पं0 हरिशंकर तिवारी के जाननेवालों को उनका जन्मदिन याद रखने में कोई कठिनाई होनी नहीं चाहिए, क्योंकि वे सावन में पैदा हुए थे। सावन में शिव, बरखा और बाढ़ की धूम रहती है। और पूर्वांचल इन तीनों से ही निहाल रहता है। इसकी धार्मिक राजधानी काशी (बनारस) जहां शिव स्वयं रहते हैं। राजनैतिक राजधानी गोरखपुर जहां बरखा और बाढ़ के साथ इस शहर के भूगोल में खासा बदलाव आया है। नई काॅलोनियों व बहुमंजिली इमारतों के जंगल उग आये हैं। तरक्की के नाम पर अजगर की तरह पसरे ओवरब्रिज के पेट में आपाधापी मचाती नई आबादी की अराजक भीड़ की एक दूसरे से आगे निकलने की बेसब्र होड़ दिखती है और इस सब के बीच जस का तस दिखता है, गोरखनाथ मंदिर, गीता प्रेस व धर्मशाला बाजार में तिवारी जी का हाता। तीस बरस पहले भी उनसे अखबार के लिए साक्षात्कार लेने आया था और आज भी उनकी उम्र के 75 बरस पूरे होने पर बातचीत के लिए पहुंचा। वहीं बड़ा सा फाटक, बड़ा सा मैदान, सामने की ओर वही झोपड़ी, बगल में हैंडपम्प, दाहिनी ओर आवासीय परिसर के कमरों के सबसे कोने में ड्राइंगरूम कहा जाने वाला बड़ा सा कमरा। यहीं मुलाकात होती है पूर्वांचल की राजनीति के सशक्त स्तम्भ और लोकप्रिय बाबा हरिशंकर तिवारी से, और उनसे जो बातें हुईं वे आपके लिए हाजिर हैं:-
सवाल: अगले महीने आप 75 साल के हो
जाएंगे उम्र के इस पड़ाव पर कुछ खास सोंच रखते हैं या कोई विशेष कार्य करने की इच्छा रखते हैं।
जवाब: उम्र तो होती ही है बढ़ने के लिए और बढ़ती उम्र के साथ सोंच परिपक्व होती है। मैं तो आदमी के दुख-दर्द में हमेशा खड़ा रहा। पीडि़त की सेवा ही लक्ष्य था और है।
सवाल: आप काफी समय उप्र सरकार के मंत्री रहे हैं, मुलायम सिंह यादव के साथ भी उनके मंत्रीमण्डल में रहेे हैं। उस दौरान आपने गोरखपुर के विकास के लिए कुछ विशेष किया।
जवाब: सारा जिला जानता है जितना काम मैंने किया उतना शायद ही किसी ने किया। पुल, पुलिया, सड़क तो सभी बनाते हैं, मैंने भी बनवाये। एक जिले से दूसरे जिले को जोड़ने की दूरी को कम करने के साथ उन गांवों को सड़क से जोड़ने का काम किया जहां साइकिल से भी लोग नहीं जा पाते थे। जो मेरी क्षमता में था किया, बाकी जनता सब जानती है।
सवाल: आज गोरखपुर के विकास के लिए कोई विशेष सोंच या हसरत है?
जवाब: हाँ, यहां के नौजवानों को रोजगार यहीं दिलाने के लिए कागज, खाद के कारखाने लगवाने की इच्छा हमेशा रही। प्रयास मैंने किये और आज भी प्रयासरत हूँ, देखिये कब सफलता मिलती है।
सवाल: राजनीति में आने के पीछे क्या सोंच थी? घरवालों ने एतराज नहीं किया?या कोई प्रेरणास्त्रोत रहा?
जवाब: छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गया था। घर-परिवार और प्रेरणास्रोत सभी कुछ जनता है, फिर एतराज कैसा, बाकी जो परेशानियां आई उन्हें भी जनता के सहयोग से दूर किया।
सवाल: आपकी शिक्षा कहां से हुई? आज आप शिक्षा के प्रति कितने सजग हैं? आपने शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य किया है?
जवाब: यहीं गोरखपुर में पढ़ा और अपने क्षेत्र के नेशनल पोस्ट ग्रेजुएट काॅलेज बड़हलगंज से लेकर यहां तुलसीदास माध्यमिक विद्यालय तक कई विद्यालयों में जो बदलाव हुए हैं और उनका स्तर कितना अच्छा हुआ है, यह सर्वविदित है। लड़कियों के स्कूल के अलावा नर्सिंग शिक्षा के लिए भी प्रशिक्षण संस्था खड़ी की और आज भी इन शिक्षा के मंदिरों को उच्चस्तरीय बनाने में प्रयासरत हूँ। मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय कार्यकारिणी से काफी लम्बे समय से जुड़ा रहा।
सवाल: आप स्वाभाव से धार्मिक हैं या यथार्थवादी? कभी मंदिर जाते हैं?
जवाब: स्वभावतः धार्मिक हूँ, मंदिर भी जाता हूँ, लेकिन कर्म की धरती पर यथार्थवादी हूँ।
सवाल: आपके जीवन में कोई भाग्यवान (लकी) रहा है?
जवाब: कभी इस बारे में सोंचा नहीं।
सवाल: आप अपने गुस्से को कैसे शान्त करते हैं?
जवाब: ऐसा अवसर आता ही नहीं फिर मैं भी आदमी हूँ।
सवाल: नितांत व्यक्तिगत सवाल है, क्या आपने कभी खाना या चाय आपने हाथ से बनाया है?
जवाब: हाँ भाई, जब मैं पढ़ता था तो यहीं अलीनगर में अपने छोटे भाई के साथ रहता था, तब ऐसे अवसर आये थे।
सवाल: आप धर्मग्रन्थ या साहित्य में क्या विशेष रूप से पढ़ना पसन्द करते हैं?
जवाब: दोनों, मैंने गीता भी पढ़ी, रामायण भी पढ़ी और उनसे प्रेरणां भी ली। उपन्यास भी पढ़े, इतिहास भी पढ़ा। समाचार-पत्र नियमित पढ़ता हूँ।
सवाल: टी.वी. देखते हैं? कुछ खास देखते हैं?
जवाब: सिर्फ समाचार।
सवाल: कभी सिनेमा हाल जाकर सिनेमा देखा?
जवाब: याद नहीं पड़ता।
सवाल: प्रदेश में बिजली-पानी पर त्राहिमाम है, जनता पर दरों में वृद्धि और पुलिसिया डंडों की दोहरी मार पड़ रही है, इस पर कोई सुझाव?
जवाब: देखिए, हर सरकार अपनी ओर से जनता को बिजली-पानी ही नहीं सभी मूलभूत सुविधाएं देना-दिलाना चाहती है, लेकिन उसके सामने तमाम समस्याएं होती हैं। बिजली पानी की सरेआम चोरी होती है, इसको रोकने के जब-जब कदम उठाये जाते हैं, जनता सड़क पर उतर आती है। यह सच है भेदभाव होते हैं, अफसरान लापरवाही, मनमानी करते हैं या क्षेत्र विशेष को लाभ दिया जाता है, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए जन सहयोग भी आवश्यक है। अब वैकल्पिक ऊर्जा की ओर सरकार की सोंच बढ़ी है, प्रयास करने होंगे। बावजूद इसके उत्पादन बढ़ाकर, चोरी रोककर, क्षेत्रीय पक्षपात रोककर इस ओर अच्छे कदम उठाये जा सकते हैं। एक ही अफसर को बिजली की सारी जिम्मेदारी सौंपकर निश्चिंत हो जाना ठीक नहीं है। बिजली-पानी पर गंभीरता से प्रदेश सरकार को सांेचना चाहिए।
सवाल: क्या अलग पूर्वांचल राज्य से विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा?
जवाब: यदि ऐसा होता तो उत्तरांचल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ राज्य देश के मानचित्र पर सबसे अलग दिखते दुर्भाग्य से इन राज्यों में सिर्फ लूट का विकास हुआ है।
सवाल: राजनीति बहुत घटिया क्षेत्र है, ऐसा बहुतों की घारणां हैं, आप क्या कहेंगे?
जवाब: ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो चाणक्य, गांधी और नेहरू का नाम शायद कोई नहीं जानता।
सवाल: भारत में सामंतवादी लोकतंत्र है, आप इससे सहमत हंै? इसके मुखालिफ मुहिम चलाई जानी चाहिए?
जवाब: सामंतवादी लोकतंत्र तो हमारे समाज में लाखों बरस से है। जिस राम राज्य की दुहाई दी जाती है वहां भी यही व्यवस्था रही है। फिर जो जनता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता उसे जनता नकार देती है। इतिहास भरा पड़ा है उदाहरणों से, वर्तमान आपके सामने है।
सवाल: 2017 के विधान सभा चुनाव में चिल्लूपार से चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है? कोई विशेष अभियान, गठबंधन या दल में प्रवेश की मंशा?
जवाब: अभी बहुत समय है, समय आने दीजिये।
सवाल: इतनी व्यस्तताओं के बीच अपने परिवार के लिए समय निकाल पाते हैं? कोई नाराजगी या स्नेहिल क्षणों का विशेष किस्सा बताएंगे?
जवाब: समग्र जनता मेरा परिवार है, उनके बीच हर पल रहता हूँ। वे लोग नाराज हैं या खुश, यह अगर वोटों की गिनती तय करती है तो मैं कहुंगा शायद कुछ लोग नाराज हैं। मेरा प्रयास है वे भी मुझे समझें और अपनी नाराजगी बताएं मुझसे जो बन पड़ेगा जरूर करूंगा। आपने तो खुद देखा है मैं क्षेत्रवासियों के बीच कितना और कैसे समय बिताता हूँ। मैं तो अपने जानवरों के साथ, खेतों में मजदूरों के साथ भी काफी समय बिताता हूँ। अपने कुनबे के सदस्यों के साथ भी सामान्य आदमी की तरह मौका मिलते ही समय बिताता हूँ।
सवाल: आप 23 साल लगातार विधान सभा सदस्य (मंत्री भी) रहे हैं, विधान मण्डल का कोई यादगार वाकया या पल जो जनसाझा करना चाहेंगे?
जवाब: कुछ खास नहीं। जो जिम्मेदारी मिली निभाई। जो काम मिला पूरे मन से किया।
सवाल: आपको अपने जीवन में सर्वाधिक किस राजनेता ने प्रभावित किया?
जवाब: इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पं0 कमलापति त्रिपाठी, पं0 नारायण दत्त तिवारी का स्नेह रहा।
सवाल: उप्र सरकार कामकाज को लेकर कई तरह के आरोप लग रहे हैं। पत्रकार मारे जा रहे हैं, जाति विशेष के लोग न्यायालय की अवमामना तक कर रहे हैं। अपराधों की बाढ़ सी आ गई है, पुलिस सत्तादल के कार्यकर्ता जैसा आचरण कर रही है, फिर भी सरकार के मुखिया अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, क्या इसके मुखालिफ ‘हल्ला बोल‘ आवाज देने की आवश्यकता नहीं है?
जवाब: देखिए कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने के पीछे अकेले सरकार को दोष देने से इसमें सुधार नहीं होगा। जनता को भी अपनी सोंच बदलनी होगी। बढ़ती हुईं आबादी के साथ सामाजिक बदलावों और बाजार के आकर्षण अपराध के जन्मदाता होते हैं। अब डाकुओं का चम्बल नहीं रहा, हर गली का अपना चम्बल है। इसमें सरकारी अमला भी शामिल है। रही पत्रकारों के उत्पीड़न या किसी को भी जलाने के प्रकरण तो यह निंदनीय है। पुलिस का इकबाल उसके सियासी इस्तेमाल से कम हो रहा है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। रही सरकार के मुखालिफ आवाज उठाने की या हल्ला बोलने की तो विपक्ष सजग है। कुछ अपवाद हमेशा होते हैं उन पर जाँच होती है, हो रही है। अपराधियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए। कोसने से नहीं, करने से समाधान होगा। हर पीडि़त को इंसाफ दिलाने के लिए आवाज उठनी चाहिए, उठानी चाहिए।
सवाल: महंगाई लगातार बढ़ रही है, केन्द्र सरकार गरीबों की जेब से लगातार पैसे निकालने वाली योजनाओं को लागू कर रही है। पूंजी निवेश के नाम पर देशी/विदेशी अमीरों को सस् माथे पर बैठाकर ‘मेक इन इण्डिया‘ ‘डिजिटल इण्डिया‘ का नारा दिया जा रहा है। क्या इससे सवा सौ करोड़ लोगों का भला होगा, आप क्या सोंचते है?
जवाब: आपकी बात सही है। अब देखिए जिस चीन के गुणगान हो रहे थे, उसकी भी असलियत सामने आ गई। झूठ के पांव बेशक लम्बे होते हैं और चाल तेज लेकिन वे थक भी जल्दी जाते हैं। देश ने ‘इंदिरा इज इंडिया’, ‘शाइनिंग इंडिया’ के दौर देखे हैं और अब ‘शोशा (सोशल) इंडिया’ भी देख लेगी।
सवाल: मन की बात, योग, स्वच्छ भारत, निर्मल गंगा, बेटी बचाओ के साथ विदेशी संबंधों के प्रचार से किसी लाभ की संभावना दिखती है आपको या यह संघ/भाजपा की मानसिकता का आचरण कहा जाएगा?
जवाब: संघ तो अध्यापक की भूमिका में सदैव रहा है और उसके प्रचारक बातें अच्छी करते हैं लेकिन काम कितना अच्छा करेंगे उसके लिए देश की जनता ने उन्हें दूसरा अवसर दिया है। इंतजार कीजिए।
सवाल: अगले महीने आप 75 साल के हो
जाएंगे उम्र के इस पड़ाव पर कुछ खास सोंच रखते हैं या कोई विशेष कार्य करने की इच्छा रखते हैं।
जवाब: उम्र तो होती ही है बढ़ने के लिए और बढ़ती उम्र के साथ सोंच परिपक्व होती है। मैं तो आदमी के दुख-दर्द में हमेशा खड़ा रहा। पीडि़त की सेवा ही लक्ष्य था और है।
सवाल: आप काफी समय उप्र सरकार के मंत्री रहे हैं, मुलायम सिंह यादव के साथ भी उनके मंत्रीमण्डल में रहेे हैं। उस दौरान आपने गोरखपुर के विकास के लिए कुछ विशेष किया।
जवाब: सारा जिला जानता है जितना काम मैंने किया उतना शायद ही किसी ने किया। पुल, पुलिया, सड़क तो सभी बनाते हैं, मैंने भी बनवाये। एक जिले से दूसरे जिले को जोड़ने की दूरी को कम करने के साथ उन गांवों को सड़क से जोड़ने का काम किया जहां साइकिल से भी लोग नहीं जा पाते थे। जो मेरी क्षमता में था किया, बाकी जनता सब जानती है।
सवाल: आज गोरखपुर के विकास के लिए कोई विशेष सोंच या हसरत है?
जवाब: हाँ, यहां के नौजवानों को रोजगार यहीं दिलाने के लिए कागज, खाद के कारखाने लगवाने की इच्छा हमेशा रही। प्रयास मैंने किये और आज भी प्रयासरत हूँ, देखिये कब सफलता मिलती है।
सवाल: राजनीति में आने के पीछे क्या सोंच थी? घरवालों ने एतराज नहीं किया?या कोई प्रेरणास्त्रोत रहा?
जवाब: छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गया था। घर-परिवार और प्रेरणास्रोत सभी कुछ जनता है, फिर एतराज कैसा, बाकी जो परेशानियां आई उन्हें भी जनता के सहयोग से दूर किया।
सवाल: आपकी शिक्षा कहां से हुई? आज आप शिक्षा के प्रति कितने सजग हैं? आपने शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य किया है?
जवाब: यहीं गोरखपुर में पढ़ा और अपने क्षेत्र के नेशनल पोस्ट ग्रेजुएट काॅलेज बड़हलगंज से लेकर यहां तुलसीदास माध्यमिक विद्यालय तक कई विद्यालयों में जो बदलाव हुए हैं और उनका स्तर कितना अच्छा हुआ है, यह सर्वविदित है। लड़कियों के स्कूल के अलावा नर्सिंग शिक्षा के लिए भी प्रशिक्षण संस्था खड़ी की और आज भी इन शिक्षा के मंदिरों को उच्चस्तरीय बनाने में प्रयासरत हूँ। मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय कार्यकारिणी से काफी लम्बे समय से जुड़ा रहा।
सवाल: आप स्वाभाव से धार्मिक हैं या यथार्थवादी? कभी मंदिर जाते हैं?
जवाब: स्वभावतः धार्मिक हूँ, मंदिर भी जाता हूँ, लेकिन कर्म की धरती पर यथार्थवादी हूँ।
सवाल: आपके जीवन में कोई भाग्यवान (लकी) रहा है?
जवाब: कभी इस बारे में सोंचा नहीं।
सवाल: आप अपने गुस्से को कैसे शान्त करते हैं?
जवाब: ऐसा अवसर आता ही नहीं फिर मैं भी आदमी हूँ।
सवाल: नितांत व्यक्तिगत सवाल है, क्या आपने कभी खाना या चाय आपने हाथ से बनाया है?
जवाब: हाँ भाई, जब मैं पढ़ता था तो यहीं अलीनगर में अपने छोटे भाई के साथ रहता था, तब ऐसे अवसर आये थे।
सवाल: आप धर्मग्रन्थ या साहित्य में क्या विशेष रूप से पढ़ना पसन्द करते हैं?
जवाब: दोनों, मैंने गीता भी पढ़ी, रामायण भी पढ़ी और उनसे प्रेरणां भी ली। उपन्यास भी पढ़े, इतिहास भी पढ़ा। समाचार-पत्र नियमित पढ़ता हूँ।
सवाल: टी.वी. देखते हैं? कुछ खास देखते हैं?
जवाब: सिर्फ समाचार।
सवाल: कभी सिनेमा हाल जाकर सिनेमा देखा?
जवाब: याद नहीं पड़ता।
सवाल: प्रदेश में बिजली-पानी पर त्राहिमाम है, जनता पर दरों में वृद्धि और पुलिसिया डंडों की दोहरी मार पड़ रही है, इस पर कोई सुझाव?
जवाब: देखिए, हर सरकार अपनी ओर से जनता को बिजली-पानी ही नहीं सभी मूलभूत सुविधाएं देना-दिलाना चाहती है, लेकिन उसके सामने तमाम समस्याएं होती हैं। बिजली पानी की सरेआम चोरी होती है, इसको रोकने के जब-जब कदम उठाये जाते हैं, जनता सड़क पर उतर आती है। यह सच है भेदभाव होते हैं, अफसरान लापरवाही, मनमानी करते हैं या क्षेत्र विशेष को लाभ दिया जाता है, लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए जन सहयोग भी आवश्यक है। अब वैकल्पिक ऊर्जा की ओर सरकार की सोंच बढ़ी है, प्रयास करने होंगे। बावजूद इसके उत्पादन बढ़ाकर, चोरी रोककर, क्षेत्रीय पक्षपात रोककर इस ओर अच्छे कदम उठाये जा सकते हैं। एक ही अफसर को बिजली की सारी जिम्मेदारी सौंपकर निश्चिंत हो जाना ठीक नहीं है। बिजली-पानी पर गंभीरता से प्रदेश सरकार को सांेचना चाहिए।
सवाल: क्या अलग पूर्वांचल राज्य से विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा?
जवाब: यदि ऐसा होता तो उत्तरांचल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ राज्य देश के मानचित्र पर सबसे अलग दिखते दुर्भाग्य से इन राज्यों में सिर्फ लूट का विकास हुआ है।
सवाल: राजनीति बहुत घटिया क्षेत्र है, ऐसा बहुतों की घारणां हैं, आप क्या कहेंगे?
जवाब: ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो चाणक्य, गांधी और नेहरू का नाम शायद कोई नहीं जानता।
सवाल: भारत में सामंतवादी लोकतंत्र है, आप इससे सहमत हंै? इसके मुखालिफ मुहिम चलाई जानी चाहिए?
जवाब: सामंतवादी लोकतंत्र तो हमारे समाज में लाखों बरस से है। जिस राम राज्य की दुहाई दी जाती है वहां भी यही व्यवस्था रही है। फिर जो जनता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता उसे जनता नकार देती है। इतिहास भरा पड़ा है उदाहरणों से, वर्तमान आपके सामने है।
सवाल: 2017 के विधान सभा चुनाव में चिल्लूपार से चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है? कोई विशेष अभियान, गठबंधन या दल में प्रवेश की मंशा?
जवाब: अभी बहुत समय है, समय आने दीजिये।
सवाल: इतनी व्यस्तताओं के बीच अपने परिवार के लिए समय निकाल पाते हैं? कोई नाराजगी या स्नेहिल क्षणों का विशेष किस्सा बताएंगे?
जवाब: समग्र जनता मेरा परिवार है, उनके बीच हर पल रहता हूँ। वे लोग नाराज हैं या खुश, यह अगर वोटों की गिनती तय करती है तो मैं कहुंगा शायद कुछ लोग नाराज हैं। मेरा प्रयास है वे भी मुझे समझें और अपनी नाराजगी बताएं मुझसे जो बन पड़ेगा जरूर करूंगा। आपने तो खुद देखा है मैं क्षेत्रवासियों के बीच कितना और कैसे समय बिताता हूँ। मैं तो अपने जानवरों के साथ, खेतों में मजदूरों के साथ भी काफी समय बिताता हूँ। अपने कुनबे के सदस्यों के साथ भी सामान्य आदमी की तरह मौका मिलते ही समय बिताता हूँ।
सवाल: आप 23 साल लगातार विधान सभा सदस्य (मंत्री भी) रहे हैं, विधान मण्डल का कोई यादगार वाकया या पल जो जनसाझा करना चाहेंगे?
जवाब: कुछ खास नहीं। जो जिम्मेदारी मिली निभाई। जो काम मिला पूरे मन से किया।
सवाल: आपको अपने जीवन में सर्वाधिक किस राजनेता ने प्रभावित किया?
जवाब: इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पं0 कमलापति त्रिपाठी, पं0 नारायण दत्त तिवारी का स्नेह रहा।
सवाल: उप्र सरकार कामकाज को लेकर कई तरह के आरोप लग रहे हैं। पत्रकार मारे जा रहे हैं, जाति विशेष के लोग न्यायालय की अवमामना तक कर रहे हैं। अपराधों की बाढ़ सी आ गई है, पुलिस सत्तादल के कार्यकर्ता जैसा आचरण कर रही है, फिर भी सरकार के मुखिया अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, क्या इसके मुखालिफ ‘हल्ला बोल‘ आवाज देने की आवश्यकता नहीं है?
जवाब: देखिए कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने के पीछे अकेले सरकार को दोष देने से इसमें सुधार नहीं होगा। जनता को भी अपनी सोंच बदलनी होगी। बढ़ती हुईं आबादी के साथ सामाजिक बदलावों और बाजार के आकर्षण अपराध के जन्मदाता होते हैं। अब डाकुओं का चम्बल नहीं रहा, हर गली का अपना चम्बल है। इसमें सरकारी अमला भी शामिल है। रही पत्रकारों के उत्पीड़न या किसी को भी जलाने के प्रकरण तो यह निंदनीय है। पुलिस का इकबाल उसके सियासी इस्तेमाल से कम हो रहा है। इसमें सुधार की आवश्यकता है। रही सरकार के मुखालिफ आवाज उठाने की या हल्ला बोलने की तो विपक्ष सजग है। कुछ अपवाद हमेशा होते हैं उन पर जाँच होती है, हो रही है। अपराधियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए। कोसने से नहीं, करने से समाधान होगा। हर पीडि़त को इंसाफ दिलाने के लिए आवाज उठनी चाहिए, उठानी चाहिए।
सवाल: महंगाई लगातार बढ़ रही है, केन्द्र सरकार गरीबों की जेब से लगातार पैसे निकालने वाली योजनाओं को लागू कर रही है। पूंजी निवेश के नाम पर देशी/विदेशी अमीरों को सस् माथे पर बैठाकर ‘मेक इन इण्डिया‘ ‘डिजिटल इण्डिया‘ का नारा दिया जा रहा है। क्या इससे सवा सौ करोड़ लोगों का भला होगा, आप क्या सोंचते है?
जवाब: आपकी बात सही है। अब देखिए जिस चीन के गुणगान हो रहे थे, उसकी भी असलियत सामने आ गई। झूठ के पांव बेशक लम्बे होते हैं और चाल तेज लेकिन वे थक भी जल्दी जाते हैं। देश ने ‘इंदिरा इज इंडिया’, ‘शाइनिंग इंडिया’ के दौर देखे हैं और अब ‘शोशा (सोशल) इंडिया’ भी देख लेगी।
सवाल: मन की बात, योग, स्वच्छ भारत, निर्मल गंगा, बेटी बचाओ के साथ विदेशी संबंधों के प्रचार से किसी लाभ की संभावना दिखती है आपको या यह संघ/भाजपा की मानसिकता का आचरण कहा जाएगा?
जवाब: संघ तो अध्यापक की भूमिका में सदैव रहा है और उसके प्रचारक बातें अच्छी करते हैं लेकिन काम कितना अच्छा करेंगे उसके लिए देश की जनता ने उन्हें दूसरा अवसर दिया है। इंतजार कीजिए।
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