नहीं दिख रहे गलियों की नालियों के किनारे हगते बच्चे | गलियों में नंग-धडंग खेलते बच्चे | भूखे-प्यासे  गाय,कुत्तों,बंदरों के सताये इन्सान और खाली पेट मंदिर,मस्जिद की सीढ़ियाँ चढ़ते व अस्पतालों की कतार में खड़े बीमार आदमी , औरतें , बच्चे | नहीं दिखते सरकारी गैरसरकारी ठगी के शिकार मुरझाये चेहरे | श्मशान-कब्रिस्तान के हकीकी मसले और नहीं दिखती शहर भर में फ़ैली हर तरह की गन्दगी | नही है पीने का शुद्ध पानी भला हो समरसेबल पम्पों का , बोतल बंद पानी का वरना डायरिया की बस्ती में लखनऊ का नाम अव्वल नंबर पे दर्ज हो चुका होता | और ‘सबका साथ , सबका विकास’ नारा बुलंद करने वाले प्रधानमन्त्री , मुख्यमंत्री रोजा इफ्तार से दूरी बनाये हुए हैं | इसके बावजूद हमारे जैसे पत्रकार लखनऊ की सडकों पर सरकार के कर्ता-धर्ताओं के मुखालिफ़ आवाज बुलंद करें तो देशद्रोही ?

मैं बार-बार कहुंगा कि लखनऊ मेरा है मै लखनऊ का हूं और इसको सियासत , साजिश और अड़ोसियो-पड़ोसियों ने सताया है | लखनऊ मेरी जान है और सूबे की राजधानी है , बराये मेहरबानी इसको अपने बडबोले बयानों से , झूठे वायदों से लहूलुहान मत कीजिये | बेशक आप योगा करिये मगर हमारे पैसों से नहीं | कोई बतायेगा की ‘योगा डे’ के दिन लखनऊ कितना लुटेगा ? बहरहाल अर्ज सिरफ़ इतनी कि मेरे लखनऊ पे रहम कीजिये | 

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