कलम है मेरी माँ का नाम/स्वर है मेरे पिता. अक्षर है मेरा सगा भाई. ख़बरें/समाचार हैं मेरे बेटे -बेटियां. अखबार है मेरा हीरामन. पाठक हैं मेरे नातेदार. और हम हैं पत्रकार. बोलो क्या कहते हो? उठाओगे बहन वेदना की कराहती आवाज़ को? अगर हाँ, तो आगे बढ़कर थाम लो आदमी का हाथ, बना डालो धारदार तलवार. जी हाँ! धारदार तलवार . धारदार तलवार. धारदार तलवार.
Friday, August 17, 2018
अटलजी जब अपने कार्यकर्ता के घर पहुंचे
लखनऊ | अटलजी लखनऊ से सिर्फ सांसद ही नहीं थे वे यहाँ की मिट्टी से जुड़े थे , उन्हें भाजपा कार्यकर्ता के ही नहीं बल्कि उन सभी के नाम तक याद रहते थे जो उनसे एक-दो बार भी मिला हो | वे लखनऊ में सांसदी का चुनाव अपने कार्यकर्ताओं के कंधों पर छोड़ दिया करते थे | उनके एक कार्यकर्ता थे देवेन्द्र त्रिपाठी जिन पर अटलजी का काफी स्नेह था | देवेन्द्र का घरेलू नाम छुन्नी था , अक्सर अटलजी उन्हें इसी नाम से संबोधित करते थे | उन्हीं के आशीर्वाद से देवेन्द्र महात्मा गांधी वार्ड से एक बार सभासद भी रहे थे | देवेन्द्र के सम्बन्ध लालजी टंडन से भी प्रगाढ़ थे | बतादें देवेन्द्र हुसैनगंज स्तिथ त्रिपाठी मिष्ठान भण्डार के छोटे मालिक भी थे और अटलजी उनकी दुकान की मिठाई के शौक़ीन थे | वे जब भी लखनऊ आते तो देवेन्द्र उनके आस-पास ही दीखते और उन्हें अपनी दुकान की मिठाई खिलाना नहीं भूलते |
देवेन्द्र युवावस्था में ही कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो असमय काल के गाल में समा गये | यह खबर अटलजी को देर से लगी | जब वे लखनऊ आये और उन्होंने देवेन्द्र को अपने स्वागत में जुटी भीड़ की अगली पंक्ति में नहीं देखा तो किसी कार्यकर्ता से उनके बारे में पूंछा, कार्यकर्ता और टंडनजी जो वहां मौजूद थे, ने बताया कि देवेन्द्र का लम्बी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया | अटल जी ने उसी समय सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का काफिला हुसैनगंज त्रिपाठी मिष्ठान जा पहुंचा | दुकान के ऊपरी हिस्से में ही देवेन्द्र का निवास था, वे उनकी पत्नी, बच्चों, बड़े भाई को सांत्वना देने के साथ देर तक रहे | इस सारे समय मीडिया के तामझाम का दूर-दूर तक पता नहीं था | यही उनके व्यक्तित्व की विशेषता है जो उन्हें आज भी अटल बनाये है |
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