Thursday, August 11, 2011

सावन में आए हरि शंकर

पांच अगस्त किसी मांगलिक पर्व की बेला भले ही न हो, लेकिन पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर हर-हर महादेव का जयघोष अवश्य गंूजता है। हरि स्मरण यानी भगवान शंकर की स्तुति और सावन की मस्ती। आदमी के मन में तीर्थ के पुण्यलाभ का अहसास। एक ओर महादेव के जलाभिषेक की श्रद्धा, दूसरी ओर मानव को जल का उपहार। दोनों ही मानव जीवन की अमूल्यता। सावन की बरखा जहां धरती को उपजाऊ बनाती है, वहीं युवाओं के मन में मस्ती की हिलोरें पैदा करती है। भाई के प्रति बहनों में अनुराग की ऊर्जा देती है। पुत्र माता-पिता को कांधों पर उठाए भोले बाबा के दरवाजे ले जाते श्रवण कुमार के भाव भी इसी सावन में देखने को मिल जाते हैं। सावन में ब्याही बेटियां अपने मायके आकर वात्सल्त्य जीती हैं। गो कि सावन जीवन की खिलखिलाहट है। मानव मन के लिए तीर्थ है। इसी सावन के महीने में 71 साल पहले 5 अगस्त को ईश्वर ने गोरखपुर की धरती पर एक हस्ताक्षर किया था। जिसे देश-दुनिया पं0 हरिशंकर तिवारी के नाम से जानती है।
    नाम के अनुरूप ही भोले बााब सा स्वभाव। दसियों भस्मासुरों को आशीष देने के बाद भी होठों पर निश्छल मुस्कान। कोई राग नहीं, द्वेष नहीं। यही भावना उनके वसुधैव कुटम्बकम यानी पूरे समाज को ही अपना परिवार मानने की इच्छा और क्षमता को उजागर करती हैं। मैं एक लम्बे समय से उनका सानिध्य पाने का गौरव पा रहा हूं। मेरे स्मृति के पुस्तकालय में कई संग्रह हैं। इन्हीं में से एक का जिक्र हर बरस उनके जन्मदिन पर कर जाता हूँ। जन्मदिन पर मुबारक बाद देना या प्रणाम करना जीवन में नई ऊर्जा भरने के समान है। करोड़ों-अरबों लोग इसे महज औपचारिक या मौज-मस्ती के पर्व भर तक सीमित कर देने के ‘हैप्पी बर्थ डे’ के इर्द-गिर्द केक पर सजी मोमबत्तियां फूंक कर ताली बजाते, खाते-पीते अघा जाते हैं। दरअसल वे भी ‘बर्थडे ब्वाय’ या ‘बेबी’ को जीने के लिए नई ऊर्जा देने का ही काम करते हैं।
    पंडित जी पांच अगस्त दो हजार ग्यारह को 71 बरस पूरे करके 72वीं चौखट में प्रवेश कर गए। उनका जन्मदिन मनाने जैसा कोई आयोजन कभी नहीं होता। इस दिन भी उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं होता। रोज की तरह उनका गाय, भैंसे, कुत्तों का दुलराना और कसरत के बाद अखबार देखने का नियम नहीं टूटता। न ही आमजन से मिलने और उनसे बतियाने का क्रम बिखरता। तिस पर विलक्षण तो यह कि उनके अगल-बगल बिखरी खास-ओ-आम की भीड़ का आधा फीसदी भी नहीं जानता कि आज उनका जन्मदिन है। वे कभी जताते भी नहीं। हर बरस ‘प्रियंका’ के पन्नों पर उनके जन्मदिवस पर जहां उनकी कुछ बातें हो जाती हैं, वहीं कुछ भूले-बिसरे क्षण भी उजागर हो जाते हैं।
    1992 में प्रियंका वर्षगांठ समरोह में देर से आए पंडित जी देर तक रहे। उनके इंतजार में कई लोग बेताब थे, तो कई को समरोह खत्म होने की जल्दी। उनमें मंत्री जी व आइएएस भी थे। जब वे आए तो सबसे पहले उन्होंने अपने देर से आने के लिए क्षमा मांगी। अपने सम्बोधन में दोबारा खेद जताया। ‘प्रियंका’ को महज समाचार-पत्र नहीं वरन जागरूकता का प्रहरी बताते हुए उन्होंने उसमें छपी एक खबर की ‘हेड लाइन’ पढ़कर सुनाते हुए कहा, ‘ यही विशेषता मुझे यहां तक खींच लाती हैं। सच तो यह है कि अखबार वे ही अच्छे और सच्चे लगते हैं जिनमें अपने आस-पास की अनुभूति हो।’ पंडित जी के जन्मदिन पर ‘प्रियंका’ का यह विशेष अंक उनके लिए नहीं उनके स्वजनों के लिए छपता है। वही उसे पूरे आनन्द से पढ़ते हैं। वहीं इस अंक के जरिए प्रणाम भी करते हैं। ईश्वर पंडित जी को दीर्घायु करें। सादर प्रणाम।

लखनऊ में महादेव ही... महादेव

¬ त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धि पुष्टि वर्धनम्।   उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

केतकी वरमा
लखनऊ। सावन भर भोले बाबा महादेव की पूजा अर्चना कर जीवन में सुख-शान्ति की कामना करने वाले भक्तों की भीड़ मनकामेश्वर मंदिर, कोनश्ेवर मंदिर या बुद्धेश्वर मंदिर में अधिक रहती हैं। बुद्धेश्वर महादेव का मेला हर बुधवार को पूरे सावन भर मंदिर के पास लगता है। मोहान रोड पर बने इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार पूरी तरह हो गया है। इस मन्दिर के शिवलिंग को गुप्तकालीन माना जाता है। मन्दिर के पिछली ओर एक सरोवर का खण्डहर भी है, जहां वीरवर लक्ष्मण के स्नान करने की बात कही जाती हैं। इससे इस तीर्थ की महिमा आंकी  जा सकती है। ग्रामीण और अपढ़ जन इसे ‘बुद्धेसुरन’ कहकर पुकारते हैं। मंदिर में यूं तो हर बुधवार खासी भीड़ होती हैं, लेकिन सावन में यहां भक्तों का तांता देखा जा सकता है। कहते हैं बरसात में लगने वाले मेले में आने के लिए भक्तों को एक उफनाते हुए नाले को पार करने में दिक्कतें होती थी। महादेव की एक भक्तिन धनिया महरी ने उस नाले पर पुल बनवा दिया था, जो आज भी है और धनिया महरी पुल के नाम से जाना जाता है।
    लखनऊ में गोमती नदी के बाएं तट पर मन की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले मनकामेश्वर महादेव का शिव मन्दिर है। शिव मन्दिर मे डालीगंज पुल से होकर जाया जा सकता है। यह बेहद प्राचीन शिवालय है। राजा हिरण्यधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उल्लास में इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के शिखर पर 23 स्वर्णकलश थे। दक्षिण के शिव भक्तों और पूर्व के तारकेश्वर मन्दिर के उपासक साहनियों ने मध्यकाल तक इस मंदिर के मूल स्वरूप में बनाए रखा था। आज के भव्य मंदिर का निर्माण सेठ पूरन शाह ने कराया।
    गोमती नदी के कुड़िया घाट (कौण्डिन्य घाट) के पास कौण्डिन्येश्वर महादेव मन्दिर है, जिसे कोनेश्वर मन्दिर व आम बोलचाल में कोनेसुरन शिवाला कहा जाता है। इस मंदिर के खण्डित शिवलिंग की प्राचीनता और महिमा से भक्तगण बेहद प्रभावित हैं। हर सोमवार मेले जैसा वातावरण रहता है।
    रकाबगंज से नक्खास जाने वाली सड़क नादान महल रोड पर अहाता कमाल जमाल के पास सिद्धनाथ महादेव मंदिर है। इस मंदिर का शिवलिंग काफी समय तक भूमिगत रहा। यहां शिवलिंग की लाट धरती में बहुत अधिक गहरी है, जो चांदी से मढ़ी है। बाबा सिद्धनाथ की ताम्रवर्णी गुप्ताकलीन मूर्ति पर अर्ध्य जल की धार से एक गढ़े का चिन्ह सा बन गया है। शिवालय में पंचदेवोंपासना का निर्वाह होता है। यहां विशाल त्रिशूल और धवलनंदी देखने लायक हैं।
    रानी कटरा मोहल्ले में 9वीं सदी से पहले की सहस्त्रलिंग प्रतिमा वाला बड़ा शिवाला है। इसका निर्माण कश्मीरियों द्वारा दोबारा कराया गया है। यहां के ठाकुरद्वारे में शिव-पार्वती की मूर्तियां हैं। आगे चौपटिया जाते समय खेतगली में छोटा शिवाला है, जिसे 12वीं सदी में सांस्कृतिक संक्रमण के बाद दोबारा पांच सौ दस बरस पहले निर्मित कराया गया था। किंवदंती है कि उस समय इसका अरधा जब दक्षिण उत्तर किया जाता था तो वो अपने आप घूमकर पूरब पश्चिम हो जाता था।
    अलीगंज में जागेश्वर मन्दिर है जो पहले अहिबरनपुर में आता था। इसे कल्लनमल व्यापारी ने बनवाया था। वे शिवभक्त होने के साथ अलीगंज हनुमान मंदिर के निर्माता जाटमल के सम्बन्धी थे।
    लखनऊ के उत्तर में इटौंजा के पूर्व में महोना में बाबा गंगागिरी आश्रम में समाधियां हैं इन सभी समाधियों पर शिवलिंग हैं। कहते हैं यहां बाबा गंगागिरी ने जीवित समाधि ली थी। यहीं एक पक्का तालाब है और उसी के पास मन्दिर है। यहां के दुखहरण द्वार पर गुप्तकालीन चौखट लगी है। इस शिवाले के भक्तों में बड़े राजा रईसों का नाम आता है।
    लखनऊ के उत्तर पूर्व में कुम्हारावां ब्राह्मणों की बस्ती है। यहां के राजा पृथ्वीपाल की रानी जिन्हें गांव वाले धिराजरानी कहते थे, ने कारसेवन मन्दिर का निर्माण अयोध्या के कुशल कारीगरों से कराया। कहते हैं मन्दिर में जो शिवलिंग है। उसे जंगल में चरवाहों ने देखा था। धिराजरानी इस शिवलिंग को अपनी हवेली के पास प्रतिष्ठापित कराना चाहती थी लेकिन शिव को कोई हिला भी नहीं सका सो वहीं पर मन्दिर बना। शिवरात्रि, कजरीतीज और सावन में आज भी मेले जैसा आयोजन होता है।
    लखनऊ के दक्षिण रायबरेली-लखनऊ सीमा पर सई नदी के तट पर भंवरेश्वर मंदिर है। इस शिवाले को औरंगजेब की फौज ने गिरा दिया था लेकिन जैसे ही मूर्ति पर प्रहार किया तो अरधे के पास से इतने भंवरे निकल पड़े कि फौज इनके आतंक से भाग खड़ी हुई। यहां के शिवलिंग पर उस आघात के निशान आज भी बाकी हैं। इसका वर्तमान निर्माण कुर्री सुदौली के राजा सर रामपाल सिंह की पत्नी रानी गणेश कुंवर ने अपनी किसी मनौती के सन्दर्भ में कराया।
    नगर के पश्चिम में सड़क के बांयी ओर नवाब आसिफुद्दौला के शासनकाल में हरिद्वार से आए बाबा कल्याण गिरी ने यहां मुख्य शिवलिंग स्थापित किया था और मन्दिर का निर्माण राजा भवानी महरा द्वारा किया गया था। अब तो कई मन्दिर बन गए हैं। इन्हीं को कल्याणगिरी मन्दिर कहा जाता है। यहां सावन के अलावा कजरीतीज व शिवरात्रि में मेला लगता है। लखनऊ के काकोरी (कर्कपुरी) के करीब बेता नदी के तट पर नवाब आसिफुद्दौला के दीवान राजा टिकैतराय का बनवाया राज राजेश्वर मन्दिर है। यह शिवाला भारशिवों की परम्परा कान्धे पर जल से भरी कंवर उठाए शिवाराधना का जीवंत प्रमाण है। इटौंजा में रत्नेश्वर महादेव के मन्दिर का निर्माण सन् 1892 में इटौंजा नरेश राजा इन्द्र विक्रम सिंह ने कराया था। यहां शिवरात्रि में बड़ी भीड़ होती है।
    लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज में काशीश्वर शिव मन्दिर का निर्माण सिसेंडी के ताल्लुकेदार राजा काशी प्रसाद ने सन् 1860 में कराया था। दोबारा सन् 1926 में उनकी रानी सुभद्रा कुंअर ने भी इसे सुन्दर रूप दिया। इस शिव मन्दिर के साथ आठ कोणों पर आठ शिवाले बने हैं। खास बात यह है कि मन्दिर का द्वारपाल रावण है। यहां शिव दर्शन की बड़ी मान्यता है।
    लखनऊ नगर से मोहान कस्बे के बीच नवलगंज में राजा नवल राय का बनवाया शिवाला अपने शिखर को लेकर बेहद लोकप्रिय है। इसे रचनाधर्मिता के लिहाज से रतन शिवाला भी कहा जाता है। राजा साहब ने एक शिवाला मलिहाबाद में भी बनवाया था, जो आज भी है।
    नवलगंज के पास महाराजगंज है जिसे नवाब वाजिद अली शाह के वित्त मंत्री दीवान राजा बालकृष्ण ने बसाया था। संवत् 1880 में दीवान साहब ने यहां एक भव्य शिव मन्दिर, धर्मशाला व कुआं बनवाया था। इसके शिखर पर पीतल के सिंह और मर्कट बने हैं। द्वार पर कबूतरों का एक जोड़ा बना है।
    लखनऊ के इन सभी शिव मन्दिरांे में सावन, शिवरात्रि, कजरीतीज और हर सोमवार को उत्सव जैसा वातावरण रहता है। सावन में भक्तगण इनकी परिक्रमा लेटकर करते देखे जाते हैं। शिवभक्ति में रचे बसे लखनऊ की गलियों में भी तमाम छोटे शिवाले देखने को मिलते हैं। कई छोटे शिवाले तो सौ से दो सौ बरस पुराने हैं। इन सभी शिव मन्दिरों में आजकल ‘बम भोले’ की गूंज है।

बाबा भक्त है चिल्लूपार

आनन्द अवस्थी/ आदर्श वरमा
गोरखपुर। दिल्ली से बडहलगंज और बड़हलगंज से दिल्ली तक राहुल गांधी की यात्रा के बाद पकौड़ी, पानी और नाव, नदी की चर्चा का दौर जिले के दक्षिणांचल में जारी था। सुबह के नौ बज रहे हैं.... नौसढ़ चौराहा खासा गुलजार नहीं है और बरखा के पानी से भीगा भी नहीं है। हां, आसमान पर ढेरों काले बादल डरा जरूर रहे हैं। गाड़ी अपनी गति से बढ़ रही है। कौड़ीराम पहुंचते ही सड़क पर पानी देख कर थोड़ी हिचक हुई, लेकिन रास्ता जाना पहचाना होने से गाड़ी आगे बढ़ा ली गई। गगहा तक पहुंचते-पहुंचते हल्की-हल्की बूंदों ने स्वागत किया। थाने से पहले कुछ लोगों का जमावड़ा दिखा, गाड़ी धीमी कर हम लोग उतरे। पान की गुमटी से पान मसाला खरीदा, लोग-बाग चुप। मेरे साथी ने ही पूंछा, परसों राहुल गांधी इधर से गुजरे थे....?‘देखीं आप लोग प्रेस से हंईं... सच छापीं त बताई...।’ उनमें से एक नौजवान बोला।
‘आप बताएंगे तो हम अवश्य छापेंगें।’
    ‘त सुनीं... कब गुजर गइने.. हमनी त न देखनी हां पुलिस ढेर रहल...।’ उनके तेवर देख हम लोगों ने आगे बढ़ने में ही भलाई समझी। इस गोल में राजनीति का बुखार नहीं दिखा था। आगे मंझगवां पहुचते ही सड़क किनारे चाय की दुकान पर हम लोग भी चाय पीने बैठे। यहां लोग चिल्लूपार की राजनीति पर बतियाते दिखे। बारिश थमी थी।
    यहां मौजूद लोगों में अधिकतर बातचीत में एक दूसरे को ‘बाबू साहब’ सम्बोधन देते दिखे। मेरे स्थानीय साथी ने बताया यह क्षेत्र ठाकुर बाहुल्य है। इनमें कई लोग पूर्व मंत्री राजेश त्रिपाठी की आलोचना करने में व्यस्त थे। अधिकतर को नौकरी न पाने का मलाल था। एक रामधनी नाम का युवक बेहद नाराजा दिख रहा था। उसी से पं0 हरिशंकर तिवारी के बारे मंे सवाल किया गया। उसका जवाब था।
    ‘देखिए... उनके हरा के मजा तो पा रहे हैं न..।’ गुस्से से लाल चेहरे की आवाज अटक गई थी, थोड़ा स्थिर होने और चाय का एक घूंट भरने के बाद बोला, ‘बाबा के इ बेरियां सबहीं वोट दीहें, काहे के सबके बुझा गईल के काम का नेता बा अवर के नाम का..।’ बीच में एक दूसरा युवक बोला उठा ‘बाबा के लग्गे त गुहार सुनल जाला अवर मंत्री जी त मूंडी हला के चल जात हवैं।’ यहां के स्थानीय लोगों में मिली जुली प्रतिक्रिया बसपा व तिवारी जी के प्रति दिखी। सपा या भाजपा की बात भी किसी ने नहीं की। आगे हम लोग भाटपार, सिधुवापार होते हुए पंडित जी का गांव पीछे छोड़ते बड़हलगंज कस्बे के बस स्टैंड पर जा पहुंचे। यहां राहुल गांधी की चर्चा थी। कई लोग पं0 हरिशंकर तिवारी को कांग्रेस में देखने के इच्छुक लगे। अधिकतर लोग अपने ‘बाबा’ के चहेते दिखे, हर कोई ‘बाबा’ का भक्त नजर आ रहा था। हम लोग किसी से बात किये बगैर भैंसौली गांव के लिए चल पड़े। रास्ते में तिवारी जी का चुनाव कार्यालय स्थल और नेशनल डिग्री कालेज दिखाते हुए मेरे साथी ने गाड़ी आगे मोड़ ली। भैंसोली में मेरे साथ गये रामसजल दूबे के परिचित के यहां डेरा जमा। गांव के जवान-बूढ़े सभी बाबा भक्त। एक सवाल पूछिए, चार जवाब लीजिए। हां, चुनावों को लेकर कोई खास हलचल नहीं, बात करिये तो जवाब हाजिर। मैंने ही पूंछा, ‘ आप लोगों ने पिछले चुनावों में पंडित जी को हराया था, क्या नाराजगी थी?’
    ‘हमार गांव उनहीं के कुल ओटवा दिहे रही उ त उनकै घर-घरान उन्हैं हराईश.. एह पारी उन्हैं एक-एक ओट परी।’ पूरा गांव पंडित हरिशंकर तिवारी के साथ दिखा। हम वहां से लौटकर फिर बड़हलगंज कस्बे पर पहुंचे। पंडित जी के चुनाव कार्यालय में कोई हलचल नहीं। दोपहर ढल रही है। यहां से पंडित जी का गांव टांड़ा कोई तीन चार किलोमीटर है। अभी हम लोग आगे बढ़ना चाह ही रहे थे कि एक स्कूल मे प्रधानाचार्य त्रिपाठी जी टकरा गए। वे बातों ही बातों में बोले, ‘यहां न बसपा, न सपा, न भाजपा, न कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ हरिशंकर तिवारी का गढ़ है।’
    ‘तो फिर पिछला चुनाव क्यों हार गये थे पंडित जी?’
    ‘वो तो इंदिरा गांधी को सर पर हरा साफा बांधकर राजनारायण भी हरा दिए थे, फिर क्या हुआ। उसी तरह सफेद साफा बांधे राजेश त्रिपाठी ने उन्हें हरा दिया। उनके एक बार हार जाने से चिल्लूपार के जनजीवन को भी सब पता चल गया कि कौन यहां के लोगों का हितैषी है।’ इस बीच कई लोग आ गये थे, जो अपनी-अपनी बात कहते रहे। जिसका लब्बोलुआब यह था कि 1984 से लेकर अब तक इस क्षेत्र में न सपा का, न बसपा का कोई जनाधार रहा, न ही भाजपा का। हां, लोग पंडित जी के विरूद्ध मैदान में जरूर उतरते थे लेकिन हार जाते थे। पूर्वांचल की राजनीति में भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ का काफी दबदबा है, लेकिन चिल्लूपार में उनका प्रभाव भी न के बराबर। भाजपाई कमल यहां कभी नहीं खिल सका। समाजवादी साइकिल और बसपा के हाथी की चाल हमेशा सुस्त रही। कांग्रेस का पंजा भी पंडित जी का ही हाथ थामें रहा। सिद्दुवापार से टांड़ा के मोड़ पर कई लोगों से बातचीत में लगा कि युवाओं की चाहत में पंडित जी के छोटे पुत्र भी हैं।
    यहां चुनावी मुद्दे जैसी कोई चर्चा नहीं। किसी का भी मुद्दा विशेष पर जोर नहीं। हां कानून-व्यवस्था, दबंगई के अलावा रोजी-रोजगार के साथ बाढ़ग्रस्त क्षेत्र को लेकर चिंता जरूर है और उसकी बात करते भी रहे। सांझ ढल रही थी हमें इलाहाबाद लौटना था लेकिन पंडित जी का गांव छूट रहा था, फिर कभी सही। हर ओर ‘बाबा भक्तों’ से हुई मुलाकात दोबारा आने की चाहत जगा रही है।

महंगाई मुर्दाबाद! मुर्दाबाद!! मुर्दाबाद!!! पचास में लौकी, सौ में मटर... क्या खाएं?

लखनऊ। महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। आदमी को दाल-रोटी के लाले हैं। दालें, सब्जियों के भाव जहां आसमान छू रहे हैं, वहीं दूध, फल और मांस, मछली, तेल-घी तक बेभाव बिक रहे हैं। इससे भी मजेदार बात है कि जो सब्जी चौक, ठाकुरगंज, दुबग्गा में 40 रु0 किलो मिलती है, वही हजरतगंज, हुसैनगंज में 60 रु0 किलो, यही फर्क गोमतीनगर, गोलागंज व आलमबाग-अमीनाबाद का है। हैरत तब होती है जो टमाटर सुबह 50 रु0 किलो बिकता है, वही शाम को 80 रु0 किलो बिकता मिलेगा। मानो सब्जियों को भी शेयर बाजार में उतार दिया गया है। बावजूद इसके यह राजनैतिक दलों सिविल सोसायटी और धमाकाधुनी मीडिया की चिन्ता का विषय नहीं है।
    गौरतलब है, अखबार और टीवी चैनल पर रिजर्व बैंक के ब्याजदर बढ़ाने पर कार-होम लोन की चिंता को लेकर प्रमुखता से खबरें छापी व प्रसारित की गईं। इनमें बताया गया होम लोन लेने वाले 57 लाख, कार लोन लेने वाले 65 लाख से अधिक लोग प्रभावित होंगे, इनकी जेबें कितनी कटेंगी। जबकि यही लोग देश में हो रहे भ्रष्टाचार के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। इन खबरों में बढ़े पेट्रोल-डीजल के दामों की बढ़ोत्तरी से भी इसी वर्ग की परेशानी का जिक्र किया गया है। जबकि डीजल और किरोसिन की आवश्यकता किसानों और गरीबों को अधिक होती है। उनकी परेशानी का कहीं कोई जिक्र नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी किरोसिन पर जीवन टिका है। रोशनी के लिए लोग किरोसिन की ढिबरियों/लालटेन की रोशनी में ही गुजारा करते हैं। खेती के लिए डीजल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। गांव की छोड़िए राजधानी के विधानसभा मार्ग, हजरतगंज जैसे इलाकों में जहां सरकार रहती है, वहां आठ-दस घंटों से लेकर दो-तीन दिन तक बिजली गायब रहती है, फिर भी उसकी दरों में इजाफे के लिए सरकार परेशान है। इसी तरह रसोई गैस की दरांे में दुगनी बढ़ोत्तरी की आशंकाएं जाहिर की जा रही है।
    सब्जियों के भावों में आलू-प्याज छोड़कर हर सब्जी यहां तक लौकी-कद्दू तक के भाव 20 रु0 किलो तक हैं। नारी का साग जिसे बरसात में गरीब ही खाते हैं, 40 रु0 किलो बिक रहा है। लहसून, मटर सौ रु0 से ऊपर बिक रहे हैं। फलों की दशा इससे भी बदतर हैं। आदमी की इस परेशानी की चिंता विपक्ष के किसी भी नेता या सिविल सोसायटी को नहीं है। कोई भी राजनैतिक दल इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहता, सबको 2012 में प्रदेश पर राज करने की बेचैनी दुबला किए हैं।

माया के खास विपक्ष के पास

लखनऊ। राहुल गांधी नौटंकी कर रहे हैं। भाजपा ड्रामा कर रही है। सपाई नाटकबाजी कर रहे हैं। बाकी बचे विपक्षी फालतू शोर मचा रहे हैं। यह वाक्य दोहराते हुए बसपा मुखिया से लेकर पार्टी का छोटे से छोटा कार्यकर्ता भले नहीं थकता, लेकिन विपक्ष की यही नौटंकी/ड्रामें प्रदेश के साढ़े बारह करोड़ मतदाताओं के साथ-साथ नौकरशाहों को खूब लुभा रहे हैं। इसके सुबूत में मतदाताओं की एकजुटता की खबरें आने के साथ बड़े अपराधी सरगनाओं और नौकरशाहों की विपक्षी खेमे के साथ होने वाली पोशीदा खास बैठकें हैं। पूर्वांचल के एक बाहुबली नेता पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल हुए हैं और कई प्रयासरत हैं। सपा में इन बाहुबलियों की भागीदारी लगातार बढ़ रही हैं। भाजपा के राजनाथ व कांग्रेस के राजीव शुक्ला नामी सरगनाओं पर डोरे डालने में व्यस्त हैं। खबरों के मुताबिक बसपा सरकार के खासमखास और विशेष कुर्सियों पर विराजमान आइएएस व आइपीएस अद्दिकारी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से नजदीकियां बढ़ाने के जतन में लगे हैं।
    गाजियाबाद-हापुड़ के बीच एक रिसार्ट में पिछले महीने बसपा मुखिया के मुंह लगें उप्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों की लम्बी मुलाकात सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से हुई। इस बैठक में दोनों अधिकारी सपा मुखिया के सामने अपनी सफाई देते रहे। ऐसी ही कई बैठकें अलग-अलग जगहों पर कई अधिकारियों के साथ हुई बताई जा रही हैं। इस सच को स्वीकारते हुए समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है, ‘मुझसे बहुतेरे अधिकारी मिलने आते हैं। वे भी आए जिन्हें इस सरकार ने तरह-तरह से प्रताड़ित किया है। निलंबित अद्दिकारियों को कहीं न कहीं तो शरण लेनी ही होगी।’ सूत्रों की मानें तो प्रदेश में नेता विपक्ष और सपा के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव से हाल ही में मिले एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान छुपाते हुए फोन पर ‘प्रियंका’ से बताया, ‘पिछले चार सालों में इस सरकार ने हमसे घरेलू नौकरों से भी बदतर व्यवहार किया और तमाम नियम विरूद्ध काम कराए। हमारे पास आदेश मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। अब विद्दानसभा चुनावों में चंद महीने रह गये हैं और मायावती की बसपा की वापसी की उम्मीदें लगातार धूमिल होती जा रही हैं। ऐसे हालात में आनेवाली सरकार में हमें अपनी जगह बनाने का प्रयास अभी से ही करना होगा।’
    बसपा मुखिया के अतिनिकट और पंचमतल के नंबर एक की हैसियत रखने वाले वरिष्ठ अधिकारी ने अंग्रेजी अखबार के एक संवाददाता से बतियाते हुए कहा, ‘समाजवादी पार्टी के नेताओं से मुलाकात के समय उन्हें साफ-साफ बताया कि आप लोग स्वयं समझ सकते हैं कि कितने दबाव मैं विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित करने की कार्रवाई करनी पड़ी। यह इसलिए भी जरूरी था कि मैं अगली सरकार में दंडित नहीं होना चाहता।’
पंचमतल के ही एक खासुलखास आइएएस अधिकारी ने पिछले महीने एक हवाईयात्रा के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व उप्र प्रभारी दिग्गीराजा को भी लगभग गिड़गिड़ाते हुए सफाई देते हए कहा, ‘ हम तो सरकार के नौकर हैं, उसकी मंशा के विरूद्ध जाने पर आने वाली दिक्कतों से आप वाकिफ हैं।’ इस यात्रा में एक पत्रकार बन्धु के माध्यम से दोनों में देर तक वार्तालाप चला। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा से मिलने वाले नौकरशाहों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। हालांकि उप्र की मुखिया की राजनीति के जेरेनजर यह अक्षम्य अपराद्द है। इस तरह का विश्वासघात जब मुख्यमंत्री से हो सकता है तो बसपा के और नेताओं के साथ भी हो रहा होगा। यह सवाल जहां अपने आपमें बसपा नेताओं को बेचैन किए है वहीं बसपा के एक अतिविशिष्ट सांसद का कहना है, ‘हमें बखूबी पता है कि ये नौकरशाह भरोसे के काबिल नहीं है, लेकिन बहनजी की मंशा क्या है, जानकर ही कुछ सोंचा जा सकता है। उन्हें इन नौकरशाहों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास रहा है। आज के हालात देखकर हम अपनी और पार्टी की जनछवि पर गहराई से मंथन कर रहे हैं, भरोसेमन्द सूत्रों के मुताबिक विपक्ष के नेताओं और अद्दिकारियों के बीच सम्पर्क सूत्र का काम करने वाले दो पत्रकार और एक मुसलमान सचिवालय कर्मचारी नेता हैं। यह लोग मायावती सरकार के तमाम ब्यौरे विपक्षी नेताओं के हाथों में पहुंचवाने के जुगत में भी सक्रिय हैं।
    जानकारी के अनुसार इन बिचौलियों ने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा सरकार के बीच जहां कई बैठकें आयोजित कराई हैं, वहीं बसपा सरकार के घोटालों, भ्रष्टाचार के सुबूत भी विपक्षी नेताओं को उपलब्ध कराएं हैं। कांग्रेस दफ्तर के अति विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से मिलने को बेताब बसपा मुखिया के बेहद करीबी अधिकारी जो उच्चतम न्यायालय की निगाहों में भी है, की गुप्त बैठक कराने में दिल्ली के एक बिल्डर व उप्र के एक पूर्व आइपीएस अधिकारी, यूपीए सरकार के ताजा-ताजा बने एक कैबिनेट मंत्री से सम्पर्क साधने में लगे हैं।
    दरअसल अधिकारियों में यह भगदड़ उ.प्र. के वरिष्ठ नौकरशाहों पर की गई उच्चतमन्यायालय की टिप्पणी के बाद और प्रदेश में बसपा के जनाधार की खुफिया रिपोर्ट आने के बाद हुई है। बावजूद इसके हैरात में डालने वाली बात है कि प्रदेश की गुप्तचर एजेसियां इसे क्यों नजर अंदाज कर रही हैं?

झूठा है... लखनऊ की तरक्की तराना

लखनऊ से मुझे बेपनाह मोहब्बत है। दीवानेपन की हद तक इश्क है। शहर का हुस्न और उस पर छाई मस्ती के साथ अदब-ओ-आदाब के गुलशन की बहार से पूरी दुनिया को रश्क रहा है। लखनऊ के दस्तरख्वान की महक तबीयत में वो ताजगी भरती कि सेहत खुद-ब-खुद बाग-बाग। इमारतों की गुत्थमगुत्था वाले इलाके हों या नन्हीं-मुन्नी उछलती दोपल्ली टोपियों की शरारतें या फिर शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली गोमती की अठखेलियां। सौन्दर्य हर कोने बिखरा पड़ा, आज उसे परिवर्तन की बयार तरक्की के बेजा सपनों से सजाने में लगी है। असल में बदलाव के साथ बदहाली और तंगदिली ने लखनऊ में कयाम कर लिया है। लखनऊ का दस्तरख्वान टुंडे के कबाब से शुरू होकर गली-कूचे की बिरियानी पर खत्म हो जाता है। गजल औ ठुमरी के दिलों पर ‘रॉक बैण्ड’ हमलावर हैं। नाजनीनों, हसीनों की पायलों की रूनझुन की जगह उघारे जिस्मों की बेशर्म हरकतों से कामदेव से लेकर नवाबीनों की रूह तक खफा-खफा सी लगती है। लखनऊ की ताजियेदारी से लेकर ईद, होली,दीवाली से बढ़कर गुड़ियों का मेला, सबके सब रूसवा। कमबख्त इमामबाड़ों में बेहूदा इबारतें तक नए लखनऊवों का मिजाज बयां करती हैं। कौन कह सकता है कि इमारतों के जंगल में दौड़ते बेतरतीब वाहन और भागते जिन्दा इंसानों का काफिला लखनऊ है। गो कि यह नवाब वाजिदअली शाह की विरासत कतई नहीं हो सकता। तिस पर तुर्रा यह कि लखनऊ भी तरक्कीमंद शहरों की जमात में शामिल हुआ। ऐसी खबर गए महीने रोज छपने वाले एक अखबार मे पढ़ने को मिली थी। खबर के मुताबिक ‘वर्ल्ड मेयर्स’ ने दुनिया के तमाम तरक्कीमंद शहरों में लखनऊ शहर को तरक्की के 74वें पायदान पर रखा है। यह सब लखनऊ के मेयर के ‘वर्ल्ड मेयर कान्फ्रेस’ में दिए गये आंकड़ों की बदौलत लखनऊ को हासिल हुआ, ऐसा लखनऊ के मेयर ने अपने ही हाथों अपनी पीठ ठोंकते हुए कहा भी है। हकीकत में लखनऊ ने चार पार्कों, दस इमारतों और लिपे-पुते हजरतगंज के अलावा पिछले बीस सालों में क्या हासिल किया हैं?
    अब्वल तो शहर की तीस लाख आबादी चौबीस घंटों में आठ घंटे अंधेरे में गुजारा करती है। घर के अन्दर हो या घर के बाहर। पांच लाख बिजली उपभोक्ता बिजली की आवाजाही से बेहाल है। अस्पतालों में ऑपरेशन तक नहीं हो पाते, मरीज 15-16 घंटे बिजलीगुल से हलकान रहते हैं। बिजली फाल्ट दुरूस्त करने के लिए अदालत को दखल देना पड़ता है। सड़कों पर 152089 स्ट्रीट लाइटों में 60 फीसदी खराब है। गलियों में अंधेरा और कूड़ा, नालियों में बजबजाहट, सीवर का मल सड़कों पर बहता हुआ। 10 हजार से अधिक सफाईकर्मी तैनात होने के बाद 40 रु0 हर महीना देकर घरों से कूड़ा उठाने के तमाशेे ने शहर भर में कूड़ा बिखरा दिया, आलम यह है कि चालीस रुपए दो और कूड़ा अपने दरवाजे डलवा लो। इससे भी बदतर गोमती किनारे कूड़े की एक लम्बी ऊँची चट्टान मनकामेश्वर मंदिर से झूलेलाल पार्क तक दुर्गंध मार रही है। पुराने लखनऊ, खदरा, तेलीबाग, इंदिरा नगर के कई इलाकों व मध्य लखनऊ में हजारों की संख्या में संक्रामक रोग के शिकार लोग अस्पतालों में भटक रहे हैं, वहां रोगियों के इलाज के लिए मारामारी मची है। सआदतगंज इलाके में लोगों ने अपने हाथ से नालियां तक साफ करनी शुरू कर दीं। जलभराव का एक ही सुबूत काफी होगा, मवइय्या पुल के नीचे बिन बरसात पानी भर जाता है। इसे जस का तस देखते हुए तीन-चार पीढ़ियां जवान हो र्गइं। नए लखनऊ में चलें तो इन्दिरा नगर पॉलीटेक्निक चौराहे के पास व इस्माइलगंज इलाके में कूड़े के ढेर और जल भराव से बदहाली, और तो और नए रंगे-पुते हजरतगंज में जलभराव, देखा जा सकता है। पीने के पानी की व्यवस्था बरसों पुरानी लीक पर टिकी है।
    शहर का यातायात हजरतगंज चौराहे को छोड़कर पूरे 6500 वर्ग किलोमीटर की सड़कों पर अनियंत्रित। हर तरफ जाम और 13 लाख से अधिक अंधाधुंध वाहनों की दौड़ से नागरिक परेशान। बस, ऑटो, रिक्शों पर कोई नियंत्रण नहीं सब मनमाने ढंग से जेब काटने से लेकर बेहदूगी पर अमादा। अस्पतालों में मरीजों से र्दुव्यहार की घटनाएं, सड़क पर बच्चा जनने से लेकर दवा न मिलने तक की खबरें रोज अखबारों में छपती हैं। जबकि शहर में 12 बड़े अस्पताल, 26 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ 260 नर्सिग होम भी हैं। तीन-तीन सीएमओ की हत्याओं से सभी वाकिफ है। शिक्षा के लिए 8 हजार के आसपास उच्च से लगाकर प्राथमिक व तकनीकी स्तर तक के विद्यालय हैं, फिर भी गरीब बच्चों के लिए शिक्षा का अभाव। साक्षरता की दर भले ही 79.33 फीसदी हो, लेकिन साढ़े पांच लाख बच्चों में आधे बच्चे शिक्षा से महरूम हैं।
    लखनऊ शहर की साढ़े छः हजार वर्ग किलोमीटर की सड़कों पर आवारा जानवरों की फौज चौबीसों घंटे गश्त करती रहती है। इमारतों की छतों और उनके भीतर बंदरों का आतंक है। कुत्तों और सांडों का अखाड़ा व प्रजनन केन्द्र कहीं भी देखें जा सकते हैं। इनके मल-मूत्र की गंदगी से मच्छरों की आबादी में खासी बढ़ोत्तरी हो रही है, जो मलेरिया फैलाने में सहायक हैं। स्लाटर हाउसों के पास मंडराते कुत्ते शहरियांे को लगातार घायल कर रहे हैं। नगर निगम का आवारा पशुओं को पकड़ने वाला दस्ता केवल दुधारू पशुओं को पकड़ने में दिलचस्पी रखता है। शहर की कानून-व्यवस्था का हाल कितना बेहाल है, यह इसी से जाहिर हो जाता है कि महज 20 रूपए के झगड़े में बेखौफ हत्या हो जाती है। बड़े हत्याकांडों का खुलासा पुलिस कर नहीं पाती। हर गली-नुक्कड़ पर शोहदों का आतंक, जो लड़कियों का जीना मुहाल किये है। यही हाल शहर में अतिक्रमण का है। गलियों में, सड़कों पर बेतरतीब खड़ी गाड़ियों से दुर्घटनाएं हो रही हैं। इससे बदतर क्या होगा कि आदमी की चिता के लिए भी पुरसुकून इंतजाम नहीं। गो कि सब कुछ राम भरासे, फिर भी मेयर साब अपनी पीठ ठोक रहे हैं। जनाब अपनी रिहाइश के ठीक पीछे वाले मोहल्ले में एक अल्सुबह अकेले पैदल चलकर सैर कर आइए तो तरक्की के नंगे अर्थशास्त्र से मुलाकात हो जाएगी। बेशक आपकी जुबान में तरक्की हुई है, नौकरशाहों, नेताओं, बड़े बनियों और उनके रिश्तेदारों की और उसके सुबूत में अरबों की संपत्ति महज एक ज्वैलर्स के यहां हालिया पड़े आयकर छापे में बरामदगी है। आनंदी वॉटर पार्क नगर निगम सीमा में ही है, जनाब मेयर साब।
    चुनाचंे तरक्की वाह-वाह। तरक्की आह! आह! और अन्त में नवाब वाजिदअली शाह का लखनऊ उन्हीं की जुबान में -
गुलशन अजब बहार के हर कस्र रश्के खुल्द। और गोमती गजब की है दरिया-ए-लखनऊ।
हूरो परी को रश्क था एक-एक शख्स पर। बे मिस्म थे सभी महे सीमा-ए-लखनऊ।