लखनऊ। अपराध की दुनिया में मुंबइया सरगनाआंे की नामवरी ने समूचे देश में अपराधियों की एक अलग कौम पैदा कर दी है। सोने के तस्कर हाजी मस्तान और उसके हम कदमों के अलावा उसके शागिर्द दाऊद इब्राहीम के चेेले चांटों की एक बड़ी फौज हर तरफ सक्रिय है। इसके साथ ही शिवसेना से जुड़े रहे कई नामों में अरूण गवली उर्फ डैडी व छोटा राजन के गुर्गों का बोलबाला भी कम नहीं है। इनके वर्चस्व की जंग में हजारों शहीद हुए लोगों में उप्र के लोगों की संख्या भी सैकड़ों में है। आज भी उप्र में सक्रिय तमाम गरोहों के तार दाउद या छोटा राजन से जुुड़े हैं। हालांकि 58 साल की उम्र पार कर रहे दाउद पाकिस्तान में रहकर और 52 साल के छोटा राजन साउथ अफ्रीका में रहकर अपने-अपने गरोहों का संचालन कर रहे हैं, लेकिन पिछले कई सालों से इन दोनों ने सीधे किसी को धमकाया नहीं, न ही किसी से भारत में सीधे वसूली की बात की है। कहा जा रहा है कि अपनी उम्र के लिहाज, आरामतलबी व पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई के साथ लश्करें तोइबा जैसे आतंकवादी संगठनों की गिरफ्त में रहने के कारण दाऊद अपने गुर्गों के जरिए ही काम करता हैं। छोटा राजन की एक किडनी खराब है और उसे डायलसिस पर रहना पड़ रहा है। इसी कारण उसे भी अपने गुर्गों का सहारा है। बावजूद इसके उप्र में इन दोनों की सक्रियता कम नहीं हुई है, भले ही अबु सलेम अलग हैं या भरत नेपाली मारा गया हो।
इलाहाबाद में पिछले साल एक रसूखदार नेता पर बम से हुआ हमला या ठके-पट्टे को लेकर लगातार होने वाली हत्याएं। या हाल ही मंे लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण डॉ0 बी.पी. सिंह की हत्या को भी इसी नजरिये से देखने में लगी है, लखनऊ पुलिस। हालांकि एक डिप्टी सीएमओ सहित कई गिरफ्तारियों के साथ पूर्वांचल के बाहुबलियों व सत्तादल से जुड़े कई नेताओं पर भी नजरें गड़ाए हैं पुलिस। अंदरखाने माफियाओं और राजनेताओं के ‘अंडरपॉवर’ वाले सभी गलियारों में छानबीन जारी है। पुलिस दावे ढेरों कर रही है, लेकिन पिछले सीएमओ डॉ0 विनोद आर्य की हत्या की गुत्थी आज तक अनसुलझी है। इससे भी अहम बात है महज (2 मार्च-2 अप्रैल-2011) तीस दिनों में अकेले राजधानी लखनऊ में चौबीस हत्याएं हो गईं। इनमें से एक का भी खुलासा नहीं हो सका है। हां, लीपापोती की कोशिशें जारी हैं।
विपक्ष भी ऐसे मौके का फायदा उठाकर इन हत्याओं पर अपनी राजनीति चमकाने में लगा हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा ने एक स्वर में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने के साथ अपराधियों व माफियाओं को समर्थन देने का आरोप सत्तादल बसपा पर लगाया है। सभी विपक्षी दलों ने जहां इस हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, वहीं सरकार ने इसे ठुकरा दिया है। सरकार की मंशा जानकर विपक्ष उस पर लगातार हमलावर है। उसका कहना है यह हत्याकांड राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नाम पर केन्द्र से आनेवाली हजारों करोड़ की रकम के बंटवारे को लेकर हुआ है। यह कोई अकेली घटना नहीं है और न ही फर्जी गुल-गपाड़ा मचाया जा रहा है, बल्कि कालाधन के बादशाह हसनअली के तार मुख्यमंत्री के घर पर तैनात रहे आइएएस विजय शंकर पांडे से जुड़े होने का ताजा खुलासा भी हुआ है। इसके अलावा सूबे के सभी मलाईदार महकमों मंे सत्तादल के मंत्री, विधायकों, सांसदों, बाहुबलियों के साथ बड़े माफियाओं का कब्जा है। खुलकर सरकारी पैसों की लूट जारी है। इसी लूट में जब भी कोई अड़ंगेबाजी होती है तो कभी इंजीनियर तो कभी डॉक्टर, तो कभी ठेकेदार, तो कभी राजनेता तक की हत्याएं हो जाती हैं। ऐसे में आम आदमी की सुरक्षा कैसे संभव हैं?
सूबे की जेलों में बंद माफियाओं पर भी इन हत्याओं को लेकर सुगबुगाहट है। पिछले साल डॉ0 आर्य की हत्या के बाद लखनऊ जेल मंे बंद रहे फैजाबाद के एक सरगना से लम्बी पूछताछ हुई थी। डॉ0 सिंह की हत्या के बाद भी जेलों में बन्द बाहुबलियों समेत कई सरगनाओं पर पुलिस माथापच्ची कर रही है। एशिया के अपराधजगत में अपहरण उद्योग के बादशाह माने जाने वाले बबलू श्रीवास्तव के साथियों को भी खंगालने का मन बनाए हैं पुलिस के आलाधिकारी। हालांकि बबलू श्रीवास्तव के लोगों की सक्रियता सरकारी ठेकों में कम दिखती है। बबलू की टक्कर दाऊद इब्राहीम से है, तभी तो उसने छोटा राजन व अली बुंदेश से हाथ मिलाकर दाऊद का धंधा चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आज भी दाऊद के गुर्गों को ठिकाने लगाने में सक्रिय है।
सूत्र बताते हैं बबलू ने नेपाल मंे सक्रिय दाऊद व आइएसआई के लिए काम करने वाले मिर्जा दिलशाद बेग, जमीम शाह सहित तीन लोगों की हत्याएं दो बरस पहले करा दी थीं। नतीजे में तमतमाए दाऊद ने बबलू की हत्या के लिए चार करोड़ की सुपारी मो0 सगीर के जरिये नेपाल में सक्रिय लश्करे तोइबा के ऑपरेशनल चीफ वसी अख्तर को दे दी। इसकी भनक उप्र खुफिया पुलिस को लगी, तब बरेली जेल में बंद बबलू की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। उसको पेशी के लिए लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी आदि के कोर्ट में ले जाने के लिए ‘वज्र वाहन’ का इस्तेमाल किया जाने लगा। इस विशेष ‘वज्र वाहन’ के साथ चालीस-पचास हथियारबंद जवान भी चलते हैं।
बबलू श्रीवासतव को जब अपनी सुपारी दिये जाने की खबर लगी तो उसने जेल से ही अपने नेटवर्क को सक्रिय किया। उसने अपने लोगों को वसी को नेपाल में व सगीर को कराची में घुसकर मारने का आदेश दिया। ऐसा ही हुआ भी, गए साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में नेपाल के वीरगंज चौराहे पर वसी अख्तर को गोलियों से भून डाला गया। घायल वसी अस्पताल में एक हफ्ते मौत से लड़ते हुए हार गया। इसके एक महीना बीतने से पहले ही दिसंबर के दूसरे हफ्ते में कराची के गैबन में एक टी-स्टाल पर पहले से घात लगाए चार शूटरों ने मो0 सगीर को सरेआम भून दिया। कराची के एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक सगीर की लाश घंटों खुली सड़क पर पड़ी रही। इसी कड़ी में हाल ही में नेपाल में दाऊद के जाली नोटो का कारोबार संभालने वाले यूनुस अंसारी पर जेल के भीतर हमला हुआ है। ऐसे में यह कहना कतई गलत न होगा कि सूबे मंे माफिया, राजनेता व नौकरशाही की तिकड़ी के ‘अण्डर पॉवर’ का आतंक पूरे तौर पर जारी है।
इलाहाबाद में पिछले साल एक रसूखदार नेता पर बम से हुआ हमला या ठके-पट्टे को लेकर लगातार होने वाली हत्याएं। या हाल ही मंे लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण डॉ0 बी.पी. सिंह की हत्या को भी इसी नजरिये से देखने में लगी है, लखनऊ पुलिस। हालांकि एक डिप्टी सीएमओ सहित कई गिरफ्तारियों के साथ पूर्वांचल के बाहुबलियों व सत्तादल से जुड़े कई नेताओं पर भी नजरें गड़ाए हैं पुलिस। अंदरखाने माफियाओं और राजनेताओं के ‘अंडरपॉवर’ वाले सभी गलियारों में छानबीन जारी है। पुलिस दावे ढेरों कर रही है, लेकिन पिछले सीएमओ डॉ0 विनोद आर्य की हत्या की गुत्थी आज तक अनसुलझी है। इससे भी अहम बात है महज (2 मार्च-2 अप्रैल-2011) तीस दिनों में अकेले राजधानी लखनऊ में चौबीस हत्याएं हो गईं। इनमें से एक का भी खुलासा नहीं हो सका है। हां, लीपापोती की कोशिशें जारी हैं।
विपक्ष भी ऐसे मौके का फायदा उठाकर इन हत्याओं पर अपनी राजनीति चमकाने में लगा हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा ने एक स्वर में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने के साथ अपराधियों व माफियाओं को समर्थन देने का आरोप सत्तादल बसपा पर लगाया है। सभी विपक्षी दलों ने जहां इस हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, वहीं सरकार ने इसे ठुकरा दिया है। सरकार की मंशा जानकर विपक्ष उस पर लगातार हमलावर है। उसका कहना है यह हत्याकांड राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नाम पर केन्द्र से आनेवाली हजारों करोड़ की रकम के बंटवारे को लेकर हुआ है। यह कोई अकेली घटना नहीं है और न ही फर्जी गुल-गपाड़ा मचाया जा रहा है, बल्कि कालाधन के बादशाह हसनअली के तार मुख्यमंत्री के घर पर तैनात रहे आइएएस विजय शंकर पांडे से जुड़े होने का ताजा खुलासा भी हुआ है। इसके अलावा सूबे के सभी मलाईदार महकमों मंे सत्तादल के मंत्री, विधायकों, सांसदों, बाहुबलियों के साथ बड़े माफियाओं का कब्जा है। खुलकर सरकारी पैसों की लूट जारी है। इसी लूट में जब भी कोई अड़ंगेबाजी होती है तो कभी इंजीनियर तो कभी डॉक्टर, तो कभी ठेकेदार, तो कभी राजनेता तक की हत्याएं हो जाती हैं। ऐसे में आम आदमी की सुरक्षा कैसे संभव हैं?
सूबे की जेलों में बंद माफियाओं पर भी इन हत्याओं को लेकर सुगबुगाहट है। पिछले साल डॉ0 आर्य की हत्या के बाद लखनऊ जेल मंे बंद रहे फैजाबाद के एक सरगना से लम्बी पूछताछ हुई थी। डॉ0 सिंह की हत्या के बाद भी जेलों में बन्द बाहुबलियों समेत कई सरगनाओं पर पुलिस माथापच्ची कर रही है। एशिया के अपराधजगत में अपहरण उद्योग के बादशाह माने जाने वाले बबलू श्रीवास्तव के साथियों को भी खंगालने का मन बनाए हैं पुलिस के आलाधिकारी। हालांकि बबलू श्रीवास्तव के लोगों की सक्रियता सरकारी ठेकों में कम दिखती है। बबलू की टक्कर दाऊद इब्राहीम से है, तभी तो उसने छोटा राजन व अली बुंदेश से हाथ मिलाकर दाऊद का धंधा चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आज भी दाऊद के गुर्गों को ठिकाने लगाने में सक्रिय है।
सूत्र बताते हैं बबलू ने नेपाल मंे सक्रिय दाऊद व आइएसआई के लिए काम करने वाले मिर्जा दिलशाद बेग, जमीम शाह सहित तीन लोगों की हत्याएं दो बरस पहले करा दी थीं। नतीजे में तमतमाए दाऊद ने बबलू की हत्या के लिए चार करोड़ की सुपारी मो0 सगीर के जरिये नेपाल में सक्रिय लश्करे तोइबा के ऑपरेशनल चीफ वसी अख्तर को दे दी। इसकी भनक उप्र खुफिया पुलिस को लगी, तब बरेली जेल में बंद बबलू की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। उसको पेशी के लिए लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी आदि के कोर्ट में ले जाने के लिए ‘वज्र वाहन’ का इस्तेमाल किया जाने लगा। इस विशेष ‘वज्र वाहन’ के साथ चालीस-पचास हथियारबंद जवान भी चलते हैं।
बबलू श्रीवासतव को जब अपनी सुपारी दिये जाने की खबर लगी तो उसने जेल से ही अपने नेटवर्क को सक्रिय किया। उसने अपने लोगों को वसी को नेपाल में व सगीर को कराची में घुसकर मारने का आदेश दिया। ऐसा ही हुआ भी, गए साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में नेपाल के वीरगंज चौराहे पर वसी अख्तर को गोलियों से भून डाला गया। घायल वसी अस्पताल में एक हफ्ते मौत से लड़ते हुए हार गया। इसके एक महीना बीतने से पहले ही दिसंबर के दूसरे हफ्ते में कराची के गैबन में एक टी-स्टाल पर पहले से घात लगाए चार शूटरों ने मो0 सगीर को सरेआम भून दिया। कराची के एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक सगीर की लाश घंटों खुली सड़क पर पड़ी रही। इसी कड़ी में हाल ही में नेपाल में दाऊद के जाली नोटो का कारोबार संभालने वाले यूनुस अंसारी पर जेल के भीतर हमला हुआ है। ऐसे में यह कहना कतई गलत न होगा कि सूबे मंे माफिया, राजनेता व नौकरशाही की तिकड़ी के ‘अण्डर पॉवर’ का आतंक पूरे तौर पर जारी है।
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