Monday, April 2, 2012

लाल कालीन पर नकली भगवानों की खड़ाऊं

भारत भूमि पर रामराज्य कायम करने का षड़यंत्रकारी सपना बेचने वालों के साथ द्दर्म/योग गुरूओं और नकली भगवानों की महत्वाकांक्षी  खड़ाऊं की खटपट लगातार बढ़ती जा रही है। इनमें कौन चाणक्य की भूमिका में है? कौन विश्वामित्र की फोटोकाॅपी है? कौन अपने को गुरू वशिष्ठ समझने के मुगालते में है? यह तय करना सवा सौ करोड़ भारतीयों के लिए शायद मुश्किल हो, लेकिन राजनैतिक गढि़यों और किलांे में इनके लिए एकदम नये, मुलायम लाल कालीन बिछा दिये गये हैं। यही वजह है कि श्री श्री रविशंकर को सरकारी स्कूल नक्सलियों के उत्पादक लगते हैं। योग गुरू स्वामी रामदेव को कालाधन कांग्रेस काॅलोनी में दिखाई देता है। भगवान आशाराम बापू को राहुल गांधी भारतीय राजनीति में वंशवाद का जघन्य उदाहरण लगते हैं।
    धर्म और राजनीति की भांग के नशे में आदमी लाखों बरस से गाफिल हैं। रामायणकाल से लेकर गोरे लाॅट साहबों तक इसकी गवाहियों में पोथियां भरी पड़ी हैं। आजाद भारत के पहले आम चुनाव 1952 में उत्तर प्रदेश के जनपद इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को स्वामी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनौती दी थी। ब्रह्मचारी को स्वामी करपात्री जी की अखिल भारतीय राम राज्य परिषद व हिन्दू महासभा का समर्थन प्राप्त था। इनका विरोध नेहरू के हिंदू कोड बिल को लेकर था। नेहरू की पैतृक भूमि इलाहाबाद में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का प्रचार इस कदर आकर्षक और भावनात्मक था कि जनता से लेकर मीडिया तक आंदोलित थे केसरिया पगड़ी, बढि़या ऐनक और सफेद जामे में सजे-धजे ब्रह्मचारी, उनके भजन गायकों और नर्तकों ने लोगों को खूब लुभाया। ब्रह्मचारी भाषणों में जनता को बताते कि इस विधेयक से धर्म का नाश होगा, परिवारिक शोषण बढ़ेगा, भई-बहनों में वैमनस्य पैदा होगा, जातीय मतभेद होंगे, संपत्ति विवाद और विवाह में विसंगतियां बढ़ंेंगी और इन झगड़ों से वकीलों को फायदा होगा। ब्रह्मचारी के ओजस्वी भाषाणों का फूलपुर (इलाहाबाद) की जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वे बुरी तरह पराजित हुए। उसके साथ ही करपात्री जी का राम राज्य परिषद भाजपा के पुराने घर भारतीय जनसंघ में समा गया। इसके बाद राजनीति के रंगमहल में कीर्तन करनेवाले कई स्वामियों, गुरूओं और भगवानांें का आना-जाना हुआ। इंदिरा गांधी के समय में योग गुरू स्वामी द्दीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बड़ा प्रताप रहा। वे इंदिरा जी के निकट ही नहीं थे, बल्कि आला अफसरों की तेनाती, तबादलों से लेकर मंत्रियों की कुर्सी तक तय करने में अहम भूमिका निभाने के साथ पर्दे के पीछे इंदिरा जी के लिए राजनैतिक सौदबेाजी, मंत्रणा तक में पूरी तरह मुस्तैद रहते थे। इसी कारण पुराने नेता, मंत्रीगण, अफसरान स्वामी जी के भक्तांें में शुमार होते। इन्हीं लोगांे के चलते जहां स्वामी जी अरबपति हुए, वहीं उन्हांेने जम्मू राज्य में एक गन फैक्ट्री भी लगा ली थी। जब इंदिरा जी का इमरजेंसी के बाद पराभाव हुआ तो स्वामी को कई आपराधिक मुकदमों का सामना करने के साथ अपनी संपत्तियों को बचाने के लिए लड़ाइयों लड़नी पड़ीं। इसी बीच वे एक जहाज दुर्घटना में मारे गये थे।
    सत्ता के शीर्ष पर चन्द्रा स्वामी की धमक शायद भारतीयों को अच्छे से याद होगी। इनके भक्तों में दों प्रधानमंत्रियों पी.वी. नरसिम्हा राव और चंद्रशेखर का नाम था। राव साहब के समय में उनका दखल अंतर्राष्ट्रीय मामलों तक में था। हथियारांे की खरीद में भी उनकी भूमिका पर जहां उन पर उंगलियां उठीं, वहीं अंतर्राष्ट्रीय हथियारों के सौदागर अदनान खाशोगी से उनके संबंधों को लेकर खासी चर्चा रही। अदनान के निजी हवाई जहाज पर की गई स्वामी की यात्राओं के खुलासे भी अखबारों की सुर्खियां बने थे। उन खबरों में छपा था, हवाई जहाज में दुनियाभर की उम्दा शराब और आलादरजे की सुंदरियां स्वागत के जाम छलकाती थीं। नरसिम्हा राव की सरकार जाने के बाद माफिया बबलू श्रीवास्तव से रिश्तों के किस्सों के साथ तमाम आपराधिक व टैक्स मामलों में लिप्त होने के आरोपों के चलते चन्द्रा स्वामी को तिहाड़ जेल में काफी समय काटना पड़ा।
    राम मंदिर आन्दोलन ने कई नये स्वामियों को भाजपाई राजनीति के रथ पर सवार करा कर 1991 में संसद के भीतर तक पहुंचा दिया। इनमें आग उगलनेवाली उमा भारती, स्वामी विश्वनाथ शास्त्री, स्वामी चिन्मयानन्द, महन्त अवैद्यनाथ सहित दस धर्मनेता थे। महन्त अवैद्यनाथ की राजनैतिक पृष्ठभूमि हिन्दू महासभा से थी और उनके गुरू महन्त दिग्विजय नाथ पहले भी गोरखपुर से सांसद रहे थे। अवैद्यनाथ गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं। इनके शिष्य योगी आदित्यनाथ भारतीय जनता पार्टी से इस समय गोरखपुर से सांसद हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा के समर्थन में आशाराम ने गुजरात में प्रचार अभियान में सक्रियता दिखाई थी, लेकिन उन्हंे हत्या के एक मामलें में फंसने के कारण अपने कदम पीछे खींचने पड़े। कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती संघ के रथ पर सवार होकर तामिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता के बेहद करीब हुए थे, लेकिन उन्हें एक हत्या की साजिश में गिरफ्तार होना पड़ा था। इसी तरह स्वामी चिन्मयानन्द पर भी बलात्कार का आरोप उनकी ही एक शिष्या ने लगाया है। भाजपा के गोविंदाचार्य और उमा भारती के किस्से भी जबर्दस्त चटखारे लेकर सुने गये। इसके बावजूद इन नकली भगवानों का कुतर्क विश्वामित्र-राम, श्रीकृष्ण-अर्जुन, चाणक्य-चन्द्रगुप्त और समर्थ रामदास-शिवाजी को गिनाता है।
    राजनीति में हाल के दिनों में उभरी ‘लिट्टी-चोखा’ या ‘फास्टफूड’ संस्कृति ने योगा और आर्ट-आॅफ लिविंग को करोड़पतियों की जमात में ला खड़ा किया जिसके चलते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिन्दुत्व और भाजपा का सत्तामोह एक बार फिर उछाले मारने लगा है। इसी ज्वार की लहरों पर रामदेव, रविशंकर और अन्ना का उतराना-डूबना फिर उतराना दिखाई दे रहा है। जबकि सच यह है कि भारत का कोई भी हिन्दू, मंदिर या राममंदिर के लिए आज की तारीक्ष में पगलाया नहीं है। इसके अलावा हिन्दू को आसानी से तब और भी बरगलाया नहीं जा सकता जब उसके तथाकथित नकली भगवान दिल्ली के रामलीला मैदान से औरतों के कपड़े पहनकर भाग निकलते हैं और 24 घंटे के बाद सामने आने पर फुक्का फाड़कर रोते दिखाई देते हैं। धर्म का भयादोहन करके धर्मनेता राजनेता बनने में शायद इसीलिए असफल रहते रहे हैं।

1 comment:

  1. एक और अच्छी प्रस्तुति |
    ध्यान दिलाती पोस्ट |
    सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
    दिनेश पारीक
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    http://vangaydinesh.blogspot.in/
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