स्वर्ग से असुरों को भगाना ही होगा
लखनऊ | कानपुर में पिछले
दिनों किसी संत चोले वाले ने चंद युवाओं की भीड़ में एलान किया कि वह एक ट्रक पत्थर
और दो हजार पत्थरबाज लेकर कश्मीर जाएंगे | इससे पहले भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष भी
कह चुके हैं , कश्मीर की चिंता करने की जरूरत नहीं है | सेना को पत्थरबाजों से
निपटने की खुली छूट देने के भी सरकारी एलान हो चुके हैं | चार-पांच साल पहले की
गरज-तरज देखें तो भाजपा के आला नेता एक सर
के बदले दस सर काट लाने और ५६ इंच की छाती का दम भरते थे | भाजपा की ही तेज-तर्रार
नेत्री पूर्व प्रधानमन्त्री को चूडियाँ भेजने के लिए खासी बेचैन थीं | शिवसेना जो
हिंसा से कतई परहेज नहीं करती उसके अख़बार ‘दोपहर का सामना ‘ के पहले पेज पर यूपीए
सरकार के लिए ‘गाली’ छापी गई थी | आज बहादुरों के चेहरे बदल गये हैं लेकिन बोल वही
हैं | हां , तमाम उपदेशक भी ‘मन की बात ‘ सुनाने को बजिद हैं ? इनमें से कोई भी
कश्मीर की हकीकत जानने या पढ़ने की या सरकार की सोंच जानने की जरूरत नहीं समझता ?
भारतीय सेना के दो जवानों के सर पाकिस्तानियों
द्वारा काट ले जाने से पूरे देश में नाराजगी का माहौल है , हर कोई पाकिस्तान से
बदला लेने की सलाहें देते नहीं थक रहा | वहीं कुछ देशभक्त युद्ध के नुकसान गिनाने
के उपदेश बांट रहे हैं | याद रहे नोटबंदी के दौरान प्रधानमन्त्री समेत पूरी भाजपा
ने दावा किया था कि कश्मीर में पत्थरबाजी रुक गई और आतंकियों की कमर टूट गई |
बड़े-बड़े दावे किये गये लेकिन इस बीच १५००० से अधिक लोग घायल , हजारों लोगों की आँख
की रोशनी प्रभावित हुई , सैकड़ों जाने गईं | इससे आहत कश्मीरियों की चिंता में क्या
किया गया ? एक ओर जश्न-ए-बारामूला के आयोजन को मीडिया में प्रचारित किया गया दूसरी
ओर कश्मीर में आक्रोशित छात्रों-छात्राओं ने खुलेआम सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाये ?
प्रधानमन्त्री व उनकी सरकार के आलावा उनके संस्कारी संगठन ने घाटी के लोगों के लिए
कौन से क्रांतिकारी कदम उठाये ? जाने-माने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने अप्रैल के
आख़िरी हफ्ते में लिखे अपने लेख में साफतौर पर कश्मीर के प्रति प्रधानमन्त्री के
उपेक्षा से भरपूर रवैये का बयान किया है | यहीं प्रधानमन्त्री का पाकिस्तान जाना
और बेहद पोशीदा तरीके से उनके विश्वासपात्र पत्रकार वैदिक व भारतीय उद्योगपति
सज्जन जिंदल का पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री से मुलाकात करना संदेह नहीं पैदा करता
? इतना ही नहीं पाकिस्तान को दहशतगर्द मुल्क घोषित करने संबंधी विधेयक भी पारित
नहीं होने दिया ,और तो और सरकार ने संसद में बहस तक नहीं होने दी ?
इस सबसे आगे सोशल मीडिया पर जानबूझ कर भावनाओं
को भडकाने वाले वीडियो व भडकाऊ सामग्री प्रसारित की जाती रही जो कश्मीरियों के
प्रति अलगाव पैदा करने में सहायक है | पत्थरबाजी को भी सुनियोजित तरीके से
प्रचारित किया जारहा है | वहीं कश्मीर की मुख्यमंत्री जब दिल्ली मदद के लिए आती
हैं तो उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलता | इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
का बयान आता है कि कश्मीर की चिंता करने की जरूरत नहीं है | यह सारे हालात किसी
साजिश की ओर इशारा नहीं करते ? उससे भी अव्वल भाजपा का एलान पंचायत से संसद तक और
देश की समूची धरती पर कमल खिलाना है को नजरंदाज किया जा सकता है ? बहरहाल ५६ इंच
की छाती को सरहद पर पाकिस्तानी आतंकियों के सामने तनना ही होगा और देश का गुस्सा
शान्त करना ही होगा | भारत के स्वर्ग से असुरों को भगा कर शांति बहाल करनी ही होगी
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