ई वो मशीन है जिसका भरोसा.... ! -
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
चुनाव बीत चुका है और भाजपा की सरकार चार प्रदेशो में काबिज हो चुकी है। चुनाव में हार का सामना करने वाले नेताओं ने....मायावती, अखिलेश, केजरीवाल और हरीश रावत ने ईवीएम को अब मुद्दा बना लिया है और इसमें छेड़छाड़ होने की संभावना व्यक्त की है। तकनीक और उससे जुड़ी समस्याओं को जब राजनीतिक प्रतिद्वंदिता से जोड़कर देखा जाता है तो समस्या सुलझने के बजाय उलझ जाती है। ईवीएम को संदेह के घेरे में खड़ा किया जा रहा है और उसकी विश्वसनीयता पर शक किया जा रहा है और माकूल जवाब मांगा जा रहा है। केजरीवाल ने तो दिल्ली में होने वाले एमसीडी चुनावों में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर की मांग कर दी है। वहीं राज्यसभा में पूरे विपक्ष ने एक स्वर से आरोप लगाये और इसकी जाँच के लिए आयोग या समिति बनाने की मांग की , बसपा की मायावती ने उ.प्र . के चुनाव रद्द करने की मांग कर डाली तो कांग्रेस के गुलामनबी आजाद ने, जब भाजपा की ओर से पंजाब में कांग्रेस की जीत पर सवाल उछाला गया तो आजाद ने कहा की हम पंजाब में दोबारा चुनाव कराने को तैयार हैं आप उ.प्र. में दोबारा चुनाव कराएं | इसके अलावा मध्य प्रदेश में मशीन ट्रायल के समय मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा अलग अलग बटन दबाने के बाद भी वीवीपीएटी मशीन से केवल भाजपा के निशान कमल की पर्ची ही निकली जिसे कांग्रेस समेत कई दलों ने पर्याप्त सुबूत माना और आयोग में शिकायत दर्ज करा दी | इस पर आयोग ने भिंड निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट मांगी है | गौरतलब है कि चुनावों के दौरान ईवीएम में छेड़छाड़ के मामले पहले भी देखे जा चुके हैं वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ लालकृष्ण आडवानी ने ईवीएम पर संदेह प्रकट किया था और मतपत्रों की पुरानी व्यवस्था की मांग की थी। कुछ दिन पहले महाराष्ट्र नगरपालिका चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ का मामला सामने आया था। नासिक, पुणे और यरवदा आदि निर्वाचन क्षेत्रों में भी ईवीएम से छेड़छाड़ की बात सामने आयी है और शिकायत भी दर्ज कराई गई है। अब सवाल उठता है कि टेपरिंग - प्रूफ कहलाने वाली ईवीएम में किसी प्रकार की छेड़छाड़ की संभावना हो सकती है क्या? ध्यान दे कि 2010 में अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया कि वो भारत की ईवीएम मशीनों को हैक कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने घर पर बनाई एक मशीन और मोबाइल फोन की मदद से ईवीएम में दर्ज नतीजों को बदलने की क्षमता का प्रदर्शन किया था लेकिन उस वक्त चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने इस दावे को यह कह कर खारिज कर दिया कि भारत की ईवीएम मशीनों में इतने पुख्ता सुरक्षा प्रबंध किये गये हैं कि उनके साथ कोई छेड़छाड़ नही की जा सकती है। यही नही..अदालतों में भी यह आरोप साबित नही हुए और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया था। आज बीजेपी यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर में हुई जीत से खुश है लेकिन अतीत में इसी ईवीएम के खिलाफ आंदोलन चला चुकी है। 2010 में बीजेपी नेता किरीट सोमैया और देवेन्द्र फड़नवीस ने "एंटी - ईवीएम" कहे गए आंदोलन में शिरकत की थी और जिसमें हैदराबाद के इंजीनियर हरी प्रसाद ने यह दिखाया था कि कैसे विभिन्न चरणों में ईवीएम में दर्ज नतीजों को हैक करके फेरबदल किया जा सकता है। और तो और भाजपा नेता जी वी एल नरसिम्हा राव ने एक किताब तक लिख डाली है – ‘ लोकतंत्र खतरे में : क्या हम अपने ईवीएम पर भरोसा कर सकते हैं ‘ |इस पुस्तक की प्रस्तावना में लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम की भरपूर आलोचना की है | उनके अलावा कई बड़े भाजपा नेताओं ने भी आसमान सर पर उठा लिया था | इन बातों को मद्देनजर रखते हुए राजनीति और दलगत हितों से दूर रहकर सोचना होगा कि क्या वाकई में साइबर हैकिंग बड़ी समस्या है और वह लोकतंत्र में आम जनता की आस्था को डिगा सकती है ? ईवीएम के सुरक्षा प्रबंधों को ध्यान में रखते हुए समय - समय पर इसमें बदलाव किये गये हैं। जैसे .. पहले एक ही तरह की ईवीएम मशीन होती थी उसमें दोबारा वोटों की गिनती नही हो सकती थी। फिर दूसरा प्रकार लाया गया जिसमें दूसरी बार वोटों की गिनती संभव थी। साइबर हैकिंग की समस्या को देखते हुए ईवीएम को एक फुलप्रूफ इंतजाम मानना भूल हो सकती है वो भी तब जब लोकतंत्र का सारा दारोमदार चुनावी व्यवस्था पर टिका हो लेकिन हम किसी पार्टी को शक के दायरे में नही ला सकते हैं क्योंकि जरूरी नही है कि हैकर पार्टी विशेष का समर्थक हो। इसलिए संदेह के बजाय इस मुद्दे को गंभीरतापूर्वक लेकर मिल बैठ कर विचार विमर्श करना चाहिये और इससे छुटकारा पाने का मजबूत विकल्प ढूंढना चाहिये। |
इससे भी बड़ी बात है ईवीएम
को और अधिक भरोसेमंद बनाने के लिए ईवीएम मशीन के साथ वोट का प्रिंट आउट यानी
वीवीपीएटी तकनीक लागू करने का आदेश उच्चतम न्यायालय ने दिया जिसकी खानापूर्ति में
कई जगह जिला प्रशासन ने उम्मीदवारों के सामने इसका प्रदर्शन भी किया लेकिन वह
अधिकांश जगह नहीं लगाई गई | बताते हैं की इसमें भी खामियां हैं , कुल मिलाकर इसे
महज विपक्ष का प्रलाप मानकर टालना न्यायसंगत नहीं होगा | मजे की बात है दुनिया के
ब्रिटेन , जर्मनी , फ़्रांस , जापान , इटली , नीदरलैंड , सिंगापुर , डेनमार्क ,
आयरलैंड में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता | कंम्प्यूटर विज्ञानियों के अलग – अलग
मत हैं अधिकतर मानते हैं कि भारतीय मशीनों में आसानी से बदलाव किया जा सकता है |
यहाँ बताते चलें कि ईवीएम मशीन का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (
परमाणु ऊर्जा विभाग का एक उद्यम ) व भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ( रक्षा विभाग के
अधीन ) करते हैं और इसमें इस्तेमाल होने वाली चिप का साफ्टवेयर भी यहीं विकसित
किया जाता है ऐसे में इनकी विश्वसनियता पर संदेह करना उचित नहीं होगा | हालांकि कई
सियासी दल अदालत की शरण में चले गये हैं सो फैसले का इंतजार लाजिमी है |
चुनव आयोग ने हर बार ईवीएम
की सुरक्षा को लेकर साफ – साफ कहा है की यह पूर्णतय: भरोसेमंद है | बावजूद इसके
लोगों का विश्वास डिगता दिख रहा है , सोशल मिडिया पर नकारात्मक प्रचार भी भ्रम
फैला रहा है और कई तरह के वीडियो भी मतदाताओं का भरोसा तोड़ने में कामयाब हो रहे
हैं | इस बीच चुनाव आयोग के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का बयान आया
है , ‘ चुनाव प्रणाली में लोगों का विश्वास और भरोसा सर्वोपरि है | ईवीएम के नाम
पर इसे खंडित करने की अनुमति किसी को नहीं दी जानी चाहिए | ‘ बेशक यही बात लोग और
मीडिया भी कह रहे हैं , इसे यह कह कर हवा में नहीं उड़ाया जा सकता कि कांग्रेस जीती
थी या सपा , बसपा जीती थी तब ईवीएम ठीक थी और अब भाजपा जीती तो घालमेल हो गया |
भाजपा के मुखिया से लेकर प्रधानमन्त्री तक पारदर्शिता और ईमानदारी के प्रति
प्रतिबद्ध हैं तो परम्परा के प्रमाण- पत्र की अवश्यकता क्यों ? उससे भी अहम बात है
कि भाजपा चुनाव सुधार की प्रबल हिमायती है और उसने इस ओर कदम भी बढ़ाया है उसे
ईवीएम पर खुली बहस करानी चाहिए और विरोध में उठ रहे सवालों के जवाब में जाँच बिठा
देनी चाहिए | कुछ ऐसा ही कर्नाटक की सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री
प्रियंका खड्गे ने ट्विटर पर सुझाया है,’ईवीएम के साथ छेड़ छाड़ को लेकर अटकलों का बाज़ार गरम है इसलिए
निर्वाचन आयोग को बेंगलूरू के स्टार्टअप को यह इजाजत देनी चाहिए कि वे ईवीएम के
साथ छेड़छाड़ का प्रयास करके यह जांचे कि यह संभव है या नहीं |’ इससे इतर सरकार को
और चुनाव आयोग को आधार कार्ड से मतदान कराने पर सोंचना चाहिए |यहाँ ये बताना भी प्रासंगिक होगा कि हाल ही
में विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री पॉल रोमोर ने भी आधार योजना की तारीफ करते
हुए इसे ‘ दुनिया की सबसे बेहतर पहचान-पत्र योजना ‘ बताया है |
सरकारी आंकड़े बताते हैं की
देश में आधार कार्ड की संख्या सौ करोड़ पार कर चुकी है और बैंक से लेकर आयकर , गैस
, मातृत्व लाभ योजना , आंगनवाड़ी सहित सभी योजनाओं में आधार जरूरी कर दिया गया है
तो इसी आधार को मतदान में क्यों नहीं इस्तेमाल किया जा सकता ? सबसे बड़ी बात है कि आदमी
की पहली और अहम जरूरत पैसा है जिसे बैंकों
से निकालने के लिए एटीएम कार्ड और कैशलेश के लिए ऑनलाईन इंतजाम तो आधार से ऑनलाईन
मतदान क्यों नहीं ? इसमें मतदाता की अँगुलियों के निशान जब तक मेल नहीं खाएंगे तब
तक मतदान हो ही नहीं सकेगा और हैकिंग का कोई खतरा भी नहीं होगा | इस पर बहस होनी
चाहिए |
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