गाय के नाम पर राजनीति क्यों ?-प्रियंका वरमा महेश्वरी
'गाय हमारी माता
है इसका दूध हमको भाता है' यह सिर्फ एक
स्लोगन नहीं है बल्कि अगर सही मायने में देखे तो गे हमारे लिए बहुत उपयोगी
है। हर तरह से दूध से बने प्रोडक्ट पर नजर
डाल सकते है आप। एक नजरिया और भी गाय
हमारी संस्कृति भी हैं और हम उसे पूजते भी है लेकिन इस माता की क्या दशा है इस ओर
किसी का भी ध्यान नहीं जाता है | हाँ , उस पर राजनीति जरूर की जा सकती है। सत्ता
की राजनीति आज नफरत की राजनीति में बदल चुकी है और सभी सीमाएं ख़त्म होती जा रही
हैं।
राजस्थान
हाइकोर्ट का गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात और गोवध पर आजीवन कारावास की
सजा की बात हो रही है। इससे पहले 2011 में मोदी जी जब
गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब गुजरात में बीफ की बिक्री पर पूरी तरह से पाबन्दी लगा
दी गई थी लेकिन उनकी दशाओं और व्यवस्थाओं में ज्यादा कुछ सुधार नहीं हुआ।
गोरक्षा के नाम
पर जो हल्ला-गुल्ला चल रहा है वो शर्मनाक है।
सरेआम बछड़े को काटना और खाना गिरी हुई मानसिकता को दर्शाता है। गोरक्षा के नाम जो गुंडई हो रही है उसे
नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हरियाणा में गोरक्षा के नाम पर पर हुई गुंडागर्दी
और गोतस्करों के पकड़े जाने पर उन्हें गोबर खिलाना, अलवर में घटी घटना गोरक्षकों द्वारा मारपीट और
पहलूखां की मौत। इसी तरह की और भी कई
घटनाएं मानवता को भी शर्मिंदा करती है।
सवाल मांसाहार
होने या न होने का नही है मांसाहारी लोग अभी ही हो गए हैं ऐसा भी नही है काफी समय
से है... बस एक मसला भड़का और उसे हवा दे दी गई। मुस्लिम, ईसाई और कहूं तो बहुत सारे हिन्दू भी मांस खाते
हैं..कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां लोगो के खानपान का हिस्सा है मांस...यानि रूटीन
में शामिल। ये तय करना कि कौन क्या खायेगा...थोड़ा अजीब लगता है। गाय हमारी माता है
या गौ प्रेम इतना अधिक दिखने लगा है कि यदि इन पर ध्यान न दिया गया तो ये प्रजाति
खत्म हो जायेगी।
गोवध निंदनीय
है...सरासर है..। केंद्र सरकार ने नियम भी बना दिया और केरल सरकार विरोध भी कर रही
है इसका और कांग्रेस ने भाजपा को एक नया एजेंडा दे दिया है इस मसले पर...। लेकिन
मेरा सवाल है कि गायों की दशा में सुधार की ओर सरकार क्या प्रयास कर रही है? गाय पालना और
उनसे आजीविका चलाना किसानों या गौपालकों का मुख्य साधन है लेकिन यही गाय या भैंस
जब अनुपयोगी हो जाती हैं तब इन्हें कटने या बेसहारा छोड़ दिया जाता है जो इधर उधर
भटकते रहती हैं...सरकार का ध्यान इस ओर क्यों नहीं जाता , नहीं उनके लिए अलग से
गौशालाएं बनाई जाती हैं ? गर्मी की वजह से गायें मर रही हैं ( मध्यप्रदेश...
टीकमगढ़ गांव) उस ओर कोई प्रयास क्यों नही...? जगह जगह कुकुरमुत्ते की तरह उग आये
"गौसेवक समिति" का ध्यान क्यों नही जा रहा ? वैध स्लाटर हाउस चल रहे
हैं...सरकार का विदेशों में मांस बेचने का बड़ा व्यापार हैं...फिर बंद मतलब सब
बंद..। क्या लोगों की भावनाओं को छेड़कर सांम्प्रदायिकता फैलाना उद्देश्य है और
सरकार का नया कानून सभी दिशाओं में कारगर होगा।
गोरक्षा के लिए
जितनी हाय तौबा गोरक्षक मचा रहे है क्या उनका जरा भी ध्यान गायों की बिगड़ी दशा पर
गया है ? राजस्थान की सबसे बड़ी गोशाला में करीब 8 हज़ार गाये हैं , 10 दिन में 100 गए मर गई।
कम चारा और पानी न मिलने से हुई मौत।
यह आंकड़ा पिछले साल का है. इनकी देख रेख के लिए 200
मजदूर थे जो तनख्वाह न
मिलने के कारण भाग गए। एक गौशाला में तीन
महीने में 15 से ज्यादा गाय मरी। सूत्रों के
मुताबिक गौशाला में करीब 550 गायें है जिनमे महज 67 दूध देने वाली गाय है। 67 दूध देने वाली गायों को 200 किलो चूनी दी
जाती है। बाकि की गायों को 100 किलो चूनी में ही
निपटा दिया जाता है। जो गाय दूध नहीं देती
है उन्हें कभी - कभी 5 - 5 घंटे खाने को कुछ नहीं मिलता है सिर्फ पानी पीकर पेट भरती
है अपना। बेशक भाजपा के सभी मुख्यमंत्री गौभक्त है लेकिन बदइंतजामी और लापरवाही की
वजह से गायों की दुर्दशा और मृत्यु हो रही है ?
शाहजहांपुर में
गायों के शव को टैक्टर से बांध कर घसीटा जाता है क्योकि 'गोसदन' के पास दूसरा कोई इंतजाम नहीं है। कुपोषण की
शिकार और बीमार गाये मर रही है और तो और ठीक से पानी तक का इंतजाम नहीं है। ये हमारी गौमाता का हाल है अगर गौरक्षकों को
अपना प्रेम दिखाना है तो उनकी गौशालाओं की ओर और अव्यवस्थाओं की ओर ध्यान देना
होगा। गायों का राजनितिक मुद्दे बनाना बंद
करना होगा।
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